हे मृगनैयनी कौन हो तुम,तुम कौन हो।
तुम मौंन हो इसी लिए गौंण हो तुम
सुन रहाँ है कौन तुम्हारा करुणक्रंदन इन विहडो मे।
निर्जीव सा तुम्हारा तन,मन अल्लहाद करता।
हे मृगनैयनी कौन हो तुम, तुम कौन हो।
मौंन हो इसी लिए गौंण हो तुम।
वट-वृक्ष की अटल-अखण्ड लताओ सी।
सिमटी हुई हो अपने ही मनोभावो मे कही।
लग रही हो पाषण-मृद मूर्त सी।
हे मृगनैयनी कौन हो तुम, तुम कौन हो।
मौन हो इसी लिए गौंन हो तुम।
लगती हो चारुलता की शीतल छाव भी।
आभास करा रही हो तुम बसंत-आगमण का भी।
हे मृगनैयनी कौन हो तुम, तुम कौन हो।
मौंन हो इसी लिए गौंण हो तुम।
कौन हो तुम, तुम कौन हो।
हे मृगनैयनी कौन हो तुम।
कौन हो तुम, तुम कौन हो।
जय श्री राम
चित्रा की कलम से
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चित्रा मल्हौत्रा
मुझे भगवान की लीलाओ कथाओ को पढने लिखने मे रुचि है। भारतीय संस्कारो, रीति ,रिवाज परम्पराओ को समझना व उनको मानना मेरे जीवन का आधार स्तम्भ है। मुझे प्रकृति से बहुत लगाव है। प्रकृति ने जो हमे प्रदान किया है उन सुरम्य स्थलो का भ्रमण करना उन्हे जानना बेहद खुश गवारा लगता है। मै मानव धर्म मे विश्वास करती हुँ कि संसार के सभी प्राणी उस विधाता की देन है सब से प्रेम करना। सबको सुखी और खुश व तंदुरुस्त देखना चाहती हुँ। मेरी नजर मे कोई बुरा या भला नही होता। भले-बुरे तो इन्सान के कर्म होते है। भगवान के सभी रुपो को समझना उनके आदर्शो के अनुसार चलना पसंद है। मै यह चाहती हुँ कि मेने जो ज्ञान अर्जन किया है उसका दुसरो को भी लाभ मिल सके। इसी परोपकार की भावना से इस बेवसाईट का निर्माण किया है। मुझे भी नए-नए ज्ञान की जानकारी की जरुरत पडती है इसके लिए प्रयत्नशील रहती हुँ जब भी कही से कुछ ज्ञान मिल जाए उसे स्वीकार कर लेना पसंद है। जय श्री कृष्ण
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वाह ! बहुत खूब 👏👏👏👏😊
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धन्यवाद , राम राम जी
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राम राम 🙏🏼
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अद्भुत लेखनी 👏👏
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धन्यवाद जी
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