हमारे समाज मे बहुत सी कहाँवते,लोक्कोतियाँ,दोहे प्रचलित है जो जन जीवन से सम्बन्धित दृष्टिकोण रखते है।
रहिमन पावस देखिके कोयल साधी मौंन अब दादूर वक्ता भए हमको पुछई अब कौन
इस दोहे का भावार्थ ———–
इस दोहे मे कोयल व मेंढक के माध्यम से रचनाकार संदेश देना चाहता है कि, जिस तरह बरसात के मौसम ( चौमासे ) मे मैंढको की टर्र-टर्राहट गुंजने लगती है। इस लिए कोयल अगर अपनी सुरीली आवाज मे गाए तो भी उसकी मधुर आवाज सुनने वाला कोई नही रहता। मैंढको की आवाज मे कोयल की आवाज दब जाती है। ठीक इसी तरह जब आपके चारो तरफ मुर्खो,दुष्टो,पाखंडियो का बोल बाला होता है। तब ऐसी स्थिति मे आप लाख कोशिश करके अपनी बात को दुनिया मे साबित नही कर पाते। इसलिए बेहतरी इसी मे होती है कि उस दुष्ट,मुर्ख मंडली मे चुप ही रहाँ जाए। वहाँ अपना मंतव्य व्यर्थ ही रहने वाला होता है।
रहिमन धागा प्रेम का मत तौडो चटकाए तौडे से फिर ना जुरे,जुरे पर काँठ पड जाए।
इस दोहे का भावार्थ ————-
इस दोहे मे धागे का उद्दहारण देकर रचियेता अपने भाव प्रकट कर रहाँ है कि – धागे को जोर लगा कर खिंचने पर वह टुट जाता है इस स्थिति मे अगर उसे दुबारा जोडा जाए तो वह पहले की भांति नही रहता उसमे गाँठ लगानी पडती है।ठीक इसी तरह हमे अपनी शुभ चिंतको व हीतेशियो से कटुतापूर्ण व्यवहार नही करना चाहिए। ऐसा करने पर मन मे खटास पैदा होगी दिलो मे नफरत घर कर जाऐंगी तो हमारा पहले जैसा व्यवहार नही रह पाएगा शायद फिर एकदुसरे से बातचित करे भी पर विश्वास खत्म होगा रिस्तो की मिठास कम हो जाऐंगी। इस दोहे के माध्यम से कवि यही समझा रहाँ है कि हमे व्यर्थ मे एकदुसरे से नफरत नही करनी चाहिए ,कटुतापूर्ण व्यवहार नही रखना चाहिए।
मुँड मुंडाए हरि मिले तो हर कोई लेए मुँडाए,बार-बार के मुँडते भेड ना बेकुंठ जाए
इस दोहे का भावार्थ ————-
इस दोहे के माध्यम से कवि समझा रहे है कि – व्यर्थ के आडंबर से भगवान को नही पा सकते। भगवान की प्राप्ति के लिए सबसे पहले मन की शुद्धि होना जरुरी होता है। जिस तरह भेड का उद्दहारण दिया कि भेड का सिर तो कई बार मुँडा जाता है तो क्या सिर मुंडाने भर से हरि मिल जाते है तो इस दृष्टि से भेड तो बैंकुन्ठ की हकदार हो गई क्योकि उसने तो बहुत बार मुंडन करवाया है। मन मे लग्न,भाव की शुद्धि, सच्ची श्रृधा से ही हरि मिल सकते है। मौडे होकर भेष बदल कर उस विधाता को नही पा सकते।
प्रेम गलि अति सांकरी जाँ मे दोऊ ना समाए, मैं था तो हरि नाई अब हरि है तो मैं नाई।
इस दोहे का भावार्थ ————-
इस दोहे के माध्यम से रचियेता समझा रहे है कि प्रेम गलि अति सांकरी यानि वह स्थिति जीसमे हम प्रभु को पा सके वहाँ तक पहुचने के लिए पहले आत्म शुद्ध जरुरी है। अगर मन मे मैँ ( अंहकार ) रहता है तो वहाँ हरि आ ही नही सकते। इसलिए हमे अपने मैं ( अंहकार को नष्ट करना पडेगा तभी वह मिल पाएऐगे। जब अंहकार खत्म होता है बस वही से उस विधाता का आगमण होता है।अंहकार घट ( मन ) मे रहने पर प्रभु का आगमण नही होगा। मै था तो हरि नाई मै यानि अंहकार जबतक अंहकार स्थित होता है हमे प्रभु की प्राप्ति नही हो सकती। जैसे ही हमने अपना अंहकार खत्म किया तुरंत विधाता हमारा हाथ पकड लेता है।
निंदक नियरे राखिए बीच कुटि छवाए,पल मे निर्मल होत सुभाए बीन माट्टी बीन चुन।
इस पंक्ति का भावार्थ ————
इस रचना के कवि कहना चाहते है कि – हमे अपनी निंदा से डरना नही चाहिए। निंदक से दुरी नही बनानी चाहिए बस निंदक को नजदीक रखो ताकि वह हमारे भीतर झांकता रहे और हम मे छुपी बुराईयो, गलतियो को वह ढुंढता रहे और हम अपनी बुराईयो व गलतियो को पहचान सके। जब हम अपनी कमियो को पहचान जाऐंगे तभी तो हम अपनी कमियो मे सुधार कर सकेंगे। निंदक बीना मिट्टी या किसी पाऊडर से घिसे ही हमारे मन को निर्मल ( स्वच्छ ) बनाने का काम करता है। बस ध्यान रखे कोई कहे तुमको यह कार्य करना नही आता खराब किया बगैरहा तो चिडना नही है। अपनी गलती को समझ कर उसको सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए।
रहिमन पानी राखिए बीन पानी सब सून,पानी गए ना उबरे मोती मानुष चुन।
इस पंक्ति का भावार्थ ————
इस पंक्ति के रचियेता समझा रहे है कि हमारे जीवन मे पानी का कितना महत्व है। पानी है तो सब सही नही तो कुछ नही। यहाँ पानी को अलग-अलग मतलब के लिए प्रयोग किया गया है। पानी गए ना उबरे मोती,मानुष,चुन। मोती का पानी गया तो लोग उसे फैंक देते है उसका महत्व खत्म हो जाता है। मोती का पानी अर्थात मोती की जब चमक खत्म हो जाती है तो वह भद्दा लगने लगता है उसके जैवर कोई नही पहनता इस लिए मोती का पानी उसकी चमक है।बीन चमक मोती व्यर्थ हो जाता है।
चुन अर्थात आटा आटे को गुंथने के लिए पानी की जरुरत होती है। बीना पानी आटा गुंथा नही जा सकता। इस लिए पानी ना हो तो इस आटे से रोटी नही बन सकती इस कारण बीना पानी आटे का महत्व खत्म हो जाता है। ठीक इस तरह मानुष यानि मनुष्य के लिए पानी के बीना जीवन निर्थक है। मनुष्य के लिए पानी का अर्थ ईज्जत मान सम्मान है अगर किसी मुष्य की ईज्जत मान सम्मान खत्म हो जाता है तो उसे कोई पसंद नही करते लोग ऐसे इंसान से कतराने लगते है जिसकी समाज मे ईज्जत मान प्रतिष्ठा ना हो। इस लिए यहाँ मनुष्य के लिए ईज्जत मान का प्रतिक है। पानी यानि मान घटा तो जीवन निर्थक सा हो जाता है।
आती हुँ मै अलको पर भौर लिए साँज की पहली निशानी बन मन को झकझोर लिए। सांझ की झांझर मे लय लिए मतवाली चाल सी सिमटी हुई इक आश लिए। सुबह की ललिमा लिए पंखो की उडान लिए।
जय श्री राम