प्राचीन सभ्यताओ पर भारतीयता की छाप

प्राचीन काल की नदी घाटी सभ्यता प्राचीन भारतीय सभ्यता के समकालीन थी। मुख्य रुप से दजला-फरात नदी घाटी मे बसी सभ्यता मेसोपटामिया,बेबीलोनिया,सुमेरियन आदि सभ्यता भारत की प्रचीन नदी घाटी सभ्यता सिन्धु घाटी सभ्यता के सम- कालीन थी। मिले सबूत से पता चलता है कि इन सभ्यताओ मे आदान-प्रदान होता था। सिन्धु घाटी सभ्यता भारत के कुछ राज्यो से लेकर पाकिस्तान के सिन्ध प्रदेश तक फैली हुई थी। हडप्पा, मोहनजोदाडो आदि नाम से जानी जाने वाली सिन्धु घाटी सभ्यता बहुत सुनियोजीत सभ्यता थी। जितनी भी सभ्यताए है वह किसी ना किसी नदी घाटी के किनारे ही विकसित हुई थी। मेसोपोटामिया, बेबीलोनिया दजला-फरात नदी घाटी मे पनपी ऐसे ही सिन्धु घाटी सभ्यता सिन्धु नदी घाटी मे बसी हुई थी।

भारत के वेद-पुराणो मे वर्नित देवो की चित्रमाला मेसोपोटामिया की सभ्यता मे देखने को मिल सकती है। कुछ बाते जो भारत के शास्त्रो से जो मेसोपोटामिया बेबीलोनिया मे समानता दर्शाते है वह है—-

दुर्गा पूजा ———–

भारतीय सनातन धर्म के मतानुसार जीन देवी-देवताओ की पूजा अर्चना करी जाती रही है उससे मिलती जुलते कुछ चित्र मेसोपोटामिया की सभ्यता के अबशेषो से मिले उन से पता चलता है कि उस समय भारत का वरचस्व पुरी दुनिया मे था यानि उस समय भारतीय पुरे संसार पर फैले हुए थे और प्राचीन काल मे भारत का शासन बहुत दुर तक फैला हुआ था। मेसोपोटामिया,बेबीलोनिया सभ्यता मे मिले अवशेषो मे जिन चित्रो को उकेरा गया है वह आज भी भारत के जीवन मे शामिल है।

आज भी हिन्दु धर्म मे जिन देवी-देवताओ को पूजा जाता है उस समय भी पूजानिय थे इसका वर्णन अवशेषो मे दिख जाएगा। मेसोपोटामिया सभ्यता के अवशेषो मे मिली एक देवी जो शेर पर सवार नजर आ रही है, इसी तरह शेर पर सवार हिन्दु धर्म की पूजनिय माँ दुर्गा है जिनकी लोग पूजा करते है खासकर नवरात्रि के समय घर-घर मे शेर पर सवार माँ शेरावाली दुर्गा की पूजा करी जाती है। इस तरह देख सकते है कि उस समय भी हिन्दु धर्म था और उसका फैलाव बहुत बडे क्षेत्र तक था सिन्धु घाटी सभ्यता से लेकर मेसोपोटामिया तक सनातन भारतीय धर्म के मानने वाले थे।

मेसोपोटामिया सभ्यता के अबशेष मे मिली शेर सवार देवी नारी प्रतिमा

भारतीय धर्म की पूजनिय माँ दुर्गा

शिवलिंग ——-

भारत मे सनातन काल से शिव की पूजा की जाती रही है। शिव की प्रतिमा के लिए एक पार्थिव लिंग बना कर उसकी पूजा की जाती है। इस लिंग को शिव का प्रतिक माना जाता है। इस लिंग को शिव के प्रतिक के रुप मे पूजा जाता है। इस लिए इसे शिवलिंग कहाँ जाता है। इस तरह मेसोपोटामिया,बेबीलोनिया व सिन्धु घाटी सभ्यता मे शिव मूर्ती या शिवलिंग के अवशेष मिले है इससे प्रतित हो जाता है, कि शिंव की पूजा बहुत प्राचीन काल से ही करी जाती रही है। शिव के उपासक आधुनिक भारत मे ही नही सुदुर देशो मे भी शिव की पूजा करी जाती रही है। सिन्धु घाटी सभ्यता मे एक पुरुष जो बैल व शेर आदि से घिरा बैठा है इससे पता चलता है उस समय पशुपतिनाथ शिव की पूजा होती रही है। इसी क्रम मे मेसोपोटामिया सभ्यता मे भी जिन देवी देवताओ के अबशेष मिले वह हिन्दु धर्म के देवी-देवताओ से मिलते जुलते है। हिन्दु धर्म मे प्राचीन काल से ही शिव की पूजा करने के लिए शिवलिंग पूजा जाता है। इसी तरह मेसोपोटामिया सभ्यता के अवशेषो मे भी शिंवलिंग क् अवशेष मिले है। हर हर महादेव

मेसोपोटामिया सभ्यता मे मिले अवशेष देव-प्रतिमा पंचमुखी शिवलिंग से समानता

पंचमुखी शिवलिंग प्रतिमा

रामायण के पात्र ( नायक ) ———

भारत के महाकाव्य रामायण मे राम सिता,लक्ष्मण, रावण आदि मेन पात्र है। राम ने रावण को हरा कर अपनी जीत हांसिल की थी। राम को उनकी सौतेली माता केकई ने चाल चल कर वनवास मे भेजा था। वनवास काल मे राम के संग सिता व लक्ष्मण भी गए थे। एकबार रावण ने चाल चली की वह सिता का हरण कर के ले आएगा। इसमे रावण के मामा मरीच ने मदद की मरीच हिरण बन कर सिता के सामने गया सिता ने सोने का हिरण पहली बार देखा उसे वह हिरण पसंद आया और सिता ने राम से उस हिरण की मांग रखी राम हिरण लेने गए लक्ष्मण सिता की देखभाल कर रहे थे। तभी हिरण बने मरीची ने चालवश जोर-जोर से रोना शुरु किया हाय लक्ष्मण शायद लक्ष्मण यहाँ आएगा और वहाँ सिता अकेली होगी तब रावण उसको हर लाएगा। सिता के विवश करने पर लक्ष्मण को वहाँ से जाना पडा, मगर सिता की सुरक्षा के लिए एक घेरा बना दिया उसमे जो पैर रखेगा वहाँ लक्ष्मण की शक्ति से जल जाएगा। लक्ष्मण के जाने के बाद रावण साधुभेष मे सिता के पास गया उसकी कुटिया ( घर ) के बाहर जोर से चिल्लाने लगा भुख लगी है कुछ खाने को मिल जाए। सिता ने देखा बाहर कोई साधु भुखा है इसके लिए सिता ने भिक्षा ( भोजन ) ला कर दिया तो वह रावण उसे लेने भीतर जाने लगा तो उसके आगे आग प्रकट हो गई डर कर उसने सिता से कहाँ कि तुम बाहर आकर मुझे भिख दो अगर भिख नही दोगी तो भुखे का श्राप लग जाएगा। अब सिता श्राप से डर कर बाहर निकल कर भिक्षा देने गई।यह सब एक विशाल पक्षी सब देख रहाँ था।

मुद्दे की बात यह है कि सनातन भारत के रामायण के पात्रो को प्रकट करते मेसोपोटामिया के अवशेष राम और रावण की इस कहानी कथा का संबंध स्थापित करती है। मेसोपोटामिया,बेबीलोनिया के भग्नावशेष मे मिली एक अवशेष मे रावण का साधुवेश मे सिता के पास आना व लक्ष्मण रेखा पर पैर रखना सब प्रदर्शित करता है। इससे साफ साबित हो जाता है कि राम अति प्राचीन काल से पूजनिय रहे है। रामायण के साक्ष्य मिलने का पक्का सबूत साबित करते है और संग मे यह भी साबित होता है कि भारत का सनातन हिन्दु धर्म पुरे संसार मे फैला हुआ था। दुसरी बात यह कि उस समय सभी हिन्दु धर्म के अनुयायी रहे होगे इस की पुष्टि होती है।

मेसोपोटामिया के अवशेष मे सिता से भिक्षा मांगता रावण व लक्ष्मण रेखा से प्रकट अग्निदेव

सिता से भिक्षा मांगता रावण लक्ष्मण रेखा के भीतर खडी सिता

रावण का सिता हरण ———

साधुभेष मे रावन आया और सिता का हरण करके ले गया। जब सिता का रावण हरण कर रहाँ थे तब वहाँ एक विशालकाय पक्षी जटायु वहाँ आया और उसने रावण पर हमला किया क्योकि सिता बचाने के लिए पुकार कर रही थी तो जटायु ने उनकी पुकार सुनी और रक्षा करने के लिए और सिता को रावण के चंगुल से बचाने के लिए रावण पर हमला कर दिया। अब रावण और जटायु का युद्ध हुआ, और रावण ने अपनी तलवार से जटायु का एक पंख काट दिया जिससे जटायु घायल हो गया और फिर भी उसने साहस नही छोडा। रावण का सामना करता रहाँ, मगर घायल होने के कारण वह जमीन पर गिर गया और बेहोश हो गया। रावण सिता को लेकर अपनी नगरी चला गया।

खास— मेसोपोटामिया सभ्यता के अबशेषो से एक विशाल पक्षी जिसके एक पंख कटा हुआ दर्शाया गया है। इससे यह पता चलता है कि यह विशालकाय पक्षी वही जटायु ही होगा जिसका एक पंख रावण ने अपनी तलवार से काट दिया था।

मेसोपोटामिया सभ्यता के अवशेष मे मिला विशालकाय पक्षी का एक पंख कटा अवशेष जटायु

सिता हरण करके जाता रावण उस पर जटायु का हमला रावण ने जटायु का एक पंख काटा

राजा भरत ——–

मेसोपोटामिया सभ्यता के अवशेषो मे एक अवशेष मिला है जो राजा भरत की प्रतिमा है क्योकि भारतीय इतिहास मे राजा भरत का विवरण है जो कि शेर से खेला करते थे शेर उनके महल की शोभा बढाते थे। शेर के ही सिंघासन पर बैठते थे इतना अधिक लगाव था उनको शेरो से कि वे कुछ शेरो को पालते थे। मेसोपोटामिया मे मिले एक अवशेष मे एक पुरुष जो शेर के संग नजर आ रहाँ है। यह सिर्फ राजा भरत ही हो सकते है जो शेरो से खेला करते थे शेर उनकी पहचान हुआ करती थी। भारत के भरत खेलते शेरो की संतान से। राजा भरत के समय ही हमारे देश का नाम उनके नाम पर यानि भरत की नगरी भारत पडा था। इससे पहले भारत को आर्यवृत कहाँ जाता था। हो ना हो मेसोपोटामिया भी उस समय भारत का ही हिस्सा रहाँ होगा इस बात का प्रमाण इस अवशेष से भी मिल जाता है।

मेसोपोटामिया से मिले अवशेष राजा भरत की प्रतिमा के समान प्रतित होते हुए

राजा भरत अपने प्रिय शेरो के संग सिंहासन पर विराजमान

राजा भरत का वनगमन ———

भारतीय प्राचीन शास्त्रो मे राजा भरत ने अपने शासन काल को भोगने के बाद अपने शासन को अपने बेटो के हाथ सौंप कर खुद वानप्रस्थ गहण कर लिया वे हाथ मे कमडलु लिए जंगलो मे तपस्या करने चले गए वहाँ रह कर उन्होने घोर तपस्या करते हुए संसार से विदा लेते हुए शरीर छोड दिया।

मेसोपोटामिया सभ्यता के अवशेषो मे एक अवशेष मे एक पुरुष हाथ मे कमंडलु लिए है और वलकल वस्त्र पहने है ( पेड-पौधो की छाल-पत्तियो को तन पर बांध कर तन ढकना ) । यह अवशेष राजा भरत का ही हो सकता है। इसकी पुष्टि उन अवशेष से मिल जाते है।

मेसोपोटामिया के अवशेष मे कम्ंडलु लिए यह राजा भरत के वनवास जाते समय की हो सकती

कम्ंडलु हाथ मे लिए संयासी

नमस्कार व आशिर्वाद मुद्रा ————-

मेसोपोटामिया के अवशेष मे एक अवशेष जिसमे एक व्यक्ति हाथ जोड रहाँ है दुसरा उसको आशिर्वाद प्रदान करते हुए प्रदर्शित हो रहे है। हाथ जोड कर नमस्कार करना और बदले मे आशिर्वाद प्रदान करना भारतीय परम्पारा का हिस्सा है। इस लिए इस से यह प्रतित होता है कि मेसोपोटामिया सभ्यता भारतीय समाज का हिस्सा रही होगी। इस तस्वीर मे गुरु और शिष्य प्रतित हो रहे है क्योकि दोनो के सिर पर बाल नही है ऐसा गुरुकुल मे ही हुआ करता था कि गुरु और शिष्य सिर पर बाल नही रखते थे। इस तस्वीर को देख कर लगता है यह चान्कय और चंद्रगुप्त के अक्ष हो सकते है।

एक व्यक्ति हाथ जोड रहाँ है दुसरा आशिर्वाद देते हुए

निष्कर्ष ———–

इस तरह देखा जाए तो मेसोपोटामिया भारत की प्राचीन सभ्यता सिन्धु घाटी की समकालीन सभ्यता रही है। इस लिए इनका आपसी मेल जोल रहाँ होगा दोनो की संस्कृति समान रही होगी या फिर ऐसा भी प्रतित होता है कि भारतीय सभ्यता का फैलाव काफी दुर तक रहाँ होगा। पुरा संसार ही भारत का अभिन्न अंग रहाँ होगा और बाद मे अलग-अलग मत बन गए होंगे या बाहरी आक्रमणो की वजह से भारतीय सभ्यता कट छंट कर सिमट कर छोटी हो गई होगी। ऐसा भी हो की किसी वजह से भारतीय लोग सिमटते चले गए हो वहाँ से निकल गए है। मेसोपोटामिया दजला-फरात नदी के बीच बसी सभ्यता रही है। आजकल उस जगह ईराक देश बसा हुआ है। हो सकता है यह ईराक के लोग ही भारतीय रहे होगे बाहरी आक्रमणो ने इन्हे बदलने पर मजबुर किया हो और यह उनके दबाव मे आकर अपनी पहचान बदल कर उनके समान हो गए हो।

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