प्रचीन शास्त्रो मे नारी के विभिन्न स्वभाव के अनुसार वर्गीकरण किया गया है। जिसे समुंद्र शास्त्र नामक ग्रन्थ मे विस्तरित्र रुप से समझाया गया है। इस तरह कुछ नारिया जो समाज मे बहुत आदरणीय स्थान पाती है। कुछ नारिया सामान्य कहलाती है। कुछ निम्न कोटी की होती है जिन्हे समाज मे कोई महत्वपूर्ण स्थान नही दिया जाता। जैसे विषेश पूजनीय नारिया–पद्मिनी, कोकिला, मृगनयनी, चित्रणी, हस्तिनी, कुछ नारियो को सामान्य माना जाता है।
उनमे गृहणी, पतिव्रता आदि,कुछ नारियो को समाज स्वीकार नही करता था। उनमे कुलटा, चांडालिनी, डाकिनी, पिशाचनी, विषकन्या आदि इस तरह तीन प्रकार से वर्गीकृत किया गया। पहले वाली दो प्रकार की नारियो को समाज स्वीकार करता था मगर तीसरे प्रकार की नारियो को समाज मे आदर्णीय नही माना जाता था।
(1) पद्मिनी—

इस वर्गीकरण मे समाज की सबसे अधिक सम्मान पाने वाली नारिया होती थी। इनकी पहचान–इस तरह की नारियाँ गौर वर्ण ( गौरी ) लम्बी सुराही दार कर्दन, नैयन बडे आँख का पानी सफेद, चमकदार,लम्बे काले बाल,सुन्दर नाक,कपोल मांशल ( भरे हुए गाल ) उन्नत ललाट, होंठ लाल-गुलाबी आभा युक्त चिकने व ना अधिक मोटे ना अधिक पतले साधारण, हाथ पैर समान बिना रोये के (बाल रहीत ) नाभी उन्नत,गहरी और वृक्ष-स्थल मांसल व सूडोल, त्वचा गुलाबी आभावा युक्त चिकनी बहुत ही सुन्दर होती है इस तरह की नारियाँ।
इस तरह की नारिया बहुत दयालु प्रकृति की, बडो व छोटे सबको यथायोग्य सम्मान देने वाली, ऐश्वर्यशालिनी बहुत अधिक भाग्यशाली, इनके पति राजा या फिर राजा के तुल्य समाज मे आदर पाने वाले होते है। ऐसी नारियो से विवाह करने वाला बहुत भाग्यशाली पुरुष होता है। तभी इस तरह की महिला से शादी करके अपने भाग्य की वृद्धि करता है। ऐसी नारियो से विवाह करने वाला एक साधारण व्यक्ति भी क्यो ना हो पर इनसे विवाह करके वह व्यक्ति धिरे-धिरे बहुत उन्नति करता जाता है। इस प्रकार की नारी का पति समाज मे प्रतिष्ठित होने लगता है।
एक गुमनाम इन्सान भी इनके पति बन कर बहुत नाम कमाते है। समाज उनको बहुत मान- समान देता है। अच्छी सन्तति को पैदा करने वाली यह नारी बहुत भाग्यशालिनी होती है। इनकी संतान अपनी माँ से अच्छे संस्कार मिलने से योग्य होती है। इस तरह की नारियाँ अपने पति के अलावा कभी दुसरे पुरुष को स्वीकार नही करती। पुरी तरह से सतित्व धर्म निभाना जानती है।
गीत——–रुप की रानी ख्वाबो की मलिका, जुल्फे है, रेशम आँखे है नीलम सोच रहाँ किससे पुछु मै उस लडकी का नाम।

( 2 ) चित्रनी—-
इस तरह की नारिया देखने मे सुन्दर नैयन-नक्श की होती है। हाव-भाव अच्छे होते है। यह अपने हाव-भाव से दुसरो को मोह लेती है। इस तरह की नारी को मोहनी भी कहते है। इनके प्रत्येक अंग नपे तुले होते है एक चित्रकार की रचना की तरह मानो भगवान ने इन्हे एक साचे मे ढाल कर बनाया हो। यह नारी अपने पति से ही रमण करने मे विश्वास करती है। यह भी सतित्व धर्म निभाती है। समाज मे सम्मान पाती है। यह योग्य संतति को पैदा करती है। यह अपने हाव-भाव से अपने पति को अपने प्रति लुभाती है। इनके गृहस्थ मे मन-मुटाव होता नही अगर हो जाए तो यह नाच कर अभिनय करके अपने पति को अपने प्रति स्मर्पित कर लेती है।
गीत———- तन भी सुन्दर मन भी सुन्दर तुम सुन्दरता की मुर्त हो साया भी जो तेरा पड जाए हो जाऊंगा मै दिवाना,चंदन सा वदन,चंचल चितवन।
(3 ) कोकिला—-

ऐसी नारिया सुन्दर नैयन नक्श के साथ मधुर वाणी की धनी होती है। बहुत मधुर स्वर होते है। यह गायन-वादन मे निपुन होती है। गीत-गाना कर -कर दुसरो का मन मोह लेती है। कोयल के समान स्वर(वाणी ) होने के कारण ही इन्हे कोकिला कहते है। देखने मे सुन्दर आभा लिए मधुर भाषिनी यह नारियाँ अपने पति मे ही अनुरक्त होती है। इन्हे भी अपने पति के अलावा दुसरो पुरुषो मे कोई आकर्षन नही होता पुरी तरह से सतित्व धर्म मे ही विश्वास करती है।अपने गायन से अपने पति को अपने वश मे रखती है।
गीत—–कोयल सी तेरी बोली,कुकु,कुकु सूरत है कितनी भोली।
(4 ) मृगनयनी—-


यह नारियो बहुत सुन्दर होती है। इनके नैत्र बहुत सुन्दर बडे-बडे मृग (हिरन ) के समान होते है। जो भी इनके नैयन देखता है तो आकर्षीत हो जाता है। इनके नैयन बडे और सफेद पानी लिए चमकदार होते है। इनके नैयन इतने सुन्दर होते है कि हर कोई इनके नैत्रो को देखता ही रह जाता है। सुन्दर नैयन-नक्श की धनी यह नारियाँ आकर्षित करती है। सबका ध्यान अपनी तरफ वरबस खिच लेती है।। रंग गौर्ण होता है। शर्मलज्जा से इनके नैयन दुसरो के सामने देखने मे संकुचाती है। यह भी पतिव्रत धर्म निभाती है। सुन्दर शरीर देखने मे आकर्षक होती है।
गीत——–तेरे नैयना बडे कातिल मार ही डालेंगे।

(5 ) हस्तिनी—-
इस वर्गीकरण की नारिया सुन्दर होती है। इनका चाल-ढाल बेहद मनमोहक होती है। बडी नजाकत के साथ चलती है ठिक, उसी तरह जैसे हाथी अपनी मस्त चाल चलता है। हाथी की तरह मस्त चाल होने के कारण ही इन्हे हस्तिनी कहते है। यह नारियाँ भी पतिव्रत धर्म का पालन करती है। नपे-तुले नैयन-नक्श की धनी यह स्त्रिया भाग्यशालिनी होती है। इनकी चाल बहुत मनमोहक होती है। धिमे कदम और हर कदम नपा-तुला हो जैसे जब यह चलती है। इस लिए इनकी चाल को देख कर ही पता चल जाता है कि यह हस्तिनी नारी है।
गीत——- बहारो की मांगी एक इलतजा, फूल फूल पर बनी तेरी तस्वीर, फूल-फूल पर लिखा तेरा नाम, तुझे सलाम,ऐसे कदम उढाती है कि जैसे कसम उढाती है।

(6) मयूरी—–
यह नारिया भी सुन्दर नैयन नक्श वाली होती है। देखने मे सुन्दर और व्यवहार मे भी नेक होती है। इनकी आवाज मोर की भांति होती है। यह नारिया नाच-गाने मे प्रवीन होती है। अपने रुष्ट पति को अपने नाच गाने से मोहित करके खुश कर लेती है। ठीक उसी तरह जैसे बरसात आने पर मोर नाचता गाता है। इसी कारण इन्हे मयूरी कहते है। इनके हाथ- पाँव एक जगह स्थिल हो कर नही रहते, यानी चंचल प्रवृति की होती है। यह स्त्रियाँ भी ऊपर वर्णित नारियो के समान पतिव्रत धर्म को मानने वाली होती है। इनकी जान अपने पति मे ही रमी रहती है। इनके पति सदैव अपनी पत्नि से बेहद करीब रहना पसंद करते है। पुरी तरह से पवित्र आचरण वाली यह नारियाँ भी भाग्यशालिनी होती है।
गीत——मै तो मोरनी बन कर नाचु सावँरिया तेरी याद मे।
(7) चंद्रमुखी—-

यह नारिया बहुत सुन्दर मासुम कोमल सी होती है। इनका गौर वर्ण सुन्दर नैयन नक्श होते है। यह वरबस ही दुसरो का मन मोह लेती है। एकदम चंद्रमा के समान हर तरफ अपनी आभा की चकाचौंध फैलाती है। मन से शांत प्रवृति की होती है। इन्हे गुस्सा कभी नही आता अगर किसी कारण आता भी है, तो बहुत जल्दी शांत भी हो जाता है। बिना कारण यह गुस्सा नही करती। यह भी पतिव्रत धर्म का पालन करती है। भाग्यशालिनी होती है।
गीत——चांद जैसे मुखडे पर बिन्दिया सितारा, नही भुलेगा ये बंजारा ओ-ओ।
( 8 ) हंसिनी—-

सुन्दरता की पराकाष्ठा इस तरह की नारियाँ बहुत सुन्दर होती है। स्वभाव से नेक दिल होती है। अपने पति मे अनुरक्त रहना ही अपना धर्म समझती है। इनकी चाल बहुत मनमोहक होती है, यानि ठुमक-ठुमक कर चलना। जिस तरह से हंस चलता है, ठीक वैसी इनकी चाल होती है इसी कारण इन्हे हंसिनी कहते है। यह भी आदर्श पत्नि होती है। जिसके साथ इनका विवाह होता है वह इनंसान सुखी जीवन जिता है।
गीत——– गौरी चलो ना हँस की चाल जमाना दुश्मन है।
ओ हँसिनी कहाँ उड चली अरमानो के पंख लगा उड चली रे।
अभी जो कुछ वर्गाकरण नारियो के किये गए है वह सब सुन्दरता की पराकाष्ठ होती है। सभी अपने पतिव्रत धर्म को मानने वाली पूर्ण पवित्र चरित्र वाली भाग्यशालिनी होती है। दुसरो का मान सम्मान करने वाली। ऊपर वर्णीत नारियो को बनाव-श्रृंगार करना पसंद नही होता। पर समाजिक मान-मर्यादा मे रहते हुए थोडा सुन्दर गहने आदि पहन लेना उचित समझती है।
आईए अब उन नारियो की चर्चा करे जो साधारण नारियो की श्रैणी मे आती है यानि मध्यम वर्गीय नारिया यह अधिकाश तहः देखने मे मिल जाती है। आजकल इसी तरह की नारियाँ बहुतायद मात्रा मे होती है। खाश कर आजकल के माहौल्ल मे ऊपर वर्णित नारिया बहुत कम होती है मगर मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग की महिलाए बहुत अधिक होती है।
प्रथम श्रैंणी की इन महिला वर्गीकरन मे कुछ खास नारिया जिन्हे इतिहास ने आज तक याद रखा–माँ सीता,मंदोदरी,रानी पद्मावति, महारानी मृगनैयनी, सति अनसुईया,सति सावित्री आदि।

(1 ) गृहणी—-
इस तरह की नारिया साधारण नैयन नक्श वाली होती है, यानि ना अधिक सुन्दर और ना बदसुरत। इस तरह की नारियाँ अपने घर मे ही मन को लगाती है। बस घर को सजाना सवारना घर से प्रिती होती है। यह अपने पति व संतानो की तनमयता से देखभाल करती है। अधिक बनाव-श्रृंगार करना इन्हे भी कम पसंद होता है।यह अधिक बंठन कर नही रहती। यह परिवार की देखभाल करना अपना परम कर्तव्य समझती है। और अपने परिवार का अच्छे से ख्याल रखती है। आज के समय इस तरह कि नारिया बहुत होती है।

(2 ) व्यवहार कुशला—-
इस तरह की नारिया साधारण नैयन- नक्श की होती है। कभी-कभी इस तरह की नारियो मे कोई- कोई अति सुन्दर भी होती है। यह नारियाँ व्यवाहर मे कुशल होती है। सभी के संग किसके संग कितना और कैसा व्यवहार करना है। यह इन्हे वखुबी निभाना आता है। इसी कारण इन्हे व्यवहार कुशला कहते है। इस तरह की नारिया सबके साथ यथा योग्य व्यवाहर करती है। इन्हे भी अपने परिवार और गृहस्थि मे ही लगाव होता है। अपने पति और बच्चो की देखभाल यह पूरी तनमयता से करती है। समाज की हर गतिविधियो मे यह बढ-चढ कर भाग लेती है। अधिक श्रृंगार कर मेक-अप से लिपटे रहना इन्हे भी पसंद नही होता।
ऊपर दोनो प्रकार की नारियो का वर्गीकर हुआ आईए अब चले उन नारियो को समझने जिन्हे समाज नकारता है। समाज मे ऐसी नारियो का कोई स्थान नही होता। बेहद तुच्छ मानी जाने वाली इन नारियाँ पर चर्चा करे। आजकल इसी तीसरे प्रकार की तुच्छ नारियो की बहुलता देखने को मिलती है।
(1 ) कुलटा —-
इस तरह की नारिया अधिक सुन्दर नही होती पर मेकअप करके खुवसूरत दिखने का भरष्क प्रयास करती है। इनको काम काज मे आलस होता है। हर समय वासना मे लिप्त रहती है। इस तरह की नारियाँ पर-पुरुष ( बिना विवाह बंधन के किसी पुरुष से देहिक रिस्ता बनाना ) मे रत रहती है। साफ सफाई से कुछ लेना देना नही होता। हर समय पुरुषो की बाते करना या पुरुषो से बाते करना इनका काम होता है। यह कुल की लाज भंग करती है। समाज की मर्यादा को लांघ कर अपनी इच्छा पूर्ती मे सलग्न रहती है। यह किसी भी प्रकार के अंगप्रदर्शन करने वाले वस्त्र या आधुनिकता के नाम पर विकने वाले अभ्रद वस्त्र अधिक पसंद आते है। दुसरो की निंदा करना,दुसरो को नीचा दिखाना,कुटिल चाले चलना,दुसरो को दुखी करने का कोई मौका मिले उसे यह नही छोडती। अधिकतर अंग-पर्शक बनकर खुलेआम घुमना इनको पसंद होता है। इनमे से कुछ तो नशे-पते भी कर लेती है। धन के लिए यह नारियाँ कुछ भी कर कुजरने को तैयार रहती है।
(2 ) पिशाचनी—
इस तरह की नारियाँ गंदे आचरण वाली कुरुप होती है। मेल कुचेल मे रहने से कोई परेशानी नही होती। बेशभूषा गंदी आदते इनमे सूमार होती है। नशा करना,पर परुष से सम्बंध बनाना बडो-छोटो का कोई लिहाज नही। बेहद बेशरेम होती है।
(3) डाकिनी—
इस तरह की नारियाँ इन्हे माया रचनी भी आती है यह दुसरो को अपनी माया जाल मे फँसा लेती है। दुराचारिनी होती है। जादू टोना करना। कपाल-क्रिया करके लोगो को परेशान करना।
(3 ) चांडालिनी—-
इस तरह की नारिया बहुत डरावनी कुरुप होती है। हमेशा मरे हुओ का धन हडप लेना। मरे हुए के शरीर को नोच कर खाना। समशान मे रात- बेरात भटकते फिरना। भूत-प्रेतो से बाते करना इनके शौंख होते है। यह काला जादू जानती है। नंशा करना पर पुरुषो मे रत रहना ये इनकी आदत होती है। वासना की भूखी इधर उधर अपना शिकार ढुढती फिरती है।
(4 ) विष कन्या—-
विष कन्या नाम से ही विदीत होता है कि इस तरह की नारियाँ विष भक्षण करती है। प्राचीन काल मे राजा लोग दुसरे राजाओ का भेद जानने के लिए इन नारियो विष कन्या का सहारा लेते थे। ये राजा के लिए गुप्तचर होती थी। इन विष कन्याओ के माध्यम से अपने शत्रु राजाओ को मरवाने का काम भी राजा लोग किया करते थे। इन्हे बाल्यकाल से ही थोडा-थोडा विष खिला कर पाला जाता। यह जरुरत पडने पर किसी राजा या व्यक्ति विषेश को अपने मोहनी जाल मे फसा कर उसकी अपने दांतो से काट कर हत्या कर सकती थी।
( 5 ) व्यभिचारिनी—-
इस तरह की नारियो सुन्दर नही होती । यह मेकअप करके खुद को सुन्दर दिखाने का काम करती है। इस तरह की नारियाँ पर-पुरुषगामी होती है। पर-पुरुष को अपनी तरफ आकर्षित कर के उनसे सम्बंध बनाना, इनकी आदत होती है। ऐसी नारियो को देखते ही पुरुष अपना घर परिवार धर्म-कर्म सब छोड कर इनके इशारो पर नाचने लगता है यहां तक कि अपनी विवाहिता पत्नि को भी छोड देता है और इनके नाज नखरने उठाने लगता है। इस तरह की नारियाँ येन-केन प्रकारेन पुरुषो को अपने वश मे कर लेती है और फिर उनसे अपनी मनमानी करवाती है। मन माना कुछ भी पहन लिया ऐसे वस्त्र जिनसे अंग प्रदर्शन होता है उन्हे पहने मे इन्हे आनन्द आता है। मोहनी-रुप सुरुपनखा धर आई राम से विनय सुनाई तुम बनजाओ मेरे सहचर मौज विहार करेंगे हम वन भर।
रामायण की खलनायिका सुरुपनक्खा कुल से राक्षसी थी। राक्षस कुल के लोग सुन्दर नही बेहद बदसूरत होते। अपनी बदसूरती छुपा सुन्दर नारी का भेश धर राम से आनन्द-गमन की बाते करने लगी। राम ठहरे पत्नि व्रता पुरुष वे अपनी विवाहीता पत्नि सीता के अतिरिक्त किसी अन्य स्त्री की छाया भी नही लेते थे। वह भला कैसे सुरुपनक्खा की चिकनी-चुपडी बातो मे आते। उन्होने सुरुपनक्खा से स्पष्ट शब्दो मे कह दिया कि मै पत्नि व्रत धारी पुरुष हुँ अपनी पत्नि के अलावा दुसरी नारी की सोच नही रखता। यह बात सुन सुरुपनक्खा सीता को घुरने लगी और सीता का वध करके राम को पाने के लिए सीता पर उसने अपने तीखे-पैने नाखुनो से बार किया।
यह सब लक्ष्मण देख रहे थे वे तुरंत दौडे अपनी देवी सम्मान भाभी की रक्षा के लिए। उन्होने जब उस सुरुपनक्खा का वध करने के लिए तलवार निकाली तो राम और सीता दोनो ने उन्हे रोक दिया कि किसी नारी पर हथियार चलाना क्षत्रिय धर्म मे नही है। इसे मारो मत छोड दो तब लक्ष्मण ने अपने भाई राम के कथन मानते हुए उसका वध नही किया केवल उसके नाक-कान काट लिये। मेक-अप करके सुन्दरी बनी सुरुपनक्खा आज भी बहुत सी नारियाँ ब्यूटी पार्लर पर जाकर सज्ज-सबर कर सुन्दर दिखना चाहती है। लम्बे नाखुन पहले राक्षसी रखती थी आज तो बहुत सी नारिया नाखुन बडा करती फैशन है जी।

इस तरह देखा जाए तो निम्न कोटि की नारिया समाज मे कलक ही होती है। समाज की मान मर्यादा को भंग करती है। पर दुर्भाग्य से आज के परिवेश मे इसी तरह की नारिया अधिक है। सबसे उच्च कोटि की नारिया जिनका ऊपर वर्णन किया गया आजकल बहुत मुश्किल से ही देखने मे आती है। मध्यम वर्ग की नारिया फिर भी दिखती है। निम्न कोटि की नारियो की बहुलता होने के कारण आज समाज तेजी से सभ्यता की राह पर पतन की तरफ बढ रहाँ है। आज के समय मे विवाह के बंधनो को टुटने के कगार पर पहुचते जा रहे है। लोग अपने जीवन साथी का साथ-हाथ छोड दुसरी नारियो मे लिप्त होते जा रहे है। अधिकांशतः लोगो की सोच छोटी और जंगली होती जा रही है। तभी तो अपने जीवन साथी को छोड पर-नारी,पर-पुरुष से सम्बंध स्थापित करने मे लोग महारथ हांसिल करते जा रहे है।
चंद अल्फाज जीन्दगी के—–
नाज नखरे तेरे मै उठा लुगा ऐ जीन्दगी तु करीब आ तो सही,खुद को तेरी राह मे बिछा दुगा ऐ जीन्दगी तु आ तो सही,बर बस थके मांदे से लौट आते है मेरे कदम रैन बसेरे तु बसा तो सहर- ए- जीन्दगी तु आ तो सही। मौन तौड नये अल्फाज बनालु किस दरक्खत पर रहती है मेरी रह गुजर। बस तुझसे ही अपना अक्ख बना लु तु करीब आ तो सही ऐ जीन्दगी तेरे नाजो-उल्फत उठा लुंगा ऐ जीन्दगी।
निष्कर्ष ——— प्रथम प्रकार की नारियाँ बेहद सुन्दर, सादगी भरा जीवन,मन मे दया ,करुणा,वत्सल्य भाव,परोपकारी, लज्जाशील,शीलवती, गुणोकी खान, सत पर चलना ( सतित्व,पतिव्रत ),धर्म व समाज के बनाए दायरे मे रह कर जीवन-यापन करना। सभी तरह के उच्च गुण इनमे विद्यमान रहते है। समाज मे आदर्निय स्थान बनाती है अपना। शांत,धर्य,संतोष,दया आदि सभी गुण इनमे समटे रहते है। इस तरह की नारिया अधिकाश राज-राजेश्वरी ( धनी ) होती है। भाग्य यह जन्म से ही साथ लाती है अर्थात पिता के घर मे भी राज और पति के संग रह कर राज करती है। धन वैभव की इन्हे कोई कमी नही रहती। नाम शोहरत भरपुर होता है। अगर यह अपने घर मे ही रहे फिर भी लोगो मे इनकी चर्चा अवश्य होती रहती है। इनकी सुन्दरता,इनकी शालिन्ता की बाते जग-जहान होती है।
दुसरे प्रकार की नारिया अधिकाश मध्यम परिवारो मे होती है। व्यवाहर कुशलता, साधारण नैयन-नक्श, अपने घर-परिवार मे मस्त रहना यह अपना धर्म मानती है। धन का इनको भी कम ही आभाव होता है। बहुत अधिक धन ना हो पर इनके पति इतना जरुर कमा लाते है कि जिनसे पुरे परिवार का भरपौषन भलि-भांति हो सके। यह अधिक सुन्दर तो नही होती पर साधारण नैयन नक्श होते है। यह बनाव श्रृंगार करती है पर अदिक बनठन कर रहना इन्हे भी पसंद नही होता। अपने से अदिक यह अपने परिवार के बारे मे सोचती है।
तीसरे और निम्न कोटि की श्रैंणी की महिलाए बदसुरत, रंग-रुप खास नही होते पर मेक-अप करके खुदको सुन्दर दिखाना इन्हे भलि-भांति आता है। दुसरो का अपमान करना, नशे-पते करना, बलि-भक्षण करना, गंदा स्वभाव,चुगली-चपाटी करना, अशोभनिय वस्त्र धारण करना,पर-पुरुषो को साम,दाम,दण्ड,भेद किसी तरह से अपने वश मे कर लेना। पर-पुरुष को अपने इशारो पर नचना। अपनी इच्छा-पूर्ति हेतु शाम-दाम-धण्ड भेद की नीति अपना लेना। काले जादू-टोने करना। कुल मिला कर अशोभनिय व्यवहार की होती है यह तीसरी श्रैंणी की नारियाँ।
जय माँ त्रिपुर सुन्दरी
जय श्री राम
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इंसान विचारो से सुन्दर या बुरा बमता है
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