कौन हुँ मै हस्ति क्या मेरी साँवरे— ( काव्य रचना )

कौन हुँ मै हस्ति क्या है मेरी साँवरे जान ना पाये है।

माट्टी का पुतला है, माट्टी मे ही मिल जाऐंगे।

गुमनाम जीन्दगी से अच्छा है कुछ हदे,दायरे पार कर जाऐंगे।

खेलती है, खेल जीन्दगी पर हम जीन्दगी का मतलब ही बदल जायेंगे

कौन हुँ, मै हस्ति क्या है मेरी साँवरे जान ना पाये है।

माट्टी का पुतला हैँ ,माट्टी मे ही मिल जाऐंगे।

कहते है कुदरत रंग बदलती है।

मगर हम कहते है कि वक्त आने पर दुनिया ही बदल जाती है।

बेरुत बहार आ भी जाये मगर बे मतलब कोई साथ निभाता नही।

अरे भई यह जीन्दगी है अपने पेतरे ना जाने कब क्या दिखाती है।

महकता है जहान सारा गुल्लो के खिल जाने से।

मगर हम गुलदान भी महका जाऐंगे।

कौन हुँ, मै हस्ति क्या है मेरी साँवरे जान ना पाये है।

माट्टी का पुतला है, माट्टी मे ही मिल जाऐंगे।

मतलब की दुनिया है मतलब निकलते ही बदल जाती है।

,मगर हम जीन्दगी का मतलब ही बदल जाऐंगे।

खाते है ठोकर लोग अक्सर अपनी गलती से।

मगर हम गलती से भी ठोकर ना खाऐंगे।

कौन हुँ मै हस्ति क्या है मेरी साँवरे जान ना पाये है।

माट्टी का पुतला है, माट्टी मे ही मिल जाऐंगे।

देते हो उल्हाने जीन्दगी के कमजोर पलो के लिए अकसर।

मगर जब जीन्दगी ही अपनी है तो उल्हाना किसे सुनाऐंगे।

मत ठहराओ दोषी किसी को बेमतलब के कारणो से।

जब खुद पर नजर घुमाऐंगे तो खुद के दोष नजर आ जाऐंगे।

नजरियाँ बदल जाऐं तो हालात खुद सुधर जाते है।

कौन हुँ मै हस्ति क्या है मेरी साँवरे जान ना पाये है।

माट्टी का पुतला है, माट्टी मे ही मिल जाऐंगे।

जय श्री राम

जय श्री कृष्ण

Advertisement

एक उत्तर दें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s