कहाॅ है सनम का ठिकाना (काव्य )

मुझे छू कर गुजरने वाली ऐ हवा इतना तो बतला कि, किस साहिल पर है सनम का ठिकाना।

है वनो को घेरे रहने वाली लता-पत्ता, अपनी महक पहुचाना वहाॅ जहाॅ है सनम का ठिकाना।

हे उनमुक्त गगन मे कलरव करते खगा अपनी उडान भर कर पता लगाना कि,कहाॅ है सनम का ठिकाना।

हे सूरज की किरणो इतना विचरन करो घरती पर की बतला सको कहाॅ है सनम का ठिकाना।

मुझे छू कर गुजने वाली ऐ हवा इतना तो बतवा कि,किस साहिल पर है सनम का ठिकाना।

हे चंद्र-चटक चांदनी चारो तरफ फैल जाओ की पता लगा सको कहाॅ है सनम का ठिकाना।

हे गगन गामिनी ( पहाड ) तुम जरा झूक कर देखा शायद तुम्हे मिल जाये सनम का ठिकाना।

मुझे छू कर गुजरने वाली ऐ हवा इतना तो बतला कि, किस साहिल पर है सनम का ठिकाना।

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