सनातन धर्म ग्रंथो का विवरण

भारतीय शास्त्रो मे देवी-देवताओ की जानकारियाँ दी गई है। सनातन धर्म के सिधांतो के संग सनातन धर्म के दर्शन पूजनिय विधिया आदि का उल्लेख शास्त्रो मे मिल जाता है। पर आज दुख की बात यह है कि सनातन धर्म के प्राचीन धर्म ग्रंथ आज हमारे बीच नही रहे उनमे मिलाबट हुई है। भारत मे बहुत सालो से विदेशियो के हाथ की कटपुतली बना रहाँ है। इस लिए हमारे शास्त्रो मे कब और कैसे उल्ट पुल्ट हो गया सोचने की बात है। मुश्लिम आक्रामक भारत आते तो भारत के धर्म को नष्ट करने के लिए मंदिरो, देवी- देवताओ की मूर्तियो को तौड- फौट करते। इसी तरह अंग्रेज भी भारत पर 500-600 साल तक रहे।वे पढे लिखे होते थे।

उनको ज्ञान की वस्तुओ का संग्रह करने का शौंक था। इसलिए वह भारत से सनातन धर्म ग्रंथो को अपने साथ इंग्लैंड ले जाया करते थे। इसी तरह भारत के असली और महत्वपूर्ण ग्रंथ गायब हो गए। अंग्रेज अविष्कार की तकनिक से जुडे थे। वह अपने छापे-खाने मे सनातन धर्म ग्रंथो को छापने ले जाते वही से ग्रंथ छपते इसके चलते अंग्रेजो ने कई फैर बदल भी किए हमारे शास्त्रो मे जो उनकी संस्कृति से मिलते हो। पर इन शास्त्रो मे हमारी संस्कृति मे कुछ अलग प्रतिती लिए आज के ग्रंथ। असली ग्रंथ आज नही मिल पाते। आज उन ग्रंथो व पहले के ग्रंथो मे कुछ अलग मिलता है।

शास्त्रो मे मिलावट का शक पैदा करते कुछ तथ्य ————-

शास्त्रो मे भगवान श्री कृष्ण को चोर बताया गया है। अगर भगवान ही चोरी करने लगे तो समाज मे चोरो की ईज्जत होनी सम्भाविक सी बात है मगर भारतीय समाज मे चोरी करना पाप माना जाता है। चोरी करने वालो को हेय दृष्टि से देखा जाता है। इसी दशा मे क्या भगवान चोरी करेगा नही ना। भगवान वही आदर्श समाज के आगे प्रस्तुत करते है जिससे समाज मे व्यवस्था उत्पन्न हो अराजकता नही फैले। अगर यह तथ्य सही है तो प्राचीन कवि सुरदास ने यह क्यो कहाँ कि अहीरन की छोहरिया मौहे छछिया भर छाछ पर नाच नचावे। अब सुरदास कौन थे? यह समझने के लिए उन पर एक नजर डाले।

सुरदास का परिचय ——–

सुरदास अकबर के दरबार के महान कवि थे मगर उनको भगवान की लीलाओ से प्रेम हो गया और उन्होने भगवान की भक्ति मे अपना मन लगा लिया था। वह कृष्ण प्रेम मे उनके लिए मधुर गीत लिखते। अपनी राज पदवी यानि राज कवि की पदवी की कोई परवाह नही की खुल कर वह एक संयासी जीवन जीने लगे। सुरदास जी मोक्ष कामना से प्रेरित हो कर संयासी जीवन जीने लगे। इसके लिए उन्होने संयास ले लिया। उन्होने बहुत से भक्तिमय दौहे, चौपाईया व गीत लिखे। एकबार सुरदास जी एक गांव से गुजर रहे थे। रास्ते मे उन्हे प्यास लगी तो, वह जलाशय की तलाश मे निकले। उन्हे एक महिला ने अपनी गागर से पानी पिलाया और उनकी तृसना को बुझाया। पानी पिला कर वह महिला अपनी गागर पानी से भर कर अपने घर लौट चली। वह महिला अपने घर जा रही थी, तब सुरदास जी उस सुन्दर महिला के रुप से मोहित से हो गए और

उस महिला के पिछे-पिछे चलने लगे। इस तरह सुरदास जी उस महिला के पिछे चलते-चलते उसके घर तक पहुच गए। महिला को इस बात की खबर नही थी, वह अपनी सखियो से बाते करती जा रही थी इस लिए उसको नही पता चला कि कोई उसके पिछे आ रहाँ है। वह महिला गागर के संग अपनी सखियो को विदा करती हुई अपने घर मे चली गई। अब सुरदास जी उसके घर के बाहर बैठ गए कि वह महिला जब दुबारा घर से बाहर आएगी तो उसे अच्छी तरह से निहारुगा। कई देर इन्तजार करते रहने के बाद भी वह महिला बाहर नही आई तो सुरदास ने एक युक्ति सोची कि किस तरह उस महिला को बहाने से बाहर बुलाया जाए। अब सुरदास ने उस महिला के दरवाजे के पास जा कर जोर-जोर से बोलना शुरु किया भिक्षा दो-भिक्षा दो। तब उस महिला का पति जो कि एक धनाढय सेठ था बाहर आवाज सुन कर देखने आया कि कौन आवाज लगा रहाँ है।

सुरदास भगवान के अनन्य भक्त महान कवि

उस महिला के पति ने सुरदास को देखा और पुछा कि क्या बात है कही भटक कर तो नही आए यहाँ तब सुरदास ने कहाँ कि मै भिक्षा चाहता हुँ भुख लगी है। यह सुनकर उस महिला के पति ने अपनी पत्नि को भिक्षा लाने के लिए बोला वह महिला भिक्षा लेकर उस सुरदास को देने आई और सुरदास उस महिला के सौंदर्य को निहारने लगा। भिक्षा दे कर वह महिला पुन्ह घर के भीतर चली गई। अब सुरदास बहुत खुश हुआ कि उसने उसके रुप को निहार कर देखा। मगर एकदम से उसको याद आया कि मै यह क्या करने लगा मै तो मोक्ष के लिए सब त्याग कर संयासी बना और आज एक महिला के रुप मे पागल हो भटक गया। इस तरह मन मे ग्लानि उत्पन्न हुई और उन्होने जलते आँगारो से अपनी दोनो आँखो को फोड दिया, क्योकि उन्होने सोचा कि इन आँखो से ही आज पाप हुआ है

। इन आँखो ने सौंदर्य देखा और मन पागल की भांति उस योवन का शिकार हो गया। इस लिए आँखे पाप मे प्रवृत रहने का ही काम करती है, तो क्यो ना इन आँखो को सदैव के लिए नष्ट कर दुँ। उन्होने आँगारो से आँखे फोड ली और बहुत खुश हुए कि अब आँख होगी ही नही तो मन कैसे भटकेगा फिर वह भक्ति मार्ग पर निकल पडे। देखा आपने एक संत जो भगवान को पाने की राह मे निकला तो उसने पाप ना हो इसके लिए अँधा होना सही समझा। इस तरह सुरदास कवि से सुरदास ( अँधे ) बन गए।

वह लकडी की सहायता से एक स्थान से दुसरे स्थान घुमते भगवान का चिंतन- मनन करते हुए अपना जीवन व्यतित करने लगे। एक दिन उन्होने भगवान के साक्षात दर्शन भी किये ऐसा वर्णन मिलता है। जब सुरदास जैसे महाकवि ने कृष्ण को चोर नही बोला तो यही मतलब है कि उस समय समाज मे कृष्ण को लेकर अलग धारणा थी और आधुनिक समय मे और ही मान्यता हो गई कि कृष्ण माखन चुरा कर खाते थे। यह धारणा कि कृष्ण माखन चुरा कर खाते एकदम निहायत घटिया सोच हो सकती है इसमे फैर बदल करके बताया गया है। सुरदास जी की माने तो भगवान एक ऐसी छवि है जिसको सभी प्यार करते है।

सुरदास का दोहा-गीत ———

ये अहीरन की छोहरियां मौंहे छछिया भर छाछ पर खुब नाच नचावै ——- अर्थात अहीरन की छोहरिया गोप-ग्वालिनो के लिए सम्बोधन किया जा रहाँ है। कृष्ण कह रहे है कि ये गोपिया ( गोपो की बेटियाँ ) मुझे छछिया भर छाछ के लिए यानि एक कटोरा छाछ के लिए देखो कितना नचाती है। मुझसे कहती है कि कान्हा तुम हमको अपना नाच तो दिखाओ बदले मे तुमको हम कटोरा छाछ देंगी। एक कटोरा छाछ पिने के लिए मुझे इन गोपियो के आगे कितना नाचना पडता है। नाचते- नाचते मै थक जाता हुँ, पर इन गोपियो को मुझ पर जरा भी तरस नही आता। देखो कितना नाच नचाती है।

इस तरह देखे तो कृष्ण माक्खन नही चुराते बल्कि गोपियाँ खुद उनको दही- छाछ,माक्खन खिला कर उनके नाच का आनन्द लेती है, क्योकि बाल कृष्ण है ही इतने प्यारे और ऊपर से उनकी तोतली बोली सभी गोपियो मे मातृत्व भाव को भर देता है। वह भाव विभोर हो कान्हा की नटखट अदाओ को निहार कर आनन्द कंद मे पहुंच जाती है। कवि और संत जमाने के अनुसार ही बात करते है इसमे मिलावट नही होती।

अब देखा ना आपने कि किस तरह उस समय के संत समाज मे कृष्ण के किस रुप को देखते थे। अगर वास्तव मे कृष्ण चोर होते तो उस समय भी इस विषय पर चर्रा जरुर होती। कृष्ण को चोर बताने वाली थ्योरी बहुत बाद की है जब विदेशी मूल के लोग अपने छापे खाने मे शास्त्रो को छापने लगे। हमारे संत भोले थे और चतुर-चालाक अंग्रेज उन भोले भाले संतो आचार्यो से हमारे शास्त्रो को छापे खाने मे छपाने के लिए लेते बदले मे शास्त्रो से छेड-छाड करके उसमे अपनी फिलाॅशपी डाल देते ताकि हम व्यर्थ की बातो मे उलझ कर अंग्रेजो जैसी चाल चलन चलने लगे।

एक मिथक कृष्ण का राधा से प्रेम करना ————

भारतीय समाज मे प्रेमालाप करना यानि एक लडका-लडकी एकदुसरे से प्रेम बंधन मे बंध कर समाज की सभी मान्यताओ को तौड कर उसके विरुध जाते यानि बिना दुसरो की मर्जी बस एक दुसरे को देखा और खो गए प्यार की गलियो मे नही जी ऐसा प्राचीन भारत मे तो सम्भव नही था। उस समय समाज अपने माणक सिद्धांतो पर चलता था। अगर कोई इन मानक सिंद्धांतो की अवेहलना करता था, तो उसका समाज बहिष्कार कर देता था। समाज मे उनके रहने के लिए कोई स्थान नही होता था। उन्हे देश निकाला दे दिया जाता था। भारत मे आज भी प्रेम विवाह को मान्यता नही कही- कही ऐसा हो जाता है।

वह भी समाज को लांघ कर पर आज समाज निंदा नही करता इस लिए चल जाता है। उस समय तो समाज का उल्लंघन करना चुनौती देना होता था। राजा द्वारा उसे सजा दी जाती थी। देखा ऐसी स्थिति मे प्रेम करना क्या आपको उचित लगा नही ना फिर ये राधा और कृष्ण प्रेमी कैसे हुए भला। निहायत ही घटिया सोच की ऊपज है। इसे अंग्रेजो ने अपने कलचर से उठा कर प्राचीन ग्रंथो से छेड-छाड कर इसका समावेश कर दिया। राधा नाम की कल्पना पैदा करके कृष्ण को आशिक बना दिया। एक तरह से ऐसा है तो कृष्ण पाप कर्ता हुए। कोई राधा है ही नही कृष्ण की प्रेमिका। गोपिया जरुर है जो मा के समान उसे प्यार करती उसके बालपन का आनन्द लेती।

राम के द्वारा सिता का त्याग ——-

भारतीय मूल्यो पर आधारित रामायण महाकाव्य मे राम ने सिता का त्याग करके उन्हे घने जंगलो मे छोड दिया था। यह कैसे हो सकता है कि मर्यादा-पुरुषोतम राम एक अबला पर जुर्म करेंगे। ऐसा हो ही नही सकता। राम तो वह व्यक्तित्व है जो किसी भी प्राणी का अहीत नही कर सकते। जब राम किसी पर भी अत्याचार नही कर सकते थे, तो एक अबला वह भी अपनी अर्धांगिनी वह भी उस पत्नि को जिसके लिए उन्होने रावण जैसे शक्तिशाली इंसान से टक्कर ले ली थी। भला ऐसा इन्सान कैसे किसी का अहीत कर सकता है। एक अबला नारी को सुनसान वीराने मे अनजान जगह पर छोडना कैसे सोच सकता है।

मारीच के पिछे जाते समय भी जब राम जी लक्ष्मण को सिता की रक्षा के लिए छोड गए, तो भला वह अब कैसे राक्षस की सोच वाले बन गए कि अपनी देवी समान पत्नि को एकदम अकेले जंगलो मे छोड सकते थे। जंगलो मे जंगली जानवरो से दुष्ट राक्षसो ( दुर्बुद्धि मानव ) से घिरे विहवान जंगल मे सिता की रक्षा कौन करता? एक साधारण मानव भी होता ना तो वह भी ऐसी सोच नही रखता। उसके भी दिल मे दया होती तो राम जो दया के सागर है, कैसे इतने निष्ठुर हो सकते है।

इसे भी अंग्रेजो ने अपनी युक्ति से फैर-बदल कर दिया, किसी दुष्ट इंसान की सोच होगी यह जो रामायण मे इतना बदलाव करके सनातन धर्म को मानने वाले को भ्रम मे रखने का काम किया है। हमारे घर मे भी पुरानी रामायण थी उसमे तो बस राम सिता का वनवास से लौट कर आना और राम सिता को सिंघासन पर विराजित करना। यही पर रामायण समाप्त हो जाती थी उसमे आगे का कुछ वर्णन ही नही था बस इतना लिखा होता कि राम का राजतिलक हुआ और खुशी-खुशी से सब सही तरीके से अयोध्या नगरी मे रहने लगे राम राज्य स्थापित हो गया प्रजा सुखपुर्वक थी।

कई अन्य तथ्य जो असत्य प्रतित होते नजर आते है ———-

सनातन धर्म को मानने वालो मे कई ऐसी धारणाए फैली हुई है कि उसका खण्डन करना बहुत जरुरी है, क्योकि यह धारणाए धर्म के नाम पर गलत सुचनाए नई पिढियो तक हस्तांतरण होती जाती है, और संस्कृति का अस्तितत्व खतरे मे पडता चला जाता है। कुछ चर्चा के माध्यम से नई शुरुआत करके पुरानी परम्परओ को पुन्ह जीवित करने मे मदद मिल सकती है। आजकल एक धारणा है कि भगवान का रंग काला है जब्कि ऐसा नही है कृष्ण काले नही है क्योकि भगवान कभी काले नही होते वह तो लोगो की सोच देश,काल के अनुरुप बन जाती है। भगवान के वस्त्र पिले होते है यह धारणा भी गलत है क्योकि भगवान तो लाल वस्त्र धारण करते है। लाल रंग की वुगती पहनते है।

वुगती ऐसा सिला वस्त्र कि जिसके आगे की तरफ डोरियो से बांध कर पहना जाना वाला कुर्ता होता है। जैसा की पहले के जमाने मे मारबाडी सेठ पहना करते थे। एक धारणा कि कृष्ण की संतानो ( बेटो ) ने मदिरा का सेवन किया जब मर गए भगवान कोई मदिरा नही पिते थे, तो उनकी संताने मदिरापान कैसे कर सकती है। यह तथ्य गलत प्रतित होता है, कि कृष्ण के वंशधरो पुत्रो ने मदिरा का सेवन करके एलका नाम घांस से एक दुसरे को काट डाला।यह तथ्य बिलकुल झूठ है। प्राचीन हिन्दु मदिरापान नही करता था। कृष्ण के पुत्र कोई साधारण इंसान नही थे वे तो देवता और ऋषि-मुनि थे। जिनको पुर्व जन्म मे भगवान ने अपना सानिध्य देने का वरदान दिया था।

जब कृष्ण ने अपनी लीला समाप्त की तो देवता लोग अपने -अपने धाम वापस लौट गए थे केवल कृष्ण लीला के लिए ही उन्होने स्वर्ग से धरती पर आगमन किया था। देवता कभी मदिरापान नही करते वे तो अमृतरस व गौरस का पान करते है। सनातन धर्म मे वर्णन है कि जो मदिरा पिता है वह नरक गमण करता है फिर तो अगर उन देवताओ ने मदिरापान किया होता तो वे स्वर्ग नही नरक मे जाते। एक मीथक कि कृष्ण ने गोपियो संग रास लीला की थी। उसमे उन गोपियो को छुआ बिलकुल निर्रथक है। प्राचीनकाल मे कोई उत्सव मनाते थे, तो वह नगर के बाहर खुले स्थान मे तम्बू गाड कर या खुले आकाश ही उत्सव का आनन्द लेते थे।

इस लिए जब रास लीला होई वह दिन था पूर्णिमा का यानि सारा दिन व्रत-उपवास रख कर रात मे चांद के दर्शन करके उत्सव का आनन्द लिया रात मे दुध की खीर बनाई उसे रात भर खुली चांदनी मे अमृतरस टपकाने के लिए रखा गया रात भर जाकर करने के बाद सुबह सबने नदी मे स्नान आदि से निवृत होकर पूजा अर्चना करके उस खीर का भोग लगा कर उसे खाया और इस तरह पहले दिन से रखे व्रत का पारायण करके उत्सव का आनन्द लेते हुए पुन्ह नगर लौट गए सब। कोई व्यक्ति पूर्णिमा का उपवास का उदयापन करने के लिए नगर के बाहर हवन आदि से निष्ठापूर्वक पूजार्चना करके उपवास का पारायन करता और पुरे नगर को इस उत्सव मे आंमत्रित किया जाता था।

नगर के सभी निवासी उस उत्सव मे भाग लेने नगर के बाहर एक स्थान पर एकत्रित होते थे। इस लिए रास वाले दिन पूर्णिमा थी। इस लिए पुरा नगर उत्सव मे भाग लेने पहुचा था। इस उत्सव मे छोटे-बडे, बच्चे व बुढे, औरत व आदमी सभी ने भाग लिया था। सबने मिलकर पुरी रात जागरण करते हुए नाच गा कर काटी थी। इसमे कहाँ से गोपियाँ और कृष्ण की लीला हो गई पता नही। भगवान जाने और कितने पाप हम जाने अनजाने पढते और सुनते है। यह सब झूठ पढना,सुनना व सुनाना नरक गमण का मार्ग प्रसस्त करना है।

राम भक्त हनुमान ———

रामायण के नायक श्री राम के दूत श्री महावीर हनुमान जी को ऐसा बताया कि वह मानव नही पशु हो उनके पूंछ लगादी उस समय के भोले-भाले हिन्दु विदेशियो की चाल भी नही समझ सके उनके छापे-खाने मे छपि पुस्तक को सही मान बैठे इससे पहले तो शास्त्र संस्कृत मे थे और आम जनता संस्कृत नही पढ सकती थी। इस बात का फायदा उठा कर ऐसा उल्टा-सिधा छापा गया और असली ग्रंथो को छुपा कर गायब ही कर दिया।

आईए देखते है कि हनुमान वास्तव मे पशु थे या मानव। हनुमान जी ऐसे कबीले से थे जो वन-कांननो मे रह कर जीवन जीते थे यानि एक मानव ही है। उनके कोई पुंछ नही थी और ना ही बंदर के जैसे बाल थे। वे तो वानर जाति के थे। वानर जाति का मतलब यह नही हो सकता कि मनुष्य बंदर हो। हनुमान जी के दो हाथ दो पैर थे पुंछ बाद मे लगाई विदेशियो द्वारा देखा अँधविश्वास कैसे अपने धर्म के साथ खिलवाड होते देख रहे है हम। हनुमान जी हमारे जैसे ही मनुष्य है बंदर नही है। अपनी धारणा मे परिवर्तन करो। पुंछ से लंका जला डाली। क्या पशु बोल सकता है। दो पैरो पर चल सकता है। नही तो हनुमान जी कैसे बंदर हुए।

निष्कर्ष ——–

सनातन धर्म के माणक सिधान्तो की कसौटी से देखा जाए तो शास्त्रो मे फैर-बदल हुई है। यह कहना कहाँ तक उचित है कि अंग्रेजो के समय फैर-बदल हुई या जैन धर्म और बोद्ध धर्म के समय सनातन धर्म को नीचा दिखाने की हौड मे बदलाव हुए। पर इतना अवश्य है कि धर्म शास्त्रो मे फैर बदल हुई है। इन मे वर्णित कुछ बाते है जो भारतीय समाज से मिल नही खाती।भारतीय समाज उच्च आदर्शो वाला समाज है। यहाँ परिवार ही नही बल्कि पुरे गांव की लडकियो को बहन माना जाता रहाँ है ऐसी दृष्टि आज भी हमे देखने को मिल जाती है।

भारतीय समाज मे किसी की व्याहता ( शादी-सुदा महिला ) को भाभी माना जाता था। उसके संग अपवित्र सोच नही रखी जाती थी। जब्कि विदेशियो मे ऐसा नही होता था उनके मन व नियत मे छोट रहती थी। भारतीय समाज मे मांसाहार निषेद था। विदेशी मांसाहार खाते थे। भारतीय समाज मे नशा करना मदिरा पीना पाप माना जाता था मगर विदेशी नशा करते थे। इस तरह देखा जाए तो भारतीय शास्त्रो से बहुत बदलाव हुए कब और कैसे इसका अनुमान लगा सकते है। सुनने मे आता है कि बहुत से शास्त्र तो इंग्लैंड मे रखे हुए है हमारी सरकार चाहे तो उन्हे वापस ला सकती है।यह सब इस लिए हुआ ताकि वह कह सके कि जब तुम्हारे भगवान ऐसा करते है तो पाप नही इस लिए मांसाहार खाओ नशा करो कोई पाप नही लगेगा। नशा बेच कर आमदनी बढाना उनका एक कारण हो सकता है शास्त्रो से खिलवाड करने का।

जय श्री राम

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