परीक्षा ( कहानी )

एकबार की बात है।एक पाठशाला मे अध्यापक अपने शिष्यो को बहुत अच्छे से पढाते थे। अब एक दिन अध्यापक के मन मे यह विचार आया कि मै अपने शिष्यो को इतनी मेहनत करके पढाता हुँ पर मुझे यह नही पता की मेरे शिष्य ठीक वैसे समझते है या नही। इस बात को सोचते हुए अध्यापक ने एक योजना बनाई। अब एक दिन अध्यापक जी अपनी कक्षा मे गए तो अपने साथ लड्डू ले गए बच्चो को बांटने के लिए। अध्यापक ने कक्षा मे जा कर अपने सभी बच्चो को एक-एक को अपने पास बुला कर लड्डू दे दिया ।जब सब को लड्डू बांट दिये तो अध्यापक ने शिष्यो से कहाँ कि तुम ये लड्डू अभी नही खाओंएगे इन लड्डू को तुम अपने घर पर जा कर खाना।

अब अध्यापक ने एक शर्त भी रख दी की कहाँ पर और कब लड्डू खाना है। अध्यापक ने शिष्यो से कहाँ तुम इन लड्डू को उस जगह खाना जहाँ से तुम्हे लड्डू खाते हुए कोई देख ना सके। तुम चोरी से और सब से छुप कर लड्डू खाना। किसी को भी मत बताना की तुमलड्डू खा रहे हो। अब सब शिष्य हैरान कि आज गुरु जी को यह क्या हो गया। छुप कर चोरी से लड्डू खाने को कह रहे है। रोज तो हमे यह ज्ञान देते है कि चोरी करना पाप है। झूठ बोलना पाप है, और आज गुरु जी खुद हमे यह पाप करने को कह रहे है। शिष्यो ने गुरु जी की आज्ञा मान कर अपने-अपने लड्डू अपने बैंक मे रख लिए चलो कोई बात नही घर जा कर चोरी से लड्डू खा लेंगे। अब स्कूल की छुट्टी हुई सभी शिष्य जल्दी से घर पहुंच कर लड्डू खाना चाहते थे।

इस लिए छुट्टी की घण्टी बजते ही सबने अपने बैग उठा कर घर के लिए रवाना हो गए। अब घर पहुंच कर लड्डू काने की सोची तो सब को यह बात याद आ गई की लड्डू छुप कर चोरी से खाने है। मन मे सब उस स्थान की तलाश मे लग गए जहाँ से उन्हे लड्डू खाते कोई देख ना सके। अब सब ने इधर-उधर सब से छुप कर चोरी से लड्डू खा लिए।अगले दिन अध्यापक ने कक्षा मे आ कर अपने शिष्यो से पुछा कि तुम सबने कल घर जाकर चोरी से लड्डू खा लिए थे ना तो सभी ने कहाँ हाँ गुरु जी हमने सबसे छुप कर चोरी से लड्डू खा लिए थे मगर एक शिष्य ने खडे होकर कहाँ गुरु जी मेने कल लड्डू नही खाया मेने पास अभी पडा है वो लड्डू। अब अध्यापक ने सब से बारीबारी अपने पास बुला कर पुछा कि तुमने लड्डू कब खाया और कहाँ खाया।

अब एक शिष्य ने बताया गुरु जी मेने लड्डू घर पर दरवाजे पर लगे पर्दे के पीछे छिप कर खाया था वहाँ से किसी को मै दिख भी नही रहाँ था इस लिए वहाँ पर मेने सबसे छिप कर चोरी से लड्डू खा लिया था। फिर दुसरे शिष्य ने गुरु जी को बताया गुरु जी मेने घर पर कमरे मे लगी चार पाई ( बैड ) के नीचे छिप कर ल्डू खा लिया था वहाँ से मुझे कोई देख नही सकता था। अब तीसरे शिष्य ने कहाँ गुरु जी मेने घर पर आलमीरा (अलमारी) के पीछे छुप कर लड्डू खा लिया था किसी को पता भी नही चला चोरी से छुप कर मेने वो लड्डू खा लिया था। अब चौथे शिष्य ने गुरु जी को बताया की मे स्टोर रुम मे सामान के पीछे छुप कर वो लड्डू खाया था किसी को पता भी नही चला था। ऐसे सब शिष्यो ने बताया कि उन्होने कैसे और कहाँ छुप कर वो लड्डू खाया था।

अब अध्यापक पुरी कक्षा से पुछने के बाद उस शिष्य से पुछा जीसने कहाँ था कि गुरु जी मेने कल लड्डू नही खाया था वो आज भी मेरे बैग मे पडा है। अब गुरु जी ने उसे बुला कर पुछा कि क्या तुम्हारे घर मे कोई जगह नही थी छुपने के लिए जो तुमने लड्डू नही खाया। अब उस शिष्य ने कहाँ गुरु जी घर मे छुपने के लिए बहुत सी जगह थी मगर मै जहाँ भी छुप कर लड्डू खाने की कोशिश करता मुझे दो आँखे सदैव देखती वो हर जगह मेरा पीछा करती मै जहाँ भी जाता छुपने के लिए मगर वो हर जगह मेरे साथ ही मेरे पीछे आती और मुझे घुर कर देखती और आपने तो कहाँ था उस जगह छुप कर चोरी से लड्डू खाना जहाँ तुम्हे कोई देखता ना हो।

उन दो आँखो ने मेरा पीछा छोडा ही नही इस लिए मुझे लड्डू खाने का मौका नही मिला। अब गुरु जी ने पुछा कौन था वो जीसकी दो आँखे सदैव तुम्हारा पीछा करती रहती थी। उस शिष्य ने अपने अध्यापक को बताया गुरु जी वो दो आँखे भगवान की थी आपने ही तो हमे सिखाया था कि भगवान सब जगह होते है हमे पाप नही करना चाहिए क्योकि भगवान हमे पाप करते देखते है। शिष्य ने अध्यापक से कहाँ अब आप ही बताई गुरु जी कि मै कैसे इस लड्डू को खा सकता था। अब इस शिष्य की बात सुनकर गुरु जी की आँखो मे चमक आ गई। अध्यापक ने कहाँ मुझे मेरे दिए ज्ञान का फल मिल गया सबने ना सही मगर किसी एक ने ही सही मेरे दिये ज्ञान को सही से समझा और अपने जीवन मे उसे उतारा है।

मुझे खुशी हुई की मेरा कोई होनहार और सच्चा शिष्य भी है। मुझे लगता था कि मै व्यर्थ मे ही ज्ञान लुटा रहाँ हुँ मेरी परीक्षा सफल हुई मेने तुम सब शिष्यो को यह लड्डू सबसे छुप कर चोरी से खाने के लिए इसी लिए कहाँ था कि मुझे पता चल सके कि तुम मेरे दिये ज्ञान को कितना ग्रहण कर रहे हो। फिर अध्यापक ने अपने शिष्यो को कहाँ हम दुनिया से छीप कर कुछ भी कर सकते है पर भगवान से हम नही छुप सकते हम जो भी भला-बुरा कोई भी काम करते है उस पर वो भगवान सदैव नजर रखता है।

इस लिए हमे यह सोच कर पाप नही करना चाहिए कि हमे कौन देखता है किसी को कुछ पता नही चलेगा और गलत काम करते है पर हम भुल करते है हमे भगवान तो देख सकते है दुनिया से हम छुपा सकते है मगर भगवान से कैसे छुपा सकते है क्योकि भगवान तो सर्वतर विद्धमान है। उन से कुछ छुपा नही।

कहानी से मिले ज्ञान—- हमे पाप नही करना चाहिए क्योकि भगवान हमे हमेशा देखता रहता है। भगवान से हम कुछ भी छुपा नही सकते।

दुसरा कोई हमे ज्ञान दे तो हमे सही से उस ज्ञान को प्राप्त करना चाहिए तभी हम जीवन मे सफल हो सकेगे जैसे उस एक शिष्य ने ज्ञान को सही से समझा तभी उसने छुप कर लड्डू खाने मे असमर्थता जताई थी।

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