राज रंजनी,विरह तरंगिनी,कौन हो तुम ( काव्य रचना )

राज रंजनी,विरह तरंगिनी कौन हो कौन हो तुम।

चटक चाँदनी की धवलता लिए, मन को उदिगन किये

मौन खडी हो कुमुदनी की डाल सी

राज रंजनी, विरह तरंगिनी कौन हो,कौन हो तुम

अलमस्त नयन कटार लिए सी

चपलता की मुर्त बन खडी हो श्रृंगार किये नवयोवना सी

राज रंजनी,विरह तरंगिनी कौन हो,कौन हो तुम

अपने कोमल कर पल्लवो मे रुप सार लिए

मन की उमंगो मे भरती तरग सी

सागर के तरह गहरी लहरो मे सिमडी कमल की पर्ण लिए

राज रंजनी,विरह तरंगिनी कौन हो कौन हो तुम

मेरी कविता मे कल्पना हो तुम।

लेखनी का सार हो तुम

भटकती एक विरहन प्रमिका सी

राज रंजनी, विरह तरंगिनी कौन हो कौन हो तुम।

अन छुई पहेली सी लगती हो तुम कभी सहेली सी

मन वीणा के तार मे झंकार लिए सी

अधरो पर मंद मुस्कान लिए सी

राज रंजनी,विरह तरगिनी कौन हो, कौन हो तुम

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