हमारे ब्रहमाण्ड की रचना कैसे हुई इसमे पहले हमने जाना की सबसे पहले नारायण ने सृष्टि बनाने के लिए रचना शुरु करी। किस तरह किस ने कैसे इस ब्रहमाण्ड रचना मे अपने कार्यो को किया यह भी जानना हमारे लिए जरुरी है। इस कारण इस ब्रहमाण्ड रचना की इस श्रृंखला मे आगे और भी कुछ जानने के लिए कुछ और आगे का ज्ञानाध्ययन करने की लालसा से आगे बढते है।
नारायण ने अपने तेजबल,शक्तिसामर्थ्य के अनुसार सृष्ठि की रचना करना आरंभ किया तो उन्होने ब्रहमा,शिव (महेश ), विष्णु इन तीन महादेवो को उत्पन्न किया फिर तीन महादेवियो की रचना की गौरी ( पार्वती ), सरस्वति,लक्ष्मी इन तीनो देवियो को प्रकृट किया। अब अपने से उतपन्न हुए इन तीनो महादेवो और तीनो महादेवियो को आज्ञा दी कि अब तुम संसार ( ब्रहमाण्ड ) की रचना करो और उसका पालण,पोषण करो। इन तीनो महादेवो ब्रहमा,विष्णु,महेश व तीनो महादेवियाँ लक्ष्मी, सरस्वति,गौरी ने अपने परम पिता परमात्मा नारायण को प्रणाम किया और उनकी आज्ञा को शिरोधार्य करके सब अपने कार्यो को करने के लिए प्रयत्न करने लगे।
महादेव विष्णु ने सृष्टि के निर्माण मे पालन करना आरम्भ किया और उनके कार्यो को शक्ति प्रदाण करने के लिए महादेवी लक्ष्मी ने उनका सहयोग करना शुरु कर दिया अब विष्णु और लक्ष्मी सृष्टि के निर्माण मे अन्न-धन प्रदान करने लगे, ब्रहमा ने सृष्टि निर्माण मे सभी प्रकार के प्राणियो की रचना करनी शुरु की इसमे भाग्य बनाया लेख ( नसीब ) लिखे इसमे उनकी मदद के लिए महादेवी सरस्वति ने शक्ति प्रदान की उन्होने ज्ञान,बुद्धि व विवेक प्राणीयो मे उत्पन्न किये। महादेव शिव ने सृष्टि के निर्माण मे प्राणीयो मे चेतना बल व शक्ति उत्पन्न की और उनकी शक्ति बनी महादेवी गौरी जिन्होने प्राणियो मे तेल,औज व बल उत्पन्न किया। इस तरह तीनो महादेवो और तीनो महादेवियो ने मिल कर सारे ब्रहमाण्ड की रचना करने मे भगवान नारायण को सहयोग प्रदान किया।
सूर्य देव को उत्पन्न किया। ब्रहमाण्ड को रोशन करने व तेज ऊर्जा देने के लिए सूर्यदेव का निर्माण किया। सृष्टि के संचालन को सम्भालने के लिए विभिन्न देवताओ को उत्पन्न किया। ये सभी देवता ब्रहमाण्ड की गतिविधियो का निरक्षण व सार सम्भाल करने लगे। इन सब देवताओ के राजा के रुप मे इंद्रदेव को नियुक्त किया अब सभी देवता इंद्रदेव की आज्ञा पा कर अपने हिस्से मे आए सभी कार्यो को करने लगे।
त्रिदेव ब्रहमा,विष्णु,महेश से आज्ञा पा कर सभी देवता जिन्हे त्रिदेवो ने उत्पन्न किया था अपने उत्तरदायित्व का वहन श्रृधा से करने लगे। ब्रहमा जी ने सभी देवो को उनके कार्यक्षेत्र बांट दिये और वह सभी देवता इंद्र, अग्नि, पवन, वरुण आदि अपने कार्यो को ब्रहमा जी से पा कर सब उनका पालन निष्ठा से करने लगे। सभी ने अपने हिस्से मे आए कार्यो को करने मे अपने देवराज इंद्र का अनुसर करते हुए कार्यो का वहन करना आरंभ कर दिया। जैसे अग्निदेव ब्रहमाण्ड मे अग्नि को उत्पन्न कर के सबकी शुद्धि करने लगे। वरुणदेव जल का कार्यक्षेत्र सम्भालने लगे।पवनदेव वायु के वेग को सम्भालने का कार्य करने लगे। इंद्रदेव सभी देवताओ को राजा का कर्तव्य वहन करने लगे।
देखा आपने कि नारायण ने जब सृष्टि की रचना आरंम्भ किया तो पहले उन्होने स्वयं से त्रिदेवो व त्रिदेवियो को उत्पन्न किया और फिर इन्ही त्रिदेवो और त्रिदेवियो को आज्ञा दी कि वह सब मिल कर ब्रहमाण्ड को बनाने के कार्य मे लग जाए। उन तीनो देवो और देवियो को आज्ञा देक कर नारायण स्वयं क्षीर सागर मे शेषनाग की शैय्या मे सोने चले गए। अब इन त्रिदेवो और त्रिदेवियो ने मिल कर ब्रहमाण्ड रचना करने का कार्य शुरु किया और देवताओ को उत्पन्न कर के उनको ब्रहमाण्ड रचना को शुचारु-रुप से चलाने के लिए उन सबको उनके कार्य सौंप दिये। अब ब्रहमा जी अपने लिए ब्रहम्लोक को स्थापित किया वे वहाँ जा कर निवास करने लगे।
विष्णु महादेव ने विष्णुलोक ( बैंकुंठ ) का निर्माण किया वहाँ जा कर निवास करने लगे। अब शिव महादेव ने अपने निवास स्थान रुप मे शिवलोक का निर्माण किया वे वहाँ जा कर रहने लगे। अब त्रिदेवो और त्रिदेवियो ने ब्रहमाण्ड के विस्तार के लिए तपस्या करने लगे और बाकि सभी देवता उनसे आज्ञा पा कर ब्रहमाण्ड की रचना मे मदद करने लगे और ब्रहमाण्ड की देख रेख करने लगे। अब भगवान नारायण ने ब्रहमाण्ड की रचना का निरक्षण किया तो उन्हे इसमे कुछ कमी लगने लगी तब उन्होने ब्रहमा आदि त्रिदेवो को निर्देश दिया की यह ब्रहमाण्ड अभी पुरा नही हुआ है ब्रहमाण्ड मे अभी बहुत काम करना शेष रहता है। भगवान नारायण के निर्देशानुसार त्रिदेवो व त्रिदेवियो ने उनकी आज्ञा को शिरोधार्य करके आगे का काम शुरु किया।
ब्रहमा ने देवताओ के रहने के लिए अलग-अलग देव लोक का निर्माण करवाया। सभी देवताओ को यथायोग्य वह देवलोक बांट दिये अब सभी देवता उन लोको मे रहने लगे। अब देवता अपने लोको मे रह कर ही अपने कार्यो का निर्वहन करने लगे। देवराज इंद्र उन सभी देवताओ का संचालन करने लगे। इस तरह सभी देवलोक बन गए। अब आगे की रचना करने के लिए सभी देवता इंद्र के पास पहुचे तब इंद्र ने कहाँ हमे और आगे की रचना करने के लिए त्रिदेवो से आज्ञा लेनी होगी इसके लिए वह ब्रहमलोक पहुचे ब्रहमा ने उन्हे उनका आगे का कार्य समझाया और इसी तरह विष्णुलोक बैकुंठ मे देवता पहुचे तो विष्णु महादेव ने उन्हे उनका कार्य समझाया। फिर वे शिवमहादेव से आज्ञा लेने शिवलोक पहुचे तो शिवमहादेव ने उनको उनका कार्य समझाया।
अब जब सब देवताओ ने अपने हिसाब से सभी कार्य पुरा कर लिया तब देवताओ के मन मे आया की अभी कुछ अलग किया जाए जिस तरह हम त्रिदेवो की आज्ञा का पालन करते है। उसी तरह हमारी आज्ञा का पालन करने के लिए हमारे अधिन भी कोई होना चाहिए। यह बात जब सभी देवताओ को समझ आई तब वे त्रिदेवो के पास पहुचे और उन्हे अपनी विचारधारा से अवगत करवाया। तब त्रिदेवो व त्रिदेवियो ने उनकी विचारधारा मे अपनी सहमति दे दी मगर अब वे भगवान श्री नारायण से अनुमति लेना चाहते थे, क्योकि इस ब्रहमाण्ड के सर्वेसर्वा वे ही है यह सोच कर वे सभी नारायण के समीप गए और उनको अपनी विचारधारा से अबगत करवाया।
त्रिदेवो ने देवताओ की योजना को नारायण के समीप रखा तब भगवान नारायण बहुत प्रसन्न हुए और बोले यही मै भी सोच रहाँ था मुझे इस ब्रहमाण्ड रचना मे तभी कमी नजर आ रही थी। अब भगवान नारायण ने उन्हे आगे की रचना करने की आज्ञा दे दी। भगवान नारायण से आज्ञ तो मिल गई अब समस्या यह आई की देवताओ को उत्पन्न करने की सामर्थ्य मे कमी लगी क्योकि जो स्वतः उत्पन्न होना था वह तो उत्पन्न हो ही गया नई उत्पति करना अब समभव नही लगा तो ब्रहमा ने एक योजना बनाई की एक बार फिर उत्पन्न किया जाए तो अब जब ब्रहमा उत्पन्न करने लगे तो भगवान श्री नारायण की कृपा से ब्रहमा ने एक पुरुष और एक स्त्री को उत्पन् किया और उन्हे रचना मे सहयोग देने के लिए उत्पति करने की आज्ञा दी मगर वे पुरुष व स्त्री उत्पति करने मे असमर्थ हुए।
वे रचना करना नही जानते थे। अब त्रिदेवो को चिन्ता हुई तब ब्रहमा जी ने एक युक्ति निकाली की यह पुरुष व स्त्री इनका जोडा बना दिया जाए तब यह नई रचना को पैदा कर सकेगे। इसके लिए त्रिदेवो और त्रिदेवियो ने व सभी देवी-देवताओ ने उस पुरुष व स्त्री को एक से दो अलग भागो मे बांट दिया। अब स्त्री का अपना अलग अस्तितत्व हुआ और पुरुष का अपना अलग अस्तित्व हुआ दोनो अलग हो गए यानि एक शरीर के आधे-आधे भाग दोनो को बांट दिये अब यह नई रचना एक हिस्से को पुरुष नाम दिया दुसरे हिस्से को नारी नाम मिला। इस स्त्री-पुरुष के जोडे को विवाह बंधन मे बाध कर ब्रहमा जी ने इन्हे संतति पैदा करने की आज्ञा दी। पुरुष का नाम मनु और नारी का नाम सत्रुपा ( सतरुपा ) रखा। पुरुष व नारी ने समागम के माध्यम से नई संतति को जन्म दिया।
अब इन नई संतति को रहने के लिए स्थान की जरुरत थी। इसके लिए त्रिदेवो-त्रिदेवियो ने घरती की रचना की और इस घरती का संचालन त्रिदेवो ने अपने हाथ मे लिया। इस तरह मानव का जन्म हुआ। इस तरह से अब पुरुष व स्त्री दो हिस्सो मे बट कर सृष्टि को आगे बढाने मे सलग्न हुए। स्त्री और पुरुष रुप मे समागम हुई पहली संतानो मे राजा मनु व सत्रुपा ने दो पुत्रो व तीन पुत्रियो को पैदा किया। मनु व सत्रुपा के दो पुत्र प्रियव्रत व उत्तानपाद हुए। इसी तरह से तीन पुत्रिया आकूति,प्रसूती व देवहूति इन तीन पुत्रियो को पैदा किया। राजा मनु व सत्रुपा ही वह पहला जोडा है जिन्होने दो शरीर धारण करके इस संसार की रचना मे ब्रहमा की मदद की और समागम के माध्यम से संतान पैदा की।
हमारे इस संसार की रचना मे पहले मानव यही राजा मनु व रानी सत्रुपा ( सतरुपा ) ही है। यह मानव के पहले माता पिता है, जिन्होने संतान को पैदा किया। इनसे पहले पैदा नही होते थे ।पहले उत्पन्न ही होते थे। उत्पन्न होने और पैदा होने मे क्या अंतर है आओ जानते है। पैदा जब होते है जब क्रिया करके निर्मित किया जाए और उत्पन्न होना यह स्वतः होने वाली क्रिया है इसमे कर्ता कोई नही होता मगर क्रिया होती है। पैदा होने मे क्रिया करनी पडती है, तब कोई पैदा होता है। उदाहरण के लिए किसान जमीन को साफ करता है हल चला कर खोदता है फिर बीज-पानी देकर फसल का रोपन करता है।जब फसल पकती है तो उसे काट कर उपयोग मे लाता है।
मगर जगलो मे ना तो कोई किसान फसल उगाने जाता है ना ही फसल उगाने के लिए वहाँ व बीजारोपन करता है मगर फिर भी वहाँ वृक्ष-जडी-बुटिया उग आती है। इस तरह जो किसान ने क्रिया ( मेहनत ) करके फसल उगाई वह किसान की पैदा करी हुई फसल है, और जो जंगल मे बिना किसी के क्रिया ( कर्म ) करे स्वतः ही जो उगा वह प्रकृति ने उत्पन्न किया कहलाता है। अब तो समझ ही गए ना कि मनुष्य या प्राणी जगत ही ऐसी रचना है ब्रहमाण्ड की जो पैदा होती है ठीक इसके विपरित देवता आदि पैदा नही होते स्वतः ही प्रकट होते हे उत्पन्न हो जाते है। यह है हमारे भगवान श्री नारायण की लीला जहाँ कोई उत्पन्न होता है तो कोई पैदा होता है। इसी तरह आगे जानते है देवता है कौन क्या करते है।
देवता त्रिदेवो व त्रिदेवियो के माध्यम से स्वतः उत्पन्न हुए है। इनके उत्पन्न होने का कारण सृष्टि रचना मे त्रिदेवो व त्रिदेवियो की मदद करना और उनकी बनाए नियमो का पालन करते हुए इस ब्रहमाण्ड की रचना व सार सम्भाल करना और प्रलयकाल मे इस रचना को नष्ट करना। सूर्यदेव को ऊर्जा व रोशन का कार्य मिला। इंद्र को देवराज की पदवी अपने अधिन देवो के कार्यो की देखरेख करना। यमराज को मृत्यु दण्ड व नरकलोक के कार्यो को देखना। इंद्र को स्वर्ग की देखरेख करना। पवनदेव को वायु का संचालन करना। कामदेव को काम-वासना जागृत करके सृष्टि मे पैदा करने की युक्ति करना। नवग्रहो के भी अपने अलग कार्यक्षेत्र है। उनका संचान करना इन्ही नवग्रहदेवो के हाथ सौंपा हुआ है। यही नवग्रह प्राणियो को उनके कर्मो के अनुसार सजा देना,स्वर्ग भेजना,नरक भेजना आदि कार्यो को देखते है।
देवताओ के कौनसे कार्य है कौन क्या कार्य करता है इसका सविस्तार विवेचन भी हम जानेंगे अभी फिलहाल इतना ही श्रैष्ट है।
पढने और जानने की आपकी जीज्ञाषा के लिए धन्यवाद,—-
जय श्री राम