हमे नित्य ही सुबह शाम संध्या आरती मे भगवान के गुणो का गान करना चाहिए इससे हमारी प्रित राम से बढती चली जाती है और एक दिन हमे राम जी अपना सखा बना लेते है। आप जानते ही है ना सखा वह कार्य करता है कि जब अपने सखा पर विपति आती है तो वह हाथ पकड कर हमे सही मार्ग दिखाता है और हर सम्भव कोशिश करके हमारी नईया पार लगा देता है। तभी तो लोग अपने प्रिय सखा की हर बात को महत्व देते है। तो चलिए इसी क्रम मे पहला और महत्वपूर्ण कदम हम उढाते है कि भगवान श्री राम के गुणो का गान करे। आईए राम जी की स्तुति की ओर चले ——-
भगवान श्री रामचंद्र जी की स्तुति —————-
श्री राम चंद्र कृपाल भजु मन हरण भव भय दारुनं ।
नव कंज – लोचन,कंजमुख,कर-कंज,पद कंजारुणं ।।
कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनील – नीरद – सुन्दरं ।
पट पीत मानहु तडित रुचि शुचि नौमी जनक सुतावरं ।।
भजु दीनबंधु दिनेश दानव – दैत्य – वंश – निकंदनं ।
रघुनंद आँनदकंद कोशलचंद दशरथ – नंदनं ।।
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अंग विभूषणं ।
आजानुभुज शर – चाप – धर, संग्राम – जित – खर दूषणं ।।
इति वदति तुलसीदास शंकर – शेष – मुनि – मन -रंजनं ।
मम हद्य कंज – निवास कुरु , कामादि खल – दल – गंजनं ।।
मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर साँवरो ।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो ।।
एहि भाँति गौरी असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषी अली ।
तुलसी भवानिहि पूजी पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली ।।
( सोरठा ) ——–
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु ना जाइ कहि ।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे ।।
सियावर रामचंद्र की जय ।।
भगवान श्री राम का चित्र सहितपरिवार वाला सामने रख कर धुप-दीप प्रज्वलित करके शुद्धी करन ( स्नान ) कर शुद्ध धुले वस्त्र पहन कर पवित्र आसन पर विराजमान हो फिर स्तुति की प्रेम पूर्व लयवद गीत रुपी इस स्तुति का उच्चारण करना चाहिए दोनो समय सुबह व शाम को या तीनो संध्याकाल मे इस स्तुति को पढने से प्रभु राम की अनन्य भक्ति मिल जाती है।
राम सखा राम ही अपना राम बीना पुरा ना हो कोई सपना। राम नाम का सुमिरण करले रे मनवा।
जय श्री राम