महत्वपूर्ण तथ्य —— कुछ मुर्ख लोगो ने ना जाने कब और कैसे कई मिथक फैला दिये जिनके कारण आज हमारी शुद्ध और पवित्र संस्कृति अशुद्ध हो गई। बहुत से विदेशी आक्रमणकारी आए संग अपनी दुषित संकृति भी ले आए और यहा हमारे समाज मे गंदगी फैलाने के लिए वह मिथक भ्रम छोड गए जिसका खामियाजा हमारा समाज आज भी भुगत रहाँ है।
हमारे देवी देवता और हमारे पूर्वज हमारा प्राचीन इतिहास सभी चिक्ख चिक्ख कर हमे सही राहॅ दिखा रहाँ मगर हम तो दुसरो की संस्कृति की अशुद्धता को अपनाने उसे मानने मे अपनी हौसियारी समझते रहे। धिकार है हमे कि हम अपनी अनमोल धरोहर को छोड गंदगी के दलदल मे फसते चले गए और आज चाहते है कि राम राज्य आएगा। कहाँ से आएगा राम राज्य। इसके लिए पहले हमे राम बनना पडेगा तभी तो कल्पना कर सकते है राम राज्य की।
हमारे देवी-देवता,भगवान,पूर्वज ( प्राचीन भारत के लोग ) कभी भी अभक्ष्य का भक्ष्ण नही करते थे आज देखो मुँह फाड कर लोग ऐसे कह देते हैकि, देवता सुरा-पान करते थे सुन्दरियो के चक्कर मे रहते थे। अशुद्ध अपवित्र वस्तुओ का सेवन करते थे।
अरे भई आप इतने महान है कि आपने उनके जमाने मे या स्वर्ग मे जाकर देखा कि क्या खाते क्या करते है देवता और क्या करते थे पूर्वज। आईए बताती हुँ आपको कैसे है देवता और कैसे थे हमारे पूर्वज पहली बात देवता कभी भी अभक्षणिय का भक्ष्ण नही करते थे और ना ही करते है और हमारे पूर्वज भी उन्ही आदर्शो मे चलते थे। आप मंदिर जाते है तो पुजारी आपको मांस मदिरा देता है क्या प्रशाद मे नही ना वह आपके हाथ मे कुछ मिठाई ही रखता है कि यह लो भगवान का प्रशाद। जब मंदिरो मे बुरा भोग नही तो आप बडे वेबाक हो कर कैसे कह सकते है कि देवता मांस मदिरा का सेवन करते है। शर्म करो आपको गंदगी पसंद है तो शौंख से अपनी तमन्ना पुरी करो मगर इसमे कृपा करके भगवान और देवताओ और हमारे पूर्वजो को मत घसिटो।
दुसरा मिथक कि देवता अशलिल बुद्धि के होते है नही जी अशलिलता तो आपकी बुद्धि मे बसती है तभी आपको सब मे अशलिलता नजर आती है। देवता कभी भी नग्नावस्था (अंगप्रदर्शन )को नही देखते। क्या आपने कभी किसी मंदिर मे देवी-देवताओ की मुर्ती को बिना वस्त्र धारण किये देखा है नही ना जब हम मुर्ती को भी वस्त्रो से ढकते है तो देवता कैसे अशलिल हुए वह ते पुरे वस्त्र धारण करते है कभी भी अंग प्रदर्शन नही करते मगर आज की पिढी अशलिल लोगो की देखा देखी मे अशलिलता मय व्यवहार करते है। बहु सास ससुर के सामने जींस व फ्राक पहन कर घुमती मुवी बनाती है क्या यही हमारी संस्कृति है।
हमारी सुद्ध सातविक संस्कृति है जो इसे माने वही सही मान्य मे हमारे समाज का ( भारतीय समाज ) अन्यथा वह मिश्रण ही है मात्र। चलो छोडो जी हमे क्या जो मर्जी करो जीवन आपका जैसे चाहो रहो मगर भारतीय समाज के संग खुद को मत जोडो जब आपको भारतीय समाज के दायरे पसंद ही नही तो। अगर भारतीय समाज का कहलाना चाहो तो पहले भारतीय समाज के आदर्शो को जीना सिखो।प्राचीन भारतीय समाज पुरी तरह शुद्ध व सातविक था। किसी भी वर्ग का व्यक्ति अपवित्र वस्तु नही खाता था, अपवित्र आचरण नही होता था। केवल अपनी ब्याहता पत्नि व पति के अतिरिक्त किसी की कामना नही थी उस समय।
रहन-सहन सब मर्यादा मे होता था। सब को आजादी थी महिला पुरुष पर फिर भी कभी कोई समाजिक मर्यादा भंग नही करता था। कुछ विदेशी प्रभाव कुछ बोलीबुड की कुछ अशलिलता हमारे भावी पिढियो को निगल जाना चाहती है। आप और हम इतना तो कर ही सकते है कि अपने बच्चो को सही दिशा निर्देश दे कर उनको मर्यादा मे बांध सके। कोशिश करना तो बनता है करके देखिए कोशिश रंग जरुर लाएगी। आज से ही नही बल्कि अभी से जुट जाईए अपने बच्चो मे संस्कारो का रोपन करने मे। जबर्दती कुछ नही कर सकते बस प्यार से उन्हे पास बैठाए और धिरे-धिरे बातो ही बातो मे उनको हमारी संस्कृति की महानता का अहसास करवाते रहे।
धिरे धिरे सब समझने लगेगे। बस थोडा धर्य बनाए और लगन से जुट जाए आओ हम फिर से पुराने वाला भारत लौटा लाए। करो खुद से संकल्प कि दुसरो को नही हमे खुद को बदलना है एक नया इतिहास रचना है। फिर आएगा राम राज्य। जब हर पुरुष राम और हर नारी सिता होगी।बहुत कुछ बदलना चाहती हुँ अपने महान देश की उन महानता को वापस लाना चाहती हुँ शायद यही मकसद मुझे फैसबुक से जोडने मे सहायक हुआ मुझे किसी से बाते करने या कोई उटपटाग करने की कामना नही है बस इतनी ही कामना थी कि मै ओनलाईन बर्ड से जुड गई शायद धिरे-धिरे बातो ही बातो मे हँसी मजाक करते करते आप सबको अपनी महान संस्कृति से पुनः जोड सकु।
हमारी संस्कृति कितनी महान है।ऐसे मे हम क्यो भटकते फिर रहे दुसरो की नकल मे केवल दलदल ही हाथ आने वाली ही इसमे।हम और आप सब मिल कर आज अभी जब आप पोस्ट पढ रहे हो से अपनी खोई हुई भारतीय मर्यादा को कायम करने की लगन मे जुट जाए। आज से फोटो अपलोड करने की जगह कुछ संस्कार की बाते पोस्ट करे ताकि समाज मे जागरुकता पैदा हो।
जय श्री राम जी की
बोलो हर हर महादेव, जय ब्रहमा मुरारी, जय श्री हरि विष्णु
सर्व मंगल मांगलय शिवै सर्वारथ साधिके शरंय त्रैयअम्बके गौरी नारायणी नमो सतुते नमो नमः
धन्यवाद
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