भए प्रकट कृपाला दीन दयाला ( काव्य रचना )

राम जी जब पैदा हुए तो उनके अदभूद रुप को देख माँ कौशलया विष्मित हो गई। आँखो से खुशी के आँसु बह चले। उनकी सुन्दर छवि को देख कर आनन्द के सागर मे गोते लगाने लगी। जब माँ कौशलया अपनी स्मृति मे लौटी तो सोचने लगी प्रभु के इस रुप को देख कर दुनिया कैसे मानेगी यह मेरा लाल है। इस रुप मे तो यह कही से भी मेरा बालक नजर नही आ रहे। इस लिए वह बोली प्रभु अपनी लीला को छुपाओ और एक साधारण बालक के रुप मे आ जाओ।

तुलसीदास कृत रामायण की भावविभौर कर देने वाली चौपाईयाँ राम जन्म लीला ——

(1) भए प्रकट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी ।

भावार्थ— दीनो पर कृपा करने वाले दीन दयाल श्री राम ने कौशल्या के कोख से जन्म लिया ( प्रकट हुए ) माँ कौशल्या को सुख पहुचाने के लिए कौशल्या के बालक बन प्रकट हुए।

(2) हर्षित महतारी मुनी मन हारी अदभुद रुप बिचारी।

भावार्थ —– श्री राम के जन्म लेते ही माँ कौशल्या ने उनके दर्शन किये वह बहुत खुश हुई।भगवान के उस अद्भूत रुप को निरखने लगी और आनन्द मे भाव विभौर होने लगी।

(3) लोचन अभिरामा तनु घनश्यामा निज आयुध भुज चारी।

भावार्थ —— भगवान श्री राम की सुन्दर झांकी माँ कौशल्या निहार रही है। नैयन इतने सुन्दर की आँखो को देख कर सुख मिले आनन्द पाये। सुन्दर श्याम वर्ण के वदन वाले भगवान के चार लम्बी बलिष्ठ भुजाए है। उनकी भुजाओ मे अस्त्र-शस्त्र शोभायमान ( हाथ मे अस्त्र शस्त्र पकडे ) हो रहे है।

(4) भूषन वनमाला नयन विशाला शोभा-सिंधु खरारी।प्रभु कि देख-देख कर माँ कौशल्या भाव विभौर होती जा रही है।

भावार्थ —— उनके श्री अंगो की शोभा बढाने के लिए उनके शरीर पर फूलो के आभूषण विराजमान है। फूलो की वैजयंतीमाला पहने हुए है। भुजाओ पर फूलो के भुजबंद। बडी- बडी सुन्दर आँखे है। उनकी सुन्दर छवि को माँ कौशल्या देखती है।

(5) कह दुइ कर जोरी अस्तुति तौरी केही विधी करहु अंतता।

भावार्थ —— उनकी सुन्दर छवि देख माँ कौशल्य श्री राम से प्रर्थना करती है। उनको कहती है कि प्रभु आपकी इस अद्भूत छवि का अपने शब्दो मे कैसे ब्यान करु आप तो बहुत ही सुन्दर है।आपकी छटा बडी निराली है।

(6) माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुराण भनंता।

भावार्थ—– आपका रुप तो माया से परे है। वेदो पुराणो मे आपके रुप का जो वर्णन है उससे कही अधिक आपकी अद्भूत छवि मुझे आज देखने को मिली है।

(7) करुणा सुख सागर सब गुन आगर जेही गावहि श्रुति संता।

भावार्थ ——-हे प्रभु आप तो सभी दुखो को दुर करने वाले है। आपका गुण गान संत लोग नित्य करते नही थकते।

(8) सो मम् हीत लागी जन अनुरागी भए प्रकट श्रीकंता।

भावार्थ ——हे प्रभु आपने मुझे सुख देने हेतु जन्म लिया है। दुनिया ( भक्तो ) पर स्नेह बरसाने के लिए आप घरती पर पधारे है।

(9) ब्रहमांड निकाया निर्मित माया रोम-रोम प्रति वेद कहे।

भावार्थ ——— आपने ही इस सारा ब्रहमांड की रचना। यह सारा मायामय जगत है इसके रचियेता आप ही है। वेदो पुराणो मे आपका वर्णन है। वेद पुराण मे आपकी लीला का सुन्दर वर्णन लिखा हुआ है।

(10) मम् उर सो वासी यह उपहासी सुनत धीरमति धिर ना रहे।

भावार्थ———– माँ कौशल्या के ह्रदय स्थल पर निवास करने वाले प्रभु श्री राम ने माँ की बातो को सुन कर अपनी चुपी तोडी, जवाब देने हेतु उन्होने मईया से कहना शुरु किया।

(11) उपमा जब ज्ञाना प्रभु मुस्काना चरित्र बहु विधी किन्ह चहे।

माँ कौशल्या की बातो को सुनकर मुस्कराते हुए प्रभु बोले माँ तुमने जो मेरा गुण गान कहाँ मुझे बालक बनने के लिए क्या करना है तुम बताओ।

(12) कथा सुहाई मातु बुझाई जैई प्रकार सूत प्रेम लहे।

भावार्थ—- माँ कौशल्य ने एक बालक जब जन्म लेता है उसके गुण प्रभु को बताने लगी। पॅभु आप ऐसा रुप बनाओ कि जैसे पुत्र अपनी माँ की गौंद मे सुखी होता है।

(13) माता पुन्ही बोली सो मति डोली तजहु तात् यह रुपा।

भावार्थ ——— माता बोली प्रभु आप अपने रुप बदलो चार भुजाए तजो दो भुजाए ही बालक के होती है। एक शिशु की भाति रुप धारण करो। इस रुप को देख कौन मानेगा कि तुम एक राजा के पुत्र हो। इस लिए यह रुप त्याग दो और एक शिशु का रुप धारण करो।

(14) कीजै शिशु लीला अति प्रिय शीला यह सुख परम् अनुपा।

भावार्थ—— हे प्रभु आप एक बालक की लीला करो जैसे बालक शिशु होता है वैसा भेष बनाओ। बालक की भांति रोना शुरु करो और पालने मे शिशु रुप मे आकर लेट जाओ। इन आभूषणो व अस्त्र-शस्त्रो का त्या करके आओ।

(15) सुनी वचन सुजाना रोदन ठाना होई बालक सुरभूपा।

भावार्थ——– माँ की बात सुन प्रभु बालक के रुप मे आ गए शिशु की भांति लीला करने लगे। दो भुजाए नन्हे रुप मे सभी आभूषण और अस्त्र-शस्त्रो को त्याग दिया। पालने मे शिशु बन कर लेट गए और शिसु की भांति रोने लगे। लोगो ने जब बालक के रोने की आवाज सुनी सभी माँ कौशल्या के महल की तरफ भागे चले आए की राजा दशरथ के घर बालक ने जन्म ले लिया है।

(16) यह चरित जो गावही हरि पद पावही ते न परहि भवकूपा।

भावार्थ——– जो प्रभु श्री राम का यह चरित्र को पढता सुनता है। वह कभी भी नरक मे नही जाता। वह भगवान के धाम मे जा कर प्रभु के समान बन जाता है।

भगवान श्री राम ने कौशल्या के घर मे जन्म इस लिए लिया था, क्योंकि जब सतयुग का आरम्भकाल था तब राजा मनु और उनकी पत्नि सतरुपा ने उस जन्म मे घोर तपस्या करके भगवान श्री हरि नारायण को पसन्न कर लिया। श्री नारायण ने मनु और सतरुपा की भक्ति से प्रसन्न हो कर उन्हे वर मांगने के कहाँ तो राजा मनु ने अखण्ड राज्य मांगा और सतरुपा ने भगवान से कहाँ कि मुझे अगले जन्म मे तुम्हारे जैसा पुत्र प्राप्त हो। तब भगवान ने पुरे ब्रहमांड मे चारो तरफ नजरे घुमाई और बोले कि यह कैसे सम्भव हो सकता है, क्योंकि मेरे समान मुझे तो पुरी सृष्टि मे कोई और नजर नही आ रहाँ तो तुम्हे कैसे वरदान दुँ।

पर सतरुपा अपने वचन पर अडिग रही और बोली प्रभु मुझे आप जैसा बालक ही चाहिए। इस बात को सुन प्रभु कुछ सोच मे पड गए और फिर कुछ सोच-विचार करके कहाँ ठिक है, मै तुम्हे वरदान देता हुँ, कि तुम मेरे जैसा ही बालक पाओंगी। मेरे जैसे तो कोई नही पर माँ तुम्हारी ईच्छा-पूर्ति के लिए मै ही तुम्हारा बालक बन कर पैदा होऊंगा। राजा मनु और सतरुपा प्रभु से आशिष पा धन्य हुए। तब सतरुपा ने कहाँ जब आप मेरे पुत्र बन कर पैदा हो तब मुझे इस बात का स्मरण रहे कि आप मेरे बालक बन कर आए है। बस इसी लिए राजा दशरथ को तो यह याद ना रहाँ मगर माँ कौशल्या को उस वरदान से यह स्मरण करवाने के लिए ही प्रभु साक्षात उसके सामने प्रकट हो गए थे।

दोनो ने तपस्या से उठ कर प्रभु के पैर पकड लिये। वही राजा मनु इस जन्म मे राजा दशरथ राम के पिता बने और सतरुपा माँ कौशल्या बन कर प्रभु को अपनी गौंद मे खिलाने की अधिकारनी बन गई। श्री राम की माता कौशल्या वही सतरुपा थी। जब कौशल्या के बालक के जन्म का समय हुआ माँ कौशल्या के सामने प्रभु प्रकट हुए। उनके वेश -भूषा को देख माँ कौशल्या ने पहले तो उनका बहुत गुणगान किया,उनकी स्तुति करी। बाद मे माँ कौशल्या ने देखा कि प्रभु के इस रुप मे प्रकट होने से लोग कैसे मानेगे कि यह मेरा बालक है क्या कोई बालक पैदा होते ही इतना बडा हो सकता है।

इस लिए कौशल्या ने प्रभु से विनती करी कि हे प्रभु आप अपना यह भेष त्याग देवे और एक साधारण बालक के रुप मे नन्हे शिशु बन कर आए। माँ की सभी बाते सुन प्रभु मुस्कराए और एक शिशु बन कर पालने मे सो गए चार भुजाए त्याग कर दो भुजाओ मे और आभूषण, अस्त्र-शस्त्र त्याग दिये और शिशु की भांति रोना शुरु कर दिया कि राजा के घर पुत्र पैदा हो गया। लोग दौडे आए और बालक को निहारने लगे। बालक के रुप मे राम रोने का अभिन्य करने लगे। राजा दशरथ और माँ कौशल्या की खुशी का कोई ठिकाना ही नही रहाँ।

जय श्री राम

जय श्री कृष्ण

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