लौट चलो पथिक सुन नीड की चित्तकार।
व्याकुल अधीर सा क्यो डोलता फिरे।
मन बावले को टटोलता फिरे।
व्यर्थ निहारता फिरे कामिनी के रुप श्रृंगार को।
लौट चलो पथिक सुन नीड की चित्कार को।
भ्रमित सा हुआ फिरे देख मृग की चाल को।
पतझड हो सावन नीड मे रमा ले अपना मन।
काॅहे व्यर्थ मे भटके फूलो की चाह मे
लौट चलो पथिक सुन नीड की चित्तकार को।
राहगीर लुभाएगे बहुत पग-पग ।
पर संग ना हो पाएगा तब।
होगा खिन्न अधीर मन तब।
काॅहे व्यर्थ डोलता फिरे पथिक
लौट चलो पथिक सुन नीड की चित्तकार को।
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चित्रा मल्हौत्रा
मुझे भगवान की लीलाओ कथाओ को पढने लिखने मे रुचि है। भारतीय संस्कारो, रीति ,रिवाज परम्पराओ को समझना व उनको मानना मेरे जीवन का आधार स्तम्भ है। मुझे प्रकृति से बहुत लगाव है। प्रकृति ने जो हमे प्रदान किया है उन सुरम्य स्थलो का भ्रमण करना उन्हे जानना बेहद खुश गवारा लगता है। मै मानव धर्म मे विश्वास करती हुँ कि संसार के सभी प्राणी उस विधाता की देन है सब से प्रेम करना। सबको सुखी और खुश व तंदुरुस्त देखना चाहती हुँ। मेरी नजर मे कोई बुरा या भला नही होता। भले-बुरे तो इन्सान के कर्म होते है। भगवान के सभी रुपो को समझना उनके आदर्शो के अनुसार चलना पसंद है। मै यह चाहती हुँ कि मेने जो ज्ञान अर्जन किया है उसका दुसरो को भी लाभ मिल सके। इसी परोपकार की भावना से इस बेवसाईट का निर्माण किया है। मुझे भी नए-नए ज्ञान की जानकारी की जरुरत पडती है इसके लिए प्रयत्नशील रहती हुँ जब भी कही से कुछ ज्ञान मिल जाए उसे स्वीकार कर लेना पसंद है। जय श्री कृष्ण
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