कई बार हमारे सामने ऐसे हालात बन जाते है कि हम उनका सामना करने से घबराते है। छोटी सी भी बात को हम बहुत बडी समझ लेते है और अपनी किस्मत या भगवान के इसके लिए दोषी ठहराते है। इस लिए अपने भाग्य को कोसने लगते है। भगवान को बुरा-भला बोल देते है। पर उस समस्या को शांत मन से सुलझाने या उन परिस्थिति से उबरने की कोशिश नही करते। इसके लिए हमने पहले से तैयारी नही करी होती है सो हमे उलझन सुलझाने की युक्ति नही आती। पर अगर हम शांत हो कर कुछ सोचते है तो सब समस्या ठीक हो जाती है। इसके लिए हमे बाहरी साधनो से प्रेरणा लेनी चाहिए तो हमे उस समस्या से मुक्ति मिल जाएगीं। इस लिए इस कहानी को जरा ध्यान से पढना कि कोई भी समस्या आने पर बुरा नही सोचना चाहिए इसे साकारात्मक रुप से देखना चाहिए तो कैसी भी परेशानी हो उसके दुख से बाहर निकलने मे मदद मिल जाएगीं।

कहानी यू है कि—–
एक बार भानु प्रताप सिंग नामक बहुत महान राजा था। वह अपनी राज्य सीमा बढाने के लिए दुसरे छोटे राज्यो को अपने अधिन करते था। इस तरह उसने बडा एम्पायर बिल्ड कर लिया था। अब वह बहुत बडे राज्य का राजा बन गया था। भानु प्रताप के एक बहुत ही योग्य सलाहकार मंत्री थे। उसका नाम वीर प्रताप सिंग था।वीर प्रताप सिंग बहुत बुद्धिमान थे उसकी बुद्धिमता के भानु प्रताप कायल थे। वे राज्य या राजा की नीजी जीन्दगी मे जो भी समस्याए आती वे वीर प्रताप सिंग से सलाह लिए बीना उसका समाधान नही करते थे।
वीर प्रताप सिंग दुसरो के दुखो को दुर करने और सबको न्याय मिल सके इसके लिए प्रयत्न करते थे। बहुत से लोग वीर प्रताप से मन ही मन जलते थे। वे लोग रोज नई-नई तरकीब सोचते थे वीर प्रताप सिंग को राजा की नजरो से गिराने के लिए।वीर प्रताप सिंग को सब की बातो की खबर थी पर वे इसके खिलाफ कोई एक्शन नही लेते थे। उन्होने बहुत से अमीर-गरीब सब के हीत मे न्याय करा था। उनको उनकी सुरक्षा उपलब्ध करवाई थी। आम जनता तो राजा के समान ही वीर प्रताप का बहुत सम्मान करते थे। वे सब जानते थे कि वीर प्रताप सिंग सबके हीत की बात सोचते है वे किसी को हानि नही पहुचनें देते है।

एक बार राजा भानु प्रताप सिंग के बडे बेटे कुवर प्रताप सिंग एक पडौसी राज्य की सैना से युद्ध के लिए गए थे। युद्ध मे कुवर प्रताप सिंग के एक आँख मे दुश्मन सैना का एक तीर लग गया और उनकी आँख से लहु बहने लगा। उनके साथ आए सैनिको ने कुवर प्रताप सिंग की ऐसी हालत देखी तो वे बहुत घबरा गए और तुरत उन्होने युद्ध से कुवर प्रताप सिंग को ले कर भागना उचित समझा। उन सैनिको ने कुवर प्रताप सिंग को अपने कंधे पर लिटा कर महल की तरफ दौडे। महल मे पहुचे तो भानु प्रताप सिंग और उनकी रानी रुकमाबाई को इस बात की खबर मिली वे दोनो तेजी से उस भवन के लिए पहुचे और उधर से वेंद जी भी पहुंच गए थे। वेंद जी ने जल्दी से घाब को साफ किया और कुछ जडी-बुटिया पिस कर उसका लेप आँख पर लगा दी और कपडे को आँख पर बांध दिया।
अब तो पुरे महल मे मातम सा छा गया। जीसे देखो वे सब यही कह रहे थे हे भगवान तुमने कुवर प्रताप सिंग की आँख क्यो खराब कर दी। कुछ कहने लगे कोई भाग्य का किया धरा है तभी तो यह सब हुआ। जीतने मुँह उतनी बाते तो बनती ही है।लोगो की सोच ऐसी ही जो होती है। इधर रुकमाबाई का रो-रो कर बुरा हाल था कि मेरे लाल को यह क्या हुआ। उस का बुरा हाल सब दुखी थे मगर वीर प्रताप सिंग चुप रहे उन्होने कुछ नही कहाँ यह देख कर रुकमाबाई को क्रोद्ध हुआ कि मेरे लाल की आँख मे घाब हुआ और तुम्हे कुछ भी फर्क नही पड रहाँ वीर प्रताप सिंग।

रानी साहेबा की ऐसी बात सुन कर वीर प्रताप सिंग ने कहाँ महारानी सा आप चिन्ता ना करे जो हुआ अच्छा हुआ। अब तो रुकमाबाई और भी नाराज हो गई थी क्योकि एक तो उन्हे कुवर प्रताप सिंग की तकलीफ से परेशानी थी दुसरी तरफ जो वीर प्रताप सिंग से जलते थे उन्हो ने रानी साहिबा के कानो मे बुद-बुदाना शुरु जो कर रखा था। वे रानी साहिबा से वीर प्रताप सिंग के खिलाफ भडकाना शुरु कर रखा था। अब तो रानी साहिबा ने भानु प्रताप सिंग से कह कर उसे राज-काज दरबार के कार्यो से निसकासित करवा दिया। अब वीर प्रताप सिंग अपने घर चले गए जब तक कि भानु प्रताप सिंग का बुलावा ना आ जाए।
इधर कुवर प्रताप सिंग धिरे-धिरे ठीक होने लगे। कुछ दिनो मे उनकी आँख का घाव भर गया। घाव तो भर गया मगर उनकी आँख मे फुला ( फोडा सा ) बन गया जीससे आँख खराब हो गई थी। एक बार कुवर प्रताप सिंग अपने सैनिको के संग शिकार खेलने गए हुए थे तो जंगल मे रहने वाली जनजाति के लोगो ने वीर प्रताप सिंग को पकड लिया और अपने देवता के आगे उनके बलि देने के लिए उसको बंधक बना लिया। अब तो कुवर प्रताप सिंग को लगा कि अब मेरी बलि चढाई जाएगी इस लिए वे घबराने लगे। अगले दिन वे जंगल वासी लोग कुवर प्रताप सिंग को बलि के लिए तैयार करने के लिए ले गए।
अब वे वीर प्रताप सिंग को नहला कर तैयार करके तिलक आदि करके फूलो के हार पहना कर उसे तैयार करने लगे। इधर कुछ सैनिक भाग गए थे और उन्होने भानु प्रताप सिंग को इस घटना की सूचना दी थी। तो किसी ने जा कर वीर प्रताप सिंग को भी वह सब बात बताई। जब वीर प्रताप सिंग को इस घटना की खबर मिली वे तुरंत जंगल गए जहाँ पर कुवर प्रताप सिंग की बलि चढाने की विधी हो रही थी। अब वीर प्रताप सिंग ने उस जनजातिय कबिले के सरदार से बात करी तो उस सरदार ने तुरंत उस बलि को रोकने के आदेश दिये। जब बलि रोकी गई तो कबिले वाले कुछ लोग इसका एतराज करने लगे।

बलि रुकवाते हुए सरदार ने कहाँ पहले इस बलि को कि इसका मुआयना किया जाए। ध्यान से देखो इसका कोई अंग-भंग है क्या। अब बलि यानि कुवर प्रताप सिंग के सारे शरीर को चेंक किया गया। जब ध्यान से देखा गया तो पता चला कि बलि कुवर प्रताप सिंग की आँख खराब है। जब बलि के कोई अंग खराब होता है तो उस प्राणी की बलि नही चढाई जाती है। कबिले के सरदार ने वीर प्रताप सिंग को धन्यवाद दिया क्योकि उनको पाप से बचा लिया था। इधर कुवर प्रताप सिंग भी वीर प्रताप सिंग से प्रसन्न हुए उन्होने बलि से बचाया था।
जब भानु प्रताप सिंग को बलि का पता चला तो वे भी महारानी रुकमाबाई के संग जंगल पहुच गए थे। भानु प्रताप सिंग ने वे सब कुछ देख लिया था जो सरदार ने कहाँ थाँ। अब तो महारानी रुकमाबाई और महाराज भानु प्रताप सिंग ने वीर प्रताप सिंग से माफी मांगी कि तुमने सही कहाँ था जो हुआ वह अच्छा है अगर उस दिन कुवर प्रताप की आँख खराब ना होती तो आज वह बलि चढा दिया जाता। इस लिए उस दिन जो हमे बुरा लगा आज वही बात हमारी मदद कर गई वीर प्रताप सिंग को दरबार मे बुला कर उन्हे फिर से सलाहकार पद पर मंत्री नियुक्त कर लिया था।
देखा जब कोई बात हमारे लिए बोझ बन जाती है मगर कभी वही बात हमारे जीवन मे जीने के लिए मकसद बन जाती है। जीससे बुरे वक्त मे होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है। कई बार वही पुरानी घटना कभी आने वाले समय मे आपके लिए नई राह खोल दे आपको बहुत ऊँचाईयाँ मिल जाए। इस लिए जो हुआ वह अच्छा ही हुआ यही सोच कर अपने मन को तसल्ली देने मे ही भलाई होती है।