सावँरा रे ओ सावँरा मोरा मन हुआ बावरा तोरी नटखट,भोली अदाओ पर ओ रे सावँरा।
तेरे दर्शन को तरसे अँखिया दिवानी मन हुआ मोरा बावरा रे ओ सावँरा रे ओ सावँरा।
अँखिया राह तक-तक हारी, कब आओगे हे कुँजबिहारी।
सावल-सलोनी छवि तिहारी, दर्शन बीना मन ब्याकुल हुआ भारी रे।
सावँरा रे ओ सावँरा। मोरा मन हुआ बावरा ओ रे सावँरा।
दर्शन की अभिलाषा कब करोंगे पुरी हे नटखट य़शोदा दुलारे।
अँखिया तक-तक हारी रे हे माधव,हे गिरीधारी हे मन-मोहना।
सावँरा रे ओ सावँरा मन हुआ मोरा बावरा रे। दर्शन की दिवानी अँखियाँ तके राह तुम्हारी।
सुन्दर अलकावली काली घुंघरवाली। नैयना कमलदल समान विशाला।
उन्नत मस्तष्क, सिर स्वर्ण मुकुट, अधर सुधारस बरसावै, मंद- मंद मुस्काना।
कोटि-कोटि तेज बल-राशि आभा तिहारी। मंद-मंद मुस्काए छवि अदभूद निराली।
सावँरा रे ओ सावँरा तोरे दर्शन को मन हुआ मोरा बावरा रे ओ सावँरा रे ओ सावँरा
लाल कुसुमब्ल गुलाबी उतरिय कांधे तुम्हारे, धोती पिताम्बर धारा।
स्वर्ण सिंहासन पर मढी रक्त वर्ण मखमल नैयना अभिरामा।
सावँरा रे ओ सावँरा तोरे दर्शन को मन हुआ मोरा बावरा ओ रे सावँरा।
दर्श दिवानी अँखिया राह निहारी तिहारी रे। अधरो पर मुरली विराजे
सावँरा रे ओ सावँरा,मन हुआ मोरा बावरा, तोरी नटखट,भोली अदाओ पर ओ रे सावँरा।
सावँरा रे ओ सावँरा मन हुआ मोरा बावरा रे ओ सावँरा
विशेष ————– बाल गोपाल नन्दलाल यशोदा दुलारे जब बालक रुप मे नटखट,भोली सी मासुम शरारते करते थे। उनके उस चरित्र-चित्रण की कल्पना भर से ही मन रोमांचित हो आता है। अपनी बाल लीलाओ से सभी गोप-गोपियो के मन को बरबस मोह लेते है। हाँ यह बात अलग है कि जब वह बडे हुए तो उनकी लीलाओ मे माधुर्य रस की कमी नजर आती है। हम सब तो उनके रुप माधुर्य रस से भरी बाल लीलाओ के आनन्द मे सरावोर होने मे ही मग्न हो जाना चाहते है जैसे गोकुलवासी हुआ करते थे।
रसखान की पदावलियो मे माधुर्य रस टपकता है ——–छछिया भर छाछ पर ये अहीरन की छोहरियाँ मोहे दिन-भर नाच नचावे। कितना सुन्दर भाव वर्णन रसखान ने किया है कि जब बालक कृष्ण गाँव भर मे डोलते ( घुमते ) है तो गोपिया उन्हे हाथ पकड कर अपनी गौंद मे खिच लेती है और ना-ना भाति के उपाय कर के कृष्ण की नटखट शरारतो का आनन्द लेने के उपाय करती है। कृष्ण उल्हाने देने के भाव से कहते है कि ये गोपिया मुझे छछिया भर ( कटोरा ) छाछ के बदले दिन भर नचाती है।
जय श्री कृष्ण
जय श्री राम