चिंत्रांगदा और सुधिर का विवाह हुआ। चित्रांगदा अपनी डोली मे बैठ कर ससुराल पहुची। जैसे ही चित्रांगदा ससुराल पहुची बस तभी से ही यानि ससुराल की दहलीज पर कदम रखा बस तभी से उसके जीवन मे उथल-पुथल मच गई। ससुराल मे पहला ही दिन था जब उसे पति और ससुराल -पक्ष के लोगो का बुरे व्यवहार से सामना होना शुरु हो गया। पर उसने अपने मन के डर पर काबु रखा जो जैसा व्यवाहर करता चित्रांगदा उसका प्रतिुतर कुछ नही देती चुप-चाप घर का सारा काम करती सब काम खत्म होने पर अपने कमरे मे चली जाती। वह अपने साथ होने वाले अत्याचारो के दर्द को मन मे ही दबाने के लिए पुस्तको का सहारा लेती या कोई सिलाई-कढाई के काम मे लगी रहती।

ससुराल मे किसी को उससे बात करने की फुर्सत नही थी फुर्सत थी तो केवल उस पर मान्सिक और शारीरिक अत्याचार करने की बेचारी अपने माँ पिता और परिवार से मिले अच्छे संस्कारो मे ऐसी उल्झी रहती। वह समझती अगर पति और ससुराल को छोड कर जाती है तो उसका पत्नि धर्म संकट मे पड जाता है। इस लिए बस चुप रहती इसका लाभ उसके पति और ससुराल वाले उठाते उन्हे मालुम हो गया था कि चित्रांगदा पर जीतना भी अत्याचार करो इसने अपने परिवार मे जा कर नही बताना। अब तो इस पर भी साजीस शुरु हुई। उसके ससुराल वाले चित्रांगदा से छुप-छुप कर उसके पीहर वालो से मिलने जाते और चित्रांगदा पर झुठे आरोप लगाते कि वह लडाई, झगडा करती है,घर मे किसी का कहना नही मानती। सास ससुर को परेशान करती है वगैरा-वगैरा। इधर चित्रांगदा के भाई और भाभी भी इन बातो से अपना लाभ उठाने लगे वह भी चित्रांगदा के माता-पिता से चित्रांगदा को गलत साबित करते कहते तुम्हारी लाडली अपने ससुराल मे क्या गुल खिलाती फिरती है वह कितनी बतमीज है जो अपने सास-ससुर और पति को परेशान करती है उनकी सेवा नही करती।
जब चित्रांगदा कभी अपने माता-पिता को सब बताने की कोशिश करती उससे पहले ही उसके भाई-भाभी उस पर झुठे आरोप शुरु कर देते। इस कारण उसके माता पिता उसकी कोई बात सुनना ही नही चाहते बस चित्रांगदा को ही डाँटते की केवल तुही सही है वाकि सब झुठ बोलते है और इस तरह चित्रांगदा अपने मन के दर्द अपने मन मे ही रखती कोई भी तो नही था उस भोली-भाली चित्रांगदा के दर्द और मन की पिडा समझने वाला। औरत शादी करके अपने पति के भरोसे ससुराल मे कदम रखती है पर जब उसका पति ही उसके साथ अत्याचार करे तो कोई औरत बेचारी कैसे खुश रह सकती है। धिरे धिरे समय बितता गया चित्रांगदा के बच्चे हुए।
उसके ससुराल वालो ने और पति ने चाल चल कर उसे घर से बेदखल कर दिया अब उसके पति ने एक किराए का कमरा लिया उसमे वे अपने बच्चो के संग रहने लगे। अब तो चित्रांगदा के पति का व्यवहार और भी कडक हो गया। वह अब उस बेचारी पर पहले से भी ज्यादा अत्याचार करने लगा। उस पर आरेप लगा कर उसे पीहर छोड आता और उसके माता-पिता को कहता यह घर पर नही रहना चाहती इस लिए भाग कर यहाँ आ जाती है। अब चित्रांगदा इस चिंता मे रहती कि पता नही मुझसे क्या कमी रह जाती है मै तो अपनी सामर्थ्य से भी अधिक अपने पति और परिवार की सेवा करती हुँ फिर भी मेरे पति मुझसे नाराज क्यो रहते है। वे मुझे बार-बार पीहर छोड जाते है और कई-कई महिनो तक लेने भी नही आते ना ही कोई फोन करते है। चित्रांगदा बहुत दुखी रहती उसके माता पिता को धिरे धिरे उसके मन की पीडा का अहसान होने लगा पर वे समाज और अपने बेटे-बहु के डर से उसे वापस छोड आते।
जब वह अपने घर जाती तब भी उसका पति सुधिर उससे ठीक से बात नही करता।एक बार चित्रांगदा जब पीहर मे कई महिने लगाने के बाद लौटी तो वह घर का महौल्ल देख कर घबरा गई। जब वह अपने घर को झाडृबुहार रही थी तो उसे आलमिरा के नीचे सामान हटाने पर लेडीज सामान मिला उसके ड्रैसिंगटेबल पर चिपकी हुई कई बिन्दिया जो कि किसी ने लगा कर उतारी हुई थी नजर आई। जब उसने अपने आलमिरा को साफ किया तो उसे आलमिरा मे एक कोने मे दबे हुए लेडीज गारमेंट मिले बहुत सी अनजानी वस्तुए उसके सामने बिखरी हुई थी उसे देख कर बस उसके मन से एक जोर की आह निकली। अब चित्रांगदा को कुछ-कुछ समझ आने लगा था कि उसकी गैर हाजीरी मे यहाँ कोई महिला रहती थी या वक्त-बेवक्त आती होगी।

फिर भी उसने अपने आप को सम्भालते हुए मन ही मन सोचा नाहक शक तो नही हो रहाँ हो सकता है कही मेरी नन्द या देवरानी यहाँ आते होगे। इस तरह उसने अपना ध्यान उन सब से हटाया और जल्दी से सारा सामान सफाई कर के फैंक दिया और अपने पति सुधिर से उसने किसी भी बात का जीकर नही किया बस अनजान रही पहले की भांति। अब कुछ समय बिता चित्रांगदा मे थोडी हिम्मत जागने लगी पहले के ही भांति उसका पति उसे उसके पीहर छोड आने की कोशिश करता चित्रांगदा उसके पैरो मे गिर जाती बिना कसुर ही उससे माफी मांगने लगती और सुधिर उसे बहुत मारता-पिटता उसके केश पकड कर घसिटता हुआ उसे घर से बाहर ले जाकर पटक देता और घर का दरवाजा बंद कर लेता।
चित्रांगदा अपने बच्चो को अपने क्लेजे से चिपटा कर घर की दहलीज पर बैठे-बैठे ही रात गुजार देती। आने-जाने वाले उसे घुर कर देखते मगर वह अपने बच्चो को कस कर चुप-चाप डरती हुई दहलिज पर बैठी रहती। इधर घर के अंदर पति के अलावा भी कोई होता था वह जानती थी पर कर भी क्या सकती थी। इस तरह बेचारी चित्रांगदा की जीवन की गाडी आगे बढ रही थी अब तो बच्चे कुछ बडे हो गए थे तो चित्रांगदा अपने पति को समझाने लगती कि अब यह सब मै बरदासत नही कर सकती मुझे इस तरह समाज मे इतना अपमानित मत करो अगर तुम्हे किसी और से प्रेम है तो उससे शादी कर लो पर मेरे बच्चो के सामने मेरा अपमान मत करो इसका बच्चो के मन पर बुरा असर हो सकता है।
अब सुधिर को भी इस बात मे सार नजर आने लगा उसने चित्रांगदा से पुरी तरह से दुरी बना ली थी। अब उसने चित्रांगदा से मार-पिट करना बंद कर दिया मगर उससे बोल-चाल पुरी तरह बंद कर दी। घर का सामान जीतना लाना होता सुधिर उसमे भी कटौती करता चला गया पर चित्रांगदा चुप रही वह अपने खर्च खुद निकालने लगी। उसके और बच्चो के कपडे पहले तो माता-पिता दे देते थे मगर उनका भी देहांत हो गया तो उसको अब कुछ भी सहारा ना था वह घर की रद्दी सामान आदि वेच कर या थोडी बहुत सिलाई-कढाई करके अपना जरुरी सामान लाती जब बच्चे बडे हुए तो सुधिर उनके लिए तो कभी-कभार सामान ले आता मगर चित्रांगदा को कुछ नही देता बेचारी दिन भर घर का काम करती पर उसके बावजूद उसे कुछ लाभ नही मिलता केवल दो समय की रोटी के लिए वह दिन भर सेवा करती सोचती जैसे-तैसे बच्चे पढ कर कामयाब हो जाए बस फिर सब ठीक है।

चित्रांगदा भगवान से रोज प्रर्थना करती हे भगवान मेरे पति की बुद्धि को सुधारो ये मुझसे प्यार करने लगे पता नही क्यो रुठे रहते है इतने साल बित गए शादी को। अब जब बच्चे बडे हो गए स्कूल मे हायर एज्यूकेशन लेने लगे तब चित्रांगदा अपने समय को प्रभु भक्ति मे लगाने लगी। वह गीता,रामायण,वेद,पुराण पढती। इस तरह उसको भगवान का सानिध्य प्राप्त होने लगा। अब वह भगवान से अपने मन के दर्द बयान करती भगवान के आगे बैठ कर बहुत रोती। इस तरह उसने अपने मन के दर्द को कम करना शुरु कर दिया इससे यह हुआ कि चित्रांगदा अब धिरे-धिरे मुस्कराती,हँसती,गाती खुश रहने लगी। जैसे-जैसे उसके मन का बोझ हल्का होता गया वैसे-वैसे ही वह अपनी अंतर्आत्मा से बाते करने लगी।उसे पता ही नही चला कब भगवान आकर उसकी आत्मा मे विराजमान हो गए।
अब तो वह रोज भगवान से बाते करती। भगवान ने धिरे-धिरे उसके पति और उसके ससुराल वालो की सच्चाई उसकी आँखो के सामने ला दी। तब कही चित्रांगदा को पता चला कि उसके पति एक व्यभिचारी चरित्रहीन पुरुष है उसके पति सुधिर का कई महिलाओ से अनैतिक सम्बंध चल रहे थे और अब काफी समय से उसके पति सुधिर को उन्ही दुष्चरित्रा महिला से प्रेम हो गया वह उसे ही अपनी पत्नि मानता है और उसको ही अपनी सारी कमाई का लाभ देता है। यह सब अब चित्रांगदा जान चुकी थी मगर उसे उस महिला को नही देखा था। इधर उसके बच्चे काॅलेज मे एडमिशन ले चुके थे तो चित्रांगदा ने अपनी संतान के संग ही जाने का मन बनाया और अब वह अपने बच्चो के संग सुधिर से दुर दुसरे शहर मे रहने लगी। वहाँ बच्चो की पढाई के लिए मिलने वाले सुधिर के खर्चे से घर चलाने लगी।
सुधिर बहुत कम रुपये भेजता पर चित्रांगदा को तो आदत सी पड गई थी थोडे मे गुजारा करने की इस लिए उसने एर बहुत छोटा सा कमरा किराए पर लिया क्योकि उसका बजट बहुत छोटा था। उसी कमरे मे एक कोने मे गैस रख कर खाना बना लेती एक कोने मे पानी की बाल्टी रख लेती बर्तन साफ करने के लिए। नहाने-धोने के लिए सयुक्त सुविधा थी पुरी बिल्डिंग मे वही नहा कर आते और अपने छोटे से कमरे मे समय गुजारते।इधर सुधिर को तो जैसे मुँह-मांगी मुराद मिल गई थी वह अब अपनी प्रेमिका के संग रहने लगा उसके संग घुमने के लिए हील स्टेशनो मे और दुसरी जगहो पर जाता पुरी तरह से मौज-मस्ती।उधर चित्रांगदा और उसके बच्चे अपनी जरुरतो को दबा कर जी रहे थे। हा एक बार 3-4 दिन के लिए वह अपने परिवार के पास आया क्योकि उसे डर था कही लोगो को उस पर सक ना हो जाए। और एक बार 10-12 दिन जब उसका बेटा हाॅस्पिटल मे एडमिट हुआ तब गया बस इसके अलावा सुधिर ना तो अपने परिवार के पास कभी गया ना ही उसने कभी चित्रांगदा से फोन पर बात की।
इधर 2-3 साल बीत गए चित्रांगदा को गए तो अब सुधिर से लोग पुछने लगे कि बच्चे कब आएगे चित्रांगदा कभी नजर नही आती और कई लोगो ने यानि सुधिर के खास दोस्तो ने उसे अपनी प्रेमिका के संग घुमते आते-जाते देख लिया था इस से सुधिर को डर लगा कही उसकी पोल दुनिया मे ना खुल जाए तो उसने चित्रांगदा को वापस बुला लिया और अब चित्रांगदा की उससे भी बुरी जीन्दगी शुरु हुई क्योकि पहले बच्चे तो थे उससे बात-चित करके अपना मन बहला लेती थी अब तो कोई भी नही था बच्चो के लिए ही सही थोडा बहुत खर्चा मिलता था खाना हो जाता था अब तो चित्रांगदा के पास केवल अपनी थोडी सी जमा पूंजी उसी मे कभी एक टाईम रोटी खा लेती तो कई बार भुखी ही सो जाती इस तरह चित्रांगदा की तबीयत बहुत बिगडने लगी थी उसका शरीर कमजोरी से काँपने लगा था सिर मे कई बार चक्कर आते।
धिरे-धिरे वह डिप्रेशन की तरफ जाने लगी। मगर सुधिर को इससे कुछ लेना देना नही था वह अपनी प्रेमिका के संग मौज मस्ती मे रहाँ। इधर एक दिन भगवान ने उससे सपन मे सुधिर की प्रेमिका को प्रकट कर दिया पर वह समझी नही एक दिन किसी कारणवश सुधिर जल्दी-जल्दी मे घर से निकला वह उसकी जीन्दगी की पहली लापरवाही थी इसमे भगवान का ही हाथ था। चित्रांगदा को सुधिर के कमरे की सफाई करते उसकी आलमिरा मे पडे बटुए पर नजर गई उसने उसे देखा और सोचने लगी ऐसा तो पहली बार हुआ है कि सुधिर अपना बटुआ ( पर्स ) भुल गया है। जब वह पर्स वापस अंदर रखने लगी तो पर्स उसके हाथ से छुट कर जमीन पर गिर गया और अंदर से खुल कर नीचे गिरा।जैसे ही वह पर्स नीचे से उठाने लगी उसकी नजर सुधिर के पर्स मे लगी तस्वीर पर पडी।उस तस्वीर को देखते ही वह चौंक गई क्योकि ऐसी ही तस्वीर उसने एक दिन सपने मे देखी थी। अब उसकी समझ मे आ गया कि यह उसी महिला की तस्वीर है जो सुधिर की प्रेमिका है।

उसने चुप-चाप पर्स वापस आलमिरा मे रख दिया। एक दिन मौका देख कर उसने सुधिर से उस तस्वीर की बात कही पहले तो सुधिर कहानिया बनाने लगा झूठ बोलता रहाँ। पर कुिछ समय बाद उसने सच्चाई कबूल कर ली और अपनी प्रेमिका का सच्च बता ही दिया और बोला मुझ से गलती हो गई मै इसको अपना दिल दे बैठा अब मेरी वापसी नही हो सकती इसके लिए मै कुछ भी कर सकता हुँ किसी भी हद तक जा सकता हुँ।मेने इसे जीन्दगी भर साथ देने का वादा किया है।इतना सब समझने के बाद चित्रांगदा बोली तो इसमे मेरा क्या कसूर था जो मुझे इतना बडा धोखा दिया।बच्चो का क्या दोष। तुमने कसम तो मेरे संग भी खाई थी सारी दुनिया के सामने फैरे लेते समय। सुधिर चुप रहाँ क्योकि इस बात के लिए उसके पास उतर नही था बस यही बोला मेने तुझे नौकरानी से अधिक कभी समझा ही नही था इस लिए बस चुप-चाप अपना काम करबाता रहाँ।
अभी भी कुछ नही बीगडा तुम मेरी सेवा करती रहोगी तो तुम्हे आटा पानी ला दिया करुगा इसके अलावा मुझ से कोई उमीद्द मत रखना। अब तो चित्रांगदा के हौश ही खो गए वह घबरा गई जीसे वह पति समझ कर उसके सब अत्याचार सहती रही उसकी सेवा करना ही अपना पत्नि धर्म समझती रही।वह सब क्या था क्या यही है विवाह के बंधन जीसमे आपको जीवन के खतनाक मौड पर पता चले की आप जीन जुर्मो से गुजर रहे थे वह एक दिन आपके लिए बस धोखा बन जाएगा। काफी समय तक सोच विचार करने के बाद उसने सुधिर से कहाँ तुम उसे छोड दो पर सुधिर ने कहाँ मुझे सब कहते है कि अब उसे छोड दे मगर मेने सब को कह दिया कुछ भी हो जाए नही छोडूगा उसे। अब चित्रांगदा ने उससे तलाक के लिए कहाँ कि तुम उसे नही छोडोगे तो मै तलाक ले लुगी सुधिर ने कहाँ तलाक ले लुगा पर उसे किसी भी हालत मे नही छोड सकता।
इधर समाज के कुछ लोगो को इस बात का पता चला जब चित्रांगदा ने सब डर छोड हिम्मत करके लोगो को बताया तो उन्होने सब ने सुधिर पर दबाव बनाना शुरु किया अब उस पर समाज के मान्य लोगो ने पुलिस का सहारा लिया कि किसी तरीके से सुधिर को उसकी प्रेमिका से दूर कर सके इधर उसकी प्रेमिका ने सुधिर पर अपना दबाव बनाना शुरु किया अपना त्रिया-चरित्र शुरु कर दिया अब वह चित्रांगदा के सामने बी फोन पर बाते करने लगे यानि जब चित्रांगदा घर पर थी उस समय सुधिर लोगो के दबाव के कारण अपना संतुलन खो बैठा और फोन पर उससे बात कर रहाँ था कि तु रोती क्यो है पगली मै तुम्हे कभी नही छोडूगा तु चुप कर रो मत शांत हो मै अभी आता हुँ तेरे पास चल चुप हो जा तु इस तरह रोएगी तो मुझे दुख होगा। तभी सुधिर ने अपने हाथ से खाना बनाया टिफिन भरा और बिना कुछ बोले सुने घर से निकल लिया रात के 11.25 पर घर वापस लौटा शाम को 4 बजे घर से निकला था। इधर बेचारी चित्रांगदा का गला घोट कर उसकी हत्या करने की कोशिश की थी फोन आने से कुछ देर पहले तो बेचारी चित्रांगदा अपना गला पकड कर बैठी थी क्योकि बहुत दर्द हो रहाँ था।
उस दिन उसे भगवान ने स्वयं बचाया था जब सुधिर पुरी जोर से चित्रांगदा का गला दबावा रहाँ था चित्रांगदा जोर से छटपटाने लगी थी इसी लिए जीस कुर्सी पर चित्रांगदा बैठी थी वह नीचे लीप गई और चित्रांगदा जोर से जमीन पर गिर गई।तब कही सुधिर घबरा गया और अपने कमरे मे चला गया उसको लगा चित्रांगदा मर गई बस इसी घबराहट के चलते सुधिर तेज आवाज मे अपनी प्रेमिका से बात करता रहाँ और चित्रांगदा सब सुन रही थी उसकी आँखो से अश्रृधारा अबिरल बहती जा रही थी एक तो दर्द दुसरा धोखा। अब तो चित्रांगदा समझ गई कि इस रिस्ते मे कुछ भी वाकि नही बचा और हिम्मत करनी ही पडेगी उसने तलाक की अर्जी डाल दी। एक दिन चित्रांगदा को पता चला कि उसके और सुधिर के तलाक और सुधिर की प्रेमिका को प्रोत्साहन सुधिर के माता-पिता, बहन-भाईयो को परिवार से मिल रहाँ था।

उसने अपने भगवान से इसका प्रश्न किया कि भगवान माता-पिता अपनी संतान का भला चाहते है उसका घर बसाते है उजाडते नही तो सुधिर के परिवार ने ऐसा क्यो किया। चित्रांगदा की मन की शांति के लिए भगवान ने उसे वह ज्ञान दिया जो सुधिर के पूर्व जन्म से जुडा था। भगवान ने उसे दिव्य दृष्टि प्रदान की जीससे पूर्व जन्म को देख सके। चित्रांगदा ने देखा एक बहुत बडा सेठ है वह हवन-यज्ञ करवा रहाँ है उसने हवन-यज्ञ करवा कर 500 ब्राहमणो के जोडो को भोजन करवाया और उन्हे सब को वस्त्र पहनाए। हवन सेठ के घर से थोडी दूर हुआ वही पर ब्रहम् भोजन हुआ। तब चित्रांगदा ने देखा कि सेठ की पत्नि जो कि धर्म परायना थी।सिल्क की बहुत सुन्दर साडी पहने हुए थी बहुत से गहनो से सजी हुई थी वह रसोई मे स्टोब पर पुडिया तल ( भोजन बना ) रही थी उसके पास बहुत सी ब्राहमण पत्नि भी भोजन बनाने मे मदद कर रही थी।
सब मिल कर भोजन बना रही थी। इधर सेठ जी अपने परिवार के पुरुष सदस्यो के संग मिल कर सभी ब्राहमणो को भोजन करवा रहे थे। बहुत सी ब्राहमण पत्नियो ने भी भोजन कर लिया था और वाकि बची हुई भी भोजन करने जा ही रही थी कि एक पडौसन सरोजनी ने सेठ से मिली साडी को अपने पौते के मल साफ करने के लिए वही सब के सामने उस साडी को फाड कर उससे मल साफ कर के फैंक दिया। यह देख साथ वाली कुछ पडौसनो ने उसे कहाँ यह क्या किया तुम ने अभी तो सेठ ने तुम्हे यह साडी भेट की अभी तुम ने इसे फाड कर फैंक दिया।
तब वह सरोजनी रोने लगी और कहने लगी सेठ को अपने रुपयो पर अंहकार है ना तभी तो इसने हमे ऐसी साडी दी है। अपनी पत्नि के लिए सिल्क की साडी लाया इसने ऐसा करके जानबूझ कर हमे सर्मिदा किया हमारा अपमान किया इतना शोर सुन कर वहाँ सभी आ गए सेठ भी आया तब उस सरोजनी के पति भी आए अपनी पत्नि को रोते देख उसकी व्यंग्य भरी बाते सुन कर अपनी पत्नि का साथ देते हुए सेठ को भला बुरा बोलना शुरु कर दिया और सरोजनी के पति ने उस सेठ को श्राप दिया जा तुने अपने धन के अंहकार मे आ कर हमारा अपमान किया अपनी पत्नि और हमारी पत्नि को दियेजाने वाली साडी मे भेदभाव किया अपनी पत्नि को सिल्क की साडी और हमारी पत्नियो को साधारण साडी जा तु राक्षस बन जा तुझे अगले जन्म मे अपनी पत्नि से अलग रहना पडेगा ये मेरा श्राप है तु लाख चाहेगा तभी भी तु अपनी पत्नि से विमुख हो जाएगा पत्नि के संग नही रह पाएगा।

इधर बेचारे सेठ जीसरोजनी के पति के आगे हाथ जोड कर निर्पराध होते हुए भी माफी मांग रहे थे सेठ की पत्नि जो बहुत नेक दिल धर्म परायणा पतिवर्ता पत्नि थी अपने पति पर आए धर्म संकट को दुर करने के लिए उसने अपनी सिल्क साडी और साथ सारे गहने उतार कर उस सरोजनी को दे दिये और उन दोनो के चरण पकड कर अपने पति के साथ उनसे माफी मांगने लगी। अब तक तो वहाँ खडे सभी लोगो के दो गुट बन गए थे एक उस सरोजनी के पक्ष मे तो एक सेठ की तरफ हो गए। जो सरोजनी की तरफ थे वे सब यही कह रहे थे सेठ ने हमारा अपमान किया इसे श्राप भुगतना ही पडेगा मगर दुसरी तरफ के यानि सेठ को सही मानने वाले लोगो का गुट कहने लगा सेठ निर्दोष है इसने जो भी भेट हमे दी है अपने मन से दी जब कोई वस्तु मन से यानि प्यार से दी जाए उसकी किमत नही देखी जाती।
पर वह सरोजनी तो उस सेठ की पत्नि से जलती थी इस लिए वह टस से मस नही हुई और उसका पति जोरु का गुलाम था तो वह भी नही माना अब सेठ को श्राप भुगतना ही था। सेठ के मरने के बाद उसके पुन्य कर्मो से उसे देव लोक मिला वहाँ उसने अपनी समयावधि बिताई अब उसका देव लोक मे समय खत्म हुआ तो उसे दुबारा जन्म ले कर धरती पर आना पडा। अब इस जन्म मे वह सेठ सुधिर था और उसकी पत्नि चित्रांगदा वही सेठ पत्नि ही थी और वही सरोजनी सुधिर की माता और वही सरोजनी के पति सुधिर के पिता बने और उसके भाई-बहनो और उनके परिवार व सुधिर के मित्र आस-पडौस वाले वे सब वही लोग जो दोगुटो मे बट गए थे वही गुट वाले थे।
इधर सेठ की पत्नि की खास सहेलिया आज वह सुधिर के पडौस मे रहती चित्रांगदा से कभी कबार बातचित कर लेती है चित्रांगदा को अपनी सहेली मानती है पर श्रापवश वह भी उन सभी पडौस के लोगो के संग मिल कर कभी चित्रांगदा से दुरी बना लेती है। वही श्राप बेचारी चित्रांगदा के जीवन मे तुफान लिए रहाँ कभी भी उसे शांति से जीने नही दिया। वही सरोजनी और उसका पति सुधिर के माता – पिता के रुप मे है। चित्रांगदा पर अत्याचार करते वही उस गुट के लोग है। भगवान ने कहाँ जब तक तु इस रिस्तो के बंधन मे बंधी रहेगी तुझे बस दुख ही मिलते रहेगे तेरी भावनाओ को कोई नही समझेगा । फिर भगवान ने उसे दिखाया देख कौन-कौन है जो तुझे सच्चा प्यार करते है उन सभी रिस्तेदारो के चेहरे भगवान ने चित्रांगदा को दिखाए वह सभी चित्रांगदा के बारे मे सोच-सोच कर आँसु बहा रहे होते है फिर भगवान ने कहाँ यही तुझसे सच्चा प्रेम करते है तभी इनकी आत्माए तेरे लिए रो रही है।

इस लिए अपना आसरा मुझ पर छोड मुझ पर भरोसा कर तेरे जीवन के सभी कष्ट खत्म हो जाएगे। इस रिस्ते से बाहर निकल मै तुझे बहुत कुछ देना चाहता हुँ। इस जीवन के बची जीन्दगी खुशियो से बीता फिर मेरे लोक मे तुझे मै बुला लुगा जब तेरा इस घरती से समय समाप्त हो जाएगा। इस तरह चित्रांगदा ने अपने पति से तलाक ले लिया अब उसके बहन-भाई मामे-मोसी-चाचा ताऊ सबने उसका तह दिल से वापसी पर स्वागत किया अब तक वे भी कुछ समझ गए थे कि हमारी बच्ची ने बिना गलतियो के भी बहुत अत्याचार सहे अब चित्रांगदा के संग उसके बच्चे भी आ गए चित्रांगदा को सच्चा प्यार मिल गया जो उसके अपने थे उनसे सब सुख जीसकी वह अधिकारी थी मिलने लगे।