हे अभयंकर,हे करुणाकर शिष तुम्हारे गंग की धारा।
हे अभयंकर हे करुणाकर। गले मे सोहे भुजंग माला।
हे अभयंकर,हे करुणाकर। सृष्टि विलोकत नयन विशाला।
हे अभयंकर,हे करुणाकर। दया के तुम हो सागर।
हे अभयंकर,हे करुणाकर,शिष तुम्हारे गंग की धारा।
हे अभयंकर,हे करुणाकर। तुम हो मुक्ति,भुक्ति प्रदाता।
हे अभयंकर,हे करुणाकर।सृष्टि रचियेता, तुम ही हो सृष्टि संहारक ।
हे अभयंकर,हे करुणाकर। तुम औढे मृग दोशाला ।
हे अभयंकर,हे करुणाकर। शिष तुम्हारे गंग की धारा।
हे अभयंकर,हे करुणाकर। प्रसन्न,मुदित हो देते अभय दाना।
हे अभयंकर,हे करुणाकरु। क्रोधित हो तुम हर लेते प्राणा।
हे अभयंकर,हे करुणाकर। शिष मुकुट चंचल चंद्र तुम्हारे।
हे अभयंकर,हे करुणाकर। मुख मे रहे तुम्हारे,आँक,धतूरा,भांगा।
हे अभयंकर, हे करुणाकर। सेवक तुम्हारे बलि नन्दी समाना।
हे अभयंकर,हे करुणाकर। लोक मे तुम्हारे सब रहते मित्र समाना।
( शिव सवारी नन्दी बैल, माँ भगवती पार्वती सवारी शेर, कुमार कार्तिकेय सवारी मोर, गणपत गणेश सवारी मूषक सब आपस मे दुश्मन है पर शिव लोक मे सब मित्र के समान शांति से रहते है। )
हे अभयंकर,हे करुणाकर शिष तुम्हारे गंग की धारा। हे अभयंकर हे करुणा कर।
हे अभयंकर,हे करुणाकर।
नमामि जय शिव-सम्भु। नमामि तुभय हे अभयदाता। हे शिव-शंकर भुक्ति,मुक्ति देने वाले दाता।
हर हर महादेव
जय श्री राम
चित्रा की कलम से
भक्ति भावना से ओत-प्रोत प्रशंसनीय रचना 👌🏼👌🏼हर हर महादेव 🙏🏼😊
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धन्यवाद जी,हर हर महादेव
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