
हम सब को अपने घर मे एक मंदिर स्थापित कर के घर पर सुबह शाम पूजा कर के अपने इष्ट से आशिर्वाद लेते है। घर पर पूजा करने के कुछ नियम-कायदे-कानून तो सभी जानते ही है मगर फिर भी बहुत से लोग पूजा करते समय बहुत सी भुले करते है जीससे से उन्हे अपने इष्ट से मिलने वाले आशिर्वाद का पुरा लाभ मिल नही पाता।आईए इस तथ्य पर कुछ जानकारी हासिल करने की कोशिश करे ताकि हम सब अपने इष्ट से मिल रहे आशिर्वाद का पुरा-पुरा लाभ प्राप्त कर सके। कुछ नियमो को हो सकता है आप पहले से ही जानते हो और कुछ नियम आपके लिेए नए हो।

सबसे पहले हमे घर मे मंदिर स्थापित करने के लिए उचित स्थान की जरुरत होती है।इसके लिए अपने घर के उतर-पूर्व का कोना जहाँ से पूर्व और उतर दिशा का मेल हो रहाँ हो इसे इशान कोण कहते है उस स्थान पर मंदिर स्थापित करे।आपके पास घर मे इशानकोण मे जगह हो तो अलग से एक मंदिर बनवा सकते है नही तो इस इशानकोण मे एक छोटी सी जगह पर एक लकडी का पाटिया या मेज रख कर उस पर अपना मंदिर स्थापित कर सकते है यही आप अपने इष्ट की मुर्ती,फोटो जो भी आप पूजा करने के लिए प्रयोग करते है।

जब आप सुबह पूजा करने जाए तो सबसे पहले अपने मंदिर की सफाई करके उस स्थान को पवित्र करले उसके बाद अपने इष्ट को मुर्ती है तो दूध-दही व जल,गंगाजल मिल जाए तो उससे भी अपने इष्ट को स्नान करवा सकते है मुर्ती का स्नान करवा करके अपने इष्ट को साफ सुथरे धुले हुए वस्त्र ( कपडे ) पहनाए। उनको श्रृंगार करवाए गहने आदि पहनाए उनको तीलक करे। फूल माला अर्पण करे और धुप-दीप जला कर उनको दिखाए। बाद मे प्रशाद अर्पण करे और इस तरह से नित्य प्रति करे इसके बाद अपने इष्ट के मंत्र,पाठ आदि करे ।
जब आप पूजा-पाठ मंत्र जाप करने बैठे तो शुद्ध आसन जो ऊनी हो उस पर बैठ कर के अपने पाठ कर ले जब आपका पाठ पुरा हो जाए तो हाथ मे थोडा सा जल लेकर अपने आसने के एक कोने को मोड कर उस स्थान पर अपने इष्ट को अपनी पूजा समर्पित करके उस हाथ वाले जल को आसन के कोने मे डाल कर उस स्थान वाले जल को फिर अपने माथे व आँखो पर लगाए और फिर अपने आसन को मांथा टेक कर आसन समेट ले आसन को फटकना नही चाहिए बस लपेटना चाहिए। अब आसन लपेटने के बाद उस स्थान जहाँ आपने पूजा पाठ किया वहाँ अपना माथा टेक कर इष्ट का आशिर्वाद प्राप्त करे।
आप मंदिर मे इष्ट की तस्वीर रखते है तो उसे स्नान नही कराए केवल एक शुद्ध साफ वस्त्र ( कपडा ) पानी से गिला करके तस्वीर पर फैर दे।इसके बाद तस्वीर पर तीलक कर के फूल माला अर्पित कर दे। अगर आप लड्डू गोपाल रखते है तो उनको स्नान करवा कर साफ वस्त्र पहनाए उनको श्रृंगार करवाए।फूल माला अर्पण करे।

लड्डू गोपाल घर पर रखते हो तो उन्हे अपने बच्चो की तरह उनकी देखभाल करनी चाहिए उन्हे दूध-मिठाई का भोग लगाना चाहिए। जब भी आप खाना बनाए सबसे पहले अपने लड्डू गोपाल की थाली सजा कर उसमे तुलसी पत्र डाल कर ढक कर लड्डू गोपाल के सामने ले जाए और फिर वही आसन पर बैठ कर उनके सामने मुख करके उनको भोजन करने के लिए आमंत्रित करे इसके बाद थाली का ढक्कन हटा कर उसमे से भोजन की एक गिराई (टुकडा ) तौड कर जैसे बालक के मुँह मे डालने के लिए माँ भोजन हाथ मे लेती है उसी तरह लड्डू गोपाल को अपने हाथ से भोग लगाए इसके लिए भोजन की थाली को हाथ मे लेकर भोग लगाने का मंत्र पढे अगर मंत्र नही आता तो उन्हे भोजन ग्रहण करने के लिए बोले और उनके नाम मंत्र ऊँ कृं ( क्रीम) कृष्णाय का उच्चारण करे जब तक आप भोग लगाए तब तक।इसके बाद उनको पानी अर्पित करे कुला करने के लिए और इस भोग लगे भोजन को पुरे घर के लिए बने भोजन मे मिला कर प्रशाद स्वरुप उस भोजन को ग्रहन करे ( खाए ) आप दिन भर मे जो कुछ भी खाए उसे पहले लड्डू गोपाल को आवाज लगा कर अर्पित कर दे कि हे मेरे बाल लड्डू गोपाल आओ और इस भोजन का भोग लगाओ ठीक उसी तरह से जैसे माँ अपने बच्चो को आवाज लगा कर बुलाती है और उनको खाना खिलाती है वैसी ही लड्डू गोपाल को भोग लगाए।
अगर आप लड्डू गोपाल घर पर नही रखते तो जब भी आप कुछ भी खाने बैठे सबसे पहले अच्छे से हाथ साफ कर ले और अपने दोनो हाथो को जोड कर आँख बंद करके अपने इष्ट या जीन भी भगवान को मानते है पूजते है उनका आवाहन कर के ( मन ही मन उनका नाम उच्चारण करके उने भोग लगाए इसके बाद उस भोग लगे भोजन को खुद खाए।
लड्डू गोपाल है तो इनकी आरती करके उन्हे नाम उच्चारण करके हे लड्डू गोपाल मेरे लाला उठ जाओ भोर हो गई इस तरह उन्हे नींद से जगाए ।इससे पहले आप स्नान ( नहाना ) करके ) फिर इसके बाद ही लड्डू गोपाल को जगाए उनका स्नान आदि करवाए ।जब आप सुबह स्नान करके तो साफ धुले वस्त्र ( कपडे ) पहन कर ही पूजा स्थल मे जाए।बहुत से लोग यह गलती करते है कि वे स्नान तो कर लेते है मगर वस्त्र वही पुराने यानि पहले दिन पहने गए वस्त्र फिर से पहन लेते है इससे आपने स्नान करके खुद को पवित्र किया मगर पुराने मेले कपडे पहन कर अपनी पवित्रता नष्ट करली होती है। इस लिए सुबह जब भी स्नान करे साफ सुधरे यानि धुले हुए वस्त्र ही पहने। यहाँ तक की शरीर को सुखाने वाला वस्त्र तौलिया भी धुला होना चाहिए। इसी तरह लड्डू गोपाल को भी स्नान करवा कर धुले वस्त्र पहनाए।
अपने मंदिर मे और लड्डू गोपाल के लिए अगर फूल माला अर्पण करे तो वे भी ताजी होनी चाहिए। बासी फूल और माला दुबारा नही पहनाए। हो सके तो सुबह अर्पित फूल शाम को आरती वंदन करते समय वहाँ से हटा दे।उन्हे किसी गमले या पौधो मे डाल दे।घर पर पौधे नही है तो इन्हे एकत्रित करते जाए और किसी नदी मे तिरा आए या पीपल के नीचे छोड आए।

शाम को आरती वंदन करके लड्डू गोपाल को भोग लगाए और उनके लिए बिसतर लगाए या पालना हो तो उस पर वस्त्र बिछा कर बिसतर तैयार कर ले। उस बिसतर पर लड्डू गोपाल को सुला कर लोरी गाए भजन सुनाए हो सके तो नृत्य करके उनको मन बेहलाए और फिर उनकी शयन आरती करके मंदिर का पर्दा लगा दे। ध्यान रहे भगवान को कभी भी अपने बैडरुम मे ना सुलाए उनको मंदिर मे ही शयन करवाए क्योकि जीस बैडरुम मे हम शयन करते है वह पवित्र नही होता। जब भी दिन मे आपके पास खाली समय हो उस समय आप लड्डू गोपाल को भजन सुनाए उनसे बाते करे अपने मन के भाव बताए नाच गा कर उन्हे रिझाए। आप टीवी चलाए तो भगवत कथाओ को चला कर लड्डू गोपाल को सुनाए जैसे आप अपने बच्चो के मनोरंजन के लिए कार्टुन लगा कर देते है ठीक उसी तरह लड्डू गोपाल को भगवत कथाए रामायण,पाठ,भागवमहापुराण भजन आदि टीवी पर चला कर दे।

अपने लड्डू गोपाल को नजर लगने से बचाए उन्हे हर किसी के सामने ना लाए जैसे बालक को हम किसी अजनबी के सामने नही लाते क्योकि हमे बालक को नजर लगने का डर होता है उसी तरह लड्डू गोपाल को नजर से बचाए। उन्हे जब आप घर से बाहर दुर कही घुमने जाए तो अपने संग ले कर जा सकते है। नही तो उनके सामने प्रशाद और पानी ढक कर छोड जाए ताकि लड्डू गोपाल भुखे ना रहे और कुछ पैसे भी उनको अर्पित करके जाए लड्डू गोपाल को अपना बालक ही समझे उसी तरह उनकी सेवा करे। घर से दुर यानि कई दिनो के लिए जाए तो मंदिर का पर्दा करके फिर जाए

टिप्स——–
जब आप पूजा पाठ करे शुद्ध आसन को जमीन पर बिछा कर ही पूजा पाठ करे बिसतर पर बैठ कर भुल से भी पूजा पाठ ना करे। पूजा पाठ करते समय मुँह को कभी ना ढके खुले मुँह ही पूजा करनी चाहिए पूजा करते और भोजन करते समय अपना मुँह पूर्व दिशा की तरफ ही रखे दक्षिण और पश्चिम की तरफ मुँह करके पूजा और भोजन नही करना चाहिए इन दिशाओ मे पूजा भोजन करने से नेगटिव ऐनर्जी आती है और पूर्व -उतर दिशा से साकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। घर के मंदिर के साथ या सामने सोचालय नही हो।
जब आप पूजा की वस्तुओ का स्पर्श करे तो एकदम पवित्र हो यानि आप मल ( दीर्घ शंका ) और मूत्र ( लघु शंका ) का त्याग करे तो कुध को पवित्र अवश्य करे। लघु शंका जाने पर अपने साथ पानी का बर्तन रखे उससे अपने विषेश अंगो को धोए फिर हाथ मुँह धो कर कुल्ला ( कुर्ला ) कर ले तब आप पुनः पवित्र हो जाते है। दीर्घ शंका यानि मल त्याग करने के बाद आपको स्नान करके धुले वस्त्र धारण करने चाहिए मंजन आदि से मुँह को साफ करना चाहिए तभी पुनः पवित्र हो सकते है। इस तरह पुरी तरह से पवित्र होने के बाद ही आप मंदिर मे प्रवेश करे और घर की पूजा सामग्री को छुए। पवित्र अवस्था मे ही लड्डू गोपाल को छुए या भोग अर्पण करे।

आप जब भी भोजन करे तब भी पवित्र हो कर ही भोजन करे। दिन मे जब भी मल त्याग को जाए स्नान अवश्य करे। चहा तक हो सके अपने खाने पिने का विषेश ध्यान रखे बिना भुख कुछ भी ना खाए जब आपको भुख तेज लगे तभी भोजन करे। इस तरह से आप अपने को दुरुस्त रख सकते है और दिन मे बार-बार मल त्याग के लिए नही जाना पडेगा। कब्ज ने परेशान कर रखा हो तो इसके लिए टमाटर का पतला सा सूप बना कर गर्म गर्म पी ले फिर आपकी कब्ज खत्म हो जाएगी। टमाटर सूप के लिए अलग से लेख लिख दुगी समय मिलने पर।
पूजा की सरल विधी——
घर के इशानकोण पर लकडी का पाटिया या छोटा मेज लेकर उस पर धुप दीप रखले और एक पानी का कलश स्थापित कर दे फिर जगह को साफ करके धुप दीप जगा कर अपने इष्ट का ध्यान करते हुए अपनी पूजा पाठ कर ले। यह विधी आप घर से दुर घुमने जाते है वहाँ भी आसानी से कर सकते है।अगर आप नौकरी करते है या पढाई के लिए घर से दुर रहते है तब भी इस तरह पूजा अर्चन कर सकते है इसमे किसी मुर्ती या तस्वीर की जरुरत नही होती क्योकि ताम्बे के कलश ( लौटे) मे भर कर रखा जल साक्षात गणेश का रुप होता है। जल तत्व के देवता श्री गणपति स्वयं होते है जल स्थापित होते ही आपने गणपति को स्थापित कर लिया होता है और जहाँ गणपति गणेश विराजमान होते है वहाँ सभी देवी-देवता विराजीत हो जाते है। इस तरह की पूजा मे प्रशाद चढाने की जरुरत भी नही होती बस लौटे मे रोज जल भर कर पूजा करते समय स्थापित कर दे दुसरे दिन पूजा करते समय उस जल को किसी पौधे मे डाल दे और धुप-दीप के बर्तन व लौटे को साफ कर ले उस लौटे मे फिर से अगले दिन की पूजा के लिए जल स्थापित कर दे बस लौटे मे पानी रोज ताजा भरना चाहिए। कलश वाले पाटिये पर धुप दीप जला कर उसके सामने अपना आसन लगा कर पूजा करने बैठ जाए आसन के लिए वही सब नियम की आसन ऊनी हो। पूजा करके आसन उठाने की विधी जल आसन के एक कोने के नीचे गिरा कर जल आँखो और मांथे पर लगाए। आसन छोडते समय आसन लपेटे फिर उस स्थान पर माथा टेके( मस्तक जमीन से छुए )

इस तरह आप एक कमरे मे भी रह कर पूजा कर सकते है। पाटिए पर कमरे के इशानकोऩ पर जल स्थापित करके कई बार किराए के कमरे मे या पढाई,नौकरी के लिए एक कमरा किराए पर ले लिया तो सोचते है पूजा स्थल कहाँ बनाए अपने एक कमरे के घर पर भी आप इशानकोम मे पूजा कर सकते है। यहाँ आपको पर्दा करने की जरुरत भी नही ना ही स्ना आदि करवाने की चिंता सुबह स्नान आदि करके पाटिए पर जल रख धुप दीप जला पूजा आसानी से हो जाती है और समय कम खर्च होता है। जीस कमरे मे आर पूजा करे वहाँ जूते-चप्पल ना लाए। उस कमरे मे कोई नशा ना करे इसका ध्यान रखे कभी मेहमान आते है वे समोकर भी हो सकते है तो उन्हे पहले से ही इतला कर दे की आप समोकिंग (धुम्रपान) ना करे।

पूजा भक्ति करने वालो को किसी तरह का नशा नही करना चाहिए पुरी तरह से सात्विक भोजन करना चाहिए नही तो उनको नकारात्मक ऊर्जा ( नेगेटिवीटी ) तंग करने लगेगीऔर साकारात्मक ऊर्जा ( पोजीटिव ऐंर्जी) पास नही आएगी।