धर्म को लेकर प्राचीनकाल से ही मार-काट होती रही है। प्राचीनकाल मे और अब मे फर्क बस इतना है कि तब एक राजा दुसरे राज्य पर आक्रमण करता, और वहाँ के राजा को हरा कर उस राज्य पर अपना कब्जा कर लेता था। जब वह दुसरे राज्य को अपने अधिन कर लेता था तो उस राज्य की प्रजा ( नागरिको ) को अपना गुलाम बना लेता था। वहाँ की जनता जो अपना धर्म को मानती थी तो वह उन्हे उस धर्म को मानने की सजा देता था कि वह सारी जनता अब उसकी गुलाम है। इस कारण वह उन नागरिको पर अपने धर्म को थौप देता था।
कुछ जनता डर से उस राजा के धर्म को अपना लेती थी मगर जो उस राजा के धर्म को ना मान कर अपने धर्म को मानता तो उन्हे मार दिया जाता राजा की अबेहलना के जुर्म मे या फिर वह सब नागरिक जो अपना धर्म छोड कर उस राजा के मुताबिक धर्म को अपनाने से इनकार करते वह सब चोरी छुपे अपने परिवारो व कबीले वालो के संग उस राज्य को छोड कर भाग जाते थे। इस तरह वह कई बार राजा के सिपाहियो द्वारा मार भी दिये जाते थे अगर राजा को इसकी खबर हो जाती थी तो।
ये सब हुई प्राचीनकाल की बाते पर हमे यह समझना जरुरी है, कि वास्तव मे धर्म का मतलब हमारे शास्त्रो मे क्या है। इसके लिए धर्म की परिभाषा जो हमारे पवित्र ग्रंथो मे लिखी हुई है वह है—-
धर्म का मतलब वह सब क्रियाए ( कर्म ) जो हमे अपने कर्म को करने की प्रक्रिया मे मदद करे। वह सब कर्म एक मनुष्य को दिन उगने से लेकर रात को सोने तक जो क्रियाए ( कर्म ) करने चाहिए उन्ही सब गतिविधियो को धर्म कहाँ जाता है। इसका मतलब यह हुआ कि हर इंसान के अपने-अपने निर्धारित नियमो का पालन करना होता है, और उन नियमो का पालन करना प्रत्येक इंसान का कर्तव्य होता है। यह हुआ मानव धर्म। उदाहरण— जैसे एक नारी का धर्म होता है कि वह सुबह जल्दी उठे और स्नान आदि दैनिक प्रतिक्रियाए करने के बाद सारे परिवार के भोजन को बना कर सबके पेट भरने का काम करे। पुरुष का धर्म कि वह सुबह नित्यचर्या से निवृत हो कर अपने रोजगार मे लग जाए। राजा का धर्म है कि वह अपनी सारी प्रजा का पालन-पोषण करे प्रजा की रक्षा करे। सेनिको का धर्म है कि वह अपने देश-राज्य की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहे, और दुश्मनो के हमला करने पर उनका डट कर सामना करे युद्ध भूमी से डर कर भागे नही। माता-पिता का धर्म है कि वह अपनी संतानो का भरण- पोषण करे उनकी सभी जरुरतो का यथासम्भव पूर्ति करे। संतानो का धर्म है कि अपने माता पिता व गुरु जनो का यथायोग्य सम्मान करे उनके बताए मार्ग का अनुसरन करे। उनकी आज्ञाओ का पालन करे।
यह सब हुआ धर्म मगर आजकल कलयुग चल रहाँ है सो ना जाने कौन-कौन से धर्म बन गए और सारी दुनिया इस बनाबटी धर्म के नाम पर एक दुसरे को परेशान करने से पिछे नही हटती। ईश्वर को मानना मानव का एक धर्म है पर आजकल ईश्वर को ही धर्म मान लिया जाता है, कि वह ईश्वर है उसी को पूजो नही तुम्हारा ईश्वर गलत है। हमारे ईश्वर को पूजो यही धर्म है। अरे भई पहले धर्म की परिभाषा को समझ लिया होता तब कही कहते यह ईश्वर सही वह गलत कोई ईश्वर गलत सही नही होता गलत-सही इंसान की खुद की सोच होती है जो उसे मन मे मैल पैदा करती है। ना राम धर्म है और ना ईशा-मसीह धर्म है और ना मुहम्मद धर्म है।
यह सब तो आस्था के साधन है। यह केवल हमारी सोच हमारी बुद्धि विवेक की कसौटी पर कस कर ही फैंसला करना चाहिए कि किस की पूजा करना हमारा धर्म है। अरे भई किसी की भी पूजा करो भक्ति करो पर वही करो जिसमे आपका मन रमता हो मन को शांति-शकून मिलता हो। ईश्वर धर्म नही पर उनको मानना इंसान का धर्म है। इस लिए ईश्वर को धर्म के नाम पर बांटो नही ईश्वर एक सुपरिम-पावर है बस उसके आदर्शो को अपने जीवन मे ढालो। पहले खुद का जीवन तो सुधार लो फिर चलना दुसरो को सुधारने। मगर दुर्भाग्य यह है कि इंसान खुद की कमियो को नही देखता वह सदैव दुसरो के दोषो को देखने मे लगा रहता है। ईश्वर ने तुम्हे इस संसार को आगे बढाने उसे सम्भालने की डयूटी,कर्तव्य दिया है वही करो ना बस क्यो दुसरो से प्रतिस्पर्धा करके अपना और दुसरो का समय नष्ट करते हो।
समय बहुत किमती है आप हम सब को सांसे गिनती की मिली है उसे व्यर्थ ना गवाओ। बस वही करो जो करने हमे ईश्वर ने पैदा किया। इस संसार की रचना करना, और इसकी सार-सम्भाल करना बस इतना सा कर्म ही हमे ईश्वर ने दिया है। वह भी हम ठीक से नही करते। जब हम ईश्वर के दिये इस संसार की सार-सम्भाल मन से पुरी ईमानदारी से करने लग जाएंगे तब ईश्वर स्वयम हमे अपने गले लगा लेगा। ये धर्म वह धर्म करके ईश्वर की बनाई यह सुन्दर दुनिया मत बिगाडो। कुछ नया करने की सोचो ना क्रिश्चन बडा,ना मुश्लिम बडा, ना हिन्दु या कोई और नाम से कहो कोई बडा नही यह संसार उस ईश्वर का है उसे ही इसका मालिक रहने दो हम सब तो उसकी संताने है उसकी भलाई नही केवल अपनी भलाई का उपाय करे।
अब जान गए धर्म क्या है धर्म हमारे कर्तव्य है। अब देखे भारतीय धर्म और अन्य धर्म मे तुलना करे तो भारतीय धर्म-मूल्य श्रैष्ट है, क्योकि भारतीय धर्म मे बचपन से ही यही बताया जाता है। ऐसा करने से पाप लगेगा, वैसा करने से पुन्य मिलेगा। हमारी संस्कृति मे पाप करने से बचाने के लिए प्रयत्न किया जाता है, जब्कि दुसरे अन्य देशो के धर्मो मे केवल स्वर्ग प्राप्ति होने के संकेत बताए जाते है। वहाँ यह नही समझाया जाता कि किसी गलत कार्यो को करने से नरक मिलता है। बस यह कारण है कि एक शुद्ध भारतीय ऐसा कोई कर्म नही करना चाहता जिनसे पाप लगे, और नरक जाना पडे यही कारण है।
भारतीय किसी पर अत्याचार नही करता। दुसरी तरफ देखे तो अन्य देशो मे केवल यही समझाया जाता है, कि यह कर्म करने से स्वर्ग मिलेगा इसके लिए चाहे वह कितना भी पाप करे वह पाप करने से नही डरता क्योकि उसे पाप भी लगता, यह समझाया नही जाता इस कारण वह अत्याचार करने से घबराता नही और एक दो नही कई-कई पाप करता चला जाता है। वह यह भी नही सोच सकता कि वह जो कर्म कर रहाँ है उसका वह कर्म केवल उसके मन मे तमस ही पैदा कर रहाँ है और तमस पैदा होना अपने आप मे नरक की निशानी है।
नरक तो मिला ही मगर सारे जीवन उसने आत्मिक सुख की प्राप्ति नही की उसकी आत्मा सदैव कूंठीत होती रहती है, पर दिमाग उसको इस के बारे मे सोचने ही नही देता उसके दिमाग पर तो हैवान सवार होता है। इस लिए अपनी मृत-आत्मा का बोध ना करते हुए, वह बहुत खुश होने का आभाश करता है। मगर खुशी क्या है- यह उसे नही पता चलता। उसे नही मालुम की असली खुशी अत्याचार मे नही प्यार बांटने मे है। असली खुशी दुसरो को शकून देकर मिलती है।लुटने से केवल सुख इस शरीर को मिल जाएंगे मगर इस शरीर के भीतर एक पवित्र आत्मा भी निवास करती है वह कभी खुश नही हो पाती भीतर-ही भीतर वह टुटती चली जाती है। ऐसा इंसान चेतना सून्य होता है। एक जिन्दा लाश से अधिक कुछ नही होता। तभी तो उसके चेहरे पर तेज नही होता। तेज केवल नेक कर्म करने पर ही आता है।
रंग चाहे गौरा हो या काला कोई मायने नही रखता।अगर नेक कर्म करते जीवन यापन किया जाए दुसरो पर अत्याचार ना करके खुद मे रमण करते हुए जीया जाए तो तेज खुद व खुद अपने आप चेहरे पर चमक आता है। बस इसी लिए वह इंसान अन्य से भिन्न बन जाता है। दुसरो का भला नही कर सकते कोई बात नही, पर खुद की भलाई जरुर करनी चाहिए। वह कर्म जिससे हमे आत्मिक शकून मिल सके वही कर्म श्रैष्ट है। बस यह ध्यान रखे कि यह सारी दुनिया उस महान शक्ति सुपर-पावर ने बनाई है और उसकी बनाई दुनिया को या दुनिया वालो को नष्ट करना, अत्याचार करना, उस ईश्वर सुपर पावर को दुखी करने के बराबर है। बस इस संसार को सुन्दर बनाने मे खुद को लगाए फिर देखिए कैसे यह घरती खिल जाती है और उस ईश्वर की दुआए आप तक पहुचने लगती है।
जय श्री राम