
कुन्ती आज बहुत खुश है। उसकी आँखो से खुशी के संग कुछ खेद भी मन मे उठ रहाँ है इस लिए हल्की सी मुस्कान की पिछे वो अपने आँसुओ को रोक नही पा रही है। लाख कोशिश करने के बावजूद आँसु है की रुकने का नाम ही नही ले रहे। इस लिए कुन्ती की आँखे बरबस बरसने लगी। कुन्ती की आँखो से छलकते आँसुओ को देख कर ( भगवान श्री कृष्ण जो की पहली बार अपनी भुआ से मिलने आ हुए है ) बहुत घबरा जाते है और अपनी भुआ कुन्ती के पास आ कर धिरे से बोले भुआ क्या हुआ आप रो क्यो रही हो क्या आपको मेरे आने से कोई तकलीफ तो नही हुई। कुन्ती अपनी आँखो से बहते अश्रुधारा को पोंछती हुई श्री कृष्ण को प्यार से गले लगा लेती है और फिर उनसे बोली कान्हा मेरे पीहर से मुझसे मिलने आने वालो मे से तुम्ही तो पहले सदस्य हो तो मुझे खुशी क्यो नही होगी इसमे तकलीफ कहाँ है ये तो खुशी की बात है कि सालो बाद ही सही पर मेरे पीहर से कोई तो है जीसको मुझसे मिलने की चाहत हुई वरना बरसो बीत गए पीहर के किसी भी रिस्तेदार को देखे। फिर कुन्ती बोली मेरे माता-पिता बहनो भाईयो सब ने मुझसे मुँह ही मोड रखा था किसी को भी कभी मेरी याद ही नही आई। भईया (वसुदेव ) ने तुम्हारी माँ देवकी से विवाह क्या किया वे तो मुझे शायद भुल ही गए।तब श्री कृष्ण ने कुन्ती भुआ को शांत करवाते हुए कहाँ भुआ आपको भला कोई कैसे भुल सकता था आपको तो सब रात दिन याद करते है। पर हालात ही कुछ ऐसे हो गए थे कि आपसे मिलने आना सम्भव ना हो सका।
यह बात उस समय की है जब श्री कृष्ण गोकुल-वृंदावन से मथुरा मे आकर रहने लगे थे। मथुरा मे आकर श्री कृष्ण सभी यदुवंशियो से मिले सब से उनका परिचय हुआ। एक दिन जब बातो बातो मे श्री कृष्ण की अपनी एक और भुआ कुन्ती के बारे मे पता चला तो उन्होने सबसे पहले अपनी कुन्ती भुआ से ही मिलने की सोची और इस लिए वे अपनी भुआ से मिलने चले आए।

कुन्ती और श्री कृष्ण मे बहुत देर तक वार्तालाप होता रहाँ। श्री कृष्ण बातो ही बातो मे मथुरा के सभी हालातो की जानकारी कुन्ती को देने लगे। तब दुखी मन से कुन्ती ने अपने भतीजे श्री कृष्ण को कहाँ जब मै इतने दुखो मे घिरी हुई थी तो मेरे पीहर से कोई भी मेरी मदद को नही आया क्या वे सब मुझे दुखी ही देखना चाहते थे जो मेरे दुखो को कम करने मे मेरी मदद नही कर सके। कुन्ती वोली जब मेरे पुत्रो से इतने दुर्व्यवहार हुए हमे लाक्षागृह मे जलाने की कोशिश की कई मेरे पुत्रो को मरवाने के प्रयत्न हुए पर मेरे अपने ही भाई बंधुओ ने मुझसे मुँह फैर लिया था कोई भी पीहर से मेरी मदद करने ना आ सका। अब भुआ को दुखी देख श्री कृष्ण समझाने लगे भुआ वहाँ पर सभी विपदा मे फसे हुए थे कंस मामा ने पिता श्री और माता श्री को बंदी बना रखा था। सब कंस के अत्याचारो से डरे इधर उधर छुप कर रह रहे थे ऐसे मे वे आपकी मदद कैसे कर सकते थे जब वे खुद ही सुरक्षित नही थे तो। सारी बातो को सुनने के बाद कुन्ती के मन को कुछ शांति प्राप्त हुई।

कुन्ती अब अपने भतीजे कृष्ण को प्यार से निहारते हुए बोली कोई बात नही जो विधाता ने मेरे और मेरे पुत्रो के नसीब मे रचा वह सब हुआ।पर अब तुमको तो मेरी याद आई मुझसे मिलने की चाहत तुम्हे .यहाँ ले आई। कुन्ती ने कृष्ण की बहुत खुशी से आव भगत की पकवान बनाए खुद अपने हाथ से परोसने लगी। कुन्ती बोली चलो विधाता ने किसी के मन मे तो मुझ अभाग्न के लिए दिल मे जगह बनाई जो तुम यहां हमसे मिलने आए। श्री कृष्ण ने कहाँ भुआ कैसी बात कर रही हो अब मै आपको वादा करता हुँ कि जब भी कभी आप सब पर कोई मुश्वित आएगी तो आप मुझे अपने संग पाओगी। मै सदैव आपकी रक्षा के लिए आउँगा।

कुन्ती का परिचय—–
कुन्ती भगवान श्री कृष्ण के दादा शूरसेन की प्रथम पुत्री थी।कुन्ती के बचपन का नाम पृथा था। शूरसेन के एक रिस्तेदार कुन्तीभोज के कोई संतान नही थी तो शूरसेन ने अपनी एक संतान उन्हे गोद देने का वादा किया और पृथा ( कुन्ती ) को शूरसेन ने कुन्तीभोज को गोद दे दिया। अब पृथा कुन्तीभोज की पुत्री बन गई। कुन्तीभोज की गोद जाने पर पृथा का नाम कुन्ती पड गया।
गीता मे भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन का पार्थ कह कर पुकारा था कृष्ण अर्जुन को प्यार से पार्थ ही पुकारते थे। वे अर्जुन को पार्थ इस लिए कहते थे क्योकिं अर्जुन कुन्ती के पुत्र थे और कुन्ती को उनके पीहर वाले पृथा के नाम से ही उच्चारण करते थे। सो पृथा का पुत्र पार्थ इस लिए कृष्ण अर्जुन को कई बार पार्थ कहते थे। वैसे पार्थ का अर्थ पृथ्वीपत्ति होता है यानि पुरी पृथ्वी का अधिकारी (मालिक )