कहानिया कथाए जो जनमानस के मन और मस्तिषक पर अपना प्रभाव डालती है। बहुत से कथाए जीवन को जीने का तरीका सिखाती है।कुछ कथा कहानियाँ प्रेरणा प्रदान करती है। सभी कहानिया मनोरंजन तो कराती है ही, और समय को गुजारने के लिए भी कथा-कहानियो का सहारा लिया जाता है।हमारे शास्त्रो मे ऐसी बहुत सी कथाए-कहानियाँ है जिन से हमे ज्ञान मिलता है। प्राचीन काल से ही ज्ञान देने के लिए कथाओ और कहानियो का सहारा लिया जाता रहाॅ है। आईए आप के लिए एक रोचक कहानी जिससे आपको भरपुर आनन्द तो आएंगा ही साथ मे कुछ जानकारी-ज्ञान भी मिलेगा।

एक बार एक धन्ना सेठ था। जब वो धन्ना सेठ मरा तो उसका बडा पुत्र अपने पिता की अस्थियो को विसर्जन करने गंगा किनारे गया और वहाँ उसने अपने कुल पुरोहित को श्राद्ध कार्य करने के लिए बुला लिया।अब उनका कुल पुरोहित आया और प्रेत शांति (मृत के आत्मा को ईश्वर मे लीन करने के लिए ) पुरोहित ने वह सब सामग्री मंगवा ली जो प्रेत मुक्ति के लिए पिंडदान करके उसकी आत्मा की शांति कर सके।

अब पुरोहित सेठ के बेटे के हाथ से पिंडदान करवा रहाॅ था तब वहाॅ एक विशाल पुरुष ( प्रेत ) प्रकट हुआ। उस विशाल पुरुष का रंग लाल ताम्बे जैसा था उसके पैर उल्टे यानि पीठ की तरफ पंजे थे और मुँह वाली साईड उसकी एडी थी और वो जोर-जोर से रो रहाॅ था फिर वो जोर से हँसने लगा। उस लाल रंग के पुरुष यानि जीवात्मा को देख कर सेठ का बेटा घबरा गया। तब उस प्रेत ने कहाॅ तुम मुझसे डरो नही तुमने मुझे पहचाना नही मै तुम्हारा पडदादा हुँ। तब सेठ के बेटे ने कहाँ तुम मेरे पडदादा कैसे हुए। अब प्रेत अपनी कहानी सुनाने लगा बोला बेटा जब मै इंसान यानि मृत्युलोक प्राणी था।
मरने से पहले मेने कई पाप किये थे मेने किसी से दुश्मनी रखते हुए, उससे जलन मे उसकी हत्या करबा दी थी। बस इसी पाप के कारण मुझे आज तक यह प्रेत योनी भोगनी पड रही है। अब सेठ के लडके ने पुछा पहले आप जोर-जोर से रो रहे थे बाद मे आप हँसने लगे ऐसा क्यो किया आपने। उस लडके के पडपिता के प्रेत ने कहाँ मै पहले जोर-जोर से इस लिए रोया था, क्योकि मेने जो पाप किया उसकी सजा मे मुझे यह प्रेत योनी मिली और बाद मे मै हँसा इस लिए था क्योकि अब तुम पिंडदान करने आए हो तो मुझे इस प्रेत योनी से मुक्ति मिल जाएगी तुमसे पिंडदान लेकर।

जब सेठ के लडके ने अपने पडदादा के लिए पिंडदान कर रहा्ॅ था, तब वहाँ एक और प्रेत प्रकट हो गया।उसका रंग पुरी तरह से काला था।उसके भी पैर उल्टे थे उसकी आँखे दहकते हुए आँगारो की तरह लाल थी। ऐसा प्रतित हो रहाँ था कि वह घुर रहाँ है। अब सेठ के लडके ने उस काली परछाई को देख कर पुछा आप कौन है और यहाँ मेरे सामने क्यो प्रकट हुए है। इस पर उस काली परछाई ने सेठ के लडके से कहाँ मै तुम्हारा दादा हुँ।तब सेठ के लडके ने उस प्रेत से पुछा कि आप मेरे दादा है तो आपको यह प्रेत योनी क्यो मिली।
यह बात सुन कर उस काले प्रेत ने कहाँ मेने सारा जीवन पाप ही पा किया। दुसरो को सताना,दुसरो से उनको धन लुट लेना, सामान मे मिलावट कर के खराब माल बेच कर दुगुना धन कमाना, पर नारी से सम्बंध रखना,पुरी जीनदगी बस पाप ही पाप करता रहाँ। इसी लिए अब मे इस प्रेत योनी मे भटक रहाँ हुँ और अपनी मुक्ति के लिए तडप रहाँ हुँ। अब तुम आ गए हो पिंडदान करने तो मुझे मेरा पिंडदान दे दो और मुझे फिर इस प्रेत योनी से मुक्त करवाओ।

यह सब देख सुन कर सेठ के बेटे को हेरानी हो रही थी कि तभी उसकी नजर वहा्ॅ खडे एक सफेद रंग के प्राणी पर पडी तो सेठ के लडके ने उससे पुछा तुम कौन हो और मेरे पास क्यो आए हो।इस पर वो सेठ की आत्मा वोली बेटा मै तेरा पिता हुँ। यह देख कर सेठ के लडके ने उस सफेद रंग की छाया ( सफेद प्रेत ) से बोला -पिता जी मै आपके श्री चरणो मे रह कर ही पला बडा हुआ हुँ। जहाँ तक मेरी समझ है मेने आज तक आपको कोई पाप करते हुए नही देखा फिर आप इस प्रेत योनी मे क्यो भटक रहे हो।
अब सेठ की आत्मा ने उतर दिया बेटा तुमने बिलकुल सही कहाँ कि मेने जीन्दगी मे कभी भी कोई बुरा काम नही किया और ना ही किसी प्रकार का पाप किया पर जब मै मृत्यु को प्राप्त हुँआ, तब मेरे मन मे बहुत सी अतृप्त ईच्छाए थी जिन्हे मे अपने जीवन मे चाहता था ,पर उन ईच्छाओ को मै कभी पुरी नही कर पाया इस लिए मेरे अतृप्त मन ने मुझे प्रेत योनी मे धकेल दिया। अब तुम आ गए हो मेरा श्राद और पिंडदान करने तो तुमसे प्राप्त होने वाले पिंडदान को लेकर मै अपने अगले जन्म के लिए चला जाऊंगा।

अब सेठ के बेटे ने अपने तीनो पूर्वजो पडदादा,दादा और पिता तीनो का गंगा मे पिंडदान किया और विधी विधान से श्राध्द किया। वे तीनो आत्माए अपने वंशज से पिंडदान ले कर अपने अगले जन्म के लिए चले गए। अब सेठ के लडके ने अपने कुल पुरोहित को प्रणाम कर के उनको दक्षिणा भेट की और वापस अपने शहर- घर के लिए चला गया।
कहानी से ज्ञान मिलता है कि हमे कभी पाप नही करना चाहिए पाप करने से हमारी आत्मा पर दुष प्रभाव पडता है। जैसे कहानी मे लाल और काले प्रेत ने बताया कि उन्होने बहुत पाप किये जिसके कारण उनको प्रेत योनी मिली और एक प्रेत जो सफेद प्रेत था उसने कहाँ उसकी ईच्छा जो वो मन मे रखता था उसे पुरा नही कर पाया। इस लिए जहाँ तक हो सके आप कोई ईच्छा ना पाले या तो उन ईच्छो को पुरा करे जो ईच्छाए पुरी करना सम्भव नही उन्हे दिल दिमाग से निकाल देना चाहिए नही तो अतृप्त ईच्छाओ के कारण प्रेत योनी मे भटकना पडता है।

सुना है की प्रेत दुसरो को बहुत दुखी करते है हाँ यह सही हो पर सब प्रेत आत्माए दुसरो को दुखी नही करती। वे ही प्रेत दुसरो को तंग करते है जो अपने जीवन काल मे दुष्ट होते है और जो किसी अंतिम ईच्छा पुरी नही होने से बने प्रेत जिन्होने अपने जीवन काल मे किसी का कभी बुरा नही किया होता वो मर कर प्राप्त हुई प्रेत योनी मे भी कभी दुसरो को तंग नही करते वे शांत रह कर अपनी प्रेत योनी को काटते है और अपनी प्रेत योनी को समय आने पर त्याग कर अगले जन्म के लिए चले जाते है।केवल दुष्ट लोग ही मरने के बाद प्रेत बन कर सताते है।

पिंडदान का महत्व भी अब आपको समझ आ गया होगा कि हम पिंडदान करके अपने पूर्वजो को प्रेत योनी से मुक्त करवा सकते है। इस लिए सभी को अपने पूर्वजो का श्राद्ध करवाना और पिंडदान व तर्पण जरुर करवाना चाहिए। लोग पुत्र की कामना करते ही इस लिए है कि उनकी मृत्यु के बाद उनका पिंडदान करबाने वाला पुत्र ही होता है। पुत्र ना हो तो प्राणी का भाई बंधु भी पिंडदान करवा सकते है।

जो लोग अपने पूर्वजो का गया जी जा कर श्राद्ध करते है उनके पितर तृपत होते है और उन्हे मुक्ति मिल जाती है। जो लोग अपने पितरो का गया जी मे श्राद्ध व पिंडदान करते है उन्हे कागोल नही डालना पडता यानि कोवै को भोजन नही खिलाना पडता। काकबलि, नारायण बलि आदि करवाने से कैसी भी प्रेत आत्मा हो उसे मुक्ति मिल जाती है पंडित जो यह सब विधी विधान से करना जानता हो उसे अवश्य करवा लेना चाहिए। जाने अनजाने पूर्वजो का भी पिंडदान करबाना लेना चाहिए।
पितृ देवो भव- मातृ देवो भव
जय श्री राम