हा हुँ मै एक परि, पंख नही रखती पर एक आशा से भरती हुँ अपनी उडान सभी।
हा हुँ मै एक परि, परींदा बन ना सही बीन पंख भी तो मन की मनमौज मे उडती रहती हुँ,बांध इच्छाओ के पुलींदे सभी।
हा हुँ मै एक परि कोमल फूलो की पंखुडियो की तरह सिमटी रहती अपनी हदो मे लांघी ना मर्यादा की दहली कभी।
हा हुँ मै एक परि, उमंगे मन मे हजार लिए बढती घटती लहरो सी समुंद्र मे हो उफान की लपेट मे हुँ मनमौजी पर अलमस्त नही।
हा हुँ मै एक परि, करती नही किसी का प्रतिकार कभी। देती हुँ सभी को सम्मान करती नही अपमान कभी
हा हुँ मै एक परि, रखती हुँ मन चाह भरु दुनिया की ऊँचाईयो मे भरु उडान कभी। हा हुँ मै एक परि,हा हुँ मै एक परि।
जय श्री राम
http://चित्रा की कलम से
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चित्रा मल्हौत्रा
मुझे भगवान की लीलाओ कथाओ को पढने लिखने मे रुचि है। भारतीय संस्कारो, रीति ,रिवाज परम्पराओ को समझना व उनको मानना मेरे जीवन का आधार स्तम्भ है। मुझे प्रकृति से बहुत लगाव है। प्रकृति ने जो हमे प्रदान किया है उन सुरम्य स्थलो का भ्रमण करना उन्हे जानना बेहद खुश गवारा लगता है। मै मानव धर्म मे विश्वास करती हुँ कि संसार के सभी प्राणी उस विधाता की देन है सब से प्रेम करना। सबको सुखी और खुश व तंदुरुस्त देखना चाहती हुँ। मेरी नजर मे कोई बुरा या भला नही होता। भले-बुरे तो इन्सान के कर्म होते है। भगवान के सभी रुपो को समझना उनके आदर्शो के अनुसार चलना पसंद है। मै यह चाहती हुँ कि मेने जो ज्ञान अर्जन किया है उसका दुसरो को भी लाभ मिल सके। इसी परोपकार की भावना से इस बेवसाईट का निर्माण किया है। मुझे भी नए-नए ज्ञान की जानकारी की जरुरत पडती है इसके लिए प्रयत्नशील रहती हुँ जब भी कही से कुछ ज्ञान मिल जाए उसे स्वीकार कर लेना पसंद है। जय श्री कृष्ण
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👌🏼👌🏼👏👏😊
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धन्यवाद जी
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