एक बार एक संत थे वे रोज प्रातः काल गंगा स्नान करने के लिए जाते और गंगा मे स्नान करके पूजा-अर्चना करते। एक दिन वे संत जब गंगा स्नान के लिए गए तो जब वे स्नान करके अपने दोनो हाथो से अंजुली बांध कर सूर्य को अर्घ्य देने लगे ठीक तभी एक बाज एक चूहिया को अपनी चोंच मे पकड कर ले जा रहाँ था। उस बाज की चोंच से वह चूहिया छूट गई और संत की अंजुली मे गिर गई। अपने हाथ मे कुछ गिरने की बात सोच कर संत का ध्यान टूट गया और उन्होने आँखे खोली। उन्हे अपनी अंजुली मे एक चूहिया नजर आई।
चूहिया को देखा कि वह डर के मारे काप रही थी। संत ने उस बाज को देखा जीसकी चोंच से वह चूहिया नीचे गिर गई थी। अब संत ने उस बाज से चूहिया को बचाने के लिए अपने एक हाथ जीसमे चूहिया को रखा दुसरे हाथ से उन्होंने चूहिया को ढक दिया और उसे नदी के गिनारे छोड दिया।फिर चूहिया डर से तेज-तेज कापने लगी इससे संत को उस पर दया आई।वे सोचने लगे की इस चूहिया को ऐसे छोड दिया तो फिर कोई बाज या अन्य कोई जानवर इसे खा जाएगा। बहुत सोच विचार करके उस संत ने उस चूहिया को एक लडकी बना दिया। अब संत ने उसे अपनी बेटी मान कर पालने लगे।
वह चूहिया लडकी बन कर संत की कुटिया मे रहने लगी। धिरे-धिरे कुछ समय बिता और वह लडकी बडी हो गई। जब वह बडी हुई तो संत को उसकी शादी करने की चिंता सताने लगी। इस लिए संत ने उसके लिए सुयोग्य वर ढुढना शुरु कर दिया। उन्होने सोचा की दुनिया का सबसे तेजस्वी पुरुष से ही मै अपनी इस बिटिया का विवाह कर दुगा।

अब संत ने सबसे तेजस्वी पुरुष सूर्य देव के पास गए और उनसे अपनी बेटी की शादी की बात करी। सूर्य देव ने शादी करने की हामी भर दी। अब वे संत खुश हो कर घर लौट आए। जब सूर्य देव उस कन्या से विवाह करने संत के घर आए तो संत ने अपनी बेटी को कहाँ यह सूर्य देव है संसार के सबसे तेजस्वी पुरुष है। इन से मै तुम्हारा विवाह करवा दूगा। अब उस लडकी ने सूर्य देव को ध्यान से देखा और संत से बोली मै इन से विवाह नही कर सकती। संत को हैरानी हुई वे बोले बेटी इन के समान और दुसरा दुल्हा कहाँ मिलेगा।
उस लडकी ने कहाँ यह बात ठीक है कि सूर्य देव बहुत तेजस्वी है,पर मुझे इनसे डर लगता है, क्योकि इनके इतने तेज को मै सह नही सकूगी। अब संत ने सूर्य देव से माफी मागी और उन्हे आदर से विदा किया। अब उस संत ने एक नई तलाश शुरु करनी अपनी कन्या के लिए सुयोग्य वर पाने के लिए। उन्होने अब चंद्र देव से अपनी बिटिया का विवाह करवाने की सोची। इस लिए वे संत चंद्र देव के पास गए और उनसे अपनी बिटिया से विवाह करने का प्रस्ताव रखा। चंद्र देव ने उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और वह बोले ठीक है मै तुम्हारी बेटी से विवाह करने के लिए तैयार हुँ।
अब संत वापस अपनी कुटिया मे लौट आए।अब चंद्र देव उस संत की बेटी से विवाह करने उनकी कुटिया मे पहुचे। संत ने अपनी बिटिया को बुला कर चंद्र देव से मिलवाया और बोले बिटिया यह चंद्र देव है इनसे मै तुम्हारा विवाह करवा दुगा। अब उस लडकी ने चंद्र देव को ध्यान से देखा और बोली ना पिता जी मै चंद्र देव से विवाह नही करवा सकती। चंद्र देव से विवाह करवा कर मै तो ठण्ड के कारण मर जाऊगी। अब संत ने चंद्र देव को भी आदर के साथ विदा किया।

संत ने फिर किसी और दुल्हे की तलाश शुरु की तो उन्होने अग्नि देव को अपनी बेटी से विवाह करने के लिए तैयार किया मगर उनकी बेटी ने अग्नि देव से भी विवाह करने से इनकार कर दिया। वह लडकी संत से बोली पिता जी अगर मेने अग्नि देव से विवाह कर लिया तो मै इनकी आग मे ही जल कर मर जाऊगी। आग मै सहन नही कर पाऊगी। संत ने अग्नि देव को भी विदा किया। इस तरह संत जो भी वर ढुढ कर लाते वह कन्या उनसे विवाह करने से मना कर देती। एक दिन कुटिया मे एक चूहा आया तो वह लडकी उस चूहे के संग बहुत खुश होकर खेलने लगी और संत के पास आ कर बोली पिता जी मुझे यह चूहा बेहद पसंद है। मै इससे विवाह करना चाहती हुँ।

संत बडे हैरान हुए और बोले बेटी मेने तेरे लिए एक से भड कर एक दुल्हे खोजे मगर तुझे उनमे से एक भी पसंद नही आया और अब तुझे यह एक चूहा ही पसंद आया। तब वह लडकी बोली हाँ पिता जी मुझे यह चूहा बेहद पसंद आया है। मुझे इसके संग रहने पर खुशी होती है। इसके संग रहने मे आनन्द मिलता है। संत समझ गए कि यह मेरी भूल थी कि मै एक चूहिया को लडकी तो बना सका पर इसकी प्रकृति इसकी नियती को नही बदल सकता था। इस की नियती तो चूहिया ही है फिर यह बात मै कैसे भूल गया भला एक चूहिया को सूर्य,चंद्र,अग्नि,वायु जैसे महान वर पसंद आते अपनी प्रकृति के चूहे को देख कर कितनी खुश है। संत ने तुरंत उस कन्या को वापस चूहिया बना दिया और अब वह चूहिया चूहे के संग चली गई थी।


कहानी से प्राप्त शिक्षा ———
जीस प्राणी की जैसी प्रकृति होती है उसे वही रास आता है वह अपनी प्रकृति के अनुसार ही सोच रखता है। जिसकी जितनी सोच होती है, वह उतनी ही दूर की बात सोच सकता है। उसे क्या लेना संसार की अन्य किसी बात से क्योकि उसको नियती ने जो प्रदान किया है, वह उसी मे ही संतुष्ट हो सकता है। इन्सान अपनी सोच व सामर्थ्य से अधिक नही सोच सकता। उसकी पसंद उसकी अपनी सोच के आधार पर होती है।