श्री कृष्ण को राधा का प्रेमी बना कर प्रस्तुत किया जाता है जो कि नितान्त ही गलत है। जीस काम के लिए हमारे शास्त्रो मे बुरा माना जाता है तो क्या वह गलत काम स्वयम भगवान करेगे नही जी बिलकुल भी नही करेगे भगवान ऐसे काम जीनसे उनकी बनाये नियमो का उल्ंघन होता हो। भगवान श्री कृष्ण को राधा का प्रेमी मानने वाले लोगो को यह लेख अवश्य पढना चाहिए। आईए सबसे पहले हम कृष्ण तत्व को समझ ले कि कृष्ण कौन है और उनकी कथनी व करनी क्या है।
श्री कृष्ण जीन्हे हम भगवान मानते है।उनका प्राकृटय होता है दुनिया मे वे गर्भ मे नही रहते। जब को गर्भ मे रहता ही नही यानि पैदा होने से पहले माँ की कोख मे पलना जब वे गर्भ मे नही रहते तो उनका जन्म भी नही होता। वे स्वयम घरती पर अवतरीत होते है।हम जैसे अज्ञानी जनो को वे पैदा हुए जान पडते है।जब भगवान के अंश के रुप मे कोई बालक पैदा होता है तब उसके जन्म होने के बाद भगवान स्वयम आते है और उस नव-जात शिशु के शरीर मे अपनी शक्तियो का समावेश करवा देते है। यही है उन सुपर पावर शक्ति भगवान का दुनिया मे आना या यू कहे की जन्म लेना।

जब कोई जन्म लेता किसी शरीर (कोख ) मे पलता नही तो उसके भितर कोई कामना हो सम्भव नही हो सकता। भगवान ना तो किसी का समागम करते है ना ही किसी से समागम करने की ईच्छा रखते है। वे तो एक महान शक्ति है इस कारण उन्हे किसी दुसरी बाहरी शक्ति की आवश्यकता नही होती वे स्वयम मे पूर्ण होते है। उनके भीतर ही स्त्री और पुरुष की शक्तियाँ समाहीत होती है तभी तो नारायण ने अकेले ही इस संसार की स्सृटि कर दी नारायण के नाभी कमल से ही ब्रहमा का जन्म हुआ कोई बालक पैदा होता है तो वो भी माता के नाभी कमल से ही तो उत्पनन् होता है ठीक उसी तरह ही ब्रहमा जी भी नारायण भगवान के नाभी से उत्पन्न हुए है।
सबसे पहले स्सृटि की रचना के लिए जो देवता लोग पैदा हुए उनका जन्म किसी स्त्री-पुरुष की देन नही जैसे ब्रहमा जी पैदा हुए उसी तरह सभी देवी-देवता पैदा हुए। बहुत बाद मे नारायण भगवान की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए ब्रहमा जी ने स्वयम पैदा हुए अपने पुत्रो से इस संसार के विस्तार के लिए प्रेरित किया तब ब्रहमा पुत्र मनु ने अपनी पत्नि सतरुपा से समागम करके संतान उत्पन्न की मनु और सतरुपा का जन्म स्वयम हुआ था सबसे पहले यही पुरुष और स्त्री का जोडा था जीन्होने समागम के माध्यम से संसार की पहली संतान पैदा की थी।
अब तो आप सबको स्पष्ट रुप से समझ आ गया होगा की भगवान कभी भी स्त्री-पुरुष के जोडे के रुप मे नही रहते। भगवान विष्णु और लक्ष्मी स्वयम प्रकट हुए नारायण और नारायण के ह्दयस्थल मे रहने वाली श्री लक्ष्मी रुपा स्वर्णिम आभा के अनंशावतारी है दोनो इसी तरह ब्रहमा जी और सरस्वती भी नारायण-लक्ष्मी के अंशावतारी है। शिव जी व पार्वती ( पूर्व मे सती ) भी नारायण और उनके भीतर समाहीत ह्दयस्थल निवासिनी लक्ष्मी ने ही इन को प्रकट किया फिर इन तीनो देवो ने और तीनो देवियो ने जो स्वयम पैदा हुई गर्भ से उत्पन्न नही हुए ये त्रिदेव-त्रिदेविया स्वयम जन्मा है।इन्होने संसार की रचना के लिए मानव शरीर बनाया मनु-सतरुपा फिर इस मानव जोडे को विभक्त कर दिया एक हिस्से को पुरुष और एक हिस्से को स्त्री रुपा से निर्मित किया और इन्हे संसार को बढाने के लिए आशिर्वाद दे इनको विवाह सूत्र मे बांध दिया आगे चलकर इन्होने समागम से संतान पैदा की इस तरह संसार का विस्तार किया।
ये तो हुआ भगवान के जन्म लेने प्राकृटय की जानकारी। आईए अब बात करे राधा की ये राधा है कौन कोई जानता ही नही यह राधा एक कपोल-कल्पित पात्र है जीसकी रचना पाखंडियो ने अपनी जेब गरम (धन के लालच मे )करने के लिए कई सो साल पहले की थी। आईए जानते है की इस कपोल कल्पित राधा का जन्म कब और कैसे हुआ। हिन्दु धर्म बहुत पुराना यानि प्रचिनतम धर्म है। एक समय ऐसा था जब सभी तरफ हिन्दु धर्म का ही फैलाव था मगर धिरे-धिरे इस मे बहुत से बदलाव आने लगे लोग भटकने लगे नए पंथो की तरफ फैलने लगे। पहले राजा जीस पंथ या कहे धर्म को अपनाता प्रजा उसी मे आश्कत हो जाती थी। उसी पंथ का ही चारो तरफ गुंजान होता लोग वही सब करते जो राजा करता। इस तरह से हिन्दु धर्म टुटने लगा नई-नई शाखाओ मे विभक्त होने लगा।

हिन्दु धर्म चंद्रगुप्त मार्य काल तक अपनी चरम सीमा पर था। तब हर कोई हिन्दु धर्म का अनुयायी था। इसका स्पष्ट उदाहरण काशी ( वाराणशी) मे खुदाई मे मिले चंद्र गुप्तकाल के मंदिर मिलना इस बात की पुष्टि करते है कि उस समय हिन्दु धर्म का ही महत्वपूर्ण स्थान था।बाद मे महात्मा बुद्ध से नया पंथ निकला जीसे बोद्ध धर्म माना जाता है। महावीर स्वामी हुए जीनसे जैन धर्म बना। इस तरह राजाओ को रुझान भटकने लगा अब हिन्दु धर्म से बोद्ध धर्म व जैन धर्म मे प्रवृर्तित लोग धिरे-धिरे इनकी मात्रा बढने लगी जो धर्म कर्म करने वाले लोग थे वे अब कई पंथो मे बटने लगे। कोई बोद्ध कोई जैन इन पंथ फैलाने के प्रयत्न्न हुए और अब हिन्दु धर्म टुटने लगा धार्मिक लोग हिन्दु धर्म के विमुखहोने लगे ।
ऐसी स्थिति मे जो हिन्दु धर्म के रक्षक बने हुए थे उनकी धर्म के नाम पर दुकनदारी बंद होने लगी क्योकि धार्मिक प्रवृति के लोग हिन्दु धर्म छोड जैन और बोद्ध धर्म मे प्रवेश करने लगे। इस लिए हिन्दु धर्म के नाम से अपनी रोटी सेकने वालो की आमदनी बंद होने लगी इस कारण उन्होने पाप का सहारा लेने की सोची और पाखंड फैला कर नास्तिक लोगो को अपनी तरफ आकृसित करने का कार्य शुरु हुआ।ये नास्तिक लोगो का काम वासना पूर्ति होता था। इस लिए उन लोगो को जोडने के लिए पाप नियति से राधा को पैदा किया ( कपोल-कल्पित ) और राधा और कृष्ण की प्रेम कहानिया बनाई गई और अब कामी, धुर्त, लम्पट, व्यभिचारी, दुराचारी लोगो से धन एंठने के लिए माध्यम मिल गया इस तरह राधा-कृष्ण की युगल छवि का निर्माण किया गया। यही से दान प्रथा शुरु हुई। दान देने वालो को पुन्य का भागी माना जाने लगा। मगर हक्कित यह है कि पापी का धन कभी भी नही खाना चाहिए क्योकि उसके धन मे पाप होता है जो उस पाप निर्मित धन का उपयोग करता है वह भी उसी के समान पाप का भागी बन जाता है। इस लिए शास्त्रो मे दान प्रथा का कोई महत्व नही था इसे बाद मे ही बढावा मिला।

पर आज के लोग धर्म के प्रचारक इस कपोल-कल्पित राधा को सच मान बैठे है। केवल कृष्ण ही सच्चाई है। कृष्ण मे काम वासना नही थी ना ही किसी भी पर नारी के संग उन्होने प्रेम प्रसंग किया था।यह बात केवल धर्म को सही मायने से जानने वाले लोग ही जान सकते है।
पर पुरुष और पर नारी को छुना बहुत बडा पाप है उनके लिए घोर नरक होता है जो पर-पुरुष और पर-नारी से मिल समागम करते है। तो फिर आप खुद ही निश्चय करे की भगवान खुद ऐसे काम क्यो करेगे जो नरक मे गिराते हो। इस लिए अपने विवेक को जगाए गलत सही मे फर्क करना सिखिए और जीतने भी धर्म प्रचारक है वे भी गलत बात का प्रचार ना ही करे जयकारा लगाने के लिए जय श्री कृष्ण,जय श्री राम का भी जय घोष कर सकते है। राधा का प्रचार प्रसार कम ही करे। राम सीता के संग और कृष्ण के संग किसी नारी का जय घोष करे तो रुकमनी,सत्यभामा आदि मे से कर सकते है मुझे तो सदैव कृष्ण रुकमणी के संग ही विराजीत ही दर्शन दिये है। क्योकि कृष्ण की सबसे प्रिय पत्नि रुकमणी ही थी। रुकमणी साक्षात माँ लक्ष्मी का अंश थी और श्री कृष्ण विष्णु अवतारी थे। रुकमणी को वे स्वयम हरण करके लाए थे बाकि सभी पत्नियाँ तो उन्हे उपहार स्वरुप भेट मे मिलती गई और एक हजार एक ने उन्हे अपनी आत्म सुद्धी के लिए पति रुप से वरण किया था। उन्हे एक राक्षस ने अपनाया था वे अशुद्ध हो गई थी।

गरुड-पुराण मे इसका पुरा वर्णन है की जो पर-पुरष या पर-नारी से समागम करता है,उसको नर्क मे यम दूत लौहे की जलती हुई पुरुष व नारी की प्रतीमा से समागम करवाते है जब वह आत्मा आग से जलती है तडपती है तो उसे कोडो से पीटा जाता है और यमदूत उन्हे बार बार यही कहते है। जब पर-नारी,पर-पुरष के समागम से आनन्नद मिलता था तो अब वही आनन्न स्वीकार करो इसी पर-पुरुष, पर-नारी के लिए तब व्यभिचार करते थे तो अब क्यो रोते हो रोना उस समय था उस समय गलत सही का विवेक जानकर सही मार्ग पर चलना था। जब भगवान ने स्वयम तुम्हारे लिए जोडी बनाई थी तो फिर क्यो दुसरो की जोडी की तरफ कुदृष्टि डाली तो जो किया है उसका भुकतान तो करना ही पडेगा। पर आजकल लोग धर्म हीन होते जा रहे है अपनी मर्यादा खोते जा रहे है कलयुग मे पाप बढते है पापी बहुत हो जाते है।

आप सब जो भी मेरे इस लेख को पढे अपने विवेक को जगाए और सही मार्ग चुने अपने जीवन साथी के संग समागम करे विहार (आमोद प्रमोद करना घुमने फिरने बाहर जाना ) करे जीतना चाहे प्यार करे इससे आपको पाप नही लगेगा वल्कि इससे आप अपने जीवन साथी के संग इस घरती पर सुख भोगते हुए मरने के बाद दुसरे लोक मे भी आप दोनो पति और पत्नि का यह अटुट बंधन बना रहेगा दुसरे लोको मे आप दोनो पति-पत्नि का स्वागत धुम-धाम से होगा। जीन लोगो के जीवन साथी दुनिया छोड गए वे भुल कर भी दुसरे के संग ना रहे वल्कि उसकी याद मे रहे अपने बिछडे जीवन साथी के संग बिताए हर पल को अपनी यादो के पन्नो मे समेट कर रखे उन्हे याद कर हर पन्ना पल्ट कर रोज देख लिया करे आपका बिछडा जीवन साथी यानि दुनिया से जो चला गया वह भी आप को सदैव याद करता रहता है यह सच्चाई है। अपने जीवन साथी की जगह दुसरे को मत दे नही तो वह आपका प्रिय जीवन साथी आपको भुल कर अपना नया जोडा ढुंढ कर नया जन्म ले लेगा और आपको अगले जन्म अपने जीवन साथी की तलाश मे ताउमर भटकना पडेगा।
राधा शब्द जो हमे समझ मे आये राधा यानि इसका उल्टा करे तो धारा। वह धारा जो भगवान के भक्तो के मन मे बहती है भक्ति रुपी धारा। दुसरा मतलब यही समझे राधा बृषभानु दुलारी बृषभानु का एक पर्यायवाची नाम गाय का बछडा बैल भी होता है सो बृषभानु दुलारी यानि गाय भी हो सकती है भगवान श्री कृष्ण जब दुध पिते बच्चे थे तो माँ यशोदा गोशाला मे साफ सफाई के लिए जाते समय बालक कृष्ण को अपने संग ले जाती और उन्हे एक कोने मे बैठा खुद काम मे लग जाती बालक कृष् घुटनो के बल चलते हुए एक गाय जो कामधेनु सफेद रंग की ऊँची लम्बी थी उस गाय के पास पहुच जाते तो वह गाय बाल कृष्ण को देख अपने धनो से दुध की धारा वहाने लगती थी और श्री कृष्ण नन्हे बालक उस धाना से दुध पी कर अपनी तृप्ति करती थे। यही वह बृषभानु दुलारी राधा रही होगी जो कृष्ण की प्रिय गाय थी हो सकता है और नासमझ लोगो ने इसका गलत रुप से उपयोग कर लिया हो। सोचने को बहुत मतलब निकल सकते है मगर सच्चाई यही है कि भगवान कभी समागम के लिए किसी बाहरी नारी का सहारा नही लेते।
जीवन जीने की कला सिखो खुशिया खुद आपके मन के दरवाजे पर दस्तक देने आएगी।