आईए जाने कि सूर्य ग्रह भी क्या किसी के लिए तलाक का कारण बन सकते है। कुछ तथ्य देखते है इसी से हमे इस प्रश्न का उत्तर मिल जाऐंगा।

सूर्य ग्रह अपनी रश्मियो से घरती को ऊर्जावान और प्रकाशमान बनाते है। सूर्य ना हो तो प्राणी-जगत खतरे मे पहुंच जाऐंगा। मंगल,शनि,राहु के समान ही सूर्य ग्रह भी क्रूर ग्रह है। इस कारण ये किसी जातक-जातिका की कुंडली मे प्रथम स्थान यानि लग्न मे विराजमान हो जाते है तो उस जातक-जातिका मे बेहद ऊर्जा होती है वे बहुत फूर्तिले, मेहन्ती,कर्मठ, चेहरे पर औज और तेज लिए ऐसे जातक जहाँ भी जाते है मान-सम्मान स्वतः इनको मिलता है। इनको लीडरशिप करनी आती है। इन सभी गुणो के संग ही ऐंसे जातक-जातिकाओ मे स्वभातः क्रूर्ता प्रकट होती है क्योकि सूर्य भी तो क्रूर ग्रह है।

अब आपने जाना की सूर्य क्रूर् ग्रह है तो जातक-जातिकाओ मे क्रूरता के गुण विधमान रहते है। अब बात करे की इसका जातक-जातिकाओ के जीवन-साथी से क्या लेना देना क्यो यह ग्रह तलाक की नोबत लाता है। जब हम जान ही चुके है कि सूर्य भी इन्सान मे क्रूर्ता भरता है तो लग्न (प्रथम ) भाव मे बैठ कर सूर्य जातक को क्रूर स्वभाव प्रदान करते है और जीवन साथी के बारे मे जानने के लिए हमे जातक-जातिकाओ की कुंडली के सप्तम भाव को देखना होता है। जब लग्न मे बैठा सूर्य अपनी पूर्ण दृष्टि से सप्तम भाव यानि जातक-जातिकाओ के जीवन साथी के घर सप्तम भाव मे पूर्ण दृष्टि डालता अब समझे कि सप्तमभाव यानि जातक-जातिका का जीवन साथी हुआ और लग्न जातक-जातिका स्वयम हुए ऐसे मे जातक का क्रूर्तापूर्ण व्यवहार अपने जीवन साथी के प्रति होता है इस लिए पति-और पत्नि मे आपस मे वैमनस्यता रहती है लग्नस्थ सूर्य वाला जातक बात-बात पर अपने जीवन साथी के संग मार-पिट तक करने लगता है। और आपसी तनाव शुरु होने लगता है एक दुसरे से दूरी बनाने लगते है।

अब बात करे ऐसा होने पर ही तलाक होगा नही केवल सूर्य की सप्तम दृष्टि से तलाक हो जाऐंगा कहना उचित नही क्योकि सूर्य अपना काम करता है कू्रतापूर्ण व्यवहार बना देता इससे अलगाव तो होते है।आपसी मतभेद के चलते एक दुसरे से दुरी बना लेते है पर इसके साथ ही सप्तमेश को और जातक की कुंडली मे शुक्र और जातिका की कुंडली मे वृहस्पति को भी देखना चाहिए लग्न पर तो सूर्य से पाप प्रभाव पड रहाँ है मगर सप्तमेश शुभता लिए हुए अपनी पावरफुल स्थिति मे हो और साथ मे शुक्र (जातक), बृहस्पति (जातिका ) के अच्छे प्रभाव मे रहने पर तलाक नही होगा बस यदाकदा जातक-जातिका मे क्रूर्ता देखी जा सकती है। अलगाव रह सकता है।
अब बात करे कि फिर लग्नस्र्थ सूर्य कब तलाक करवा सकता है। जब जातक-जातिका के लग्न मे सूर्य होगा तो पूर्ण दृष्टि (सप्तम दृष्टि ) से लग्न मे बैठा सूर्य सप्तम भाव को देखता है। इसके साथ सूर्य की स्थिति भी जरुर देखे कि क्या सूर्यबली है अपनी पुरी पावर मे है या नही। इसके साथ सप्तमेश (सप्तम भाव का मालिक ) जो भी ग्रह हो वह कमजोर हो पाप प्रभाव मे अशुभ भाव मे बैठा हो पावर हीन होकर शत्रु राशि मे हो। इसके साथ जातक है तो शुक्र को भी देखना चाहिए कि वह किसी पाप प्रभाव मे तो नही कही शुक्र अस्त ( सूर्य के संग होना डीगरी अनुसार ) तो नही और जातिका की कुंडली मे वृहस्पति को देखना चाहिए कि वह बल हीन तो नही अशुभव तो नही इन सब बातो को देखने पर ही पता लग जाता है अमूक व्यक्ति का जीवन साथी से सम्बन्ध विछेद होगा (तलाक)
आईऐं सूर्य के जीवन से सम्बन्धित कहानी जाने—
सूर्य देव का विवाह विश्वकर्मा की बडी पुत्री संध्या ( संज्ञा ) से हुआ था। जब संध्या विदा होकर अपने पति सूर्य के संग रहने लगी तो संध्या से सूर्य देव के तेज और गुस्से को सहन नही कर पाती थी संध्या बहुत ही शांत स्वभाव और मधुर थी। इस लिए सूर्यदेव और संध्या मे मतभेद रहने लगे संध्या हर समय डरी सहमी रहती बहुत कोशिश करने के बाद भी वह अपने पति सूर्य के संग अब आगे अपना जीवन बढाना नही चाहती थी। इस लिए वह अपने पिता विश्वकर्मा के घर लौट गई पर वहाँ उनकी बहने जो कि राजाओ के संग विवाहित थी वे बहने संध्या को ताने देने लगती उसका अपमान करती माता-पिता तो पुत्री के लिए दुखी थे वे सब जानते थे फिर भी अपनी पुत्री को समझाते कि वह अपने पति के पास पुनः लौट जाए इस लिए विश्वकर्मा ने सूर्य देव को बुलवाया सूर्यदेव संध्या को अपने संग पुनः ले गए पर अभी भी संध्या का मन खिन्न रहता उसका मन सूर्य लोक मे नही लगता वह बहुत दुखी रहने लगी।

एक रोज हार कर उसने वहाँ से कही दूर चले जाने का निर्नय लिया और सूर्य लोक को छोड कर वह घरती पर आकर रहने लगी और कंदराओ मे रह कर भक्ति करने लगी जब इस बात को काफी समय हो गया तो सूर्यदेव को संध्या के लिए चिन्ता हुई वे और विश्वकर्मा संध्या को ढुंढते हुए पृथ्वी पर पहुंचे और तब संध्या से मुलाकात हुई पर संध्या ने अब पति के लोक मे लौट कर जाने से इनकार कर दिया ऐसे मे परम-पिता ब्रहमा जी भी संध्या को सम्झाने आऐ क्योकि संध्या के बीना सूर्य देव दुखी रहने लगे। उनका अपने कार्य मे अच्छी तरह से मन नही लगता मगर अब संध्या ने ठान ही लिया कि वह वापस नही जाएगी उसे वहाँ मान्सिक अशांति होती थी। फिर ब्रहमा जी ने इसका हल ढुंढा कि संध्या की छाया (तस्वीर की तरह ) को सूर्य देव के संग विदा कर दिया अब सूर्यदेव ने छाया को ही अपनी पत्नि मान कर पुनः अपने लोक मे चले गए। संध्या पृथ्वी पर रह कर शांति से तपस्या करने लगी इस से उसको मान्सिक और आत्मिक सुख शांति मिलने लगी। संध्या के दो संताने थी एक पुत्र यम और एक पुत्री यमी ( यमुना ) वे अपनी माँ को ना पा कर बहुत दुखी हुए और अपने पिता सूर्य के लोक को छोड कर अपनी माँ संध्या के पास घरती (पृथ्वी ) पर आ कर रहने लगे। यम यानि यमराज जो कि नरक के मालिक मनोनित हुए और यमि यानि यमुना जो पृथ्वी पर यमुना नदी बन कर बहने लगी। उधर सूर्य की दुसरी पत्नि संध्या की छाया के भी दो संतान हुई एक पुत्र शनि देव ( छाया पुत्र शनि ) और एक पुत्री भद्रा पैदा हुई। शनिदेव को आप सभी जानते है।

कहते है जीन पर शनिदेव प्रसन्न हो जाए तो उसे निहाल कर देते है और जीससे रुष्ट हो जाए तो उसे मिट्टी मे मिला देते है ये केवल एक कहावत है वास्तव मे जो जीव जैसे कर्म करता है शनिदेव उसे वैसा ही फल देते है। हाँ शनिदेव पहले तो जीव को बहुत कष्ट देते है ताकि उसका अंतर्मन शुद्ध हो जाए जब जीव का अंतर्मन शुद्ध हो जाता है तो उसे बहुत लाभ देते है। शनिदेव न्याय के देवता है जो जैसे कर्म करता है उसे वैसे ही फल प्रदान करते है शनिदेव किसी के संग भी अन्याय नही करते। लोग शनि की ढईया और साढसाती से भय खाते है मगर वास्तव मे शनिदेव उसे ही बुरा प्रभाव देते है जीसने अनिति की राह पकड रखी होती है। धर्म, मान, मर्यादा पर चलने वालो को शनि देव शुभ फल देते है सदैव उनके हीत की सोचते है उन्हे वे सब मिलता है जीसके लिए परमात्मा ने उन्हे अधिकारी बनाया होता है।जब सूर्य और शनिदेव का मिलन होता है तो सृष्टि मे खुशहाली आती है ऐसे मे अपने बिछडे हुए माता-पिता से पुत्रो संतानो का मिलन होता है।यानि ऐसे मे संताने अपने माता पिता के पास आती है या माता-पिता अपनी संतान के पास जाते है कुल मिलाकर सब पुर्ण परिवार बन जाते है।
जो जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान यह गीता का ज्ञान अपना कर्म करते चले जाओ फल देना भगवान पर छोड दो।
ऊँ सूर्य देवाय नमः ऊँ सूर्य पुत्र शनिदेवाय नमः
जय श्री राम,जय श्री कृष्ण