भारतीय समाज मे श्राद्ध को बनाने का महत्व और विधि

श्राद्ध बनाने का कारण—-

भारतीय समाज मे किसी प्राणी की मृत्यु के बाद भी उसके होने की पुष्टि के रुप मे श्राद्ध बनाते है। माना जाता है कि जब जीव इस मानव देह को छोडता है यानि मृत्यु को प्राप्त होता है तो हिन्दु धर्म के अनुसार मानव देह मे एक आत्मा का निवास होता है। जब वह आत्मा देह को छोड देती है तो उस मानव की मृत्यु हो जाती है। यह आत्मा उसके पींडदान के बाद सभी रस्मो को करने के उपरान्त उस आत्मा को शांति मिलती है और वो आत्मा दुबारा जन्म लेने यानि पुनः मानव शरीर धारण करने के लिए इन्तजार करती है। उस दोरान वह आत्मा पीतर लोक मे रहती है।

श्राद्ध कब बनाते है—-

श्राद्ध बनाने के लिए भारतीय कलैंडर के अनुसार भाद्रपद की पूर्णिमा से शुरु होते है और अश्विन माह की अमावस्या के दिन खत्म होते है। श्राद्ध-पक्ष पुरे 16 दिन तक होता है। जब श्राद्ध पक्ष आता है तो जीस दिन उस आत्मा की तिथि होती उस दिन वह आत्मा अपने पुर्व जन्म के अनुसार उस घर उस परिवार मे अपने रिस्तदारो से मिलने आती है। पितृ-आत्मा के श्राद्ध की तिथि कैसे निकाले इसके लिए यह देखा जाता है कि किसी जीव-आत्मा की मृत्यु पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक और अमावस्या से लेकर पूर्णिमा तक जीतनी भी तिथिया आती है।

उन तिथियो मे से जीव आत्मा के मृत्यु वाले दिन जो तिथि होती है वही उस जीवात्मा के तिथि होती है। यह तिथि किसी भी महिने की हो पर श्राद्ध के लिए केवल वह तिथि देखी जाती है महिना नही। मानलो किसी मानव की मृत्यु हिन्दु कलैंडर के अनुसार श्रावन माह की पंचमी को हुई हो तो उस जीवात्मा का श्राद्ध पंचमी के श्राद्ध के दिन बनाया जाएंगा।उस जीवात्मा को पंचमी तिथि मिली श्राद्ध प्राप्ति के लिए। इस पंचमी के श्राद्ध के दिन ही उस जीवात्मा का आगमन अपने घर-परिवार मे होता है। श्राद्ध कंवल तीन पिढी तक के पूर्वजो का होता है।क्योकि मान्यतानुसार तीन पिढी बाद जीवात्मा या तो पुनः जन्म ले लेती है या फिर वो देवता बन जाती है देव लोक को चली जाती है।इस लिए श्राद्ध और पींडदान तीन पिढी पिता,दादा,पड-दादा तक ही होता है। उनके ऊपर की पिढियो के लिए केवल तर्पन ही होता है।

श्राद्ध करने का अधिकारी कौन——

किसी भी मानव की आत्मा की शांति और उसको भोजन पहुंचाने का काम उसके पुत्र-पौत्र करते है। पुत्र-पौत्र ना होने पर उसके दत्तक पुत्र अगर वो भी ना हो तो उसके भाई- भतीजे, भांजे, दोहिते या परिवार के अन्य सदस्य उसके लिए श्राद्ध करते है। वह आत्मा श्राद्ध पाने के लिए अपने घर लौटती है। उसको पितृ लोक के गण उन्हे उनके घर -परिवार तक ले जाते है। पितृ-गण उन्हे उनके घर-परिवार के पास छोड देते है। वहाँ से वह आत्मा खुद अपने घर-परिवार मे जाती है। वहाँ उसके परिवार वाले उसके नाम से उसका आवाहन करते है।उसके लिए पितृ-यज्ञ करते है।

पींडदान देते है। ब्राहमणो को बुला कर उनको भोजन करवाते है। इसके साथ गाय को भोजन,कुत्ते को भोजन, कौए को भोजन देते है। गाय को भोजन देने का महत्व इस लिए है। माना जाता है कि गाय मे देवी-देवताओ का वास होता है। जीनके पुर्वज धर्म- कर्म करने वाले पाप से दुर रहने वाले पुन्यात्मा होते है वे सब पितृ देव-लोक मे निवास करते है। देव-लोक के गण ( विश्वेदेवा के गण ) उन्हे उनके घर-परिवार तक पहुंचाते है। कौए को भोजन देने का महत्व है कि पितृ लोक मे रहने वाली आत्माओ को भोजन कौए को दिया जाता है। माना जाता है कि पितृ लोक के सूचक के रुप मे कौओ को माना जाता है। कौए पितृ लोक के प्रतिक होते है।

कुत्ते को भोजन देने का महत्व माना जाता है कि अगर किसी प्राणी की जीव-आत्मा ने पुर्व जन्म मे पाप किये होते है तो उसे नरक लोक मे जाना पडता है सजा काटने तो नरक से आने वाली पितृ-आत्मा की तृप्ती के लिए कुत्ते को भोजन दिया जाता है। इसके साथ यह भी मान्यता है कि पता नही किस रुप मे पितृ -आत्मा आकर भोजन ग्रहण करे इस लिए भी गाय,कुत्ते और कौए को पितृ-श्राद्ध के दिन भोजन दिया जाता है। श्राद्ध का भोजन पक्की रसाई यानि खीर-पुडी आदि के रुप मे बनाया जाता है।श्राद्ध के दिन रोटी सब्जी का भोजन नही बनाते। इसका एक लाॅजीक भी है माना जाता है कि पितृ-आत्मा को गंध द्वारा भोजन प्राप्त होता है। जब घर मे रसोई ( भोजन ) खीर-पुडी आदि बनाई जाती है तो उसकी गंध ( खुशबु ) पितृ-लोक तक पहुंचती है और फिर इससे पितृ-आत्मा तृप्त हो जाती है, और उनकी आत्मा को शांति मिलती है।

पितृ-श्राद्ध मे कितने ब्राहमण होने चाहिए—

शास्त्रानुसार किसी भी जीवात्मा के श्राद्ध के दिन कम से कम तीन ब्राहमणो को निमंत्रण देना चाहिए क्योकि श्राद्ध का भोजन पितृ के संग आए विश्वेदेवा को भी भोजन करवाना चाहिए। विश्वेदेवा दो होते है। इस लिए दो विश्वेदेवा और एक पितृ मान कर कुल तीन ब्राहमण को भोजन अवश्य करना चाहिए तभी पितृ-आत्मा को तृप्ति मिलती है। अगर तीन ब्राहमणो को भोजन करवाना सम्भव ना हो तो दो ब्राहमण तो अवश्य बैठाने चाहिए श्राद्ध-भोज मे एक विश्वेदेवा और एक आपके पूर्वज पितृ जीवात्मा। जीस दिन आपके पितृरो का श्राद्ध होता है उसके ठीक एक दिन पहले शाम को आप ब्राहमणो के घर जा कर आदरपूर्वक उन्हे अपने घर पर श्राद्ध भोज के लिए आमंत्रित कर आए। फिर पहले ही दिन श्राद्ध मे जीन भी वस्तुओ की आवश्यकता होती है। वही सब सामग्री ला कर चूग-बीन कर साफ करके तैयार कर ले।

अगले दिन यानि श्राद्ध वाले दिन सुबह रोज से थोडा जल्दी उठ स्नान आदि से निवृत (फ्री) हो कर पुरी तरह से पवित्रता के साथ श्राद्ध की तैयारी कर के रख ले। ब्राहमणो के आगमन से पहले ही सारी व्यस्था करके रख ले भोजन पक्का कर रखले बस पुडिया बनानी छोड कर बाकि सारा भोजन बना कर तैयार कर ले। पुडी के लिए आटा पहले ही बांध कर रख ले केवल पुडी पकानी शेष रखे। इससे घर मे शांति-पूर्वक श्राद्ध मनाया जाएंगा और शांति-पूर्वक ही ब्राहमणो को भोजन मिल पाएंगा।

यह बहुत जरुरी है कि श्राद्ध के समय भाग दौड नही होनी चाहिए। किसी तरह का शोंर-गुल नही होना चाहिए। उस दिन घर-परिवार मे कोई भी क्रोद्ध ना करे।बिलकुल शांति और प्रेम-पूर्वक श्राद्ध बनाए। तभी आपके पूर्वजो की जीवात्मा को शकून मिलेगा और वे खुशी-खुशी आपके घर भोजन श्राद्ध पा कर खुशी पूर्वक वापस पितृ लोक रवाना हो जाएंगे और खुशी से वे आपको आशिर्वाद दे कर जाएंगे। अगर श्राद्ध के दिन घर मे अशांति होगी तो आपके पूर्वजो की जीवात्मा बहुत दुखी होगी और वे आपके द्वारा दिया गया पींड-दान और भोजन स्वीकार नही करेंगे और दुखी मन से वो वापस पितृ लोक को लौट जाएंगे इससे आपके घर- परिवार मे दुखो का आगमण होगा।

श्राद्ध का भोजन ब्राहमणो को कराने की विधी—-

जब आप पितृ-यज्ञ करवा ले तब उसके बाद ब्राहमणो को श्रृधा-पूर्वक भोजन करवाए। सबसे पहले जीस स्थान पर ब्राहमणो को भोजन के लिए बैठाना हो वहाँ उस स्थल को धो पुंछ कर लीपा पोती करके साफ-सुधरा कर ले। फिर वहाँ पर लकडी के पाटिये जीस पर ब्राहमणो को भोजन करवाना हो वहाँ स्थापित कर दे। ब्राहमणो को भोजन करवाने वाले स्थल पर पहले थोडे से तील छिड दे। तील इस लिए छिडके जाते है कि उस भोजन को कोई प्रेत ना छू सके वह भोजन आपके पितृ को ही मिले।फिर ब्राहमणो के बैठने के लिए कुशा का आसन ठीक लकडी के पाटिये के सामने बिछा दे।

अब ब्राहमणो के हाथ पाव अपने हाथो से धो कर मुँह -आचमन करवा कर उस कुशा के आसन पर बिराजमान करवा दिजीए। जब ब्राहमणो को प्रेम से बिराजमान कर दे तो उनके सिर पर एक सूप मे तील,जौ व दुर्वा ले कर सूप से उनके सिर पर ले जाते हुए वे तील जौ के उनके चारो तरफ फैलाए और उनके मांथे पर तीलक करे फूल माला अर्पन करे अब आप जीसने पितृ-भोजन करवाना है उस पुत्र-पौत्र को शांति पूर्वक ब्राहमणो के चरणो के पास बैठ जाए और अपने हाथ से गर्मा-गर्म भोजन खुद परोसे। उन ब्राहमणो को विनय पूर्वक आग्रह करते हुए भोजन करवाए यानि प्यार से उनके पसंद की वस्तुए जो उन्हे खुशी दे। अपने हाथ से उनकी भोजन की थाली मे रखते जाए। श्राद्ध का भोजन करते समय ब्राहमण को बिलकुल भी बोलना नही चाहिए ना ही पक्के भोजन की तारीफ या निंदा नही करनी चाहिए। आप उस दिल वे भोजन जरुर बनाए जीसे वे पूर्वज बेहद पसंद करते थे। भोजन शुद्ध-शाहाकारी ही बनाए। उस दिन लहसून-प्याज का भी प्रयोग ना करे भोजन मे।

जैसा भी भोजन हो उसे प्रेम पूर्वक गृहन करना चाहिए खाते समय बातचित करने से माना जाता है कि पितृ का वह भोज भाग राक्षसो को मिलता है इस लिए ब्राहमणो को शांत रह कर भोजन करना चाहिए। जब तक की सभी ब्राहमण पेट भर भोजन ना कर ले आप उनके पास बैठे रहे और उनको अच्छे से भोजन करवाए। जब सभी ब्राहमण भोजन कर चुके तो उनके मुँह हाथ धुलवाए फिर उनको भेट जो आपने अपनी सामर्थ के अनुसार अपने पूर्वजो के निमित खरीदी है ( कपडे,या उनकी जरुरत की वस्तुए ) वह सब उन ब्राहमणो को भेट दे और उनको हवादार साफ-सुधरे कमरे मे बैठाए कुछ देर उनसे बात-चित करे जब वे आपसे वापस जाने की आज्ञा मांगे तो आप उनके चरणो को छु कर उनसे आशिर्वाद ले कर घर के दरवाजे तक छोडने जाए।

जब ब्राहमण भोजन करके वापस लौट जाए तो श्राद्ध करवाने वाला प्राणी उस स्थान जहाँ ब्राहमणो ने भोजन किया था उस स्थान पर एक सूखा पुराना कपडा लेकर उस जगह की कपडे की मदद से सफाई करके वहाँ बिखरे फूल जो आपने ब्राहमणो के सिर पर उडेले थे वे फूल,जौ,तील,दुर्वा आदि सब कुछ साफ करके एक थाल मे रख ले और इन्हे पक्षियो को या गाय को खिला दे। इन पर पैर ना रखे। जब सब काम से आप निवृत(फ्री) हो जाए यानि ब्राहमण को भोजन,गाय,कुत्ते,कौए को भोजन कराने के बाद घर के सभी सदस्यो को भोजन करने के बाद सबसे अंत मे आप भोजन करे।

जीस दिन श्राद्ध हो उस दिन आप अपने सभी रिस्ते-नाते वाले और मिलने-जुलने वाले लोगो परिचितो जो आपके घर उस दिन पहुंच सके उन्हे भी आमंत्रित करे खास कर उन को जो उस जीवात्मा के बहुत करीब थे जीन्हे देख कर उन्हे खुशी होती थी।जैसे उनकी संताने( पुत्र-पुत्री), बहन-भाई, नाति -दौहिते आदि रिस्ते दारो को जरुर बुलाए इससे वो जीवात्मा उन सब को खुशहाल देख कर खुश होंगी उनकी आत्मा तृप्त होंगी।

पर एक बात ध्यान रखनी है कि जीस दिन आप श्राद्ध करते है उस दिन श्राद्ध करता जीसने श्राद्ध की पुरी विधी अपने हाथ से की उसे उस दिन बिलकुल शांत रहना चाहिए। उस दिन उसे घर से बिलकुल भी बाहर नही जाना चाहिए और ना ही चौराहे को पार करना चाहिए। जब आप पुरी विधि-विधान से श्राद्ध करबाते है तो आपके पूर्वजो की जीवात्मा तृप्त होती है और उनकी आत्मा को शांति व सकून मिलता है। जब वे शांत होते है तो उनको खुशी होती है और खुश होकर आपको आशिर्वाद दे कर खुशी-खुशी वे वापस लौट जाते है।

जीस घर मे पितृ श्राद्ध नही किया जाता उस परिवार से उनके पितृ क्रोद्धित होते है और इससे वे आपको बददुआए देते है या यू कहे की वे आपको आशिष नही देते सो ऐसे घरो मे जीवन भर अशांति बनी रहती है।घर मे गृह-क्लेश बना रहता है। बच्चे अपने माता-पिता की आज्ञा नही मानते वे जो काम नही करने होते सब काम करने लगते है। बच्चे बुरी संगत मे रहने लगते है। कोई बात नही मानते माता-पिता का अपमान करते है। इस लिए अपने जीवन को सुखी बनाने के लिए श्राद्ध जरुर करे पींडदान करके अपने पूर्वजो की आत्मा को शांति प्रदान करे तो आपको उनका आशिर्वाद मिलने लगेगा घर मे सुख-शांति का माहौल बनेगा।

इस लेखनी मे आया विशेष शब्द सूप यानि वह वस्तु जीससे गैंहु को झाड-फूस करके साफ करते है। इसे कही-कही छज्ज भी कहते है।

एक बार शाहँजहाँ लाल किले आगरा मे रहते थे तब की बात है सुबह के समय शाहँजहाँ किले की खिडकी पर बैठे यमुना से आने वाली ठण्डी हवा का आनन्द ले रहे थे तो उनकी नजर एक आदमी पर पडी जो इतनी सुबह यमुना मे खडा था। उसे देख कर शाहँजहाँ ने अपने सैनिक को भेजा उसके पास देखने को कि वह वहाँ क्यो खडा है उसके वहाँ से बाहर निकाले नही तो ठण्ड से मर जाएंगा। तब सैंनिक उसके पास गया और वापस आ कर उसने शाहँजहाँ को उसके यमुना मे खडे होने का कारण बताया कि वह आदमी यमुना मे इस लिए खडा है क्योकि वह अपने पिता की आत्मा की शांति के लिए उनको तर्पन दे रहाँ है। यह सुन कर शाहँजहाँ हेरान रह गया उसने कहाँ हिन्दु धर्म मे कितने महान आदर्श संस्कार है जो मरे हुए पिता की खुशी उसकी आत्मा की शांति के लिए पुत्र कितना कुछ करते है एक हमारे नालायक पुत्र को देखो जीसने अपने जीन्दा पिता को कैद करके रख लिया।उसने कभी भी नही सोचा अपने पिता की आत्मा को कितना दुख होता है।

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