मकर संक्रांति हिन्दु धर्म की सबसे महत्वपूर्ण संक्रांति का स्थान है। आप जानते ही है कि सूर्य एक महिने तक ही एक राशि मे संचरण करते है। दुसरे महिने वे दुसरी राशि मे चले जाते है। राशियाँ 12 होती है मेष से लेकर मीन तक 12 राशियाँ है।इस तरह मेष राशि से लेकर मीन राशि तक अपना चक्कर जब सूर्य लगा लेते है तब एक वर्ष बनता है। सबसे पहले साल की शुरुआत मे सूर्य मेष राशि मे आते है तब मेष संक्रांति होती है।दुसरे महिने वृष राशि मे प्रवेश करते है तब वृष संक्रांति होती है।तीसरे महिने मिथुन राशि मे सूर्य विराजते है तब मिथुन संक्रांति होती है। चतुर्थ महिने कर्क राशि मे संचरण सूर्य करते है तब कर्क संक्रांति होती है। पांचवी संक्रांति सिंह संक्रांति होती है इस दिन सूर्य अपनी राशि सिह पर प्रवेश कर जाते है। षष्ट संक्रांति कन्या संक्रांति जब सूर्य कन्या राशि मे प्रवेश करते है। सप्तमी संक्रांति तुला संक्रांति, अष्टम संक्रांति वृश्चिक संक्रांति, नवम संक्रांति धनु संक्रांति, दसवी संक्रांति मकर संक्रांति, ग्यारहवी संक्रांति कुम्भ संक्रांति, फिर आखिरी और बारहवी संक्रांति मीन संक्रांति होती है। इस तरह सूर्य प्रतेक राशि को एक महिने मे अपना चक्कर लगाते हुए दुसरे राशि मे चले जाते है।

मकर संक्रांति क्यो मनाई जाती है——
भारतीय समाज मे जब सूर्य मकर राशि मे प्रवेश करते है तब उस दिन को मकर संक्रांति महोत्सव के रुप मे बहुत धुम-धाम से बनाई जाती है। बारहो संक्रांतियो मे से मकर संक्रांति का विषेश महत्व है तभी तो इसे हरेक भारतीय उत्साह व हर्सोलास से मनाते है। साल मे सूर्य अपना चक्कर उतर से शुरु करके दक्षिण दिशा तक फिर दक्षिण से उतर की तरफ अपना संचरण करते है।इस तरह सूर्य को उतर से दक्षिण दिशा की तरफ संचरण करने मे छः ( 6 ) महिने लगते है और फिर वे वहाँ से वापस घुम कर यानि दक्षिण से उतर की तरफ घुम जाते है। शनै-शनै वे वापस दक्षिण से उतर दिशा की तरफ खिसकने लगते है। सूर्य के छः ( 6 ) महिने से अगले छः महिने तक का बदलाव को भारतीय शास्त्रो मे अयण कहते है। इस प्रकार साल मे दो अयण होते है जब सूर्य उतर से दक्षिण दिशा की तरफ बढते है तो वह समय उतर अयण का होता है इसे उतरायण कहते है और जब छः महिने तक चलते हुए धरती ( पृथ्वी ) की दुसरी धुरी यानि दक्षिण ध्रुव तक पहुच जाते है तो वहाँ से फिर वे वापस यानि दक्षिण ध्रुव से उतरी ध्रुव की तरफ अपना रुख (मुवमेंट ) करते है। इस तरह जब सूर्य दक्षिण दिशा यानि दक्षिणी ध्रुव पहुच कर फिर उतरी ध्रुव ( उतर दिशा ) की तरफ मुड जाते है और उतर दिशा की अपनी यात्रा शुरु करते है वह समय दक्षिण से उतर की तरफ होता है इसे उतर अयण यानि उतरायण कहते है। जब सूर्य मकर राशि मे प्रवेश करते है तभी से वह दक्षिणी ध्रुव से होते हुए वापस उतरी ध्रुव की तरफ चलने लगते है। बस मकर राशि मे आते ही सूर्य दक्षिणायण से उतरायण हो जाते है।
उतरायण और दक्षिणायण मे फर्क——

भारतीय शास्त्रो मे उतर दिशा को देवलोक माना और दक्षिण दिशा को नरकलोक माना जाता है। मान्यतानुसार देवलोक यानि स्वर्ग धरती के उतर दिशा मे स्थित है और नरकलोक धरती के दक्षिण दिशा मे स्थित है। इस प्रकार जब सूर्य उतर से दक्षिण दिशा की तरफ अपना चक्कर लगाते है उस समय को शुभ नही माना जाता और जब सूर्य दक्षिण से मुड कर वापस उतर दिशा की तरफ संचरण करते है वह समय शुभ माना जाता है। इसी कारण भारतीय समाज मे कोई शुभ कार्यो को करने से पहले उतरायण को देखते है। खास कर शादी विवाह आदि शुभ कार्यो के लिए तो इसका बहुत महत्व होता है।इस का एक उद्दाहरण महाभारत के एक पात्र भीष्म-पितामह जीन्होने पुरे छः महिने तक बाणो की शईया पर इसी लिए गुजारा था कि जब सूर्य उतरायण होगा तभी वे अपने प्राण त्यागेगे उन्होने बाणो की पीडा को सहन करते हुए उतरायण का इनतजार किया उतरायण आते ही उन्होने अपने प्राण त्याग दिये थे।यानि जब सब मकर संक्रांति महोत्सव मना चुके तब उन्होने सबसे अपनी अंतिम विदाई ली थी उन्हे इच्छा मृत्यु प्राप्थ थी मगर वे स्वर्गगमण करने के लिए छः महिने बाणो की शईया पर रुके रहे।
उतरायण और दक्षिणायण का भारतीय समाज मे स्थान——-
भारतीय समाज मे उतरायण और दक्षिणायण इन दोनो को किस रुप से जानते है। वह है कि जब सूर्य अपना चक्कर लगाते हुए उतर दिशा ( उतरी ध्रुव से ) दक्षिण दिशा ( दक्षिणी ध्रुव ) कि तरफ संचरण करना शुरु करते है। इस समय को देवताओ की रात्रि ( रात ) शुरु होती है मान्यतानुसार धरती के छः ( 6 ) महिने देवताओ का दिन और धरती के छः ( त्र ) महिने देवलोक का दिन होता है। इस तरह जब सूर्य उतर से दक्षिण होता है तब देवताओ की रात और जब सूर्य दक्षिण से उतर होता है तब देवताओ का दिन होता है। जब देव शयनी एकादशी आती है तब देवता सो जाते है और जब देव उठनी एकादशी आती है तब देवताओ का दिन शुरु हो जाता है और देव उठ जाते है।

इस तरह से जब सूर्य मकर राशि मे आता है तब देवताओ के स्नान पूजन अर्चऩ करते हुए भोजन करने का समय आता है इसी मकर संक्रांति का समय होता है जब देवता अपनी देनिक-चर्या पुरी करके भोजन गृहण करते है। देवता लोग शुद्ध सात्विक भोजन करते है। इसी लिए आज के दिन यानि मकर संक्रांति के दिन देवताओ को भोग लगाने के लिए विषेशकर खिचडी बनाई जाती है और मिष्ठान के रुप मे तील-गुड से बने पकवान भी बनाए जाते है जैसे तील-गुड के लड्डू,तील-गुड की रेवडी,तील-गुड की गजक बनाई खाई व बांटी जाती है। इसी लिए खिचडी और तील -गुड के पकवान का दान किया जाता है और प्रत्येक घर मे खिचडी व गुड-तील लड्डू का देवताओ को भोग अर्पण किया जाता है और फिर इसी भोग को पुरे परिवार के साथ अपने मिलने-जुलने वाले प्रेमियो मे भी बांटा जाता है। सब इस प्रशाद का पा कर खुद को धन्य समझते है।
मकर संक्रांति के दिन गुड-तील के पकवानो को ही अधिक महत्व क्यो——–

आईए आप और हम यह जाने की मकर संक्रांति के दिन तील-गुड से निर्मित भोजन क्यो करते है। इसके लिए हम भारतीय शास्त्रो मे वर्णित ज्योतिष्य ज्ञान का सहारा लेते है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव धनु राशि का अपना चक्कर लगा कर इस दिन मकर राशि मे प्रवेश कर जाते है। मकर राशि के अधि पति ( राशि के मालिक ) शनिदेव है। इस तरह से सूर्य देव अपने परम शत्रु पुत्र शनि की राशि मकर मे आए। मकर राशि मे शनिदेव का घर है तो सूर्य देव अपने पुत्र को मिलने उसके घर मकर राशि मे पहुच जाते है इस के लिए पुरा एक साल हो जाता है तब कही पिता और पुत्र का मिलन हो पाता है। जब माता-पिता अपनी संतानो से मिलने जाते है तो वह अपने साथ वह सब सामान जो उनके पुत्रो को पसंद होता है भेट स्वरुप ले कर जाते है ठीक उसी तरह सूर्य देव भी अपने पुत्र के घर जब जाते है तो अपने पुत्र शनि की पसंद का सामान साथ ले जाते है। इसी तरह जब माता-पिता अपने दुर रहने वाले पुत्रो के घर जब पहुचते है तो पुत्र भी इस बात का विषेश ध्यान रखते है कि उनके माता-पिता को कौन सी वस्तु पसंद है कौनसा भोजन पसंद है वे वही सब भोजन की व्यवस्था अपने घर मे करते है जीससे उनके माता-पिता को खुशी मिले।

अब इतना हम समझ ही गए तो यह भी जान ले की सूर्यदेव की पसंद किसमे और शनिदेव को क्या पसंद है। सूर्यदेव को मिष्ठान बहुत पसंद होते है खास कर गुड और गुड से निर्मित भोजन बहुत प्रिय है और इसी तरह शनिदेव को तील बहुत प्रिय है वह तील का भोग खासकर लगाते है। इस तरह देखा जाए तो सूर्यदेव अपने पुत्र शनि की पसंद के तील भेट करते है और शनिदेव अपने पिता को प्रिय लगने वाला गुड भेट करते है और वह इस दिन दोनो एक दुसरी की पसंद को स्वीकार करते है और गुड और तील मिला कर खाते है। बस यही कारण है कि मकर संक्रांति के दिन तील-गुड के पकवान बना कर उसका भोग सूर्यदेव व शनिदेव को और संग सभी देवी देवताओ को लगाया जाता है।
मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव और शनिदेव के मंत्रो का जप-तप किया जाता है। हवन मे सभी देवताओ की आहुति के संग खासकर सूर्य व शनि ग्रह को अपना आज का हवन अर्पित किया जाता है। इस दिन हो सके जीतना सूर्य के बीज मंत्रो और शनि के बीज मंत्रो का जाप करना भी लाभप्रद होता है इस से इन दोनो ग्रह स्वामियो का शुभ आषिश पुरे साल मिलता रहता है। गायत्री मंत्र का भी जाप होता है इस दिन और तीनो देवता और तीनो देवियो की विषेश पूजा अर्जन भी लाभप्रद होती है। इस दिन गंगा स्नान का बहुत महत्व होता है। गंगा स्नान कर पाना सब के लिए सुलभ नही हो सकता इस लिए इस दिन नहाने के पात्र मे सबसे पहले कुछ बुंदे गंगाजल डाले फिर उस मे तील गुड थोडे से डाले इसके बाद साधारण जल से नहाने वाला पात्र भर ले और फिर इस जल से स्नान करे इसे भी गंगा स्नान की भांति पूर्ण फल देने वाला स्नान माना जाता है। गंगा जल हर भारतीय के घर होता है अगर किसी कारणवश घर पर गंगाजल ना हो तो आस-पास के पडौसी से या मंदिरो से भी ला सकते है।बस कुछ बुंदे यानि एक दो बुंद गंगाजल खाली बर्तन मे डाल कर बाद मे उस बर्तन मे नहाने का पानी गर्म-ठण्डा आपकी आवश्यकतानुसार भरे ये हुआ गंगा स्नान।

बहुत कुछ आप नही कर सकते तो केवल इतना भी कर ले कि आप अपने नहाने के बर्तन मे गंगाजल कुछ बुंद डाल कर फिर साधारण पानी जीससे आप नहाते है मिलाए गंगा जल ना भी मिले तो उसमे गुड तील थोडे से डाले और स्नान कर ले घर का प्रतैक सदस्य इसी विधी से फिर अपने घर के मंदिर मे या घर के या कमरे के इशानकोण को साफ करके वहाँ सूर्य व शनि के मंत्र या चालिसा और अपने इष्ट की पूजा जो रोज करते है करे इस दिन घर के सभी सदस्यो को इस पूजा मे शामिल रहना चाहिए ताकि सभी को इस पूजा का लाभ मिल सके। इसके बाद खिचडी और तील-गुड से बने पकवान का सामुहिक ( परिवार के सभी सदस्यो के संग बैठ कर ) भोग लगाए और इस प्रशाद को पुरे परिवार मे वितरण करे और अपने घर आने वाले मेहमानो को भी आज घर पर जो पकवान बनाए उसे खिलाए अपने संग। हो सके तो कुछ दान देना चाहे तो मंदिरो मे दान कर आए हो सके तो गरीब लाचार को भी कुछ मदद कर दे अपनी सामर्थ से। बस इतना करना भी बहुत लाभ देगा।