हाँ हूँ मै अर्धांगिनी,तन से ही नही मन से आत्मा से जुडती हुँ मै।हाँ हुूँ मै अर्धांगिनी।
माना कि हर अबला होती है नारी पर आत्मा मे कोई नही मेरी तरह अधिकारी।
माना कि रह सकते हो दुनिया से दूर,
पर मुझसे दूर रह ना पाओगे कभी,
क्योकि मै ही हुँ आत्मा की अधिकारी। हाँ हुँ मै अर्धांगिनी
ईश्वर ने भी मुझे अपनाया है तो ही वे सार्थक हो पाए है।
शिव ने तो मुझे पा कर अपना नया नाम है पाया वे अर्धनारिश्वर बन पाये।
हाँ हूँ मै अर्धांगिनी आत्मा से जुडी होती है पहचान मेरी। हाँ हूँ मै अर्धांगिनी।
तुम ढुंढ लोगो सहगामिनी कई पर आत्मा मे रख ना पाओगे कभी,
क्योकि मै हुँ आत्मा की अधिकारिनी सदैव ही । तभी तो अर्धांगिनी कहते है सब मुझे।
हर घर का आधार हुँ मै,तुम तन तो प्राण हुँ मै,जीवन का पुरा सार हुँ मै, हाँ अर्धांगिनी हुँ मै,हाँ हुँ अर्धांगिनी मै।
,तन से नही मन और आत्मा से होती है पहचान मेरी। हाँ हुँ मै अर्धांगिनी। रखती हुँ प्रभुत्व मै तुम्हारे जीवन का तभी तो कहलाती हुँ अर्धांगिनी मै।
हाँ हुँ मै अर्धांगिनी तुम नारायण तो नारायणी हुँ मै,कोटि-कोटि जन्मो से साथ निभाती आई हुँ मै।
हाँ हुँ मै अर्धांगिनी,केवल तन से ही नही मन व आत्मा मे भी निवास करती हुँ मै। हाँ हुँ मै अर्धांगिनी,हैँ हुँ मै अर्धांगिनी।
( मेरी यह रचना हर पत्नि को समर्पित है क्योकि पत्नि ही अर्धांगिनी कहलाती है। इस तरह अर्धांगिनी बन कर पुरुष ( पति ) अस्तित्व निखारती है। )
जय श्री राम
बहुत ही सुंदर रचना है 👌🏼👌🏼व
सच को दर्शाती हुई 👏👏😊🌷
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धन्यवाद जी
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बेहतरीन रचना।
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धन्यवाद जी
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