साल मे दो बार नवरात्रि पर्व मनाया जाता है। एक आसोज माह मे और एक चैत्र माह मे नव-रात्रि पर्व मनाया जाता है। नव-रात्रि इससे इस लिए कहते है, क्योकि यह पुरे नौ दिन तक मनाए जाते है। लोग नौ दिनो तक व्रत-उपवास रखते है। घर-घर माँ के नव स्वरुपो की पूजा करी जाती है। हर एक स्वरुप के लिए दिन निर्धारित होते है। नौ देविया और क्रम से उनके नौ ही दिन होते है। आसोज माह मे मनाये जाने वाले नव-रात्रि को शारदिय नव-रात्रि कहते है। चैत्र माह मे मनाये जाने वाले नव-रात्रि को बासंतिक नव-रात्रि कहते है। चलीए माता के नव-स्वरुपो के दर्शन करने चलते है आईए मेरे साथ——–
माँ का पहला स्वरुप————
माता का पहला स्वरुप को हम शैलपुत्री कहते है। माँ शैलपुत्री पर्वराज हिमालय की पुत्री बन कर आई। इसी कारण इनका नाम शैलपुत्री पडा। पहाडो, चट्टानो को शैल कहाँ जाता है। माता पार्वती का जन्म पहाड पर ही हुआ था। इस लिए एक नाम शैलजा भी है। माता का शैलपुत्री सफेद रंग के बैल पर आरुढ होती है। माँ शैलपुत्री सफेद रेशमी वस्त्र धारण करती है। माता ने अपने एक हाथ मे त्रिशुल और दुसरे हाथ मे कमल धारण करती है।
माता का दुसरा स्वरुप ब्रहमचारिणी है। माँ ब्रहमचारिणी पार्वती जब शिव को पति रुप मे पाने हेतु तपस्या करी थी। माँ के उस स्वरुप को ब्रहमचारिनी कहते है। दुसरे नवरात्रि के दिन ब्रहमचारिणी की पूजा करते है। माँ ब्रहचारिणी सफेद रेशमी वस्त्र धारण करती है। इनके एक हाथ मे कमंडलू और दुसरे हाथ मे स्फिटिक की माला धारण करती है।
माता का तीसरा स्वरुप———-
माता का तीसरा स्वरुप चंद्रघण्टा है। माँ चंद्रघण्टा शेर पर सवार होती है। वह लाल, गुलाबी, रक्त वर्ण के रेशमी वस्त्र धारण करती है। माँ चंद्रघण्टा अपने हाथो मे धनुष, कमंडलू, गद्दा, फरसा, तलवार घण्टा और एक हाथ से अभय मुद्रा धारण करती है। माँ चंद्रघण्टा के घण्टा ध्वनि से दुष्टो को भय उत्पन्न होता है।
माता का चतुर्थ स्वरुप ———-
माता का चतुर्थ स्वरुप है कुष्मांडा। माँ कुष्मांडा शेर पर सवार होती है। कुष्मांडा माँ लाल, गुलाबी रेशमी वस्त्र धारण करती है। माँ कुष्मांडा अपने हाथो मे गद्दा, धनुष, कमल, कमंडलू, अमृत-कलश, चक्र, जप -मालिका धारण करती है। माँ कुष्मांडा अपने अमृत कलश से अमृत भक्तो को पिलाती है। यह अमृत पान जिस से भक्तो के रोग, दोष,ताप सभी नष्ट होते है।
माता का पांचवा स्वरुप ———
स्कन्धमाता माता का पांचवा स्वरुप है। स्कन्ध माता शेर पर आरुढ होती है। लाल गुलाबी रेशमी वस्त्र धारण करती है। माँ स्कन्ध माता ने अपने हाथो मे अपने पुत्र स्कन्ध ( कुमार कार्तिकेय ) को उठाए रहती है। माँ अन्य हाथो मे कमल, अभय़ मुद्रा धारण करती है। संतान प्राप्ति की कामना रखने वाले माँ स्कन्धमाता की भक्ति करते है।
कात्यायनी माता का षष्ठम स्वरुप ————-
कात्यायनी माता का षष्ठम ( छटा ) स्वरुप है। माँ पार्वती का यह नाम कात्यायनी इस लिए पडा कि कात्यायन ऋृषि ने माँ को प्रसन्न करके उनके दर्शन किये। माँ कात्यायन ऋृषि से खुश हो उनको दर्शन देने उनकी कुटिया मे प्रकट हुई थी। माँ कात्यायनी लाल, गुलाबी रेशमी वस्त्र धारण करती है। माँ अपने हाथो मे अस्त्र-शस्त्र और अभय मुद्रा धारण करती है। कात्यायनी शेर पर सवार होती है। विवाह की ईच्छा रखने वाले माँ के इस स्वरुप का पूजन अर्चन करते है।
माता का सप्तम स्वरुप———–
कालरात्रि माँ का सप्तम स्वरुप है। माँ कालरात्रि का रंग बहुत काला है। शरीर का मास सूखा हुआ है। जीभ लपलपाने के कारण वह बहुत भयानक दिखाई देती हैै। माँ के इस स्वरुप को देख कर दुष्ट राक्षस आदि वहाँ से तुरंत डर कर भाग जाते है। माँ के सफेद दांत और उनके हाथो मे शोभायमान अस्त्र-शस्त्र इतने तेज चमकते है, कि मानो आकाश से भयानक बिजली गिर रही है। माँ कालरात्रि धरती पर चारो दिशाओ पर विचरण करती हुई भक्तो को भय मुक्त करती रहती है। कालरात्रि की दहाड इतनी तेज होती है कि दुष्टो के दिल दहल जाते है।
माता का अष्टम स्वरुप ————
महागौरी माता का अष्टम ( आठवां) स्वरुप है। महागौरी माँ पार्वती इस रुप मे माँ का रंग बहुत गौरा होने के कारण इनका नाम महागौरी पडा। महागौरी बैल पर आरुढ होती है। महागौरी सफेद रंग के रेशमी वस्त्र धारण करती है। अपने हाथो मे त्रिशुल, अभय मुद्रा, डमरु धारण करती है। अपने भक्तो की मनोकामना पुरी करती है।
माता का नवम स्वरुप ———-
सिद्धिदात्री माता का नवम स्वरुप है। माँ सिद्धिदात्री अपने भक्तो को प्रसन्न होने पर अष्ट सिद्धियाँ प्रदान करती है। माँ सिद्धिदात्री लाल, गुलाबी रेशमी वस्त्र धारण करती है। माँ सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान होती है। माता के सभी भक्त सिद्ध ऋृषि, मुनि सिद्धियो की प्राप्ति के लिए माँ को सदैव घेरे रहते है।
( नवरात्रि पर्व का इंतजार माँ का भक्त सदैव करता रहता है। नवरात्रि आने पर मानो उत्सव ही बनाया जा रहाँ इतनी खुशिया भक्तो मे व्यापत जाती है। माँ अपने भक्तो को दर्शन देने इन नवरात्रि के अवसर पर धरती पर आती है। माँ के भक्त अपनी भक्ति से माँ को प्रसन्न कर के मन चाहा वरदान पाते है। )
प्रचीन शास्त्रो मे नारी के विभिन्न स्वभाव के अनुसार वर्गीकरण किया गया है। जिसे समुंद्र शास्त्र नामक ग्रन्थ मे विस्तरित्र रुप से समझाया गया है। इस तरह कुछ नारिया जो समाज मे बहुत आदरणीय स्थान पाती है। कुछ नारिया सामान्य कहलाती है। कुछ निम्न कोटी की होती है जिन्हे समाज मे कोई महत्वपूर्ण स्थान नही दिया जाता। जैसे विषेश पूजनीय नारिया–पद्मिनी, कोकिला, मृगनयनी, चित्रणी, हस्तिनी, कुछ नारियो को सामान्य माना जाता है। उनमे गृहणी, पतिव्रता आदि,कुछ नारियो को समाज स्वीकार नही करता था। उनमे कुलटा, चांडालिनी, डाकिनी, पिशाचनी, विषकन्या आदि इस तरह तीन प्रकार से वर्गीकृत किया गया। पहले वाली दो प्रकार की नारियो को समाज स्वीकार करता था मगर तीसरे प्रकार की नारियो को समाज मे आदर्णीय नही माना जाता था।
(1) पद्मिनी—
पद्मिनी नारी
इस वर्गीकरण मे समाज की सबसे अधिक सम्मान पाने वाली नारिया होती थी। इनकी पहचान–इस तरह की नारियाँ गौर वर्ण ( गौरी ) लम्बी…
मुझे भगवान की लीलाओ कथाओ को पढने लिखने मे रुचि है। भारतीय संस्कारो, रीति ,रिवाज परम्पराओ को समझना व उनको मानना मेरे जीवन का आधार स्तम्भ है। मुझे प्रकृति से बहुत लगाव है। प्रकृति ने जो हमे प्रदान किया है उन सुरम्य स्थलो का भ्रमण करना उन्हे जानना बेहद खुश गवारा लगता है। मै मानव धर्म मे विश्वास करती हुँ कि संसार के सभी प्राणी उस विधाता की देन है सब से प्रेम करना। सबको सुखी और खुश व तंदुरुस्त देखना चाहती हुँ। मेरी नजर मे कोई बुरा या भला नही होता। भले-बुरे तो इन्सान के कर्म होते है। भगवान के सभी रुपो को समझना उनके आदर्शो के अनुसार चलना पसंद है। मै यह चाहती हुँ कि मेने जो ज्ञान अर्जन किया है उसका दुसरो को भी लाभ मिल सके। इसी परोपकार की भावना से इस बेवसाईट का निर्माण किया है। मुझे भी नए-नए ज्ञान की जानकारी की जरुरत पडती है इसके लिए प्रयत्नशील रहती हुँ जब भी कही से कुछ ज्ञान मिल जाए उसे स्वीकार कर लेना पसंद है। जय श्री कृष्ण
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