सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र-चित्रणन

भारत की पवित्र भूमि मे अनगंणित महान राजा हुए जिनकी योशोगाथा आज भी घरती पर गुंजती रहती है। ये वे महान शासक थे, जिन मे अद्भूत बल के सहित न्याय प्रियता, योग्य नैतृत्व क्षमता, प्रजा-पालक हुआ करते थे। ऐसे महान राजाओ मे एक नाम है राजा हरिश्चंद्र का। आओ जी,चलते है राजा हरिश्चंद्र की जीवनी की शैर कर आते है।

राजा हरिश्चंद्र बहुत जाना पहचाना नाम जो हर किसी ने बचपन मे किस्से कहानियो मे सुन ही रखा होगा। राजा हरिश्चंद्र भारत-वर्ष ( भारत का प्राचीन नाम ) मे राज करते थे।राजा हरिश्चंद्र सत्यवादी शासक थे। वे कभी भी झूठ नही बोलते थे। उनकी सत्तवादी होने की बात पुरे भारत वर्ष मे प्रसिद्ध थी। राजा हरिश्चंद्र के शासनकाल मे ही महान तपस्वी ऋषि विश्वामित्र हुए थे। यह विश्वामित्र राजा हरिश्चंद्र की सत्यवादी होने की बात जानते थे। इस लिए उन्होने राजा हरिश्चंद्र को परखने के लिए एक योजना बनाई।

योजना के तहत उन्होने राजा हरिश्चंद्र के भवन मे गए। उन्हे देख हरिश्चंद्र ने उनका यथायोग्य मान-सम्मान किया और उनका आतिथ्य स्वीकार किया। हरिश्चंद्र ने विश्वामित्र की अपने हाथो से सेवा,आवभगत की। उनका आतिथ्य प्रेम देख विश्वामित्र ने मौका मिलते ही उन्हे बातो ही बातो मे वचन ले लिया कि, वे जो चाहेंगे आतिथ्य सेवा मे हरिश्चंद्र उनकी वह ईच्छा पूर्ण करेगे। जब राजा हरिश्चंद्र ने उनकी ईच्छा पूर्ति के लिए वचन दे दिया तो,विश्वामित्र ने उनसे उनका पुरा राज-पाट छोड कर राज्य से दुर होने के लिए कहाँ, अब हरिश्चंद्र अपने वचनो मे बंद्धे थे वे वचन से मुकर नही सकते थे।

इस तरह राजा हरिश्चंद्र को राजा से रंक बनना पड गया। वे अपना सारा राज्य विश्वामित्र के हाथ सौंप कर अपने परिवार ( पत्नि तारामति व पुत्र राहुल ) के सहित महलो को छोड कर राज्य से बाहर निकल गए। उनकी ऐसी हालत उनके मंत्रियो से देखी ना जा रही थी। इस लिए वे सब हरिश्चंद्र को अपने भवन मे चलने का आग्रह करने लगे, मगर राजा हरिश्चंद्र अपने वचनो के पक्के थे। इस लिए उन्होने किसी का भी आतिथ्य स्वीकार नही किया। अब राजा अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए खुद को बेच कर परिवार के लिए धन एकत्रित करना चाहते थे।

इस लिए राजा हरिश्चंद्र ने बाजार के चौराहे पर जा कर अपनी बोली लगानी शुरु की जब प्रजा ने अपने राजा को बोली लगाते देखा तो दौडते हुए आए और उनके सामने आकर नम आँखो से सिर झुका कर खडे हो गए। राजा हरिश्चंद्र अपनी किमत आंकते जाते। धिरे-धिरे वह किमत कम करते जाते मगर कोई खरीददार ना आया। अरे भई कोई भला अपने राजा को खरीदने की हैसियत कैसे रखता। अगर कोई राजा की किमत आँकता तो वह अपनी ही नजरो मे गिर जाता,क्योकि, जिस राजा ने उनका पालण किया तो वह कैसे उस राजा के सामने आकर उसको खरीदता।

राजा हरिश्चंद्र ने बोली के दाम बहुत कम करे फिर भी कोई खरीददार ना मिला, तो हार कर वह वहाँ से चले गए और अपनी पत्नि से कहाँ कि यहाँ मेरा खरीददार नही मिल सकता। उन्होने तारामति से कहाँ देश चोरी और प्रदेश भीख बराबर है। राज्य मे उन्हे कोई नौकरी पर नही रखेगा और ना ही किमत आँकेगा क्योकि प्रजा अपने राजा का मान नही घटा सकती। यह कहते हुए उन्होने राज्य से दुर जा कर काम ढुंढने की योजना बनाई। अब वे जंगलो मे भटकते-भटकते दुसरे राज्य मे पहुच गए जहाॅ उन्हे कोई जानता ना था।

वे एक अन्य राज्य मे पहुत गए उन्होने काम की तराश शुरु की मगर अजनबी को नौकरी पर कौन रखता उन्हे कोई बहुत मुश्किल से एक खरीददार मिला। वह खरीददार था ,उस राज्य के बाहर रहने वाला एक चांडाल था। जब राजा अपने साथ अपने परिवार को संग ले जाने लगे तो उस चांडाल ने उनको रोका और कहाँ मेने तुम्हे खरीदा है तुम मेरे सेवक हो। तुम्हारे परिवार का पालण करना मेरा धर्म नही अपने परिवार को छोड कर ही तुम मेरे संग चल सकते हो। अब राजा हरिश्चंद्र के सामने एक समस्या आई कि परिवार को किसके हबाले करे।

तो सोचा पत्नि को भी बेच दिया जाए तो इसको खरीदने वाला परिवार इसकी सेवा के बदले इसका पालण कर लेगा। अब राजा हरिश्चंद्र ने अपनी पत्नि तारा की बोली लगाई। रानी तारा को एक व्यापारी के परिवार ने खरीदा अपने घर के काम काज करने के लिए। वह व्यापारी अमीर था, तो उसने तारा के संग उसके बेटे राहुल को भी खरीद लिया। अब राजा हरिश्चंद्र उस चांडाल की सेवा-चाकरी करने लगे। चांडाल का काम था मरे हुए को जला कर उसका कर वसूलना। उस चांडाल ने राजा को उनके कर्तव्य बतलाए की तुम्हे समशान भूमि मे रह कर मुर्दो को जलाने के लिए बदले मे परिजनो से कर वसूल करना होगा।

इधर राजा हरिश्चंद्र मृतको के परिजनो से कर वसूल करके लाश को जलाने की अनुमति देते और उस कर वसूली के धन को अपने मालिक उस चांडाल को सौंप देते थे। इस तरह वह ईमानदारी से अपने स्वामी की सेवा करते। इधर हरिश्चंद्र की पत्नि तारा रानी अपने पुत्र राहुल सहित व्यापारी के परिवार की सेवा करती धिरे-धिरे दिन बितते गए। एक दिन रानी तारा अपने मालिको की सेवा मे लगी हुई थी और उनका पुत्र मालिको के घर के बाहर बच्चो के संग खेल रहाँ था। उस बालक राहुल को खेलते,खेलते एक सांप ने काट लिया। वह बालक राहुल माँ-माँ चिल्लाता हुआ बेहोश हो गया। जब रानी तारा को अपने पुत्र का हाल बच्चो से पता चला तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

राहुल मर चुका है, यह जान कर उस अबला ने तुरंत अपने पुत्र राहुल को गोद मे उठाया और दौडती हुई अपने पति राजा हरिश्चंद्र के पास पहुची। उसने अपने पुत्र को ले जाकर राजा हरिश्चंद्र के आगे रखा। राजा ने अपने पुत्र को देखा आँखो से अश्रृ बहे, मगर वह जान गए कि, अब उनका पुत्र मर गया है। उन्होने रानी को बताया कि राहुल अब जीवित नही है रानी का रो-रो कर बुरा हाल हुआ जा रहाँ था। उसने अपने स्वामी ( पति ) से कहाँ हे नाथ अब आप इस बालक के पिता होने के नाते इसका अंतिम संस्कार करो तो राजा ने कहाँ देखो देवी अब मे तुम्हारा पति नही अपने मालिक का गुलाम हुँ। मै अपने मालिक से गद्दारी नही कर सकता इस लिए तुम कर दे दो, मे तुम्हारे पुत्र को दाह संस्कार कर दुगा।

रानी के लाख कहने पर भी राजा नही मांने तो रानी तारा ने अपनी फटेहाल साडी से फाड कर आधी साडी कर के रुप मे हरिश्चंद्र के हाथ मे थमाई तब राजा ने उसे दाह संस्कार की छुट दे दी। जैसे ही वह रानी अपने पुत्र राहुल का दाह संस्कार करने जा ही रही थी कि तभी विश्वामित्र वहाँ पहुच गए और रानी को दाह संस्कार करने से रोका और कहाँ रुको देवी तुम्हारा पुत्र मरा नही है, वह जीवित है। रानी उनकी बात सुन कर हैरान हुई और वही रुक कर देखने लगी। तब विश्वामित्र ने बताया यह मेरी परीक्षा का एक हिस्सा था। तुम्हारा पुत्र मरा नही है। वह केवल बेहोश है, कुछ समय रुको इसका जडी-बुटि को सुघने से बेहोशी आई है इसका असर खत्म होते ही यह उठ खडा होगा।

विश्वामित्र ने फिर अपनी सारी योजना जिसके तहत वह राजा हरिश्चंद्र की परिक्षा ले रहे थे।सब बाते उन्हे सविस्तार कह बताई। विश्वामित्र ने कहा कि मेने तुम्हारी ( हरिश्चंद्र ) सत्यवादिता के चर्चे सुन रखे थे इस लिए मन हुआ क्या तुम सच्च मे सत्यवादी हो इस बात की पुष्टि कर ली जाए। इसी योजना के तहत मेने तुम्हे वचनो मे बांधा फिर पुरा राज्य ले लिया तुम्हे राज्य छोड जाने को कहाँ। पर मेरे जासूस तुम्हारी पल-पल की खबर मुझे पहुचाते रहते थे। किस तर तुमने राज्य छोड दुसरे राज्य मे जा कर दास बने फिर किस तरह

विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र को कहाँ लो यह तुम्हारा राज्य मै तुम्हे वापस लौटाता हुँ मै तो एक ऋषि हुँ मुझे किसी राज्य का लोभ नही मै तो केवल तुम्हारी सत्यता की परख करने के लिए तुम्हारी परीक्षा ले रहाँ था। तुम्हारे पुत्र को सांप ने नही काटा था।यह मेरे द्वारा फलाई झूठी अफवा थी। तभी राहुल को होश आया। विश्वामित्र ने कहाँ कि राहुल को मेने कुछ जडी-बुटी से बेहोश मात्र किया था। अब मै मान गया कि सही मे हरिश्चंद्र सत्य निष्ठ है जो पनी हर परीक्षा मे सफल हुए।

आप सबने पहले इस कहानी को बहुत पढा सुना होगा उस कहानी मे सब बाते एक चमत्कार के रुप मे ही प्रदर्शित होती रही है। मेरी इस रचना मे आधुनिक ज्ञान को ध्यान मे रखते हुए ही यह कथा-कहानी लिखी है। जैसे राहुल को सांप के काटने से मरना और विश्वामित्र का चमत्कार कि उसे पुनः जीवित कर देना आज के संदर्भ मे यह बात की चमत्कार होते है जी नही मेने इस बात का खण्डन किया है कि चमत्कार नही महज सोच-समझकर बनाई एक योजना के तहत सब हुआ।

राहुल को सांप के काटने की झूठी अफवाह फलाना और मृत राहुल को जडी-बुटियो के माध्यम से कुछ समय के लिए सुन करना ( बेहोश ) फिर उस जडी का असर खत्म होने पर सवतः ही राहुल का चेतना मे आना एक तरह से वैज्ञानिक दृष्टिकोण है यह अँविश्वासो का खण्डन करते है कि चमत्कार जैसी कोई बात नही होती पर प्रकृति से छेड-छाड करके कुछ अलग दिखाया जा सकता है।जिस तरह जडी-बुटि से बेहोश करना उसके प्रभाव के खत्म होने पर जागृति आना। हमारे प्राचीनकाल मे चमत्कार के रुप मे दिखाया जाता रहाँ है।

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