ब्रहमांड की रचना कैसे हुई यह विचार सब के मन मे आता है कि किसने,कब और कैसे हमारे इस ब्रहमांड की रचना करी। सूर्य,चंद्र,पृथ्वी, सभी ग्रह नक्षत्र, तारे मंडल, अंतरिक्ष मे अन्य ग्रह धरती ( पृथ्वी ) हमारा ब्रहमांड है। इसके अंतर्गत सभी गैलेक्सियाँ ब्रहमांड का हिस्सा है। भारतीय मतानुसार इस सारे ब्रहमांड की रचना लाखो-करोडो साल पहले हुई थी। ब्रहमांड की रचना के पहले केवल नारायण ही शेष थे।
नारायण का तात्पर्य नार + अयण = नारायण यानि नार का अर्थ- जल-पानी, अयण का अर्थ निवास करना इस लिए नारायण ही शेष रहाँ क्योकि नारायण का मतलब जल मे निवास करने वाला तब सब जगह केवल जल-पानी ही पानी था। इस तथ्य की प्रासंगिता देखते हुए यह साबित होता है कि जब ब्रहमांड नही था तब भी जल शेष था और जल मे रहने वाला कोई जीवन था। यह तार्किकता सिद्ध हो जाती है कि इस ब्रहमाड-सृष्टि की रचना जरुर किसी ऐसी जीवन प्रणाली से सृस्टि की शुरुआत होई।
जब चारो तरफ जल था यानि धरती जलमंग्न थी तब बाहरी रुप से किसी के जीवन की कल्पाना नही हो सकती बस यह तार्किक प्रसंग नजर आता है कि नारायण यानि जल मे निवास करने वाली यानि जब सब तरफ अथाह समुंद्र ही थातो जीवन की सम्भावना भी पानी मे ही हो सकती है। इस तरह यह एकदम सही तथ्य निकल कर सामने आता है कि नारायण ही इस ब्रहमांड के रचियेता है। यह कहना मुस्किल है कि यह नारायण किस स्वरुप मे है। मगर भारतीय मान्यतानुसार नारायण भगवान श्री हरि ही है। यहाँ नारायण एक नर है। चलो यह तो पता चला कि सृस्टि के सूत्रधार नारायण ही है। तार्किक तथ्य है।

भारतीय शास्त्रानुसार सृष्टि की रचना नारायण ने की तो नारायण ने कैसे इस सृष्टि की शुरुआत की वह जानते है। नारायण वह सुपर शक्ति है जो उत्पन्न करने पैदा करने की क्षमता रखते है। ब्रहमांड की शुरुआत काल मे स्त्री-पुरुष की शक्ति एक ही बीज मे निहित रहती है। उस समय स्त्री-पुरुष के जोडे के बीना ही प्रकृति से उत्पति होती थी। अब आप सोचेंगे कि बीना स्त्री-पुरुष के जोडे के कोई कैसे पैदा हो सकता है। किसी की उत्पति कैसे सम्भव हो सकता है। चलिये इस तथ्य को भी सत्यता की कसौटी पर कसे।
जब ब्रहमांड की रचना हुई तब एक ही जगह उत्पति शक्ति निहित रहती थी। इसके लिए स्त्री-पुरुष के समागम की जरुरत नही होती थी सब एक ही बीज के माध्यम स्यवम पैदा हो जाते थे। इसके लिए एक उदाहरण देखते है। आपने विज्ञान तो पढा ही होगा कि कुछ बीज दिवीबीज पत्री होते है। इन्ही दिवीबीज-पत्री बीजो से जीवन की उत्पति के लिए इन बीज पत्र को समागम करना पडता है। इस तरह के जीवन वाले दिवीबीज पत्री मे मानव भी आते है। जिस तरह दिवीबीज-पत्री जीवन प्राणी है ठीक कुछ ऐसे भी बीज-पत्र भी है जो एक-बीजपत्री होते है, यानि एक ही बीज मे ही नए जीवन की उत्पति की शक्ति निहित होती है।
इसका एक अच्छा सा उदाहरण है चना हाँ जी चने के एक बीज मे ही नर व मादा ( स्त्री-पुरुष ) की क्षमता रहती है और मिट्टी, पानी, हवा,प्रकाश मिलते ही इन बीजो मे जीवन पैदा करने की क्षमता होती है इस तरह एक चने के बीज मे ही पुरी शक्ति होती है कि वह नया जीवन चक्र उत्पन कर सके। इस तथ्य को समझते हुए यह समझ गए कि नारायण वह एकबीज-पत्री प्राणी है जिन्होने इस ब्रहमांड की रचना की शुरुआत कर दी। भारतीय मतानुसार नारायण मे ही नर और नारी यानि नारायण और लक्ष्मी सुपर पावर निहित है।

नारायण के हद्यस्थल पर विराजती यह लक्ष्मी एकरुप है उन से भिन्न नही। इस लिए हम समझ सकते है कि ब्रहमांड यानि सृष्टि की रचना नारायण ने ही की है। ये हुआ नारायण से सृष्टि उत्पति का प्रारम्भ नारायण एक-पत्री बीजपत्र इस एक-पत्री बीज से अंगुर निकला वह बना कमल का फूल सो कमल हुआ नारायण की नई जीवन प्रक्रिया। इस विशाल बीज के कमल से ब्रहमा की उत्पति हुई। ब्रहमा यानि यह हमारा सारा ब्रहमांड।ब्रहमा ने ही इस ब्रहमांड मे जीवन उत्पन्न किया अब कमल निकला नारायण के नाभि से सो नाभि कमल पर ब्रहमा विराजमान है। देखा जाए तो ब्रहमा कमल पर विराजमान है।
कमल पर पुंकेशर विराजते है यानि कमल के पुष्प पर ही पुंकेशर शक्ति निहित होती है। विज्ञान कहता है कि बीज होता है उसे हवा,पानी,मिट्टी,मिले तो वह बीज नए बीज को उत्पन्न करने की शक्ति रखता है। यही तो ब्रहमा है जो नए जीवन चक्र को पैदा करे। इसी ब्रहमा ने ही तो ब्रहमांड की रचना की। ब्रहम + अंड = ब्रहमांड यानि ब्रहम विस्तृत अंडा यानि जीवन को उत्पन्न करने की वह सामर्थ शक्ति जो एक से अनैक जीवन पैदा कर सकती है। यही ब्रहमा है जो कि ब्रहमांड रचियेता है।
आईए इसे सरल भाषा मे समझे—- सृष्टि जब सून्य थी तब केवल पानी ही सब तरफ था यानि चारो तरफ पानी फैला हुआ था जिसे एक विशालकाय समुंद्र कह सकते है। इस विशालकाय समुंद्र मे एक विशाल एक-पत्री बीज जो खुद ही पैदा करने की क्षमता रखता है। इस बीज को हवा,पानी मिला बीजांकुर हुआ इस बीज से कमल उत्पन्न हुआ कमल की पुंकेशर ने बहुत से अन्य कमल उत्पन्न किये। बस यही से नए जीवन चक्र की लडी निकलती चली गई धिरे-धिरे ब्रहमांड फैलने लगा। नए जीवो की भी उत्पति होने लगी इस तरह सृष्ठि रचना हुई यही सार्थकता सिद्ध होती है अगर विज्ञान के दृष्टिकोण से देखे तो।

विशेष—-विज्ञान की मान्यता है कि जो तथ्य सत्यता की कसौटी पर खरा उतरे वही सास्वत है वही सच है। इस लिए ब्रहमांड रचना की कसौटी पर खरा उतरता है। हमे उन्ही तथ्यो पर विश्वास करना चाहिए जो तार्किकता की कसौटी पर खरा उतरे। किसी के कहे सुने बातो पर पुरी तरह यकिन नही करना चाहिए जब तक उस बात मे सत्यता नजर ना आए तब तक वह खरी नही होती और जो बात सत्यता पर खरी उतरे वही सत्य होती है। हमे अंधविश्वास से बचना चाहिए और सत्यता पर विश्वास रखना चाहिए तभी हम सफल हो सकते है।