आपने कृष्ण लीला बहुत बार देखी सुनी ही होगी। कृष्ण लीला मे एक विशेष चरित्र पुतना के बारे मे देखा सुना होगा। पर कभी आपने सोचा कि पुतना के किस भाव से खुश होकर श्री कृष्ण ने उसे अपने धाम मे जगह दी। यह जानने के लिए चलते है पुतना का परिचय जानते है।
बालक श्री कृष्ण को मारने के लिए कंस ने पुतना को भेजा था। ऐसा पढने सुनने मे आता है। पुतना ने बालक कृष्ण को मारने के लिए भेष बदल कर गोकुल मे नन्दरानी माँ यशोदा के पास जाकर बालक को बातो-बातो मे गोंद मे लेकर चोरी से दुग्ध पान ( ब्रैस्ट फीडिंग ) करवाने के लिए एक सूने स्थान पर ले गई और दुग्ध पान करवाने लगी। पुतना ने कृष्ण को मारने के लिए अपने स्तनो मे विष का लेपन किया हुआ था। विष लेपन इस लिए किया था कि जब नन्हा बालक कृष्ण दुग्ध पान करेगा तो दुध के संग वह विष भी उसके कंठो से नीचे उतरेगा और बालक कृष्ण मर जाएगा।
मगर भगवान को भला कौन मार सकता है। बालक कृष्ण ने दुग्ध पान के संग पुतना के प्राण भी पी लिये। पुतना मर गई। कृष्ण सकुशल माँ यशोदा को वापस मिल गया। गांव के सभी लोगो ने मृत पुतना को अग्नि मे जला कर उसका दाह संस्कार कर दिया। पुतना के दाह संस्कार के समय सभी ग्रामवासी वहाँ मौजूद थे सब यह देख कर हैरान थे कि जब पुतना का दाह होने पर पुतना की चित्ता से बहुत ही भिन्नी-भिन्नी सुगंध निकलने लगी। यह सुगन्ध चारो तरफ फैल वातावरण को महकाने लगी। जब पुतना जल गई तो पुतना की चिता मे से एक बहुत ही सुन्दर नव यौवना निकली उसे लेने आकाश मार्ग से एक वाहन आया वह सुन्दर नारी उस वाहन मे बैठ गई वह वाहन उस सुन्दर नारी को ले कर पुनः आकाश मे उड चला।
यह वाहन भगवान के पार्षदो का था वह सुन्दर नारी रुप मे बदली पुतना को भगवान की आज्ञा से उनके धाम मे ले गए। देखा एक राक्षसी कैसे भगवान के धाम जा सकती है। इस लिए जाहीर है पुतना कोई साधारण नही थी। वह अपने पुन्यो की वजह प्रभु धाम मे पहुची थी। यह सब जानने के लिए हमे पहले यह जानना पडेगा कि पुतना ने कौन सा ऐसा कर्म किया और कब किया जो वह प्रभु धाम मे जा पाई। आईए पुतना के इस जन्म से पूर्व के एक जन्म के बारे मे जानते है। यह बात पुतना के उस जन्म की है जब पुतना राजा बलि की पुत्री थी।
जी हाँ पुतना राजा बलि की पुत्री रत्नाकर ( रतनवाला ) थी। जब भगवान वामन अवतार ले कर राजा बलि से वर मांगने गए तो वहाँ राजा बलि के संग उनकी रानियाँ, संताने व प्रजा सभी मौजूद थे। जब वामन अवतारी भगवान वहाँ जाकर भिक्षा मांगने लगे तो राजा बलि की पुत्री रत्नाकर ने उन्हे देखा। वामन को देख मन ही मन रत्नाकर ने सोचा कि कितना सुन्दर बालक है कितना अच्छा होता यह बालक मेरा पुत्र होता। इस तरह के विचार करती रत्नाकर वहाँ सब देखती रही। जब वामन ने राजा बलि से उनका सिर पर अपना पाव रखा तो वह जिस बालक पर स्नेह बरसा रही थी क्रोधित हो गई। सोचने लगी कितना ढिठ बालक है कैसे पिता का अपमान सहन करती पुत्री थी तो मन मे सोचने लगी इसे तो जहर देकर मार देना ही ठिक रहे।
भगवान उसकी सभी बातो को जान गए और उसकी मनोकामना पुरी करने के लिए उसे पुतना का जन्म दिया और पहले उसने वामन को पुत्र माना सो वह मातृत्व भाव से ही आई थी माता की भांति दुग्ध पान करवाने लगी। फिर उसका दुसरा वर था वामन को जहक से मारने का सो वह दुध के संग जहर पिलाने आई थी। वैसे रत्नाकर ने भगवान के प्रति मातृत्व भाव रखा सो माँ की जगह उसे प्रदान कर अपने धाम मे स्थान दिया।
जब किसी छोटे बच्चे को बुरी नजर लगे या बहुत बीमार हो, खाना पिना नही करता हो, दिन भर अकारण रोए, डरता बहुत हो इस तरह की समस्या हो तो बालक के माता पिता को बालक को गौंद मे लेकर पुतना की कथा सुननी चाहिए। इससे बुरी नजर दूर होती है।
जय श्री कृष्ण
जय श्री राम