पाच पाडवो को आप सभी जानते ही है वेद-ब्यास जी द्वारा रचित महान ग्रन्थ महाभारत के महानायक थे वे। क्या आप द्रोपदी के बारे मे विस्त्रृत जानकारी रखते है। हा एक किस्सा द्रोपदी का सबने सुन रखा है वो है द्रोपदी का चीर हरण पर द्रोपदी जैसी महानायिका कितनी महान थी कितने उच्च विचार रखती थी वो इसके बारे मे सब नही जानते आजकल जो माहौल्ल बना हुआ है उसे देखते हुए द्रोपदी के उस महान विचार बार-बार मन मस्तिष्क पर कोंधते रहते है तो सोचा आप सबको भी उस महान नारी की महानता की झलक दिखाई जाए। इसके लिए महाभारत युद्ध काल का एक किस्सा आप सबके सामने रख रही हुँ। जीसे पढ कर आप उस महान विचार धारा की धनी द्रोपदी को आपके रुवरु कर सकु।

यह घटना महाभारत काल मे हुए भिषण युद्ध के समय की है।—– आज महाभारत युद्ध का वह दिन है जब पांडवो के शिविर मे हा-हा कार मचा हुआ है। पांडवो के शिविर से भयानक करुण क्रंद की आवाज चारो तरफ फैली हुई है। इसमे सबसे अधिक करुण दशा द्रोपदी की हुई जा रही है क्योकि द्रोपदी सुबह की नित्य कर्म धर्म करके अपने पांचो लाडलो को रोज की भांति नींद से जगा कर कर युद्ध मे प्रस्थान करने को तैयार करवाने के लिए जैसे ही वह अपने जीगर के टुकडो के शिविर भवन मे प्रवेश करती है तो एकाएक महान चितकार करती हुई उस शिविर भवन जहाँ उसके लाल रह रहे थे प्रवेश द्वार पर ही बेहोश होकर गीर पडती है।
द्रोपदी की उस करुण क्रंदन चितकार अर्जुन के कानो मे पडती है अर्जुन युद्ध मे जाने के लिए स्नान पूजन आदि करके युद्ध स्थली पर जाने के लिए तैयार हो ही रहे थे, कि एकाएक द्रोपदी की चितकार उसको अंदर ही अंदर तक हिला कर रख देती है, और वह भाग कर उस और दौडता है जहाँ से द्रोपदी की चितकार उसके कानो मे पडती है। वह जब उस स्थल पर पहुचता है तो वह वहाँ द्रोपदी को बेहोश पाता है और जैसे ही उसकी नजर भवन के भीतर जाती है तो वह भी अश्रु भरी नजरो से नीचे लुढक जाता है पर हिम्मत करके वह अपने सारथी कृष्ण को पुकारता है-हे मधुसुदन, हे गोविन्द,हे प्राणाधार बस इतना ही बोल पाता है कि उसकी वाणी भी लडखडाने लगती है।

जब श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी को वह आवाज सुनाई देती है तो वह भी वहाँ पहुच जाते है, और अर्जुन को हिम्मत बंधाते हुए द्रोपदी को उठा कर एक शय्या पर सुला कर उसको होश मे लाने की चिष्टा करते है। अब तो धिरे-धिरे सभी पांडव वीर वहाँ पहुच जाते है। सभी पांडव रानिया भी वहाँ पहुचती है पुरे शिविर मे हा-हा कार मच जाता है। जीसे देखो बस अश्रृ धारा लिए चितकार करता हुआ करुण क्रंदन कर रहाँ है। इधर द्रोपदी को होश आता है, तो वह एकदम से घबरा के उठती है, और दौड कर अपने पुत्रो पांडव किशोरो के शिविर मे पहुच जाती है। वह अपने पांचो पांडव वीरो के शरीर पर हाथ रख कर विलाप कर रही है।
वह रोते स्वर मे अर्जुन को मदद की गुहार लगाती जा रही है ” हे नाथ आप इन पाडव किशोरो के हतियारो को सजा दे, उन्होने इन निर्दोष बालको की हत्या की है। इसका दण्ड उन्हे अवश्य मिलना चाहिए।” श्री कृष्ण भी अर्जुन को समझाते है–” हे कोंतैय तुम पांडव किशोरो के हत्यारो को मृत्यु दण्ड दो उन आतंताईयो का इस घरा पर घुमना उचित नही,” तो अर्जुन भी कसम खा कर द्रोपदी को ढाढस बंधाते हुए कह रहे है।” हे द्रोपदी मे तुम्हारे इन पांचो वीर किशोरो के हत्यारो को दिन ढलने से पहले तुम्हारे चरणो मे ला पटकुगा चाहे वह घरती आकाश पाताल कही भी छुप गए हो।” इतना कह अर्जुन अपनी गांडिव को धारण कर लेते है, और तरकश मे बाणो को भर कर उन हत्यारो की खोज मे निकल पडते है।

इधर द्रोपदी अपने पुत्रो को अपनो अंको ( सिने से लगाती हुई ) मे भर- भर कर रोते हुए कह रही है। ” मेरे इन मासुम किशोर पुत्रो ने भला किसी का क्या बिगाडा था, जो इन मासुमो को मौत के घाट उतारते हुए उन जालिमो को जरा भी तकलिफ नही हुई। इन नन्हे कुमारो को रात मे मेने लोरी सुना कहानी सुना कर कितने प्यार से सिर पर हाथ फैरते हुए सुलाया था। तब नही पता था कि विधाता उल्टी चाल चल रहाँ है, नही जानती थी जीन बालको को रात मे कहानी और लौरी सुना रही हुँ उन्हे कल का सुरज भी नसीब नही होगा। कल रात जब मै इन बालको के शिविर भवन पहुची तो पांचो किशोर कैसे मेरे पास आकर कर चिप कर बैठ गए थे, और कितने प्यार से मुझे कह रहे थे,” ” माँ हमे नींद नही आ रही आप हमे कहानी सुनाओ ना आप लौरी सुना कर हमे सुलाओ ना।” हाय विधाता मै भी कितनी अभागन की अपने बालको को मौत की गौद मे सुलाने की तैयारी कर रही थी मुझे इस बात की खबर पहले क्यो ना हुई अगर मुझे कल रात इसका अंदेशा हो जाता तो मै अपने बालको के शिविर मे ही जाग कर पहरा देती। उन दुष्टो ने चोरी से आघात किया है, मेरे बालको पर अगर इन्हे मारना ही था तो युद्ध मैदान मे इनके संग युद्ध करते हुए मारते तो इन बालको को वीर-गति प्राप्त होती इस तरह चोरी से क्यो मारा। इन बालको के तो अभी लौरी सुनने खेलने के दिन थे। इन मासुमो ने किसी का कुछ नुकसान नही किया तो फिर इन बालको की ऐसी दुर्दशा क्योकि उन आत्ताईयो ने ” इस तरह द्रोपदी करुण क्रंदन करती जा रही है शिविर की अन्य महिलाए उसे सम्भाल रही है उसे समझाती जा रही है।
दिन ढलने से पहले ही अर्जुन अपनी प्रतिज्ञा पुरी करते हुए अपने बालको के हत्यारो को पकड कर ले आते है, और उसे द्रोपदी के चरणो मे पटक देते है और कहते है ये लो द्रोपदी तुम्हारे पुत्रो के इस हत्यारे को पकडो और जो चाहो इसे दण्ड दो ये मृत्यु दण्ड का भागी है। द्रोपदी रोती हुई अश्रृ भरी नजरो को जब ऊपर उठा कर देखती है, तो उसके सामने अर्जुन के गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वथामा खडा होता है> उसके हाथो मे बेडिया डली हुई है। यह देख द्रोपदी एकदम चौक जाती है। अब द्रोपदी अश्वथामा के समुख हो कर उसे कह रही है – कि, ” तुम्हे शर्म नही आई इन मासुमो की जान लेते हुए इन्होने तुम्हारा क्या बिगाडा है।ये पांचो बालक तो निरपराधी थे फिर तुमने ऐसा क्रुर्तापूर्ण काम क्यो किया। क्या तुम अपने पिता के दिये गए संस्कारो को भुल गए थे, क्या ? तुम्हे अपने धर्म का ज्ञान नही रहाँ था क्या ? कौन सी वजह थी ? कि, तुमने इस तरह शास्त्राविमुख तरीके से यह सब किया।”

तब अश्वथामा द्रोपदी के पैरो मे गीर पडता है, और कहता है कि- ” मै अपने पिता द्रोणाचार्य की हत्या का बदला पांडवो से लेना चाहता था बस इस बदले की आग ने मेरे अंदर के सभी विवेक को जला कर रख दिया था मुझे केवल अपनी माँ की आँखो से बहती अश्रृ धारा और पिता द्रोणाचार्य का पार्थिव शरीर ही नजर आ रहाँ था। मुझे अपनी कुछ भी सुझ नही रही थी। इतना बदले की आग मे जल रहाँ था। इसके लिए मेने यह योजना बनाई कि जीससे जीस तरह मेरे भीतर जो आग पांडवो ने पैदा की उसी आग मे पांडव भी जले बस यही सोच ने मुझसे यह सभी करवा दिया। ” अब तो अश्वथामा पछतावे के अश्रृ बहाता हुआ द्रोपदी से कह रहाँ है मुझे तुम जो चाहो वो सजा दे दो। मै सच्च मे बहुत बडा पापी हुँ मेने बहुत बडा पाप किया है। इसकी मुझे घोर से भी घोर सजा मिले वो भी कम है। ” इधर अर्जुन अश्वथामा को मार कर अपनी प्रतिज्ञा जो उसने द्रोपदी को दी थी कि दिन ढलने से पुर्व तुम्हारे पुत्रो के हत्यारो को मार कर तुम्हारे सामने पेश कर दुगा। अब अर्जुन ने अपने हाथ मे तलबार कर अश्वथामा पर निशाना बनाया त।
द्रोपदी ने आकर अर्जुन के हाथ पकड लिए और कहने लगी, ” हे नाथ छोड दो इसे मत मारो। मै नही चाहती जीस तरह पुत्र वियोग मे, मै तडप रही हुँ। इसकी माँ भी उस पिडा से गुजरे इसकी माँ तुम्हारी गुरु माँ है और गुरु माँ का यह एकलौता सहारा है इसके बिना उनका बुढापा कंटक हो जाएगा। इसे इसके हाल पर छोड दो। विधाता स्वयम इसे इसके कर्मो का फल देगा। ” इधर द्रोपदी कह रही है,” छोडो मारो मत ” यह सब देख कर श्री कृष्ण स्थिति को सम्भालते हुए कि पापी को उसके कर्मो की सजा मिलनी चाहिए तो वह अर्जुन को कहते है, ”छोडो मत मारो। ” इधर अर्जुन दुविधा मे फस जाते है कि क्या करे उन्हे द्रोपदी और कृष्ण की बाते समझ नही आती फिर वे श्री कृष्ण की बात को बडे ध्यान से दोहराते है, तब उन्हे समझ आ जाता है, कि कृष्ण उन्हे यह संदेश दे रहे है कि छोडो मत मार दो, फिर वह द्रोपदी और कृष्ण दोनो की बात रखते हुए अश्वथामा की शिखा यानि चूडामणी को काट देते है।

उन्हे याद आता है कि गुरुकुल मे चूडामणी कटने का तात्पर्य मरे के सम्मान होता है। गुरुकुल के किसी सदस्य की चूडामणी कटी होती है तो इसका मतलब समाज ने उसे अपमानित कर दिया है, और एक ज्ञानि का समाज मे अपमान हो जाए तो वह मरे हुए के समान हो जाता है। अब अर्जुन श्री कृष्ण के शब्दो को पहचान जाते है तभी अश्वथामा की चूडामणी काट कर उसे वहाँ से निकाल देते है। अश्वथामा इस दौरान दुर्योधन से भी मिलने जाता है और दुर्योधन को अपने कर्मो की जानकारी देते हुए कहता है, तो दुर्योधन उसे बहुत डांतता है, ” कहता है तुने यह क्या कर दिया तु घोर पापी है तुने शास्त्रो से विमुख कार्य किया है, आज मुझे तुम्हे अपना मित्र कहने मे शर्म महसूस हो रही है। उन मासुमो ने तुम्हारा क्या बिगाडा था। हमारी दुश्मनी पांडवो से थी पांडव पुत्रो से नही। तेरे इस पाप ने हमारे पुरे कुल का सर्वनाश कर दिया अब कुल को आगे चलाने वाला को वीर नही बचा यह पांचो पांडव ही तो हमारे बाद हमारे कुल को आगे चलाने वाले थे, और तुने हमारे कुलदीपो को बुझा दिया।

” मृत्यु शय्या पर पडे दुर्योधन ने अश्वथामा को श्राप देते हुए अपनी नजरो से दुर चले जाने को कहाँ क्यो कि अश्वथामा गुरु पुत्र था और गुरु पुत्र की हत्या कर के दुर्योधन पाप नही करना चाहता था। उस समय सब को कुल को चलाने वाले अपने कुल का अस्तित्व खतरे मे नजर आ रहाँ था, क्योकि कि तब किसी को भी अभिमन्यु की पत्नि उत्तरा के गर्भ मे अभिमन्यु की संतान होने की जानकारी नही थी। उतरा के गर्भ से उत्पन्न अभिमन्यु पुत्र राजा परिक्षित हुए इन्होने ही कोरबो और पांडवो के कुल को आगे बढाया।
ऐसी महान और ममतामयी औरत ही सच्च मे एक माँ कहलाने की अधिकारी होती है क्योकि वही सच्च मे अपनी संतान से प्यार करती है जीसके मन मे दुसरी माँ की पिडा को दिल से समझने की समझ होती है। द्रोपदी जैसी महान और कौन हो सकती है।