सुनी अँखियाँ बंजर जीवन ( सत्य कहानी )

एक काश्मिरी पंडितो का परिवार जो रोजगार की तलाश मे निकला काशमिर छोड कर पहुचा राजस्थान सोचा रजवाडे मे कोई नौकरी मिल जाएगी तो गुजर बसर कर लेंगे। उनके बेडे बेटा का विवाह हो गया घर मे बहु आई पंडित जी ने पंडताईन को कहाँ देखो अब तो तुम्हे घर के काम मे हाथ बटबाने वाली बहु मिल गई।कुछ महिनो बाद वे दादा दादी भी बन गए। बेटे बडे हो गए रोजगार को बढाने के लिए उन्होने एक स्टोर खोला कुछ सालो मे एक छोटी सी फैक्ट्री भी डाल ली। अब पंडित जी ने छोटे बेटे की शादी की सोची। छोटी बहु आई बडी बहु उस पर अपना हुकुम चलाने लगी।पंडताई तो पहले ही चल बसी थी छोटे बेटी की शादी के कुछ समय बाद पंडित जी भी चल बसे। पंडित जी का बडा बेटा काम के सिलसिले से बाहर ही रहता था अधिक समय छोटा बेटा स्टोर सम्भालता। स्टोर घर के नीचे बना हुआ था ऊपरी मंजील पर परिवार रहता था।

बेचारी छोटी बहु के जीवन मे ग्रहण शादी होते ही लग गया था, क्योकि बडी बहु और उसका देवर ( छोटी बहु का पति ) एक अलग दुनिया मे रहते थे। बेचारी छोटी बहु सारा घर का काम काज करती जेठानी के ताने सहती और सेवा करती। यहाँ तक तो बेचारी सहन करती रही। छोटी बहु के एक बेटा हुआ यह छोटी बहु की पहली संतान और बडी बहु की सब संताने थोडी बडी हो गई थी केवल एक छोटा बेटा छोटी बहु के बेटे की हम उमर का था। विधाता के लेख कौन मिटा सकता है। पंडित जी का बडा बेटा भी चल बसा। अब तो पंडित जी की बडी बहु और छोटे बेटे को पुरी आजादी मिल गई। किसी का भय इन्हे नही रहाँ। बेचारी छोटी बहु घर का काम करती और पति का इंतजार बस यही उसकी किश्मत मे लिख गया था। ऐसा नही कि छोटी बहु को समझ नही थी।

वह सब समझती थी उसने बहुत बार रंगे हाथो अपने पति और जेठानी को पकडा। केवल देखा ही नही उसने इस बात की खिलाफत भी करी। घर मे अब युद्ध का मैदान नजर आने लगा। इधर छोटी बहु अकेली उधर बडी बहु और छोटी बहु का पति इन दोनो ने मिल कर एक योजना बनाई कि किस तरह इस छोटी बहु से छुटकारा मिल जाए। कही यह लोगो मे इन के राज ना उगल दे। इस योजना के तहस काम शुरु हुआ। छोटी बहु को चोरी-चोरी बेहोशी की दवा दी जाने लगी बेचारी सारा दिन नशे मे सोई रहती। घर के काम-काज के लिए छोटी बहु के पति ने नौकर रख लिये थे। वे घर का काम सम्भाल लेते थे। अभी भी उन देवर-भाभी मे नई योजना पनप रही थी, कि इस छोटी बहु से हमेशा के लिए छुटकारा भी मिल जाए। योजना ऐसी बनाई कि छुटकारा भी मिल गया और जेल भी नही भोगनी पडी।

घर मे जो चेहरा दोनो का होता समाज मे निकलते तो दोनो के चेहरे नकाब पोश होते यानि जो हकिकत थी किसी को पता भी नही चलने दी। छोटी बहु को नई योजना के तहत एक बंद व सुनी गली मे एक मकान उन्होने खरीदा। ऐसी गली थी कि वहाँ कोई आता जाता नही था। इस गली के लोग रोजगार के लिए विदेश मे बस गए थे। तो उनके मकान खाली पडे थे। इस कारण वह बंद गली सुनी पडी हुई थी। उस गली मे तो बच्चे भी खेलते-खेलते नही जाते थे। सब डरते थे। योजना के तहत उस बंद सुनी गली मे गली मे अंदर की तरफ का आखिरी मकान खरीद लिया। योजना के तहत वह छोटी बहु का पति अपनी पत्नि के साथ प्यार से बात करने लगा। उसके साथ बैठ कर खाना खाता बहुत मिठ्ठा व्यवहार करने लगा। बेचारी छोटी बहु बहुत खुश थी कि उसका पति अब सुधर गया।

वह उसका ख्याल रखता है। बेचारी सब काम सलटा कर सज सबर कर बैठ जाती पति के आने के इंतजार मे पति भी जल्दी आ जाता। वह अपनी पत्नि के लिए साडी खरीद कर लाया। छोटी बहु उस साडी को देख फुली ना समाई झट से उसने उस साडी को पहन लिया। अब एक दिन छोटी बहु को उसके पति ने कहाँ देखो आज तुम तैयार हो जाना हम नए घर मे जा कर रहेंगे।यहाँ तुम्हे भाभी से परेशानी होती है ना इस लिए। बेचारी भोली थी वह पति के मन मे छुपे राक्षस को ना पहचान पाई। वह सुबह से ही लग गई अपना सारा सामान बांधने कि नए घर मे रहेंगे। सारा सामान नए घर मे पहुचा दिया गया। शाम को दोनो ने भाभी से विदा ली पहुच गए नए घर मे। कुछ एक दिन ही उसकी जीन्दगी के खुशी लेकर आए थे।

मगर उसके बाद का काला पानी की सजा भी इन्ही अच्छे दिने के पिछे छिपी हुई थी। एक दिन मौका देख छोटी बहु को उसके पति ने घर के बाहर ताला लगा कर बंद करके चला गया। छोटा बच्चा यानि अभी उसका बेटा बहुत छोटा था। उसे भी वह अपने साथ ले गया। छोटी बहु ने सोचा बाजार से सामान लेने गए है। इस लिए बेटे को संग घुमाने ले गए। वह बेचारी घर के काम मे लग गई। सुबह से शाम फिर रात हो गई कोई लौटा ही नही। वह मन ही मन घबराने लगी कही कुछ अनहोनी तो नही हो गई। बेचारी दरवाजे के पास पहुची कि देख आऊ या कुछ मदद ही मांग लु किसी आस-पडौस से। वह दरवाजे को खोलने के लिए खिंचने लगी पर बाहर दरवाजे पर ताला लगा हुआ था। उसने ऊपर छत पर जा कर मदद मांगने की कोशिश करने के लिए सीढियो के पास पहुची देखा इस पर तो ताला लगा हुआ है। इतना ही नही घर की खिडकिया को भी शील कर दिया गया था।

वह डर कर रोने लगी पर कौन उसके रोने की आवाज सुनता। रोते-रोते पुरी रात बित गई। दिन निकला उसने राहत की सांस ली कि अब वे आते ही होंगे पर नही यह दिन भी निकल गया। वह दरवाजे पर जा कर दरवाजे को खड-खडाने लगी जोर से चिल्ला कर मदद के लिए लोगो को आवाजे लगाने लगी। अरे भई पडौस मे कोई होता तभी उस बेचारी की आवाज सुनता ना पडौस मे तो सभी घर सालो से खाली जो पडे है। ऐसे बेचारी के तीन-चार बित गए। अब उसकी हिम्मत भी साथ नही दे रही थी। कमजोरी के कारण वह पंलग पर लेटी-लेटी दरवाजे की तरफ देख रही थी कही कोई आता होगा। वह अपने बेटे को याद कर रो रही थी। शाम ढल चुकी थी चारो तरफ अँधेरे ने धरती को अपने आगोश मे ले लिया था। अब उसको घर के बाहर किसी के कदमो की आहट सुनाई पडी वह सोच ही रही थी कि घर का दरवाजा खुला। दरवाजा खोल कर उसका पति गौद मे अपने बेटे को लेकर आया था।

यह सब इस लिए था क्योकि छोटी बहु के पीहर से उसको मिलने वाले आने वाले थे। अपने पति और बेटे को देख बहुत खुश हुई। वह साथ मे उसके लिए भाभी के हाथ से बना खाना लाया था। उस छोटी बहु ने हिम्मत कर के हाथ मुँह धो कर खाना खाया। उसका पति बडे प्यार से उससे बाते कर रहाँ था। उसने पुछा इतने दिन आप आये नही तो बोला मेरा छोटा सा एक्सिडेंट हो गया था भाभी ने आराम करने के लिए बेड रेस्ट करने को कहाँ पैर मे मोच थी चल नही पा रहाँ था। जैसे ही ठीक हुआ दौडा चला आया। वह अपने संग बहुत सारा राशन पानी का सामान लाया था। वह बोला यह सब सामान अंदर रख लो कल तुम्हारे पीहर वाले आने वाले है। देखना उन्हे कुछ मत बताना कि मेरा एक्सिडेंट हुआ था मै घर नही आ पाया था। बेचारी छोटी बहु भोली थी पति की चाल को ना समझ सकी पीहर से आए तो दोनो ने बहुत आव भगत की। उसके पीहर वालो को असली बात की खबर पता ना चलने दी।

शायद उसके माता पिता थे नही या कुछ समय बाद वे दुनिया से निकल लिए थे। भाई-बंधु तो बिना मतलब के कभी आते नही। वह कभी किसी के गई नही तो भाई बंधु उसके पास क्यू आने लगे। किसी को इससे क्या मतलब कि वह ससुराल मे सुखी या कोई कष्ट है उसे। इस बात की खबर लेने वाला कोई नही था शायद जो इसके बाद कोई उसकी खबर लेने ना आया। हो सकता है लोगो की तरह उन्होने भी उसे पागल समझ लिया हो। खैर आगे जो उसके जीवन मे होने वाला था वह बात करते है। अब नाटक खत्म क्योकि उसके पीहर से आने वाले आ कर मिल कर चले गए। इधर बेटा छोटा था माँ की याद मे रोता था तो अब रोज वह बेटे को संग ले जाता। घर के दरवाजे पर ताला लगा देता दिन ढलता रात होती तो वह बेटे और भोजन की थाली उसे पकडा कर फिर से ताला लगा कर वह वापस चला जाता।

शायद उसे नशे की दवाई दी जाती रही होगी तभी किसी को उसके वहाँ होने की खबर ना हुई। ये भी हो सकता है कि वह अपनी किस्मत का लेखा समझ कर सब चुप-चाप सहती रही होगी। अब रोज रात को बेटा माँ के पास आता संग मे भोजन की थाली माँ के लिए लाता। छोटी बहु का बेटा भी अपने ताऊ के बच्चो के संग पढने स्कूल जाता। ऐसे दिन बितते रहे वह बेचारी सालो से अपने बेटे के अलावा किसी अन्य की शक्ल नही देख पाई। अब दोनो भाईयो के बच्चे बडे हुए शादी हुई बहु आई। बहुओ को शायद यही बताया गया होगा कि वह पागल है। इस लिए कोई भी बहु उसके पाव पडने मुँह दिखाई के लिए भी उसे नही लाया गया। यहाँ तक कि बेटे की शादी मे भी बेचारी शामिल ना हो सकी ताले मे बंद रही। बडे भाई के बेटे बेटिया शादी के लायक हो चले थे पर दोनो भाईयो के बडे भाई का छोटा बेटा और छोटे भाई का इकलौता बेटा इन दोने के बच्चे अभी छोटे थे स्कूल लाईफ मे ही थे।

छोटी बहु के बेटा रात को सोने माँ के पास जाता संग बहु और पोता भी रात मे उसके लिए संग भोजन भी ले जाते हमेशा की तरह दिन भर से भुखी को रात्री भोजन ही नसीब होता। पति ने किया सो किया बेटा-बहु भी उसके ना हो सके वे दिन भर अपनी माँ को ताले मे बंद कर ताई के पास चले जाते वही दिन भर काम काज करते सारा दिन भर की लाईफ वही गुजारते केवल रात्रि के समय सोने जाते। एक दिन यानि बेटे की शादी को कई साल बित गए पोता 4-5 वी कक्षा मे पढता था। उस दिन भाग्यवश कहे या उसके बेटे या बहु मे से किसी ने जानबूझ कर घर के दरवाजे पर ताला ना लगाया था। उस छोटी बहु को पता नही किसी ने खुला छोड कर बाहर भेजा या खुद निकल पाई। वह घर से बाहर निकली पर अब तो सालो बित चुके थे नए-घर बन गए थे बहुत सु पुराने लोग जो उसे पहचान पाते अपने रोजकार के कारण दूसरी जगहो पर चले गए थे।

वह बेचारी पुरे दिन लोगो के घर के दरवाजे खटखाती और किन्ही लोगो के नाम से पुकारती। उसे नही पता चला के अब यहाँ वह पहेले वाले लोग नही रहते। यहाँ नए लोगो ने अपना बसेरा बना लिया है। खेर कुछ लोग अभी भी ऐसे थे जो उसे पहचान सकते थे। वह एक ऐसे घर के बाहर खडी हो कर एक नाम पुकार रही थी बाई सा बाईसा भी संग मे बोलती जा रही थी। घर का दरवाजा खुला उस अनजान औरत के दवारा घर का दरवाजा खटखटाते देख कर गृह-स्वामिनी ने पुछा कहो बहन किस से मिलना है तब वह एक महिला का नाम बोलती है। यह बात सुन कर गृहस्वामिनी सोच मे पड जाती है। वह गृह स्वामिनी कहती है कि इस घर मे तो हम रह रहे है कई सालो से पर इस नाम की किसी महिला के बारे मे हमने पहले कभी नही सुना। गृह स्वामिनी समझदार महिला थी उसने कहाँ रुको मे पडौस वाली बहन जी सु पुछ लेती हुँ।

शायद वह जानती हो उस महिला के बारे मे क्योकि वह हमारे यहाँ आने से पहले ही यहाँ रहती थी। अब वह गृह स्वामिनी उस पडौस वाली महिला को बुला कर लाई। पडौस वाली महिला ने उस से उसका नाम अता- पता पुछा उस छोटी बहु ने अपने पति-ससुर सब के नाम बताए तब वह महिला पहचान गई अच्छा तो बहन जी आप उन की बहु हो। वह महिला छोटी बहु से बोली की आप को हमने पहले कभी देखा नही। इतना सुनते ही वह छोटी बहु उसी दरवाजे पर रोती हुई बैठ गई। उसने उन दोनो महिला को बताया कि उसको ताले मे बंद रखा जाता है। सारा दिन वह अकेली घर मे बंद रहती है। रात को सोने के लिए बेटा-बहु घर आते है। तब भोजन भी मेरे लिए लाते है उसे खा कर दिन भर की भुख मिटा कर मै भी सो जाती हुँ।

सुबह घर से जाते समय बेटा-बहु घर पर ताला लगा जाते है। सालो से मै दरवाजा खोलने की कोशिश करती रही पर आज शायद बेटा-बहु जल्दी मे ताला लगाना भुल गए। दरवाजा खुला देख कर मै बाहर घुमने चली आई इस मंकान मे मेरे पीहर की मेरी एक सहेली रहती थी। बस मै अपनी उसी सहेली से मिलने चली आई। मै नही जानती थी कि वह यहाँ से चली गई। तब पडौसी महिला ने बताया वह तो सालो पहले ही दुसरे शहर मे बसने चले गए थे। बेचारी बहुत खुश हुई आज मुद्दतो के बाद काले पानी की सजा मे छुट मिल गई थी ना इस लिए। वह गृह स्वामिनी एक नेक महिला थी उसने उस महिला की करुण कहानी सुनी तो उन का मन भी खराब हुआ वह बोली आप आई हो तो बहन जी हमारे घर की चाए पी कर जाना। वह गृह स्वामिनी तीनो के लिए चाये नास्ता लेकर आई। वही घर की सीढियो पर बैठ कर सबने चाये पी। वह थोडी देर बाद वापस घर लौट गई।

इधर दोनो पडौसन उसके बारे मे बात कर ही रही थी तब एक पडौसन और वहाँ आ पहुची वे अब बाते कर रही थी तो उस महिला को उस अनजान महिला की कहानी बताई तो बोली मै जानती हुँ। हमे तो यही बताया उसके ससुराल वालो ने कि वह पागल हो गई है। जो भी सामने दिखता है उसे मारने लगती है। वह पागल है इस लिए उसके परिवार वाले उसको बंद करके रखते है।इसी डर से बहु भी वहाँ नही रहती पागल का क्या पता कब मार दे। वह गृह स्वामिनी समझदार थी। अब उसने कहाँ देखो बहन जी वह पागल है या नही है। इस बात का तो नही पता पर वह हम से तो बहुत समझदार की तरह बात कर रही थी। उसकी बातो से तो नही लग रहाँ था कि वह पागल है। अब तोनो ने कहाँ हा उसकी बातो से तो यही पता चलता है कि वह पागल नही है। अब उसके परिवार वाले जो कहेंगे होगा तो वही आप और हम कुछ कहे इस बात को कौन महतब देगा।

तीनो महिलाओ ने उस छोटी बहु के लिए ईश्वर से प्रार्थना कि हे प्रभु तु उसकी मदद करना। बेचारी ऐसे सालो जीवन काटती हुई कैद ही दुनिया से रिहा हो गई। उसके मन का दुख उसके पति या अन्य परिवार जनो को नही होता दिखा। कहते है ना भगवान के घर देर है अँधेर नही पर वह तो नारकिय जीवन काट कर दुनिया से विदा हुई। अब करिश्मा यह हुआ के छोटी बहु के पति और भाभी की सबसे लाडली बहु जो कि छोटी बहु के बेटे की उमर का जेठानी का जो बेटा था उसकी पत्नि को केंसर हो गया। अभी उसकी जेठानी की लाडली बहु का बेटा 5-6 साल का ही हुआ था की घर मे सब का जीवन दुखमय हो गया। विधाता सबको दिन दिखलाता है। आज तुम किसी का बुरा कर के खुशी मना रहे हो। कल उसकी कुल्हाडी तुम्हारे ऊपर भी बार कर सकती है। यह दुनिया वाले नही सोचते। लोग कहते है कि इंसान को उसके कर्मो का फल मिलता है।

तभी वह दुख भोगता है, मगर उस महिला ने तो कोई बुरा कर्म नही किया था। बुरे कर्म तो उसका पति कर रहाँ था। इस हिसाब से तो यही साबीत होता है, कि बुरे कर्म कोई करे और उसके बदले दुख किसी दुसरे को भोगने पडे यह भी तो होता ही है। कितना तडफी होगी उसकी आत्मा यह केवल जिसने भुगता वह जान सकता है। या ईश्वर और कोई नही समझ सकता दुसरो के दुख तकलिफ को। पति ने तो अपनी बदनीयती के कारण उसे दुख दिया मगर उसका बेटा उसने अपनी माँ की सूध ना ली। बेटा भी उसका नीच ही निकला क्यो पैदा किया उस नीच पुत्र को बेचारी ने।

नो महिने केवल दर्द सहने के लिए ही पैदा किया उसने बेटे को। अरे भई यही दुनिया है जहाँ केवल इंसान की बुद्धि अपने स्वार्थ वश पशु से भी ज्यादा खतरनाक होती है। पशु तो भुख मिटाने के लिए दुसरो को कष्ट पहुचाता है पर भुख ना हो तो वह दुसरो पर आक्रमण नही करता मगर इंसान के भीतर तो ऐसा खतरनाक भेडिया छुपा रहता है कि जिसका पेट कभी भरता नही ना ही लालच खत्म होता है। इंसान ही ऐसा पशु है जो दुसरो पर मासुमो पर अपना प्रभुत्व जमाने के लिए अत्याचार करता है। दुसरो का शोषण करता है फिर भी दुनिया मे पुजनिय बन जाता है।

जय श्री राम

http://चित्रा की कलम से

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