हम अपने जीवन को बिमारियो से बचाने के लिए बहुत से उपाय करते है। इसके साथ हमारे शरीर मे भी विशेष पावर होती है जो हमे कई बिमारियो से बचाने मे सहायक होती है। इस तरह हम बहुत से खाने पिने के माध्यम से भी शरीर को बल प्रदान करते है। प्राचीन भारत मे बहुत सी ऐसी आदते हुआ करती थी जो जीवन को सुरक्षा प्रदान करती थी।
प्राचीन भारत की शुभ आदते —–
प्राचीन भारत मे धर्म के नाम पर बहुत सी अच्छी आदते अपनाई जाती थी जो सुरक्षा प्रदान करती थी।

( 1 ) हवन करना ——
प्राचीन भारतीय अपने प्रत्येक कार्य को तभी शुरु करते थे जब वह हवन करते थे। यहाँ तक की जन्मोत्सव ( वर्थ-डे ) मनाने के लिए भी हवन किया जाता रहाँ है। हवन एक बहुत शुभता देने वाली प्रक्रिया है। हवन मे अग्नि प्रजवलित की जाती है। अग्नि मे एक अदभुत क्षमता होती है- वह है कि वातावरण मे जो हानिकारक तत्व होते है वह जल जाते है। इस तरह वातावरण शुद्ध हो जाता है। इसके साथ हवन मे बहुत सी जडी-बुटिया का प्रयोग करते थे। ये वह जडी-बुटिया होती है, जो वातावरण को शुद्ध करके शुद्ध वायु को बढाती है। इन जडी-बुटियो से वातावरण मे फैली नेगटिविटी ( बदबु, किटाणु ) आदि को समाप्त होती है। जब वातावरण से नेगेटिविटी समाप्त हो जाती है, तो जीवन सुरक्षित होता है। वातावरण मे शुद्ध आक्सिजन मिलती है। इसी तरह हवन से एक और लाभ होता है कि वातावरण शुद्ध होने से पैड पोधे पनपते है और जलवायु की समस्याए समाप्त होती है।
(2 ) मंदिर जाना ——-
प्राचीन भारत मे लोगो को मंदिर जाने की शुभ आदत होती थी। मंदिर शहर के बाहर घर से दूर होते थे और सुबह खाली पेट घर से दूर पैदल चल कर आना-जाना लाभ देता था। इस तरह शरीर को आधि-ब्याधि से बचाव होता था। शुगर,बी,पी, पेट की खराबी, मेटाबोलिज्म की समस्या, आलस्य आदि बहुत सी समस्याए दूर हो जाती थी।
( 3 ) तुलसी का चरणा मृत व चंदन का लेप ———-ृ
मंदिर मे तुलसी का चरणामृत दिया जाता था लोग सुबह खाली पेट स्नान आदि नित्यक्रियाओ से निवृत हो कर मंदिर दर्शन करने जाते थे। मंदिर मे पंडित जी दर्शन करने आए दर्शनार्थी को माथे पर चंदन की तिलक करते थे और तुलसी मिश्रित चरणामृत देते थे। माथे पर लगने वाला चंदन का तिलक माथे को शांत रखता है। बेकार के मान्सिक तनाम से बचाता है। चंदन माथे पर लगाने से शरीर की गर्मी को मेन्टेन रखने मे मदद मिलती है। तुलसी के चरणामृत से शरीर मे बल मिलता है। तुलसी शरीर मे रोगप्रतिरोधी क्षमता बढाती है।इसका रोज खाली पेट सेवन करना शरीर को पुष्ट करने मे सहायक रहता था।
(4 ) भोजन के बाद पान खाना ———
खाना ( भोजन ) खाने के बाद प्राचीन भारत मे पान का सेवन किया जाता था। एक स्वच्छ आदत के अंतर्गत आता है। पान खाने से पाचन सुधरता है। भोजन को हजम करने मे सहायक होता है। पान खाने से फैफडो मे जमा मल ( बलगम ) समाप्त होता है। इस तरह भोजन करने के बाद पान खाना एक शुभ आदत थी। पान मे बहुत सी वस्तुए मिलाई जाती है जिनका अपना महत्व है शरीर को तंदुरुस्त रखने मे। पान मे डलने वाले मसाले सौंफ, मुलठी, कत्था, गुलकंद, सुपारी, इलाईची ये सभी मसाले मे शरीर को तंदुरुस्त करने मे सहायक होते है।