क्यो खोदते हो जडे मेरी

तन्हा बंजर सी मरु भूमी पर उग आई साख मेरी

क्यो खोदते हो जडे मेरी।

माटी के इस बूत मे मिल जाई तुम्हे तुम्हारा अस्तित्व।

मान लो हुँ मैं व्यर्थ कंकरीली पथरिली जमीन सी।

सुने वीराने मे बिखरी मरु रेत सी।

समेट लेना अपने जज्बात यही मेरी किस्मत ही सही।

क्यो खोदते हो जडे मेरी।

समझ सको तो मैं वह बांध की रेत हुँ जो बहने से रोक लेती पानी सभी

( एक गृहणी जो अपने अस्तितव की परवाह किये बीना ही परिवार को एक सूत्र मे बांध कर रखती है )

मत भूलो अहसान मेरा मैं हुँ तभी हो सुरक्षित तुम सभी।

मैं रेत का वह टीला हुँ, जो आँधी तूफानो से बचा लेती हुँ तभी।

( एक कुशल गृहणी परिवार पर आने वाली मुश्वित के समय सही मार्ग पर ले जाती है, तभी आने वाले संकटो से बाहर निकलने मे अपना सहयोग देती है। )

क्यो खोदते हो जडे मेरी।

मत भूलो मेरा अस्तित्व है तभी हो तुम सभी।

अगर हील जाऊ अपनी जगह से मैं कभी।

( गृहणी अगर परिवार छोड दे तो,परिवार नष्ट हो जाता है। )

बीखर कर टूट जाओगे तुम सभी।

( घर की नारी देखने मे अबला बेशक लगे, मगर मुश्वित के पहाड जब परिवार पर टूटने लगते है, तो सबसे आगे खडी हो सब को सही दिशा दिखा कर बचा लेती है गृहणी)

क्यो खोदते हो जडे मेरी।

रहने दो अस्तित्व मेरा मैं हुँ तभी हो तुम सभी।

क्यो खोदते हो जडे मेरी।

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4 विचार “क्यो खोदते हो जडे मेरी&rdquo पर;

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