बीकानेर नरेश महाराजा गंगासिंह

भारत के राज्य राजस्थान के एक प्रसिद्ध शहर बीकानेर मे बीकानेर नरेश महाराजा गंगासिंह जी का जन्म हुआ था और बीकानेर रियास्त की गद्दी पर भी बैठे थे । बीकानेर भारत मे विलियण करण से पहले राजस्थान जीसे पहले राजपुताना कहते थे इसी राजपुताना कई छोटी-छोटी रियास्तो मे बटा हुआ था । राजपुताना की रियास्तो मे से एक बहुत प्रसिद्ध रियास्त थी बीकानेर ।

बीकानेर के राज-रजावाडे शासक राठौड वंश के थे । अंग्रेजो के शासनकाल मे बीकानेर के शासक महाराजा गंगासिंह जी थे ।गंगासिंह जी बहुत महान और प्रतापी शासक थे उन्होने अपने कार्यकाल मे बीकानेर के लिए बहुत सी योजनाए बनाई उन्हे क्रियान्वित किया ।महाराजा गंगासिंह जी ने बीकानेर यानि अपनी प्रजा के हीत के लिए बहुत से ठोस निर्णय लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए जीससे बीकानेर की प्रजा का जीवन खुशहाल बना और महाराजा गंगासिंह जी अपनी रियास्त की प्रजा का अपनी संतान के सम्मान देख रेख करते थे हर प्रकार से प्रजा के लिए सहयोग करते । गंगासिंह जी ने बीकानेर की घरती को खुशहाल बनाने के लिए नहर का निर्माण करवाया जीसका नाम पडा गंग नहर इस नहर का पानी का उपयोग आज भी गंगानगर की जनता करती ।इस नहर के बन जाने से बीकानेर की वंजर जमीन पर फसलो को उगाने मे मदद मिली और किसान खुहाल होने लगे । गंगनहर बनने से पहले बीकानेर की जनता को पानी की समस्या रहती थी वे बरसात के पानी पर निर्भर रहते थे इस कारण बहुत बार सुखा पडता था जीसकारण अकाल पडता था और प्रजा पशु आदि अकाल के ग्रास बन जाते थे गंगनहर के आने से सुखा पडने पर बहुत नुकसान नही झेलना पडता था बरसात के पानी का इन्तजार नही करना पडता था किसानो को सिंचाई के लिए गंगनहर से पानी मिलने से खेती बाडी सुचारु रुप से चलने लगी थी ।

गंगासिंह जी ऐसे शासक थे जो अपनी प्रजाहीत के लिए कार्य करते थे इस के बहुत से उदहारण बिखरे पडे है। राजपुताना मे बिजली सबसे पहले महाराजा गंगासिंह जी लाए थे अपनी रियास्त बीकानेर मे और बीकानेर के भाग्य मे रोशनी की चमक आ गई बीकानेर धिरे-धिरे रोशनी बिजली के आने से रौशन होने लगा था ।

गंगासिंह जी ने बीकानेर रियास्त मे रेलगाडी को चलवाया था पुरे बीकानेर रियास्त को रेल पट्टरियो के जाल बिछा कर जोडा गया अब बीकानेर की प्रजा को आने जाने मे होने वाली परेशानी से निजात मिल गई थी । लोग रेलगाडी से यात्रा करने लगे थे । रेलगाडी के आने से पहले लोगो को बैलगाडी ऊँटगाडी आदि मे सवार हो कर यात्रा करनी पडती थी इसके कारण बहुत सी परेशानियो का सामना करना पडता था ।

महाराजा गंगासिंह बहुत ही प्रतापी शासक थे उनकी महानता और बहादुरी के चर्चे दुर-दुर तक फैले हुए थे अंग्रेज भी इनकी बहादुरी के कायल थे । अंग्रेजो ने भी महाराजा गंगासिंह जी की भुरी-भुरी प्रसंशा की है। विश्व युद्ध मे महाराजा गंगासिंह की सैना ने भी अपना दम-खम दिखाया था । विश्व युद्ध मे महाराजा गंगासिंह जी का प्रिय हेली काप्टर भी शामिल हुआ था लकडी और विषेश प्रकार के कपडे से बना हुआ महाराजा गंगासिंह जी का हेली काप्टर आज भी महल मे रखा हुआ है । जब आप बीकानेर के जूनागढ किले मे घुमने जाए तो इसे अवश्य देखे ।

महाराजा गंगासिंह ने उस जमाने मे भी लिप्ट का प्रयोग किया था जूनागढ किले मे एक मंजील से दुसरी मंजील तक जाने के लिए लिप्ट लगी हुई थी जो आज बी वही स्थापित है पर इसे काम मे नही लिया जाता बंद कर रखा है । जब गोलमेज सम्मेलन हुआ था तो उस सम्मेलन मे महाराजा गंगासिंह जी को भी शामिल किया गया था । कुल मिलाकर देखा जाए तो महाराजा गंगासिंह जी के जैसा शासक मिलना बहुत दुर्लभ बात है इनकी जीतनी प्रसन्नसा की जाए उतनी ही कम है । जब ऐसा शासक हो तो जनता उसकी कायल तो होती ही ना इनके राज मे प्रजा खुश थी खुशहाल थी और अपने शासक यानि महाराजा गंगासिंह जी के गुण-गान करती थकती ना थी ।

महाराजा गंगासिंह जी को अपनी प्रजा के स्वास्त्य का भी ख्याल रहता था उनकी चाहत थी की उनकी प्रजा तन्दरुस्त रहे किसी लम्बी और भयानक बिमारी से प्रजा तडपती ना रहे इसके लिए इनहोने बीकानेर मे बहुत बडा हास्पिटल बनवाया था जो आज भी बीकानेर ही नही देशभर से मरीज अपना इलाज करवाने आते है हाँजी बीकानेर का पी.बी.एम हास्पिटल जीसे महाराजा गंगासिंह जी ने बनवाया था ।यह हास्पिटल बहुत बडा है हर प्रकार की बिमारियो का इलाज यहाँ होता है। हर प्रकार की मशींने यहाँ मोजुद है साथ ही यहाँ पर मेडीकल कालेज भी बनवाया गया है जहाँ पुरे देश के छात्र – छात्राए मेडिकल शिक्षा हांसिल करने आते है।

महाराजा गंगासिंह जी धार्मिक प्रवृति के थे वे जब तक अपने इष्ट देवी-देवताओ की पूजा नही कर लेते थे तब तक वो अन्न जल ग्रहण नही करते थे । उनकी दिनचर्या की शुरुआत मंदिरो पूजा-पाठ से शुरु होती थी और दिन की समाप्ति भी इष्ट वंदन से होती थी ।उन्होने लक्ष्मी नाथ जी मंदिर से किले के अंदर तक एक सुरंग बनवाई हुई थी जब कोई दुसरा राजा आक्रमण कर दे तो वे मंदिर दर्शन नही कर सकते इस विचार से सुरंग बनवाई थी जो आजकल सरकार ने बंद करवा दी उस सुरंग का एक गेट मंदिर प्रांगन मे खुलता है ।बीकानेर पर जब कोई आक्रमण कारी आक्रमण करे तो प्रजा को नुकसान ना हो इस लिए पुरे शहर को चार दिवार से ढक रखा था इस लिए बीकानेर मे कई गेट है ,कोट-गेट, विदासर गेट, नथुसर गेट,जसुसर गेट पुरे शहर को किले बंदी कर रखा था आक्रमण के समय इन गेटो को बंद कर दिया जाता रहाँ होगा ।

गंगासिंह जी लक्ष्मी नाथ जी जी की भक्ति करते थे रोज लक्ष्मी नाथ जी के मंदिर दर्शन करने जाते थे । एक बार गंगासिंह जी मंदिर नही जा सके किसी कारण वश तो मंदिर मे भगवान लक्ष्मी नाथ जी के हाथ मे पहनाए हिरो के कंगन चोरी हो गए महाराजा के सेनिको ने सब जगह खोज की पुजारी से पुछताछ हुई पर कुछ सुराग हाथ ना लगा । एक दिन महाराजा गंगासिंह जी को सपने मे लक्ष्मी नाथ जी ने दर्शन दे कर बताया की वो कंगन चोरी नही हुए पर वो मेने गंगु हलुआई को दे दिये उस से मेने जलेबी, कचौरी खाई थी उसकी किमत उन कंगनो को देकर चुका दी और कहाँ कि तु तो मुझे रोज भोग लगाता था अब जब तुने मुझे भोग नही लगाया और मुझे भुख लगी थी मेने हलुआई से भोग लगा लिया । अगले दिन गंगासिंह जी खुद उस गंगु हलुआई की दुकान पर गए और उन कंगनो की किमत चुकाई। गंगु हलुआई से जब उन कंगन के बारे मे पुछा तो गंगु हलुआई ने बताया एक बुढा ब्रहामण जलेबी कचौरी खा कर मुझे बदले मे कंगन दे गया था । अब तो महाराजा गंगासिंह जी को तो पता ही चल गया था कंगन चोरी नही हुए थे खुद भगवान लक्ष्मी नाथ जी ने उन्हे भेट किये थे । ये बात धिरे-धिरे पुरे बीकानेर के लोगो तक फैल गई । तभी आज तक इस बात का चर्चा बीकानेर के पुराने निवासी करते रहते है।

    महाराजा गंगासिंह जी अपनी कुल देवी नागणेची माता की पूजा भक्ति भी करते थे। नागणेची माता राठौड राजवंश की कुल देवी थी। बीकानेर के संस्थापक राव बीका जी जोधपुर नरेश राव जोधा के भतिजे थे तो बीकानेर और जोधपुर राठौडवंश के थे और राठौडो की कुल देवी नागणेची जी थी । राव बीका ने जब बीकानेर नगर बसाया था तब वे जोधपुर से अपनी कुल देवी को साथ लाने गए और माता से प्रार्थना की वो संग चले इस लिए नागणेची जी संग चलने को तैयार हो गई पर एक शर्त रखी की जब भी और जहाँ भी तु ( बीकासिंह जी) पिछे मुड कर नही देखेगा बस वही तक चलुगी जब तु पिछे मुडकर देखेगा वही रुक जाऊँगी उसके आगे नही जाऊंगी । बीकासिंह जी ने हाँ कह दी अब नागणेची जी उनके संग चल पडी राव ( महाराजा ) बीकासिंह जी आगे-आगे और उनके पिछे नागणेची जी चलती रही जब शहर के पास पहुंच गए जब नागणेची जी के पैरो की पायजेब की झनकार सुनाई देनी बंद हो गई तो बीकासिंह जी को लगा कि नागणेची पिछे आ भी रही है या नही उन्हे शर्त तो भुल गई और शनस्य मन मे होने लगा और उन्होने पिछे मुड कर देखा तो नागणेची जी ने कहाँ बस अब मै इसके आगे नही जाऊँगी बस यही मेरा मंदिर बनवा दो ।बस तभी से नागणेची का मंदिर नगर के बाहर बनवाया गया यह मंदिर किले मे बनवाना था पर माता की आज्ञा वही की हुई और शहर के बाहर नागणेची जी का मंदिर बना हुआ है पर गंगासिंह जी तो रोज नागणेची जी के दर्शन करने जाते थे घोडे पर सवार होकर पर जब वे अस्वस्थ होते थे तो दर्शन करने मंदिर मे नही जा सकते थे इस लिए उन्होने नागणेची जी के मंदिर मे एक खिडकी बनवाई जो किले की तरफ खुलती है ।इस खिडकी के माध्यम से वे नागणेची जी के दर्शन करते थे और फिर अन्न जल लेते थे ।

    महाराजा गंगासिंह जी बहुत ही बहादुर निडर राजा थे। इनकी बहादुरी के चर्चे अंग्रेज भी करते थे। अंग्रेज महाराजा गंगासिंह जी से डरते थे । अंग्रेज आँफिसर गंगासिंह जी के दरबार मे आते थे इनका रुतवा ही ऐसा था कि इनकी प्रसिद्ध दुर दराज तक फैंली हुई थी । पुरे राजपुताना मे भी इनका सम्मान होता था ।

    एकबार महाराजा गंगासिंह शिकार खेलने गए उनके संग दो अंग्रेज आफिसर भी गए थे । महाराजा गंगासिंह जी को शेर का शिकार करने मे आनन्द आता था उनके दरबार मे कई शेरो की खाल भुसा भर कर रखी रहती थी जो आज भी जूनागढ किले मे और सीटी संग्राहालय मे रखी हुई है । जब वे शिकार करने गए थे तो अंग्रेज आफिसर जो उनके संग गए थे उन्होने शेर को देखा और शेर पर बंदुक तान दी ये देख कर गंगासिंह जी ने उन अंग्रेज आँफिसर से कहाँ शेर का शिकार चोरी से नही किया जाता वल्कि सामना करके करना चाहिए क्योकि शेर जगंल का राजा होता है और एक राजा को दुसरे राजा पर चोरी से बार नही करना चाहिए। एक राजा को दुसरे राजा से युद्ध करके हराना ठीक रहता है और फिर महाराजा गंगासिंह जी अपनी गाडी से उतर गए और शेर के सामने निहथे ( बीना हथियार के ) जा कर खडे हो गए शेर गंगासिंह जी पर झपटा फिर उन्होने भी शेर से युद्ध किया यानि अपने हाथो से उस पर पहार करने लगे दोनो मे इस प्रहार करते करते गंगासिंह ने अपने हाथो से शेर का जबडा चिर दिया शेर वही ठेर हो गया यह सब देख कर वे दोनो अंग्रेज आँफिसर दंग रह गए उनकी समझ मे नही आया की भला कोई निहथा इन्सान कैसे हाथ से किसी शेर को मार सकता है। जब गंगासिंह जी ने शेर का शिकार कर लिया तब वे बापस अंग्रेज आफिसर के पास आे तो वे उनकी भुरी-भुरी प्रसन्नसा करने लगे और उनसे पुछा की जब आप शिकार कर रहे थे तो आपके पिछे एक लाल साडी वाली महिला जीसके हाथ मे त्रिशुल था कौन थी वो गंगासिंह जी समझ गए थे की वो औरत कोई और नही उनकी कुलदेवी नागनेची जी ही थी । गंगासिंह जी जब भी कही बाहर निकलते थे तो अपने इस्ट देव ( लक्ष्मीनाथ जी) और अपनी कुलदेवी ( नागनेची जी ) का ध्यान करके निकलते थे इस लिए उस दिन उन अंग्रेज आँफिसर को जो औरत दिखी वही नागनेची जी थी वे सदा गंगासिंह जी के संग रहती थी ।

    एक आदर्श पुत्र भी थे महाराजा गंगासिंह जी वे अपनी माँ राज माता की बहुत ईज्जत करते थे। उनके आशिर्वाद लेकर ही वे किसी काम की शुरुआत करते थे ।जब राज माता स्वर्ग गई तब गंगासिंह जी बच्चो की भांति बहुत विलख-विलख कर रोए थे उन्हे इस तरह से रोते देख कर पुरे शहर की प्रजा की आँखो से आँसुओ की धारा बह निकली थी । अपनी माता के देहान्त होने पर उनको गहरा झटका लगा था उन्होने सभी प्रजा के सामने ही फुट-फुट कर रोते समय यह कहने लगे की मुझे गंगासिंह जी तो सब बोलेंगे पर मुझे गंगिया कोई नही बोलेगा किसकी गोद मे सिर रख कर आशिर्वाद लुंगा। गंगासिंह जी को राज माता प्यार से गंगिया कह कर पुकारती थी ।

    महाराजा गंगासिंह जी महान राजा थे उनकी महानता से अंग्रेज सरकार भी नतमस्तक होती थी । सन् 1930-32 मे इंग्लैंड की महारानी ने गोल मेज सम्मेल का आयोजन किया तब इंग्लैंड की महारानी ने महाराजा गंगासिंह जी को भी गोलमेज सम्मेलन मे भाग लेने के लिए बुलाया था क्योकि इंग्लैंड की सरकार महाराजा गंगासिंह जी का बहुत आदर करती थी। भारत से रियास्तो के प्रतिनिधी के रुप मे महाराजा गंगासिंह जी ने गोलमेज सम्मेलन मे भाग लिया था।

    महाराजा गंगासिंह जैसा प्रतापी महान शायक दुनिया मे कम ही होंगे ।ये अपनी प्रजा के दिलो मे रहते थे इनके दर्शन करने के लिए प्रजा वेताब रहती थी जब ये शहर मे प्रजा के सम्मुख आते थे तो सारी रियास्त से लोग इनके दर्शन करने मिलने के लिए एकत्रित होते थे इनके विचारो को सुनते थे । सारी प्रजा इनका बहुत आदर करती थी। महाराजा गंगासिंह जी को अंग्रेज सरकार ने जय जांगधर बादशाह की उपाधी से नवाजा था। जीस पर दो शेर बने हुए थे।

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