त्रिजटा नाम राच्छसी एका राम चरण रति निपून विवेका।
सबन्हौ बोलि सुनाएसि सखि सपना। सीतही सई करुहु हीत अपना।।
इस चौंपाई का भावार्थ————
त्रिजटा नाम की एक राक्षसी सीता की सेवा मे नियुक्त हुई थी। रावण ने त्रिजटा को सीता की देख-भाल करने हेतु सीता की कुटियाँ मे रहने के लिए रखा था। इस चौपाई का भावार्थ है कि, त्रिजटा ने सीता की चौकसी के लिए रावण ने जिन्हे रखा था। उन सभी राक्षसियो को त्रिजटा ने अपने पास बैठाया और रात्रिकाल मे देखे सपने का मतलब बताते हुए कहाँ कि अरी सखियो ध्यान देकर सुनो, तुम्हे मै एक काम की बात बताती हुँ,कि रात्रिकाल मे मेने सपने मे देखा कि एक वानर ने सारी लंका को जला दिया है।
ऐसे मे माता सीता ने हमे बचा लिया। इस लिए तुम सब ध्यान रखना कि अब से सीता को किसी प्रकार से सताना मत क्योकि जब मुश्वित आऐंगी तो सीता ही हमे उस मुश्वित से बचा लेगी। आज रात्रि के अंतिम प्रहर मे मेने यह सपना देखा है। इस लिए मेरा यह सपना बहुत जल्दी ही घटित हो कर रहेगा। इसमे तनीक भी संशय नही।
यह त्रिजटा का अपनी सखियो से सीता के बारे मे संवाद था। त्रिजटा कुल से राक्षसी जरुर थी पर मन मे वह राम की भक्ति करती थी। रावण ने इसी लिए त्रिजटा को ही सीता की सेवा मे नियुक्त किया था। वह जानता था कि त्रिजटा राम भक्त है तो वह सीता को नुक्शान नही पहुचाऐंगी। जब्कि दुसरी राक्षसियाँ सीता से वैर भाव रखेंगी तो वह सीता को नुकसान पहुचा सकती है। सीता को व्यर्थ मे यातनाए पहुचाएंगी।
देखा आपने रावण भले ही दुनिया के सामने राम से वैर रखता था मगर दिल मे वह भी राम की और सीता की भक्ति ही रखता था। देखा रावण कितना ज्ञानी था। वह राम के हाथो अपने पुरे कुटुम्ब को इस राक्षस जोनी से मुक्त करवाना चाहता था। तभी उसने दिखावटी वैर ठान लिया और एक-एक कुटुम्बी को बारी-बारी राम से युद्ध करने भेजता गया। राम के पवित्र कर कमलो ( हाथो ) से मर कर नारकीय जोनी ( नरक मे जाने वाला) से मर कर नरक गमण ना करना पडे। प्रभु के हाथो मर कर पवित्र हो प्रभु धाम को जाए सभी। एक यह मंशा भी रावण की रही होगी।
दुसरा रावण सीता को मन से माँ मानता था। जब भी रावण सीता के सामने जाता था, तो वह सीता को मनही मन माता प्रणाम कहता। उनको मन से प्रणाम करता था। रावण माँ ( दुर्गा,भगवती ) का बडा भक्त था। वह पुरे नो के नो नवरात्रि निराहार रह कर माँ की भक्ति,पूजा-अर्चन करता था। इस लिए सीता को माँ मान कर उनकी अच्छे से देखभाल हो सके। उनके तन,मन को कोई क्षति ना पहुचे। इस लिए इसी सोच से उसने राम भक्त त्रिजटा को ही सीता की सेविका बना कर भेजा था। सीता की सेविका बन कुटियाँ मे रहने। वैसे देखा जाए तो सभी नारियाँ माँ का अंश ही होती है। इस लिए माँ के भक्त कभी भी किसी नारी के संग अनीतिपूर्ण व्यवहार नही करते। वह सदैव हर नारी को माँ के समान समझ कर आदर-भाव रखते है। इस लिए भी रावण ने सीता के लिए एक नेक दिल राक्षसी को ही चुना कि यह सीता की सेवा तन,मन से करेगी उसे सकून पहुचाएंगी।
देखा आपने रावण के कर्म भले ही बुरे रहे होंगे। अंहकारवश उसने दुसरो का अहीत किया होगा, मगर उसकी सोच कितनी महान थी। वह पर नारी को सम्मान देता था। उसने कभी भी सीता को बुरी नजरो से नही देखा,ना ही उसने सीता को छुने की कोशिश की। यह उसके अच्छाई के परिणाम है। जब दुसरी राक्षसियाँ सीता पर अत्याचार करती तो त्रिजटा उन्हे वहाँ से हटा कर भगा देती। पुरी निष्टा से वह सीता की रक्षा किया करती थी।
जय श्री राम