राहु केतु एक विचार धारा

आप सभी ने यह तो सुन ही रखा है कि नव ग्रह मे राहु और केतु को भी सामिल किया गया है। नव ग्रह–सूर्य,चंद्र,बुद्ध,बृस्पति,शुक्र, शनि,राहु,केतु यह सब नव ग्रह है। जब राहु सूर्य के संग हो तो सूर्य को ग्रहण लगाता है ठीक वैसे ही केतु चंद्र के संग हो तो चंद्र ग्रहण होता है।

यह राहु केतु है क्या पहले यह जाने— राहु और केतु एक छाया ग्रह है इनकी अपना कोई ग्रह घरती (लोक ) नही है। इनकी पहुंच सूर्य -चंद्र लोक तक है। राहु और केतु को कुछ ज्योतिष सांप मानते है। जिसमे सांप का सिर राहु और पुंछ केतु है। आईए जाने की राहुँ केतु के सिर धड अलग क्यो है।

राहुँ-केतु की कहानी——

एकबार देवताओ के अमृत पिलाने के लिए भगवान ब्रहमा ने देवताओ को समुंद्र मंथन करके उसमे से अमृत निकालने की आज्ञा दी अब समुंद्र से अमृत निकालना अकेले देवताओ के वश मे नही था तो ब्रहमा जी ने देवताओ से युक्तिसंगत तरीके से काम करने यानि अपने दुश्मनो से मदद लेने को कहाँ देवताओ ने अपने परम शत्रु राक्षसो देत्यो को तत्कालिक मित्रता बनाने की योजना बनाई और देत्यो राक्षसो को देवताओ ने मित्र बना लिया मतलब सिद्धि के लिए फिर देवताओ और देत्यो-राक्षसो ने मिल कर मंदराचल पर्वत की मधानी बनाकर और बासुकी नाग को रस्सी बना कर मंदराचल पर लपेट उससे समुंद्र को मथा उसमे से पहले हला हल नामक बहुत खतरनाक विष निकला जिसे शिव ने अपने कण्ठ मे धारण किया तभी से वह निलकंठ महादेव कहलाए। उच्चेश्वा अश्व,ऐरावत हाथी,पारिजात वृक्ष, लक्ष्मी, तुलसी, कुबेर, धनवंत्री आदि और बहु मूल्य मणी रत्न आदी संग बारुणी मदिरा जिसे राक्षसो और देत्यो को दिया गया। सबके बाद मे अमृत कलश निकला जिसे देवताओ को ही पिलाना था मगर राक्षस-देत्य भी पिना चाहते थे मगर ब्रहमा जी को चिंता हुई अगर देत्यो-राक्षसो ने अमृत पिया तो वह सृष्टि का विनाश करके इस लिए भगवान विष्णु से मदद मांगी विष्णु भगवान ने मोहनी रुप की नारी बन कर एक पक्ति मे देवताओ को दुसरी पक्ति मे देत्यो-राक्षसो को बिठा कर अमृत वितरण शुरु किया अपनी भावभंगिमा से राक्षसो-देत्यो को वंश मे कर लिया और देवताओ के पास जा कर सारा अमृत बांट दिया तो एक राक्षस भगत प्रहलाद की बहन के पुत्र स्वर्भानु ने देख लिया स्वर्भानु बहुत बुद्धिमान था इस लिए वह देवताओ का भेष बनाकर देवताओ की पंक्ति मे बैठ गया भगवान ने उसे भी अमृत परोस दिया जैसे ही स्वर्भानु ने अमृत पिया तभी सूर्य और चंद्र की नजर स्वर्भानु पर पडी और उन्होने भगवान विष्णु को बता दिया तभी तुरंत भगवान विष्णु जो मोहनी रुप मे थे अपने सुदर्श चक्र से स्वर्भानु का सिर धड से अलग कर दिया पर वह मरा नही क्योकि अमृत उसके शरीर मे रच बस गया था बस तभी से स्वर्भानु बिना सिर धड दो हिस्सो मे बिभगत हो गया और राहु केतु बन गया राहु का मतलब सिर और केतु का मतलब धड होता है। स्वर्भानु का सिर वाला भाग राहु कहलाया और धड वाला भाग केतु कहलाया। सूर्य और चंद्र ने उसकी शिकायत विष्णु भगवान से कि थी इस लिए वह सूर्य और चंद्र का परम शत्रु बन गया और जब भी आमने सामने आते है तभी एक दुसरे से युद्ध करते है।

केतु के प्रभाव—–

केतु का रंग मटमैला यानि सिमेंट के समान स्लेटी है,धुए जैसा रंग, केतु का कद लम्बा होता है मुँह पर दाग खड्डे लिए मुँह मे जर्दा,तम्बाकु आदि चवाता हुआ। केतु से प्रभावी जातक लम्बे कद का मुँह पर औरी या चेचक के दाग मुँह पर खड्डे, और ऐसा जातक तम्बाकु,जर्दा गुटका आदि का सेवन करने वाला होता है। जादु टोने का जानकार या जादु टोने मे विश्वाश करने वाला होता है अंधविश्वाशी होता है। कुत्तो को पालने का शौकिन होता है। सांप बिच्छु जैसे जीव जन्तुओ से लगाव रखता है।

खराब केतु की पहचान—–

केतु अगर किसी को खराब प्रभाव दे रहाँ हो तो उसके घर मे भूत-प्रेत की बाधा यानि भूत प्रेत का साया रहता है। घर मे दुर्गंध,सिलन बेवजह घर की दिवारो मे दरार आना आदि लक्षण है। जिसको केतु परेशान करता है उसे बहु मूत्रता ( पेशाब अधिक आना या कम आना ) मूत्र सम्बंधी परेशानियाँ देना। औरी चेचक माता निकाला आदि निकलना, त्वचा पर फोडे फुंसिया होना, दाग धब्बे चकते खुजली दाद आदि परेशानिया होना।

केतु का निवास—जहाँ बिना छत का स्थल हो यानि छत लगाने का प्रयास करे मगर छत अपने आप गिर जाए, जहाँ भूत प्रेत,पितर, स्वतः बने देवी-देवता जैसे कोई ( कोई पति संग चिता मे बैठ हुई सति) सतिमाता हो, जैसे स्वतः बनी माता आदि केतु की निशानी है। केतु का प्रतिक चिंह ध्वजा ( झण्डा ) है। सांप बिच्छु आदि केतु की पहचान। केतु छुरी-चाकु की धार है। चोरी -चकारी, गुंडागर्दी , आतंक फैलाना , नशे-पते करना अफिम पोस्त, तम्बाकु,जर्दा सिगरेट बीडी आदि का नशा करना केतु की पहचान। ऐसा केतु का बल मौजुद रहता है।

राहु————–

राहु केतु का दुसरा शिरा होता है। राहुँ अँधकार है। राहु बुद्धि का स्थान है जहाँ होशियारी और चालाकी रहती है वह राहु है। राहु प्रभावी जातक धुर्त होता है छल कपट करने मे माया रचने मे पारंगत होता है धोखेबाज दुसरो को नुकसान पहुचाने मे होशियार होता है अपनी बातो मे ऐसी माया रचता है कि सामने वाला इनके वश मे हो जाता है जैसे ये चाहते वैसा ही करता या मानता है। छल कपट कर के दुसरो को लडाने भडकाने मे माहिर, लम्बा चौडा कद काठ यानि छाती चौडी व मोटी मांशल होती है शरीर पर बहुत अधिक बाल, रंग काला या पक्का होता है। भारी भरकम डील डोल चलते ऐसा लगता घरती को हिला देंगे।

राहु प्रभाव धोखेबाज,षडयंत्र रचने वाला, जासूस, आतंकफैलाने मे माहिर, छल कपट करने वाला धुर्त, अपनी मायाजाल मे फांसने वाला, नास्तिक यानि धर्म करम करता नही अगर करता है तो वह केवल ढोंग मात्र होता है मन मे धर्म के प्रति लगाव नही होता दुसरो को छलने की नियति से धार्मिक होने का दम्भ भरता है। जहरिले पदार्थ वस्तुओ को बेचने वाला।

राहु और केतु से सभी ग्रह कमजोर या खराब हो दाए तो ऐसी जातिका को लोग धोखे से अपने मायाजाल मे फसा लेते है और वह अपना डीवन वर्बाद कर लेती है। राहु केतु के प्रभाव मे आने वाले नशे के आदी हो जाते है। राहु केतु के प्रभाव मे आकर लोग गलत इंसान से विवाह बंधन मे बंध जाते है और जीवन भर पछताते है। राहु केतु की चपेट मे आने वाले व्यक्ति अगर विवाहित हो तो लोगो दवारा छल कपट मे पड कर अपना वैवाहिक जीवन नष्ट कर लेता है दुसरे लोगो के चक्कर मे फस कर अपना घर परिवार धन दौलत सब से हाथ धो बैठता है। तलाक करवाने मे राहु केतु की अहम भूमिका रहती है जब जन्म पत्रिका के सप्तम मे राहु केतु हो या इनको दृष्टि हो, सप्तमपति पर पाप प्रभाव डाल रहे हो और सप्तमपति इस हाल मे कमजोर स्थिति मे हो और किसी शुभ ग्रह की दृष्टि सप्तम स्थान या सप्तमेश पर नही प़डती हो तो यह राहु केतु तलाक करवा देता है ग्रह गोचर स्थिति मे भी अगर ऐसा हो तो उस समय खास ध्यान रखने की जरुरत होती है। तब तो तलाक जैसी समस्या से बचाव हो जाती है। छोटे बच्चे 5-6 साल के तक के गुम हो जाए घर से चले जाए तो राहु केतु का ही हाथ होता है। छोटे-छोटे बच्चो के हाथ पैर काट कर भिख मंगवाना भी राहु केतु का हाथ होता है जब शुभ ग्रह राहु केतु से रक्षा करने मे सम्र्थ नही हो तो। ऐसा होने पर बच्चो की खोज के संग माता पिता को हनुमान जी की शरण मे जाना चाहिए

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