मिट्टी मे दफन हिरा, कदर तेरी समझ पाया है कौन।
दुनिया की बेरहम नजरो ने तुझे, पत्थर ही तो बतलाया है।
एक जौहरी है, जिसने तुझे दर पर दर जमी मिट्टी से निकाल बेश- किमती बनाया है।
तराशा तुझे अपने हाथो से, तेरा नाम तभी वह रोशन कर पाया है।
गुमनामी के काले घनघौर अंधकार मे, तुझे मुर्खो ने डुबाया है।
मिट्टी मे दफन हिरा, कदर तेरी समझ पाया है कौन।
दुनिया की बेरहम नजरो ने तुझे पत्थर ही बतलाया है।
मत सोच कि तेरा जीवन व्यर्थ है, दुनिया मे क्यो तु आया है।
होने दे लाखो बेरहम दुनिया, मिल ही जाता है जौहरी।
जिसने तुझे बेशकिमती बतलाया है।
जान सका दुनिया मे कौन किम्मत तेरी।
किसी समझ वाले ने ही तुझे गले लगाया है।
बेशकिमती है तु, फिर भी अंहकार तुझे छु ना पाया है कभी।
मिट्टी मे मिल कर मिट्टी का कभी मान नही घटाया है।
दुनिया का ताज बन कर भी कभी ना खुद पर तु इतराया है।
जहाॅ रहाॅ उनको उनका सम्मान दिया तुमने।
मिट्टी मे मिल मिट्टी और ताज मे जड कर राजा कहलाया है।
मिट्टी मे दफन हिरा कदर तेरी समझ पाया है कौन।
दुनिया की बेरहम नजरो ने तुझे पत्थर ही बतलाया है।
दोष तुझ मे नही यह सब दुनिया के सिर माया ने अपना नाच रचाया है।
मत समझ खुद को कमजोर कभी बंद कर जौहरी की राह निहारना।
उठ खडा हो अपना भाग्य खुद ही रच डाल क्योकि।
, आज वह जौहरी नही रहे दुनिया मे, जो तुझे बेशकिमती बतला सके।
अपनी किम्मत आंक खुद ही छोड कर व्यर्थ की राह निहारना।
अब ना आयेगा कोई जौहरी तुझे निखारने कभी।
खुद को निरख-परख बडता जा जागे ही क्योकि।
तुझको खुद ही से संघर्ष है करना है अभी।
,किमत अपनी दुनिया को दिखाने मे।
चंमका खुदको इतना कि दुनिया कहे बनाया किसने है तुझे।
तुझसा ना अनमोल कोई ख्याल रख बस इतना ही।
मिट्टी मे दफन हिरा कदर तेरी समझ पाया है कौन।
दुनिया की बेरहम नजरो ने तुझे पत्थर ही बतलाया है।
( यह काव्य रचना हिरा को माध्यम बना कर किसी योग्यताधारी को प्रेरित करने का प्रयास है। तुम महान हो मगर गुनाम हो दुनिया तुम्हारे भीतर छुपे गुणो को नही पहचानती तो चिन्ता मे आतुर ना होओ। दुनिया वही देखती है,जिसमे उनका खुद का स्वार्थ सिद्ध होता है। अपनी किमत खुद ही पहचानो और अपने गंतव्य की तरफ बढते चले जाओ। मंजिल चाहे कितनी दूर हो पर खुद को इस लायक बना लो कि दुनिया खुद-व-खुद तुम्हारी ईज्जत मान कर सके। हिरा कोई और नही आप के भीतर छिपी आपकी योग्यता ही है। )
जय श्री राम