हमारे समाज की धारणा है कि गणेश चौथ-संकट चौथ की रात को चाँद के दर्शन नही करना चाहिए। मान्यतानुसार तथ्य यह है कि संकटचौथ जो की भादो माह को आती है उस के चांद के दर्शन नही करना चाहिए अगर भुलवश उस दिन चाँद दिख जाए तो माना जाता है कि उस कलंक देने वाले चांद को देखने पर कलंक लगता है। इस तरह कलंक दोष को दुर करने के लिए कोष्तक मणी ( समयंतक मणी ) की कथा सुनना या पढना चाहिए इस से भविष्य मे किसी प्रकार का कष्ट आये तो उसका कष्ट हमे ना भुगतना पडे। तो चलिए चलते है समयंतक मणी की कथा की ओर—-
बात उस समय की है जब श्री कृष्ण दवारका मे विराजते थे। श्री कृष्ण की सभा मे चर्चा चली की राजा सत्राजीत पास एक ऐसी मणी है कि वह मनमाना सोना देती है। यह बात सुन कर श्री कृष्ण हैरान हुए और उस समयंतक मणी ( कोष्तक मणी ) को देखने की चाह लिए वह राजा सत्राजीत से मिलने उनकी नगरी चले गए। सत्राजीत ने श्री कृष्ण को वह मणी दिखाई और उसका महत्व कृष्ण को बताया। अब श्री कृष्ण ने सत्राजीत के पास पडी उस कोष्तक मणी की तारीफ करी और लौट आए अपनी दवारका मे। सत्राजीत उस मणी को महल के मंदिर मे ही रखता था।
एकदिन सत्राजीत के भाई प्रसूनसेन ने उस मणी को अपने गले मे धारण कर लिया। भाविवंश उस कोष्तक मणी को गले मे धारण करने के बाद वह उसे उतार कर रखना भुल गया वह मणी प्रसूनसेन के गले मे ही लटकती रही। उसी दिन वह शिकार खेलने वन चला गया और गले मे पडी मणी को भुल गया कि मणी उसने धारण कर रखी है। शिकार करते वह घने जंल मे चला गया वहाँ उसका सामना शेर से हुआ शेर ने प्रसूनसेन को मार कर खा लिया। वह मणी वही पडी रह गई। उधर जामवंत ( भालु ) आया तो मणी उसे अच्छी लगी वह मणी अपने संग अपनी गुफा मे ले गया।
इधर जब शिकार से प्रसून वापस नही आया तो सत्राजीत को चिन्ता हुई। तभी सत्राजीत को याद आया कि प्रसूनसेन ने वह मणी पहन रखी थी। कही उस मणी को पाने के लिए कृष्ण ने उसके भाई प्रसूनसेन की हत्या तो नही कर दी। इस बात की खबर कृष्ण को लगी की सत्राजीत के भाई की मृत्यु हुई है और इस लिए सत्राजीत को कृष्ण पर संदेह हो रहाँ है।खुद को निर्दोष साबित करने के लिए कृष्ण ने सत्राजीत के भाई प्रसूनसेन की खोज करने के लिए वन मे गमण किया वह इधर-उधर प्रसूनसेन की तलाश मे लग गए। खोजते-खोजते वह एक गुफा मे पहुच गए वहाँ जा कर देखा कि जामवंत ( भालु, रीछ ) के बच्चे एक मणी से खेल रहे है
। पास जा कर देखा कि यह तो सत्राजीत की कोष्तक मणी है। कृष्ण को लगा कि जामवंत ने प्रसूनसेन को मारा तो वह जामवंत से युद्ध करने लगे। जामवंत ने देखा कि यह तो प्रभु श्री राम है जो उसकी गुफा मे प्धारे है। वह कृष्ण के चरणो मे गिर कर दंडवत करने लगा। उसने वह मणी कृष्ण को भेट कर दी संग मे अपनी पुत्री जामवंती को कृष्ण के हाथ सैंप दिया। कृष्ण जामवंती और समयंतक मणी ( कोष्तक मणी ) दोनो को संग ले गए। कृष्ण ने वह मणी ले जाकर सत्राजीत को सौंप दी और अपने निर्दोष होने का सबूत पेश किया। जब सत्राजीत को कृष्ण के निर्दोष होने का पता चला तो वह शर्मिदा हुआ और वह मणी वापस कृष्ण को देने लगा। तब कृष्ण ने उस मणी को लेने से मना कर दिया।
सत्राजीत ने अपनी बेटी सत्यभामा का विवाह कृष्ण से कर दिया इस तरह उसने अपनी गलत धारणा का पछतावा किया। कृष्ण ने भी भुलवश उस भादो चौथ के चाँद के दर्शन कर लिए थे इस लिए उन्हे काष्तक मणी की चोरी का इलजाम लगा। इस लिए अगर भोदो की गणेश चौथ को चाँद दिख जाए तो इस कथा को सुनना या पढ लेना चाहिए इससे इस कलंक दोष से बचाब हो जाता है।
जय श्री राम