अंतर्जातिय विवाह क्यो और इसका निवारण

आजकल यह सब बहुत देखने सुनने मे आता है कि लोग अपनी जाति से भिन्न जाति या भिन्न देश या भिन्न धर्म मे विवाह कर लेते है। ऐसा क्यो होता है इसके लिए कौन से ग्रह जीमेदार होते है और इस तरह के अंतर्जातिय,अन्य धर्म मे विवाह को रोकने का प्रयास कर सके।

अगर किसी जातक-जातिका की जन्म-पत्रिका कुंडली मे अंतर्जातिय विवाह अन्य समुदाय मे विवाह कब होने की समभावना होती है।आईए जानने का प्रयास करते है।

जब किसी की जन्म पत्रिका ( कंडली ) मे पाप ग्रह अपनी बलवान स्थिति मे है और वे लग्न मे या सप्तम स्थान पर विराजमान हो जाए तो अंतर्जातिय विवाह होने की सम्भावना बन जाती है अगर इन पाप ग्रहो की राशि कुंडली के प्रथम या सप्तम भाव मे हो तब भी इस तरह के योग बनते है। पाप ग्रह सूर्य इससे अधिक पाप ग्रह मंगल और मंगल से अधिक पाप ग्रह शनि शनि से अधिक पाप ग्रह राहु-केतु होते है। इस तरह सूर्य,मंगल, शनि, राहु,केतु का सम्बंध लग्न के प्रथम भाव या सप्त भाव से हो जाये या इन मे से कोई एक या अधिक पाप ग्रह लग्न कुंडली के प्रथम भाव या सप्तम भाव मे बैठ जाये और इन पाप ग्रहो पर किसी शुभ ग्रह का सम्बंध ना हो या शुभ ग्रह की दृष्टि ना हो और विवाह सुख के कारक सप्तमेश की अशुभ स्थिति हो जाये विवाह के कारक ग्रह बृहस्पति-शुक्र की सप्तम मे युति या दृष्टि ना हो तो इस तरह अंतर्जातिय विवाह की स्थिति बन जाती है।

अगर इस तरह से पाप प्रभाव मे सप्तम स्थान आ जाये तो उसके लिए सप्तमेश यानि सप्त ( कुंडली के सातवे भाव ) के मालिक को शुभ करना चाहिए और लग्न-सप्तम मे बैठे पाप ग्रहो को सुधारना यानि मंत्र जप,तप के माध्यम से उसे शांत कर लेना चाहिए इस तरह के उपाय करके 70-80 प्रतिशत इस तरह से बन रहे अंर्जातिय विवाह योग को दुर किया जा सकता है । सप्तम या लग्न मे बैठे पाप ग्रहो सूर्य, मंगल, शनि,राहु-केतु इनमे से जो भी ग्रह सप्त मे या लग्न मे बैठे हो या सप्तम पर अपनी पूर्ण दृष्टि डालते हो। इस तरह जीस भी ग्रह को सप्तम या सप्तमेश पर पाप प्रभाव मे देखे उसका उपाय का सबसे सरल उपाय मंत्र,तंत्र,यन्त्र का सहारा ले और व्रत उपवास की पद्धति अपनाये नही तो आप उस ग्रह से सम्बंधित वस्तुओ का दान दे कर भी सुधार सकते है। मंत्र,तंत्र से बहुत जल्दी और पुरा लाभ मिल जाता है हा दान कुछ हद तक मदद करता है उस ग्रह को सुधारने मे क्योकि दान अगर दे तो उसके लिए योग्य पात्र ( व्यक्ति ) का होना जरुरी है अन्यथा दिया दान व्यर्थ रहता है। दान देने के लिए बहुत कुछ देखना पडता है जैसे जीसे हम दान दे रहे है वह कोई तरह का नशा ना करता हो वह अपने धर्म की मर्यादा मे रहता हो। उसका चाल चलन सही हो, वह नेक राह पर चलता हो तन,मन,धन किसी भी तरह से पाप ना करता हो। इस लिए बहुत बार लोग दान देने के बाद भी उस ग्रह को शांत नही कर पाते क्योकि उन्हे दान के पात्र व्यक्ति की पहचान नही होती। दान कब देना है किसे देना है इसके लिए सब देखना होता है। हाँ दान किसी धर्म स्थान पर जा कर चुप-चाप रख आने से उसका आंशिक लाभ अवश्य मिल जाता है। दान जीस ग्रह से सम्बंधित दे उससे सम्बंधित दिन वार को ही दे।

सबसे सरल उपाय जो कोई भी कर सकता है वह नव-ग्रह यंत्र स्थापित कर ले जागृत करके ( मंत्रो का जाप करके जागृत किया जाता है ) और फिर रोज एक माला नव ग्रह मंत्र का जाप करले या नव ग्रह चालिसा का पाठ कर ले।

अर्तजातिय विवाह से होने वाली हानि—–

माना जाता है कि अगर जीस परिवार मे कोई अर्जातिय विवाह करता है तो उस घर मे देवता कभी नही आते। उस घर के पीतर कभी तर्पण,श्राद ग्रहण नही करते उनके पूर्वज उन्हे शुभ आशिष देना बंद कर देते है। अर्जातिय विवाह से संताने वर्ण शंकर पैदा होती है। जो समाज के लिए हानि कारक होती है।

गीता मे अर्जुन का कृष्ण से संवाद————–

हे माधव जब कोई अपने भाई बांधवो पर हथियार उठाता है यानि अपने ही कुल को नष्ट करता है तो इससे उस कुल की स्त्रिया चरित्रहीन हो जाति है। उस कुल मे अंर्जातिय विवाह होने लगते है और जब अंर्जातिय विवाह होते है तो वर्ण शंकर संताने पैदा होती है। जब वर्ण शंकर संतान पैदा होती है तो उस कुल के पीतर अतृप्त रहते है।

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