अर्पण ( एक कहानी )

आज श्रृयान्श और मोहित के माता- पिता के श्राद्ध का दिन है। आज श्रृयान्श और मोहित के माता-पिता सुबह भोर होने से पहले ही पितृ-लोक से घरती पर पहुचने के लिए तैयार हो गए। दोनो कितने खुश है आज कितने समय के बाद वे अपने बिछडे हुए परिवार से मिलने जाएंगे। ना जाने उनके दोनो पुत्र कितने खुश हो रहे होंगे। आज माता-पिता को श्राद्ध करवाने के लिए। दोनो को हम बहुत सारा आशिर्वाद देंगे। ना जाने कितनी कल्पनाए लिए वे श्रृयान्श और मोहित से मिलने की खातीर घरती के लिए रवाना हुए। जब वे घरती पर पहुंचे तो, उनको पितृ-लोक के गणो ने आदेश दिया कि आज शाम को सब अपने घर से श्राद्ध ले कर यही इस नदी के किनारे पहुंच जाना। यही से आप सब को पितृ-वाहन लेने आएंगा।

अब पितृ-गणो से विदा ले सब पूर्वज अपने-अपने घर के लिए निकल लिए। इधर श्रृयान्श और मोहित के माता-पिता भी जल्दी-जल्दी कदम उठा कर अपने पुत्रो से मिलने को बेताब से हो उनके पास चल पडे। उन्होने पहले बडे बेटे श्रृयान्श के घर पर जाना उचित समझा। इस लिए वे पहले श्रृयान्श के घर गए। अब वे श्रृयान्श के घर के बाहर ही पहुचे थे कि उनको वहाँ हँसने,नाच-गाने की आवाजे सुना दी दोनो वही रुक गए और सोचने लगे इतनी मौज-मस्ती से भरे हमारे बेटे के घर मे हमारा क्या आदर होगा इनको हमारा इन्जार नही था। फिर भी दोनो ने घर के भीतर जाने की सोची और पहुंच गए घर के भीतर। घर के भीतर जाते ही उनको दुख हुआ और आँखो से आँशु बह निकले।

दोनो ने आपस मे बात करी कि क्या यही सब सिखाया था हमने अपने पुत्रो को। फिर क्या देखते है। श्रृयान्श अपने ससुराल वालो साले-सालियो से घिरा बैठा जोर-जोर से ठहाके लगा रहाँ है। फिर उन्होने रसोई की तरफ नजर घुमाई वहाँ भडियाँ-भडियाँ पकवान बन रहे है। श्रृयान्श की पत्नि बडी सज्ज-धज्ज कर बैठी अपने परिवार से बातो मे मशगुल हो रही है। पौते-पौती के साथ दुसरे उसके मामा-मौसी के बच्चे है वे सब नाच-गा रहे है। पुरे घर को देख कर दोनो सहमे से खडे देखते रहे। सोचने लगे जब घर आने के लिए वे कितने बेताब हुए जा रहे थे क्या इसी घर मे आने के लिए हम इतना खुश थे, इन्ही संतानो के लिए। सब कोई अपनी मौज मे मस्त है किसी ने भी उनका स्वागत सत्कार नही किया।कुछ देर तो वे इन्तजार करते रहे बेटा उठेगा और उनका स्वागत करेगा। पर बेटा तो ससुराल के रिस्ते निभा रहाँ था उसे कहाँ इन्तजार था माता-पिता के आने का। वे समझ गए कि हम इस संसार को छोड गए इसका इनको कोई दुख नही कितने खुश है सब।

हम मरने के बाद भी इन संतानो के लिए रोज आशिर्वाद भेजते रहे। श्रृयान्श ने ना ही शांत होकर ब्राहमण भोज किया। उस पर उसने अपने ससुराल को बुला कर उसने अपने माता-पिता की जीवात्मा का अनादर किया। जीससे दुखी होकर बददुआए देते हुए वे दोनो अपने पुत्र श्रृयान्श के घर से निकल गए। अब उन्होने सोचा चलो श्रृयान्श को तो हमारे लिए कोई लगाव नही अब छोटे पुत्र मोहित के घर पर चलते है वहाँ तो शायद मोहित हमारे आने का इन्तजार कर रहाँ होगा। अब वे श्रृयान्श के घर से निकल कर मोहित के घर पहुंच गए। जैसे ही मोहित के घर के पास पहुचे। उन्हे अपनी बहु मोहित की पत्नि के कुछ गुनगुनाने की आवाज सुनाई दी और देखा की घर के अंदर से खुशबु आ रही है। वे बहुत खुश हुए सोचा बहु हमारे लिए भोजन तैयार कर रही होगी इस लिए इतनी भिनी-भिनी खुशबु घर से आ रही है।

अब वे जल्दी से कदम बढाते हुए मोहित के घर के भीतर पहुंचे। जैसे ही वे मोहित के घर के भीतर पहुंचे तो क्या देखते है कि बहु ने हाथ मे उपला (गाय के गोबर से बना ) ले रखा है उस पर उसने कुछ सुगंधित सामग्री डाल दी है और उस उपले को जला कर उसका धुआ घर मे दे रही है,और पितृ के लिए मंत्र जाप कर रही है। बहु अपने पति मोहित से कह रही है आज हमारे माता-पिता का श्राद्ध है और हम कितने अभागे है कि उनको घर पर बुला कर भोजन भी भेट नही कर सकते। मेने एक ब्राहमण से सुना था की अगर हम पितृ को भोजन करवाने मे असमर्थ हो तो उनको धुप-दीप से उनकी आत्मा को शांति पहुंचा सकते है। इस लिए मै इस उपले से घर मे धुप कर रही हुँ। इससे माता-पिता की आत्मा को जरुर तृप्ति मिल जाएंगी।

वे सब बात समझ जाते है कि श्रृयान्श ने सारा धन अकेले हडप लिया है और अपने छोटे भाई को कुछ भी नही दिया है। श्रृयान्श तो मौज से रह रहाँ है। उसके ससुराल वाले हमारी जमा पुजी को उडा रहे है। इधर हमारा छोटा बेटा बेचारा भुख से लड रहाँ है। पर उनकी आत्मा को तृप्ति मिल गई थी क्योकि मोहित और उसकी पत्नि दोनो को माता-पिता के श्राद्ध की चिन्ता थी। पास मे पैसा नही तो क्या पर मन मे माता-पिता के लिए स्थान आज भी है। वे मोहित और उसके पुरे परिवार को आशिर्वाद देते हुए वापस रवाना हो गए। दोनो सोचने लगे कितनी चाहत थी हमे अपने परिवार को देखने की। सोचते थे वे कितना याद करते होगे हमे। हमने कितने प्यार से पाल पोस कर बडा किया था दोनो को।

आँखो मे आँशु लिए बेचारे माता-पिता अपने गंतव्य स्थान जहाँ उन्हे पहुचने के निर्देश मिले थे।वहाँ पहुच कर एक पेड की छाव के नीचे दोनो बैठ जाते है। दोनो की आँखे आँशु से लबलेश है। अब श्रृयान्श और मोहित के माता के हाथ मे पोटली देख कर उनके पिता ने पुछा ये पोटली कहाँ से लाई हो इसमे क्या है। इस पर मोहित की माता की जीवात्मा ने कहाँ यह पोटली मै मोहित के घर से लाई इस मे मोहित की पत्नि ने जो धुप हमे अर्पण की थी उसकी राख है। संतान श्राद्ध पर जो हमे देती है वही तो हम ले सकते है। अब इस राख को खा कर ही हमे रहना है। बेचारे दोनो जीवात्मा वही राख खाने लगते है। कुछ देर बाद दुसरी जीवात्माए भी वहाँ पहुंचने लगी है। अब दुसरी जीवात्माओ को लौटते देख कर श्रृयान्श और मोहित के माता-पिता उस राख की पोटली को जल्दी से बांध कर छुपा लेते है कही किसी को इसका पता ना चल जाए।

अब सभी जीवात्माए अपने-अपने परिवार से मिल कर श्राद्ध ग्रहन करके वापस लौटने लगी है। सब वहाँ पहुंच कर इधर-उधर जहाँ जगह मिल रही है बैठते जा रहे है। अब सब आपस मे बाते करने लगे है। सब अपने-अपने परिवारो से मिले भोजन और उपहारो की चर्चा कर रहे है एक दुसरे को दिखा रहे है कि हमारे पुत्र ने हमे यह दिया कोई कह रहाँ है कि हमारे पुत्र ने हमे कितने सुन्दर किमती वस्त्र हमे पहनाए है। कोई दिखा रहाँ है कि देखो मेरे पुत्र को आज भी मेरी पसंद मालुम है इस लिए उसने मुझे यह उपहार दिया। सब अपनी संतानो की तारीफ कर रहे है। कोई बोला मुझे जैसा खाना पसंद है ठीक बैसा ही खाना (भोजन ) आज मेरे लिए मेरे परिवार ने बना था। कोई महिला मुझे जीस रंग के कपडे पहनना पसंद है ठीक बैसे ही कपडे मेरे पुत्रो ने मुझे भेट स्वरुप दिये है। किसे के पुत्रो ने क्या भेट किया किसी के पुत्र ने क्या दिया सब एक दुसरे को दिखा रहे है उनके पास पोटली मे भडिया-भडिया भोजन की खुशबु आ रही है। सब अपनी-अपनी पोटली से पकवान निकाल कर खा रहे है।

यह सब श्रृयान्श और मोहित के माता-पिता नम आँखे देख सुन रहे है। उनका मन बहुत उदास हुआ जा रहाँ है। सोचने लगते है काश हमारे पुत्र भी हमे भी इस तरह भेट देते तो हम भी सब को ऐसे ही दिखाते और मन ही मन अपने पुत्रो के लिए ठेर सारी मंगल-कामनाए भेजते। पर अपने मन का दुख चुप-चाप छुपा कर शांत बैठे देख रहे है। तभी किसी एक जीवात्मा ने उनसे भी पुछ ही लिया क्या तुम्हारे पुत्रो ने तुम्हे कुछ नही दिया। तुम कुछ बोल नही रहे हो। अब वे दोनो झेम्प जाते है और दबी जबान मे कहने लगते है कि नही ऐसी बात नही है। हमारे पुत्रो ने हमे बहुत कुछ दिया था बहुत खुश हुए थे हमारे पुत्र।

वे तो हमारा बे सबरी से इन्तजार कर रहे थे। घर-भर मे सभी शांति पूर्वक हमारे स्वागत मे लगे थे बहुत से पकवान बनाए थे उन्होने हमने इतना खाया कि अब हमे भुख भी नही लग रही है। बेचारे अपने हाथ मे रखी पोटली को छुपा कर बैठे रहे कही किसी को पता ना चल जाए। तभी एक जीवात्मा ने उनकी पोटली छिन कर देखने लगा देखो कैसे अकेले ही सब खाने की ईच्छा से ये हम से सब छुपा रहे है आज मै भी इनके पुत्रो द्वारा दिया भोजन खाऊंगा। इतना कह कर वह पोटली खोलता है तभी उसमे से राख नीचे गीर जाती है।

अब सब को पता चल जाता है कि इनकी संतानो ने इनका तीरस्कार किया है। उन्होने इनके नाम का श्राद्ध नही दिया है। इसी लिए बेचारे चुप-चाप बैठे है। अब तो सभी जीवात्माओ को उन पर तरस आता है और सब अपने-अपने भोजन मे से खुछ भोजन उन दोनो को देते है और सब मिल बाट कर खा लेते है और अब पितृ-लोक से वाहन उन्हे लेने आता है।सब उस वाहन पर बैठ कर वापस पितृ-लोक मे चले जाते है। अगले श्राद्ध पर फिर लौट कर घरती पर आएंगे इसी आशा के साथ वे सब घरती से विदा लेते है।

हकीकत मे होता भी है जीवात्माए होती है वे पितृ-लोक मे रहती है। जब उनकी पुन्यतिथि और श्राद्ध होता है तब वे धरती पर अपने वंशधरो से मिलने आती है। जब भी हमारे घरो मे कोई उत्सव शादी विवाह आदि होते है तो हम अपने पितृरो के नाम से कुछ वस्तुए दान करते है और यही वस्तुए हमारे पूर्वजो को पितृ-लोक मे मिल जाती है। वे हम्हारे से मिले उपहारो,भोजन आदि का पा कर पितृ-लोक मे आनन्द से रहते है।

जब भी कोई उपहार हम हमारे पितृरो को देते है तो पितृ-लोक के गण उन सब वस्तुओ को ले जाकर पितृ-देव को देते है और फिर हमरे पूर्वजो मे जो मुखिया होता है वह उन सब पूर्वजो कोबुला कर पितृ-देव के पास ले जाता है फिर जीसके नाम से जो और जीतना दान उसके वंशधरो ने किया होता है उसके नाम से पितृ-देव उसे देते है। इस तरह हमारे द्वारा दान किया पितृ-निमित सामान उन तक पहुच जाता है। यही सच्चाई है। यह अँधविश्वास नह हकीकत है।

कहानी का आनन्द लीजीए और अपने परिवार से प्रेम भाव रखीए। यही हमारी भारतीय संस्कृति का आधार है कि हम जीवित लोगो की तो परवाह कितनी करते है इसका ज्ञान इस महान सोच से पता चलता है कि जब हम मृत जीवो से भी प्रेम करते है उनकी याद मे उनके नाम से कुछ ना कुछ जरुर दान करते है। यही सब कारण है जो हम भारतीयो के दिल मे प्यार को सहेजे रखती है तभी तो सभी भारतीय सदभावना से देश प्रेम के भाव रखते हुए आपस मे सोहार्दपूर्ण व्यवहार करते है।

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