कर ली बसर हमने जीन्दगी यूही हालात का फसाना बन कर।
तमाम तमन्नाए सभी रह गई हकीकत बन कर।
ब्यान करते है, हालात कि तुम मिली भी तो गुमनाम साये की तरह।
मजबुर थे तकदीर ने ही मिला दिया तुझको अफसाना बन कर।
चाहते रही बहुत सी मगर, पल ना मिल सके, तुझे आजमाने को।
लडते रहे हर हाल मे अपने ही जज्बातो से हम यूही ।
कर ली बसर जीन्दगी हमने यूही हालातो का फसाना बन कर।
जीन्दगी के हर मोड पर व्यर्थ आजमाते रहे खुद को।
पर तुम मिली भी तो फसाना बन कर।
कब तक रहे कोई तेरी तलाश मे,
मिली भी तुम मुंकबल जहान बन कर।
कर ली बसर जीन्दगी हमने यूही अफसाना बन कर।
मालुम ना कि किश्मत को मंजूर ना होगा।
जीन्दगी का सबर जाना कबूल ना होगा।
अपने ही ख्यालो मे तुझे आजमाते रहे।
डरते रहे तमाम उमर, कही छुट ना जाए।
अपना साय भी हमसाया बन कर।
तु खुद पर इतराती रही ऐ जीन्दगी।
इसलिए तो मंजील दुर तेरी जाती रही।
सहमे-सहमे से करते रहे इंतजार तेरा, कि
कब सबर जाओ मुकबल जहान बन कर ही।
कर ली बसर जीन्दगी हमने यूही अफसाना बन कर।
बुन लिया था ताना -बाना अपने ख्यालो के जाल का।
फस कर रह गई तमन्नाए तमाम अफसाना बन कर।
हकीकत कुछ और थी मगर हम सझते कुछ और रहे।
तमाम कोशिशे व्यर्थ गई ऐ जीन्दगी तुझे सबारने मे।
रहा नसीबा अपना वही का वही, सबर पाया ही नही कभी
कर ली बसर जीन्दगी हमने यूही अफसाना बन कर।,
( जीन्दगी भर इंसान अपनी तमन्नाए,ख्वाईशे पुरी करने मे लगा रहता फिर भी वह कभी मुक्मबल नही होती )
जय श्री राम
चित्रा की कमल सेhttp://चित्रा की कमल से
वाह! बहुत खूब 👌🏼मुझें आपकी यह कविता पढ़ कर मेरी रचना
जिंदगी
😊
बंद मुट्ठी रेत सी ये जिंदगी फिसलती गई
आईने के सामने बनते संवरते हुए
ये सूरते बदलती रही ।
की याद आ गई अगर आप को समय मिले तो पढना ।
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आपका तहदिल धन्यवाद,हा जी आपकी इस रचना को मै जरुर देखुंगी। चार पंक्
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आपका तहदिल धन्यवाद,हा जी आपकी इस रचना को मै जरुर देखुंगी। चार पंक्कितियो को पढ कर आन्द आया पुरी पढने मे कितना आनन्द आएगा
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