माई रे मेरे पीव ( प्रेमी-पति ) तो बसे है, परदेश कौन संग मै खेलु होली।
अश्रु बहे नैयनन मे नित-दिन। काहे वह सुध ना लिनी आए ना प्रिया मिल।
संग की सभी सखि-सहेलिया खेले भर पिचकारी होली, उडत है अभीर गुलाल।
मोसु कौनसो जुल्म होयो, पीब आये ना पीब को संदेश, सुनी पडी मोरी मन की अटारी।
माई रे कौन संग खेलु होली, मोरे पीब तो बसे है परदेश।
घर आँगण देहली सब रंग मे रंगे है, पन मेरो मन सुखो ही सुखो जाये।।
मोरी सुध ना लिनी आये ना पिया मिलने वह तो बैठयो है परदेश।
नैयन सु बहती धारा मे भीज रही मन की कोर, सखियाँ बाहर खडी मोरी बाट निरखे।
माई रे मेरे पीब तो बसे है परदेश कौन संग खेलु होली।
बाट निहारु मे नीश दिन कब आवे पीब परदेशी, मिल जावे म्हाने उनरो संदेश।
होली मे धुम मची चहु ओर, पन मन ब्याकुल शुद्ध ना आवे, नैयना तो राह निहारे।
कद आवे परदेशी पिया, आश बुझती जावे। सखियाँ म्हाने नीत ही चिडावे।
नही आवे थ्हारा पीब वह तो बसे परदेश।
सुनो आँगण, सुनी डगरिया, सुनी पीब बिन महल अटरियाँ।
सेज भी नित आग उगले दिन-रेन। ज्यू तडपे जल बीन माछरी
माई रे कौन संग खेलु होली,म्हारा पिया तो बसे परदेश।
माई रे कौन संग खेलु होली, माई रे कौन संग खेलु होली।
जय श्री राम
चित्रा की कलम से
बेहतरीन लिखा है 👌🏼👌🏼
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धन्यवाद जी
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Bahut hi sundar
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धन्यवाद जी
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