श्री कृष्ण की रास लीला वर्णन

भगवान श्री कृष्ण की प्रत्येक लीला रस से भरी है इसे सुन कर श्रोतागण आनन्द विभोर होते है मन को विशेष सूकून मिलता है। जब से श्री कृष्ण धरती पर प्रकटे तभी से उनकी अनोखी झलकियाँ लीलाए दिखने लगी पुतना-वध, शकटासुर-वध, धेनकासुर-वध, बकासुर-वध, कालिया-मर्दन, गोवर्धन पर्वत लीला,वस्त्र हरण, ब्रह्मा को सबक,इन्द्र को सबक,कुबजा-उत्थान आदि लीलाओ के संग सबसे महत्व पूर्ण लीला है रास लीला। रास लीला मे श्री कृष्ण का गोपियो के संग रास करने का चित्रण है।

आईऐं रास लीला मे प्रवेश करे——

बहुत ही सुहानी चांदनी रात है। यह समय शरद पूर्णीमा ( सर्दी का आगमन होने का समय ) का है। शरद पूर्णीमा के चांद की शीतल चांदनी चारो तरफ छिटकी हुई है। बहुत ही मन मोहक वातावरण है। शीतल चांदनी रात मे धरती पर बिछी रेत भी चांद की शीतलता से भरी चांदनी की चमक से सरा-बोर हो रही है। मौसम बेहद मनोरम है ना ज्यादा सर्दी है ना ज्यादा गर्मी और ना ही बरसात की चिप-चिपाहट व किचड है। चांदी के समान चमकती धरती मन मे उल्लास भर देती है। ठण्डी शीतल पवन बह रही है। कुमुदनी के फूलो की महक से वातावरण बहुत खुशनुमा मोहक हुआ जा रहाँ है। इतना आनन्द दायक माहौल है तो श्री कृष्ण के मन मे इस माहोल का आनन्द लेने के लिए कदम के नीचे खडे हो कर बांसुरी की मधुर तान छेडी है इसे सुन कर हर कोई आकर्षित हुआ बांसुरी की धुन की तरफ खिंचा चला आ रहाँ है।

गोपियाँ अपने घर से बाहर निकल पडी है सब एक-दुसरी गोपी को बुला-बुला कर अपने संग उस बांसुरी की तान की मधुर ध्वनि से मंत्र मुग्ध सी हुई खिंची चली आ रही है। श्री कृष्ण के पास कुछ गोपिया तो श्री कृष्ण के पास पहुच गई कुछ अभी घर के काम मे व्यस्त है वे सब भी जल्दी से वहाँ पहुचने को व्याकुल हो रही है। जैसे-तैसे करके फुर्ती से अपना सब काम सलटा रही है। उन्हे लग रहाँ है की हम कृष्ण की इस लीला से वचिंत ना रह जाए।इस लिए बहुत फुर्ती से काम कर रही है। काम खत्म करके भागती है श्री कृष्ण की बांसुरी की धुन की आवाज का पिछा करती हुई। अब सभी गोपिया रास मंडल मे प्रवेश कर चुकी है। कृष्ण मधुर स्वर मे बांसुरी बजा रहे है। सब गोपिया मंत्र मुग्ध सी हुई उन्हे निहार रही है। अब श्री कृष्ण ने अपना ध्यान बांसुरी से हटा दिया है। बांसुरी अब कृष्ण के अधरो का रस पान नही कर रही है।

श्री कृष्ण ने अपनी पैनी कटाक्ष नैत्रो को खोल लिया है। अब उन्होने अपने सामने देखा कि गोपियो का झुण्ड उनको निहार रहाँ है। श्री कृष्ण गोपियो की तरफ देखते हुए बोले— अहो महाभागो अरे बडी भाग्य वाली गोपियो तुम इतनी रात को वन मे क्या कर रही हो। इतनी घनेरी अर्ध रात्रि के समय महिलाओ को घर से बाहर नही घुमना चाहिए। फिर तुम तो आई भी अकेली हो कोई पुरुष तुम्हारे साथ नही है। जाओ वापस घर लौट जाओ। घर पर तुम्हारा इंतजार हो रहाँ होगा। घर वालो को तुम्हारे लिए चिंता हो रही होगी। तुम्हारे घर वाले तुम्हे ढुढते हुए इधर- उधर भटके इसके पहले तुम घर पहुच जाओ। भगवान श्री कृष्ण उनको सभी नीतिनिपुणता वाली बाते कहते जा रहे है मगर गोपिया टस से मस नही हो रही बस मुर्तीवत कृष्ण को ही टक-टकी लगाए देख रही है।

गोपियाँ कृष्ण को इस प्रकार एक-टक निहार रही है कि वे जैसे पलको को दोष देना चाहती है। हे पलको आज इस सुहाने अवसर मे तुम अपना नृत्य आरम्भ मत करना वे बिना पलक झपकाए ही श्री कृष्ण को निहारने का आनन्द ले रही है। श्री कृष्ण उनको समझाते जा रहे है और वे है कि टस से मस नही हो रही है। श्री कृष्ण समझ गए कि अब इनको कुछ समझाना व्यर्थ है इस लिए वे वहाँ से चुप-चाप चले गए। अब तो गोपिया उनको ढुढती हुई इधर-उधर भटकती फिर रही है। लता-पताओ से पुछती हुई ढूंढ रही है– हे लताओ हे पत्तो तुम ही बताओ हमारे प्राणाधार, हमारे चित-को चुराने वाले चित-चोर कहाँ चले गए है। वे हमसे से नाराज हो कर कही चले गए हमे दिख नही रहे। वे हमारे सर्वस्व है। उनके बिना हमारा जीवन व्यर्थ है जैसे शरीर तो हो मगर उसमे से प्राण निकल जाए तो वह शरीर लाश बन जाता है, ठीक उसी तरह हमारे प्राण श्री कृष्ण चले गए और हम लाश मात्र रह गई है।

पुरे वन मे श्री कृष्ण को ढुढती हुई गोपिया विरह मे रोती जा रही है और श्री कृष्ण की लीलाओ का वर्णन रुपी गीत ( गोपी गीत ) गाती जा रही है। कोई गोपी कृष्ण बन गई है, कोई गोपी पुतना, कोई गोपी बकासुर, कोई गोपी गाय बन गई,कोई गोपी कृष्ण सखा बनी हुई है।ठीक जैसी लीला श्री कृष्ण ने करी उसी तरह के अभिनय करती हुई गोपियाँ कृष्ण को पुकारती जा रही है। उन्हे ढुडते हुए जब गोपिया थक गई तो वे वापस उसी स्थान पर लौट आई और गीत गाती हुई कृष्ण के आने का इन्तजार कर रही है। इधर श्री कृष्ण ने देखा कि ये गोपिया आज वापस घर लौटने वाली नही है तो वे तुरंत गोपियो के समुख प्रकट हो गए। अब तो गोपियो के चेहरे फूलो की भांति खिल गए है मानो जैसे उनके शरीर मे फिर से किसी ने प्राण भुंक दिये है। गोपिया जल्दी से उठी और किसी ने अपनी औंढनी को धरती पर बिछा दिया है।

कोई आगे बढ कर कृष्ण का हाथ पकड कर ला रही है और उन्हे अपने बिछाए गए औठनी पर बैठा रही है। कोई अपने औठनी से उनके चेहरे से धुल-मिट्टी हटाने के लिए अपनी औढनी से उनके मुख को साफ कर रही है। सब बहुत प्रसन्न है कि उनके प्राणाधार स्वामी लौट आए है। भगवान श्री कृष्ण ने गोपियो के व्यवहार को देख कर उन्हे खुश करने की योजना बनाई। अब उन्होने सभी गोपियो को गोलाकार घैरे मे खडा कर दिया और स्वयं उस गोल घैरे के मध्य मे खडे हो गए। श्री कृष्ण उस रास मंडली मे मध्य मे खडे हो कर बांसुरी बजाते जा रहे है और गोपिया उन्हे निहारती हुई नृत्य करती जा रही है। भगवान श्री कृष्ण ने भी उनके संग नृत्य करना शुरु कर दिया है वे बांसुरी बजाते हुए इतनी फुर्ती से नृत्य कर रहे है कि प्रत्येक गोपी को ऐसा लग रहाँ है कि श्री कृष्ण उन्ही के संग ही नृत्य कर रहे है।

धिरे-धिरे रास नृत्य अपनी परम सीमा मे पहुच गया अब रात ढल चुकी थी भोर होने वाली है। धिर-धिरे चांद की चटक चांदनी विलुप्त होने लगी है पक्षियो ने अपने पंख खोले है ऊँचाईयो से बात करने के लिए। धिरे-धिरे सूर्य देव आकाश के आगोश मे अपने कदम बढाते जा रहे है। भोर की सुहानी बेला हो चुकी है यह जान कर श्री कृष्ण ने रास को विश्राम देते हुए सब गोपियो को घर भेज दिया है। गोपियो को रास का नशा सा हो गया और वे इस रास के नशे के मद से भरी हुई अपने- अपने घर को लौट रही है। सब एक दुसरे से रास की ही चर्चा करती जा रही है। जय श्री रास बिहारी श्री कृष्ण कन्हिया लाल की।

ये तो हुआ रास लीला का वर्णन शास्त्रानुसार । पर कुछ बाते हमे जीज्ञासु बनाती है। कि इतनी बडी रास लीला हुई पर राधा के नाम का कही जीकर तक नही हुआ सिर्फ गोपिया ही वर्णीत है।ये गोपिया कोई साधारण महिलाए नही है ये वे संत है जीन्होने हजारो साल घोर तप करके भगवान को पाने की लालसा रखते थे। इन्हे इस युग मे श्री कृष्ण रुप मे भगवान ने दर्शन देने और उनकी अभिलाषा पुरी करने के लिए के लिए ही इन्हे इस युग मे गोपियो के रुप मे जन्म दिया था और उनकी आत्मानन्द के लिए श्री कृष्ण ने इस रास लीला का मंचन किया था।

अब बात रही राधा कौन है राधा वे अतृप्त आत्मा जो भगवान के दर्शन को पाने के लिए तडप रही है। वही गोपिया और राधा है। कहते है भगवान परामात्मा यानि परम आत्मा और जीव आत्मा है आत्मा हमेशा अपनी परम आत्मा से मिलने के तडपती है। इस लिए यह रास लीला आत्मा का परमात्मा से मिलन का साक्षातकार है। इस लिए आप और हम सब भी वही गोपिया है हम भी वही परमात्मा को पा लेने की चाह रखने वाली आत्माए है। जो प्राणी इस रास लीला का अध्ययन मन व श्रवन करता है उसकी अतृप्त आत्मा को शांति मिल जाती है वह परमात्मा मे लीन हो जाता है। उसे एक ना एक दिन परमात्मा के दर्शन हो जाते है।

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