मनुष्य शद्दियो से इसी उहा- पोह मे फसा रहाँ कि स्वर्ग अच्छा या मोक्ष नरक किसी को पसंद नही पर पाप करने से डर भी नही। मनुष्य यही सोचता है कि वह जो कर रहाँ बस वही सब सही है। उसके अलावा कुछ सही नही है। वह जो चाहता है बस उसे ही पा सकता है। आज की विडमना यह है कि मनुष्य अपने कर्तव्यो का सही से निर्वहन नही करता। अपने पुरातन ग्रंथो मे महापुरुषो के अनुभवो को पढ कर उनसे सिख लेने मे समय की बरवादी समझते है। देखा जाये तो यही पुरातन-नूतन ग्रंथ आपसी तालमेल नही खाते।
आधुनिक ग्रंथो मे केवल कल्पनावादी भाव रहता है जब्कि पुरातन ग्रंथो मे यथार्थता नजर आती है। अगर सभी पुराने आदर्शो को अपना कर उनका पालन करने लगे तो मनुष्यो के जीवन मे आने वाली दुर्घटनाए ना होती। यू एक छोटा सा जीव आकर पुरी सृष्टि को निगल जाने को आतुर ना होता। कहाँ विशालकाय मानव कहाँ एक परजिवी शूक्ष्म जीव वायरस देखते ही देखते कैसे अपनी विनास लिला शुरु करता है बस कुछ ही महिनो हफ्तो मे पुरे मानव जाति को निगल जाने मे कामयाब हो जाता है। इसका बस यही कारण है कि मनुष्य अपनी राह से भटक गया है वह अपने कर्मो के जाल मे फसा वेबस खडा मूक-बधिर बना सब सहने को विवस हो गया।
इस समय मनुष्य ने उस शूक्ष्म जीव के आगे घूटने टेक कर आत्म समर्पन कर दिया। होना यह चाहिए था कि मनुष्य अपने पुरातन ग्रंथो से अपने लिए पुर्वजो दवारा छोडी वह ज्ञान श्रृंखला को अपनाता जीसे खोजने मे प्राचीन महापुरुषो ने सदियो तक ठण्ड,भुख,प्यास सब सहते हुए भी मानव कल्यान भाव से निरंतर वह तलाशते रहे जिन्से मानव का हित हो सके मगर मानव की बुद्धि ही विकृत हो गई कि उन आदर्शो को छोड कर व्यर्थ की अंधानुकर दौड मे आगे भागते- भागते जीवन समाप्त करने मे ही जुटा रहता है। खेर छोडो इन सब से अब हमे कुछ लेने देना नही हमे हमारी मंजील की तरफ बढना है इस लक्ष्य को ही ध्यान रखना है तो चलिए आज कुछ वह बात करे जिससे हमे अपने जीवन की गाडी को सही दिशा मे ले जाने मे मदद मिल सकती है।
स्वर्ग बढियाँ या मोक्ष बढिया और इन दोनो के अलावा नरक भी है जो किसी को प्रिय नही लगता मगर फिर भी मनुष्य वही सब करता है जिससे वह ना स्वर्ग पाता है ना मोक्ष पाता उसे मिलता केवल नरक ही है। ऐसा क्यो इसे जानने की कोशिश करते है।—— कि कैसे नरक से मुक्ति मिले, स्वर्ग मे स्थान मिले या मोक्ष मिले।
स्वर्ग —– —–
स्वर्ग वह धरती है जहाँ सुन्दर-सुंदर पेड-पौधे है,जहाँ सुन्दर दृश्य है, जहाँ आनन्द गंध हवा निर्मुक्त अविरल बहती है य़ह बरवस अपनी और खिचती है। इन मनोरम दृश्यो मे भँबरे अपना गुंजार करते हुए भिनी सी तान छेडते है। निर्मल-स्वच्छ जल से भरी नदिया सदैव मिठा जल बहाती हुई चलती है। सुन्दर-सुन्दर फूल जिनकी गंध ( खुशबु ) इतनी मोहक होती है कि आत्मा इससे पुलकित सी हो कर गुनगाने लगती है। चारो तरफ देवनार के वृक्ष अपने महक से वातावरण को स्वाशित करते है। मिठे रसिले फलो से वृक्ष सदैव लदे-फदे रहते है। सुन्दर कल-कल करते मधुर झरने बहते रहते है। कामधेनु गाय अमृतमयी दुध की नदिया बहाती है।
इतना सुन्दर मनोरम वातावरण होता है स्वर्ग का कि बस वहाँ से एक पल भी हटने को मन नही करता। सुन्दर चकवा-चकोर आदि पक्षी अपना कलरब करते हुए गुंजार से वातावरण मे आनन्द की लहर भरते है। वहाँ कि सुन्दर बालाए ( अप्सराए ) अपने हाथो मे फल-फूल लिये स्वागत करती नजर आती है। चारो तरफ आनन्द ही आनन्द नजर आता है। वहाँ पहुँच कर मनुष्यो की जन्मो की भुख-प्यास सब खत्म हो जाती है वह तृप्ति प्राप्त करता है। देवांगनाए सुन्दर फूलो-फलो से भरे थाल हाथ मे लिये हुए प्रभु वंदना करती नजर आती है। वह अपनी मधुर आवाज से रागिनी छेडती हुई सुन्दर गीत गुन-गुनाती हुई भगवान व माता की वंदना करती हुई नजर आती है जिसे देख कर मन मंत्रमुग्ध सा हो जाता है।
स्वर्ग मे पहुचते ही जीवात्मा का स्वागत करने के लिए सुनदरी वालाए ( स्वर्ग की अप्सराए ) हाथ मे पुष्प माल लिये आती है और जीवात्मा का स्वागत आरती करती हुई मधुर गीतो की ध्वनि करती हुई उडन खटौले मे बैठा कर जीवात्मा को उसके गंतव्य स्थल यानि उसके लिए तैयार हुए सुन्दर महल मे उसे ले जाती है। वहाँ उसको सुन्दर महल मिलता है। वह अपने महल मे पहुंचता है तब उसे नाना प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजनो को खिलाया जाता है। उसकी बहुत आवभगत होती है क्योकि देवराज इन्द्र ने सभी देवलोक के दास-दासियो देवागंनाओ को यही निर्देष दिया है कि जब भी कोई जीवात्मा अपने पुन्य कर्मो को लेकर स्वर्ग मे आए तो उनका आदर पुर्वक स्वागत किया जाए उसके लिए सुन्दर महल बनवाया जाए।

उसको भढिया पकवान को परोस कर उसकी आत्म तृप्ति की जाए। फिर इस तरह जब तक मनुष्य के पुन्य कर्म सिंचित होते है तब तक उसे स्वर्ग मे रखा जाता है और जब उसके दवारा किये गए सदकर्म खत्म होने वाले होते है तब उस जीवात्मा की विदाई की बैला आती है। उस जीवात्मा को वापस धरती पर जन्म लेने भेज दिया जाता है। उस सूक्ष्म अणु के समान जीवात्मा को बरसात के माध्यम से धरती पर पुनः पटक दिया जाता है वह सूक्ष्म अणु रुपी जीवात्मा जब धरती पर बरसात के कण रुप मे गिरती है तो वह नए पौधो के अंकुरण मे काम आती है और उस बीजांकुर होने से जीवात्मा उस धान मे प्रवेश करता है।
उस धान को मनुष्य खाता है और इस धान की गर्मी से उस मनुष्य मे काम भाव पैदा होता है तब वह स्त्री-पुरुष ( पति-पत्नि ) काम मे प्रवीन हो कर समागम करते है। इस तरह पुरुष के दवारा खाए धान से वह अणु रुपी जीवात्मा पुरुष के शरीर मे विर्य कण बन कर प्रवेश करती है। वह विर्य कण पुरुष से स्त्री के गर्भ मे पहुचते है जहाँ उस अणु रुपी जीवात्मा का अंकुर फुटता है और गर्भ मे नो महिने रहने के बाद वह बालक रुप मे पैदा हो कर मनुष्य शरीर धारण कर लेता है। बस इसी क्रम से जीवन चक्र चलता है मनुष्य पुन्य कर्म करता हुआ स्वर्ग पाता है वहाँ से फिर पुनः धरती पर मनुष्य रुप से जन्म लेकर जीवन भोगता है। ऐसा प्यारा स्वर्ग किस की अभिलाषा ना होगी इसे पाने की। इसकी सुन्दरता से आकृष्ट हो कर ही दैत्य-राक्षस-दानव सदैव देवताओ से दुश्मनी लेते रहते है। वह देवताओ से स्वर्ग छिन कर अपने अधिकार मे करने के लिए देवताओ से युद्ध करते रहते है।
आईए अब नरक की भी कुछ चर्चा कर ली जाए तो बेहतर रहेगाःःः
नरक —–
नरक जिसके नाम लेने मात्र ही मनुष्य कांप जाता है वही नरक कैसा है। नरक मे आत्माओ को जंजीरो से बांध कर यम के दूतो ( यमराज के सेवको ) के दवारा कोडो से पिटा जाता है वहाँ सदैव रुदन-क्रंदन,चिक्खने-चिल्लाने की आवाजे चारो तरफ गुंजती रहती है। वहाँ सदैव अँधकार रहता है। सूर्य की किरणे नरक तक पहुच भी नही पाती। इतनी घोर यातनाए यमलोक मे प्राणी को दी जाती है कि वह चिक्खता चिल्लाता है तडपता हुआ बेहोश हो कर धरती पर गिर जाता है। यमदूत उसे तब तक पिटते रहते है जब तक वह जीव पुरी तरह से बेहोश हो कर गिर ना जाए और जब पुनः उसे होश आता है तभी फिर से उस पर कोडो की मार शुरु हो जाती है। भुखा प्यासा जीव तडपता है।
यमदूतो से रहम की भिख मांगता है मगर उसकी वहाँ कोई सुनवाई नही होती निरंतर भुख प्यास सहना और यातनाए सहना यही उसकी नियति मे लिख जाता है। इतना ही नही जिधर भी नजर दौडाओ बस लहु से सन्नि जीवात्मा मार खाते खाते टुटती सी जाती है। उस समय वह जीव यही सोचता है कि एकबार वह नरक से बाहर आ जाए फिर कभी भी भुल कर कोई पाप अपराध नही करुंगा, मगर दुसरा जन्म पाने के बाद वह अपनी उस दुर्दशा को भुल जाता है, और फिर वही पाप मे रत हो जाता है।
इतना ही नही नरक मे कही तेज तपती भट्टी मे जीवो को जलाया जाता है जिस तरह भडभुंजा धान भुनता है उसी तरह यमदूत जीवात्मा को आग मे उल्टा लटका कर भुनते है वह जीवात्मा रोता तडपता बेहाल हो कर बेहोश हो जाता है। सोचो जेष्ठ महिने की भिष्ण तपती दोपहरी मे एक पल भी बिना छत खडे होने पर हाल बेहाल हो जाता है तो वहाँ नरक मे घोर तपती भट्ठी मे क्या हाल होता होगा। नरक भी सभी के कर्मो के अनुसार अलग-अलग प्रकार से यातनाए पहुचाई जाती है। इतना ही नही जैसा पाप वैसा नरक मिलता है।
नरक भी कई है अलग-अलग नरको मे अलग अलग प्रकार की यातनाए दी जाती है। किसी नरक लोक मे गर्म खोलते तेल मे जीवात्मा को कडाही डाल दिया जाता है वहाँ वह जलता तडपता हाय-हाय करता बेहोश होता है होश आने पर फिर यातनाए शुरु। इस तरह जितने समय तक उसे पाप की सजा के रुप मे नरक मिलता है वह उसे उस नरक मे रह कर भुखे प्यासे वह सजा काटता है। उसे भुख लगती है तो यमदूत उसको मल-मूत्र,रुधिर,विष्ठा व पीव खाने को देते है। बस वही उसका आहार होता है। किसी नरक मे लोहे के खम्भो से बांध कर रखा जाता है। कही लोहे की जलती प्रतिमाओ ( स्त्री-पुरुष की लोह की प्रतिमा ) से बांध कर कोडे बरसाए जाते है। पता नही कैसी- कैसी यातनाए पाता वह जीव उस नरक से मुक्ति चाहता है उसका नरक से समय पुरा होने पर छोड दिया जाता है। अब उसे मृत्यु लोक यानि हमारी धरती पर वापस दुसरे जन्म मे भेजा जाता है।
इस समय वह फिर चौरासी लाख योनियो के चक्कर मे फिर पडता है। सबसे पहले उसे मल,मूत्र,पीव,रुधिर खाने वाला सूक्ष्म जीव का जन्म मिलता है जैसे अमीबा, फंगस, किटाणु,वायरस आदि रुप मे पैदा होता है फिर बहुत पैर वाला होता है जैसे इलियाँ लट्टे,जोंग, कातरा आदि ऐसे करते- करते कई जन्मो बाद वह फिर जहरीले जीव साप, बिच्छु,केंकडा आदि। इन सबके बाद चोपाया जीव बनता है यानि जंगली जानवर,बादमे घरेलु चोपाया भेड,बकरी भैस आदि। इसी तरह उसकी एक-एक योनि कटती जाती है वह अगली योनि मे पहुचता जाता है आखिर मे वह चौरासी लाख योनि मे जन्म लेते-लेते मानव शरीर प्राप्त करता है। अब उसकी बुद्धि विवेक उसका साथ दे तो वह इन चौरासी लाख के चक्कर से मुक्त हो सकता है नही तो फिर से उसे चौरासी लाख के चक्कर मे पडना पडता है। ये हुई नरक की थोडी सी बात आईए अब चले मोक्ष की तरफ
मोक्ष ———
आप सब जानते ही होंगे की सालो से ऋषि-मुनि मोक्ष प्राप्ति के लिए घर बार सब छोड कर सघण वनो मे एकांत रह कर घोर तपस्या करते रहे है, कि उन्हे इन चौरासी लाख के चक्कर मे दोबारा ना आना पडे। बस यह जीवन भोग कर अंतिम कडी मे पहुच जाए,जिसके बाद ना जन्म लेना किसी भी योनि मे ना ही मरने का कष्ट सहना पडेगा। वह घोर तपस्या करके मोक्ष पाते है और जन्म-मरण के चक्कर से मुक्ति पा लेते है। क्या मुक्ति मिल जाना बहुत अच्छी स्थिति मे पहुंच जाना है। चलो इस पर भी विचार करे।
केवल मुक्ति पाना मतलब आवा-गमण की समाप्ति हो गई। फिर इससे तृसनाए मिटी या नही यह तो सोचा भी नही। मोक्ष क्या है इसे समझने के लिए एक साधारण सा उदहारण जो हर किसी को आसानी से समझ आ जाए। मान लो आपके घर मे सामान भरा पडा है। यह सामान उसकी जन्म मरन की स्थिति है कि सामान बाजार मे निर्मित होकर बिकने आया आपने उसे खरीदा यह उस सामान का नव जीवन हुआ और इसी तरह कहो कि संतान पैदा होना एकसी बात हुई। जब जिस सामान की जरुरत होती है उसे हम बार-बार काम मे लेते है और जिसकी जरुरत रोज नही होती उसे हम उठा कर कही सुरक्षित जगह पर रख देते है कही खराब ना हो जाए।
यह सुरक्षित जगह पर रखना सामान के लिए स्वर्ग है। बार-बार काम मे लेना काम मे लाने पर उसका कभी गिरना पडना टुटना यह सामान के लिए नरक हुआ। जब सामान पुरी तरह से हमारे किसी काम का ना हो तो उसे उठा कर घर से बाहर फैंक दिया जाता है। किसी कबाडी को बेच कर या डस्टबीन मे डाल कर उससे मुक्ति पा ली जाती है। फिर वह सामान जो कबाडी के पास गया उसकी रिसाईकलिंग हुई उसे नये सांचे मे ढाल कर नया रुप दे कर बाजार मे बेचने को उतारा गया। जिसको वह अच्छा लगा या किसी को उसकी जरुरत हुई उसने उसे खरीद लिया। यह हुआ आपके दवारा फैंके उस सामान का दुसरा जन्म बस इस तरह मनुष्य मरता है फिर जन्म लेता है।
अब उस सामान पर नजर डाले कि जिसकी रिसाईकलिंग नही हो सकती उसे आपने डस्टबीन मे फैंका कचरा बैन आपके घर से उसे ले गई और शहर से आबादी से दूर कही विराने उजाड जगह पर उसे गलने सडने के लिए फैंक दिया गया। ठीक इसी तरह मोक्ष है जहाँ दुबारा जन्म-मरन का चक्कर तो नही है मगर आपको उस बेकार कचरे की भांति सृष्टि मे कही अँधकार से भरे लोक मे छोड दिया जाता है। जहाँ आपको ना कोई सम्भालने आता है ना ही मिलने बस आप अकेले इधर-उधर भटकते रहे कोई नही आपके अलावा वहाँ।
निष्कर्ष ——–
अब आप सब भलि-भांति समझ ही गए होंगे कि ना स्वर्ग उचित, ना नरक ठीक और ना ही मोक्ष मे भलाई है। इस तरह विचार मंथन करके हम ने यहा समझा कि जन्म-मरन और मोक्ष सब से कही अधिक ठीक भगवान की भक्ति करके उनके चरणो मे स्थान पाए। सदैव नेक राह पर चलते हुए दुसरो को नुकसान पहुंचाने की नियति का त्याग कर, केवल अपने कर्तव्य कर्मो को करते हुए भगवान का चित मे चिंतन करते रहे जिससे हमे भगवान का सामिप्य मिल सके।
दुबारा जन्म ले भी तो भगवान के भगत ही बन कर पैदा होगे जिसका लाभ यह है, कि हम जहाँ भी जब भी जन्म लेगे पाप, पुन्य, मोक्ष किसी की चाह ना रखते हुए अपने सुन्दर जीवन को सही ठंग से जियेंगे और जब भी हम मरेंगे तो बेमौत नही मरेगे और ना ही कही बेकार जगह योनि मे जन्म लेगे। भगवान के चिन्तन मे लिन रहते हुई नेक कर्म करते रहने से हमे दुबारा जन्म लेना भी पडा तो भगवान के भगतो के घर मे ही वह भी मानव रुप से जन्म मिलेगा। हमे चौरासी लाख योनियो मे नही भटकना पडेगा मनुष्य वह भी सदगुणी परिवार मे जन्म ले कर सुन्दर जीवन यापन कर सकते है।
अगर दुबारा जन्म ना लेना पडा तो और भी हितकर होगा जब हम सारी उमर भगवान का चिंतन करते हुए और नेक कर्म करते हुए जीवन जियेगे तो जीवन जिने का आनन्द तो मिलेगा ही संग मे मरने के बाद भगवान के श्री चरणो मे स्थान मिल सकेगा और फिर हमे सदैव भगवान के समीप रहने का अवसर मिल जाएगा। इस तरह पाप, पुन्य मोक्ष सब की चिंता छोड कर बस यही करे कि जो यह जीवन भगवान ने हमे दिया है इसे सुन्दर तरीके से जिये और मरने के बाद क्या होगा इसकी चिंता भगवान पर छोड दे और नेक राह पर चलते हुए भगवान का चिंतन भक्ति मन मे रखते हुए अपने कर्तव्यो का सही ठंग से पालन करते रहे और हर पल का आनन्द लेते रहे।
जय श्री राम जी की भगवान के प्यारे बंदो ( मनुष्यो ) —–
वंदेऊ प्रभु परम पदमु परागा । सुरुचि सुबास सरस अनुरागा ।।
हम भगवान के श्री चरणो की वंदना करते है। इन्ही श्री चरणो मे हमारा अनुराग सदैव बना रहे बस यही कामना रखते है। इन्ही श्री चरणो मे मन रमा रहे।