त्रिदेव ( तीनो महादेव ) त्रिदेवियाँ ( तीनो महादेवियाँ ) की उत्पप्ति की कथा

जब भगवान नारायण ने सृष्टि की रचना करना शुरु किया तब उनके शरीर के किस अंग विशेष से किस शक्ति ने किस देव ने जन्म लिया इसका कथा विवेचन के माध्यम से सविस्तार जानते है। तीनो महादेव – ब्रहमा,विष्णु,महेश व तीनो महादेवियाँ सरस्वति,लक्ष्मी,गौरी इन की उत्पति अलग-अलग अंगो से हुई। भगवान नारायण के श्री अंगो मे उनके वृक्षस्थल ( ह्रद्याकाश ) मे माता लक्ष्मी निवास करती है। माता लक्ष्मी श्री नारायण की शक्ति है।

त्रिदेवो की उत्पति ———-

त्रिदेवो की उत्पति के लिए जिन अंगो से नियासन ( निष्काशन ) हुआ वह है– विष्णु का नियासन ( निष्काशन ) भगवान श्री नारायण के श्री अंगो मे वृक्षस्थल व भुजाओ से हुआ। इस लिए यह कहाँ जा सकता है कि विष्णु महादेव का जन्म भगवान श्री नारायण के वृक्षस्थल व भुजा से हुआ। ब्रहमा महादेव का नियासन ( निष्काशन ) भगवान श्री नारायण के श्री अंगो मे नाभी स्थल उदर ( पेट ) से हुआ। इस लिए यह कह सकते है कि ब्रहमा महादेव का जन्म भगवान श्री नारायण के नाभीकमल उदर (पेट ) से हुआ। महेश महादेव ( शिव ) का नियासन ( निष्काशन ) भगवान श्री नारायण के श्री अंगो मे भृकुटि व नैत्रो से हुआ। इस लिए कह सकते है कि महेश ( शिव ) महादेव का जन्म भगवान श्री नारायण के श्री अंगो मे भृकुटि व नैत्रो से हुआ

इस तरह तीनो महादेवो की उत्पति हुई अब नारायण ने तो अपनी शक्ति इन मे समाहित कर ही दी थी पर माता लक्ष्मी की शक्ति इन्हे नही मिली थी तो यह तीनो अभी अधुरे निर्मित हुए थे। इसके लिए भगवान श्री नारायण ने अपनी शक्ति-स्वरुपा माँ लक्ष्मी का आवाहण किया कि तुम आकर मेरे इन तीनो पुत्रो को अपनी शक्ति प्रदान कर पूर्ण करो। तब माता श्री,कमलातमजा नारायण के वृक्षस्थल ( ह्रद्याकाश ) से निष्कासित हो ( निकल कर ) कर भगवान श्री नारायण के समक्ष खडी हो गई और हाथ जोड कर वह भगवान श्री नारायण से विनती कर ने लगी कि कहो प्रभु आपने मुझे किस प्रयोजन हेतु याद किया। तब भगवान श्री नारायण ने माँ श्री कमलातमजा से निवेदन किया हे अर्धांगिनी हे भामिनी हे बामांगिनी ( बाई तरफ विराजने वाली ) मेने अपने इन पुत्रो को उत्पन्न किया है,पर यह अभी अधुरे है।

भगवान श्री नारायण व माँ श्री वत्सा नारायणी कमलातमजा व नाभी कमल पर ब्रहमा

इन मे प्राणो का संचरण करने का कार्य तुम्हारा है। मेरे इन तीनो पुत्रो को तुम प्राण-संचरण करके, इन्हे जीवन दान दे कर पूर्ण करो। इस पर माँ श्री कमलातमजा ने कहाँ, जो आज्ञा प्रभु आपकी आज्ञा मुझे शिरोधार्य ( स्वीकार ) है। मै अभी इन मे प्राणो का संचरण करती हुँ। यह कह कर माँ श्री कमलातमजा ने देखते ही देखती अपने शरीर की शक्ति को एकत्रित किया और अपनी इस शक्ति को तीन भागो मे विभगत कर दिया। ठीक उसी तरह से माँ श्री कमलातमजा ने अपने श्री अंगो से अपनी शक्ति को उत्पन्न किया। माता श्री कमलातमजा के श्री अंगो से उनके वृक्षस्थल से उनकी शक्ति स्वरुपा महादेवी महालक्ष्मी की उत्पति हुई। माता श्री कमलातमजा के श्री अंगो नाभी स्थल से ब्रहमाणी ( महादेवी सरस्वति ) की उत्पति हुई।

माँ श्री कमलातमजा के नाभीकमल-उदर से महादेवी सरस्वती उत्पन्न हुई। माता श्री कमलातमजा के श्री अंगो मे उनके नैत्रो व भृकुटि स्थल से महादेवी महागौरी उत्पन्न हुई। इस तरह माता श्री कमलातमजा ने अपने शरीर से प्रकृट करके इन तीनो महाशक्तियो को इन तीनो महापुरुषो को सौंप दिया और जब श्री नारायण के उत्पन्न किये उनके तीनो पुत्रो मे अपनी तीनो पुत्रियो की शक्ति को समाहीत कर दिया। जब तीनो महादेवो मे तीनो महादेवियो की शक्ति समाहीत हो गई तब वह तीनो महादेव पैदा हो गई पुर्ण हो गए। माता श्री कमलातमजा ने अपने शक्ति स्वरुपा अपनी तीनो शक्तियो ( पुत्रियो ) को किस पुरुष को सौंपी वह क्रम है कि—- माता श्री नारायणी कमलातमजा ने अपनी तीनो पुत्रियो को ठीक उसी क्रम से स्थापित किया जिस क्रम से श्री नारायण ने इन देवो को उत्पन्न किया था।

जय श्री हरि विष्णु संग माँ लक्ष्मी गरुडासना

माता श्री नारायणी कमलातमजा ने श्री नारायण के वृक्षस्थल से उत्पन्न विष्णु को अपनी शक्ति ( पुत्री ) जिसे माँ नारायणी ने अपने वृक्षस्थल से उत्पन्न किया विष्णु मे समाहीत कर दी। अब दुसरी शक्ति सरस्वती को माँ श्री नारायणी ने अपने नाभिकमल-उदर से उत्पन्न करके नाराय़ण के नाभिकमल-उदर से उत्पन्न ब्रहमा मे समाहीत कर दिया। माँ नारायणी कमलातमजा ने अपनी भृकुटि स्थल व नैत्रो से उत्पन्न कर के उसे नारायण के भृकुटिस्थल व नैत्रो से उत्पन्न महेश मे समाहीत कर दिया। इस तरह से भगवान श्री नारायण व उनके ह्रद्याकाश मे निवास करने वाली उनकी शक्ति ने मिल कर इन तीनो महादेवो विष्णु,ब्रहमा,महेश व उनकी शक्ति तीनो महादेवियाँ लक्ष्मी,सरस्वती,गौरी की उत्पति करके इनको पैदा किया।

अब इन तोनो महादेवो व महादेवियो ने पैदा होते ही जन्म लेते ही अपने माता-पिता भगवान श्री नारायण पिता व माता श्री नारायणी कमलातमजा को हाथ जोड कर प्रणाम किया और उनसे पुछा कि हे माते,हे पिता श्रैष्ठ हम कौन है हमारा नाम क्या है हमारे जन्म का प्रयोजन क्या है। तब भगवान श्री नारायण व उनके ह्रद्याकाश मे निवास करने वाली माँ श्री नारायणी कमलातमजा ने उन सबको उनके नाम प्रदान किये। भगवान नारायण ने अपने तीनो पुत्रो को उनके नाम बताए। जो भगवान श्री नारायण के वृक्षस्थल-भुजा से उत्पन्न हुआ उस पुरुष को श्री नारायण ने विष्णु के नाम से सम्बोधन किया अर्थात वह महादेव विष्णु हुए। जो पुरुष भगवान श्री नारायण के नाभिकमल उदर से उत्पन्न हुआ उसे श्री नारायण ने ब्रहमा कह कर पुकारा।

श्री महादेव ब्रहमा संग माँ महादेवी सरस्वति

इस लिए भगवान श्री नारायण के नाभिकमल से उत्पन्न उस पुरुष का नाम ब्रहमा हुआ। जो पुरुष भगवान श्री नारायण के नैत्रो व भृकुटि से उत्पन्न हुआ उसे श्री नारायण ने महेश ( शिव ) कह कर सम्बोधन किया। बस तब से इन तीनो महापुरुषो त्रिदेवो का नाम विष्णु, ब्रहमा,महेश पड गया। यह तीनो भाई अपने नाम पा कर प्रसन्न हुए। इन तीनो महापुरुषो को तो उनका नाम मिल गया तब यह जानकर अब तीनो महा नारियाँ भी आगे आई और तीनो ने माता श्री नारायणी कमलातमजा के आगे हाथ जोड कर प्रणाम करते हुए उनसे कहाँ कि हे माते इन तीनो पुरुषो को तो इनके नाम मिल गए मगर हमे अभी तक हमारे नाम नही मिले।

इस पर माँ श्री नारायणी कमलातमजा ने अपनी तीनो पुत्रियो को पास बुलाया और तीनो के सिर पर प्यार से हाथ फैरते हुए, माँ श्री नारायणी कमलातमजा ने उनका नाम करण करने के लिए जो माँ लक्ष्मी के वृक्षस्थल व भुजाओ से उत्पन्न हुई थी उसको माँ श्री नारायणी कमलातमजा ने उस नारी को लक्ष्मी नाम प्रदान किया। माँ श्री वत्सा नारायणी कमलातमजा ने उस नारी को लक्ष्मी के नाम से सम्बोधित किया। अब माँ श्री वत्सा नारायणी कमलातमजा ने अपनी उस नारी को जो उनके नाभिकमल से उत्पन् हुई थी उस नारी को सरस्वती ( ब्रहमाणी ) के नाम से सम्बोधित किया। माँ श्री वत्सा नारायणी कमलातमजा ने अपनी तीसरी पुत्री को जो उनके भृकुटिस्थल व नैत्रो से उत्पन्न हुई थी, उस नारी को गौरी के नाम से सम्बोधित किया। बस ठीक इसी तरह से इन तीनो महादेवो व तीनो महादेवियो का जन्म प्राकृटय हुआ इन सबको उनके नाम मिल गए थे।

महादेव महेश ( शिव ) उनकी अर्धांर्गिनी महागौरी

अब उन सबकी जीज्ञासा को शांत करने के लिए भगवान श्री नारायण व माता श्री वत्सा नारायणी कमलातमजा ने सबको अपने पास बैठाया और उन सबको उनके जन्म लेने का प्रायोजन बताने लगे। उन्होने कहाँ कि तुम सबको ब्रहमाण्ड की रचना करने और उनकी देखभाल करने की जिम्मेदारी देने के लिए ही तुम तीनो का प्राकृटय हुआ है। अब तुम सबको तुम्हारे नाम मिल गए है और तुम्हे अपने काम भी पता चल गए है तो शिघ्रता से अपने-अपने कार्यो मे जुट जाओ ब्रहमा को सृष्टि की रचना करके उनमे जागृति उत्पन्न करने का कार्य सौंपा। विष्णु को सृष्टि का भरण-पोषन करना। महेश को उचित अनुचित का निर्णय करके निर्माण व संहार करना। लक्ष्मी को विष्णु की शक्ति होने के नाते भरण-पोषन के लिए युक्ति करना यानि अन्न,धन की व्यवस्था करना।

सरस्वती को जो ब्रहमा की शक्तिस्वरुपा है जन चेतना व जागृति के लिए ज्ञान देना। महेश की शक्ति गौरी को बल प्रदान करना। इनका कार्य निर्माण व संहार करना। अब तीनो महादेव व तीनो महादेवियाँ अपने कार्यो मे लग गए और इधर नारायण शक्तिस्वरुपा माँ श्री वत्सा नारायणी कमलातमजा पुन्ह उनके श्री अंगो मे विराजमान हो गई और भगवान श्री नारायण शैषनाग की शैय्या पर सुख निद्रा मे मग्न हो गए और उनके तीनो पुत्रो व पुत्रियो ने इस सारे ब्रहमाण्ड की रचना करना उनका पालण-पोषन करना व जरुरत के समय संहार करना इस तरह सृष्टि का निर्माण कार्य शुरु कर दिया इस तरह ब्रहमाण्ड रचना कार्य शुरु हुआ।

कुछ विशेष तथ्य ———–

कभी भी जब पूजा अर्चना आरम्भ करते है तब एक ताम्बे के पात्र मे गंगा जल या सम्भव ना हो तो शुद्ध पिने का पानी भर कर उसमे तुलसी-पत्र डाल कर रखे तुलसी ना मिले तो जल भी काफी होगा फिर इस जल से मुख शुद्धि करके पूजा आरम्भ करना चाहिए और पूजा समाप्ति पर भी आचमन करना चाहिए। आचमण तीन बार करना चाहिए क्योकि आचमण इन तीनो महादेवो व तीनो महादेवियो के निमित किया जाता है। हमारे शरीरकोष मे इन तीनो महादेवो व महादेवियो का अंशावाश ( आंशिक-शूक्ष्म रुप से शरीर मे विराजित ) है। यानि आंशिक रुप से यह परम शक्तिया हमारे शरीरकोष मे रहती है।

शरीर के बाहर ब्रहमाण्ड मे यह विस्तृत रुप से मौजूद है। आचमन विधी हथेली को खोल लेवे फिर कनिष्ठा अंगुली व अंगुष्ठ को फैला लेवे और बाकि तीनो अंगुलिया आपस मे जुडी रहे। अब हथेली मे ताम्बे के पात्र आचमनी से जल डाले और पहले बोले ऊँ नमो नारायणाय -नमो माँ नारायणी फिर विष्णवै माँ वैष्णवी ( लक्ष्मी ) नमः कहते हुए मस्तष्क को हाथ से छु कर फिर हाथ वाला पानी धीरे-धीरे मुख मे उतार ( पी लेवे ) लेवे। दुसरी बार जल भर कर ब्रहमणै- माँ सरस्वतैय नमः कहते हुए जल भीतर ग्रहण करे मुख मे। तीसरी बार हथेली मे जल लेकर महेश्वरायै- महागौरी नमः कहते हुए जल ग्रहन कर लेवे ( पिना )। फिर हाथ शुद्धि के लिए थोडा जल हथेली मे डाल कर जमीन पर डाल देवे हाथ शुद्धि करके अपने दैनिक चर्या यानि नित्य पूजा क्रम शुरु करे।

जय श्री राम

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